यूके के लिबॅर की विदाई, भारतीय बेंचमार्क का बन रहा रोडमैप

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भारतीय रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा विनिमय दर और ब्याज दर के निर्धारण का पूर्ण स्वदेशी आधार अर्थात एक स्वतंत्र बेंचमार्क (संदर्भिका) को कुछ ही महीनों में लांच करने की तैयारी में इन दिनों पूरी जोरदारी से जुटा है। लिबॅर के स्थान पर भारतीय बेंचमार्क को वित्तीय बाजार में सुगमतापूर्वक स्थापित करने के लिए वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद (एफएसडीसी) के कहने पर वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलात विभाग के तत्वावधान में गठित अंतर्विषयक समिति ने ट्रांज़ीशन रोडमैप बनाने का काम शुरू कर दिया है।

तकरीबन पांच दशकों से अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाजार पर एकछत्र राज करने वाले लिबॅर (लंदन इंटर बैंक आॅफर्ड रेट) को हर हाल में 2021 के समाप्त होने तक हमेशा के लिए गुडबाई कर ली जाएगी। लिबॅर पर से विश्वास उठने और इस पर निर्भरता खत्म करने के पीछे भी निजी स्वार्थों भरी एक दिलचस्प कहानी है। यूनाइटेड किंगडम (यूके) का लिबॅर एक ऐसा महत्वपूर्ण बेंचमार्क (संदर्भिका) रहा है। जिसे यूके ही नहीं बल्कि अधिकांश देशों के बैंक और वित्तीय संस्थानों से लेकर वित्तीय बाजार नियामक तक इसकी घोषित दरों के आधार पर अपनी दरें तय करते हैं।

2009-10 से बड़े स्तर पर हेरा फेरी (फर्जी आकड़े पेश करके) करके लिबॅर दरों में घट-बढ़ करके मुट्ठी भर बैंकरों के साथ कुछ और लोग कमाई करने का खेल चला रहे थे। निजी स्वार्थों में टकराव होने पर इस खेल की पोल खुली वर्ष 2012 में। यूरोप के कई नामी, अंतर्राष्ट्रीय स्तर के भारी भरकम बैंक, वित्तीय संस्थान हेराफेरी में संलिप्त थे।

दुनिया में यह लिबॅर स्कैंडल नाम से जाना गया। वैश्विक गुडविल रखने वाले ड्योश बैंक, सिटी ग्रुप, राॅयल बैंक आॅफ स्काॅटलैंड, बारक्लेज़, जेपी माॅर्गन चेज़ सालों तक अंतर्राष्ट्रीय आलोचना के केंद्र रहे, एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप तक ही नहीं सीमित रहे ये, मुकदमे भी चले। इन सबकी सज़ा असहाय लिबॅर को भुगतने पड़ रही है और अब तो उसे सूली पर चढ़ाने की अंतिम तारीख 2021, 31 दिसंबर भी तय की जा चुकी है।

लिबॅर पर दशकों से कायम विश्वास को स्कैंडल ने एक झटके में ढहा दिया। लिबर स्कैंडल से अन्य देशों की तरह भारतीय नियामक और नीति निर्धारकों ने सबक लेते हुए स्वदेशी संदर्भिकाएं अर्थात बेंचमार्क विकसित करने का आंतरिक निर्णय किया। जिसके अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक ने वर्ष 2014 में विजय भास्कर की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया। इस समिति की अनुसंशाओं के आधार पर ही संदर्भिकाएं विकसित करने और इनको प्रशासित करने को 2014 दिसंबर में कंपनी अधिनियम के तहत अपने नियामकीय तत्वावधान में (स्वामित्व में नहीं) भारतीय रिज़र्व बैंक ने फाइनेंशियल बेंचमार्क्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (एफबीआईएल) स्थापित कराई।

एफबीआईएल में इंडियन बैंक्स एसोसिएशन (आईबीए) 10 फीसद की, फाॅरेन एक्सचेंज डीलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एफईडीएआई) 14 फीसद की और फिक्स्ड इनकम मनी मार्केट ऐंड डेरिवेटिव्स एसोसिएशन (एफआईएमएमडीए) 76 फीसद की हिस्सेदार है। वाणिज्यिक बैंकों ने मिलकर 1958 में एफईडीएआई स्थापित की थी, यह स्वनियंत्रित संस्था है। एफआईएमएमडीए को 1998 मई में अनुसूचित बैंकों, सार्वजनिक वित्तीय संस्थानों, प्राइमरी डीलर्स और बीमा कंपनियों ने मिलकर स्थापित किया था।

एफबीआईएल इन दिनों लिबॅर का देशी विकल्प तैयार करने में पूरी तरह से जुटी हुई है। लिबॅर के स्थान पर देशी बेंचमार्क को अपनाने तक का ‘संक्रांति काल’ अर्थात ट्रांज़ीशन पीरियड अत्यंत नाजुक माना जाता है, संक्रांति काल में बिना किसी बाधा के नव सृजित देशी बेंचमार्क को स्थापित कराने के लिए ‘ट्रांज़ीशन रोडमैप’ पर तेजी से कार्य किया जा रहा है। आने वाली जून-सितंबर तिमाही तक मार्केट रेपो ओवरनाइट रेट (एमआरओआर), सर्टिफिकेट आॅफ डिपाॅज़िट (सीडी) और ट्रेज़री बिल्स (टी-बिल), ओवरनाइट मुंबई इंटरबैंक आउटराइट रेट (एमआईबीओआर) का प्रशासन एफबीआईएल के सुपुर्द कर देने की संभावना है।

प्रणतेश नारायण बाजपेयी