आजादी के दीवानों को मिलेगा समुचित सम्मान !

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# शिवचरण चौहान    # भारत की आजादी का अमृत महोत्सव

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आजादी के अमृत महोत्सव की शुरुआत अहमदाबाद से कर दी है। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि अब आजादी के दीवानों को समुचित सम्मान मिलेगा। उनका सही इतिहास पढ़ाया जाएगा। देश भर में 75 कार्यक्रम चलाए जाएंगे। उन्होंने लोगों, कवियों, साहित्यकारों, इतिहासकारों, चित्रकारों और सभी का आव्हान करते हुए कहा की सभी शहीदों की गौरव गाथा को सबके सामने सच्चे ढंग से पेश करें। इस देश के निर्माण में कवियों भक्त कवियों, समाज सुधारकों, क्रांतिकारियों शहीदों का बहुत योगदान रहा है। फिर क्यों हमारे आजादी के दीवानों को उचित सम्मान नहीं मिला ? भारत की आजादी के 75 वर्ष आगामी 15 अगस्त 2022 को पूरे हो रहे हैं। गांधी जी ने दांडी यात्रा शुरू कर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था। सत्याग्रह किया था। कवियों लेखकों, नाटककारों, इतिहासकारों चित्रकारों को चाहिए कि वह सब आगे आएं और आजादी के दीवानों का चरित्र चित्रण करें ताकि हमारी नई पीढ़ी जान सके इस देश को आजाद कराने में बहुत लोगों ने बलिदान दिया है।

सचमुच में चन्द्र शेखर आजाद, सरदार भगत सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, अशफाक उल्ला खां, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी, दुर्गा भाभी, करतार सिंह सराभा, आदि न जाने कितने बलिदानी भारत को आजाद कराने के लिए हंसते हंसते फांसी पर झूल गए, सीने में गोली खा ली शीश कटवा दिया पर उफ़ तक नहीं किया।

भारत सरकार के पास लेखकों, कवियों की, नाटककारों , इतिहासकारों के ग्रंथों, किताबों पुस्तिकाओं के छापने के लिए प्रकाशन विभाग, नेशनल बुक ट्रस्ट, एनसीईआरटी, शिक्षा विभाग, केंद्र और राज्य सरकारों की साहित्य अकादमी, सूचना विभाग और आर्थिक अनुदान देने के लिए राजकोष है। डॉ निशंक जैसा इतिहासकार, साहित्यकार शिक्षा मंत्री है। तो फिर देर किस बात की लेखकों के पास अमूल्य जानकारी है उनकी पुस्तकों का प्रकाशन किया जाए और जन-जन तक पहुंचाया जाए ताकि नई पीढ़ी हमारे आजादी के दीवानों से परिचित हो सकें। रेडियो, दूरदर्शन, अखबारों पत्र-पत्रिकाओं और निजी चैनलों से आजादी के दीवानों के बारे में व्यापक जागरूकता अभियान चलाये जा सकते है। ताकि नई पीढ़ी शहीदों का सम्मान करना सीख सके।

भारत के इतिहास को बहुत तोड़ा मरोड़ा गया है, इसको सही करने की आवश्यकता है। अब समय आ गया है कि सरकार इतिहास पुनर लेखन समिति बनाकर उससे इतिहासकारों, साहित्यकारों को जोड़ें। शहीदों क्रांतिकारियों के बारे में जो गलत पढ़ाया जा रहा है और भ्रामक धारणाएं पैदा कर दी गई हैं, उन्हें सही किया जा सके। बहुत दिनों तक पाठ्यक्रम में भगत सिंह को आतंकवादी पढ़ाया जाता रहा है। चंद्र शेखर आजाद की मां को एक डकैत की मां कहा जाता था। चंद्रशेखर आजाद की जन्मतिथि आज भी गलत पढ़ाई जाती है।

ठाकुर रोशन सिंह के परिवार को डकैत का परिवार कहा जाता है। ठाकुर रोशन सिंह काकोरी केस में शामिल नहीं थे फिर भी उन्हें फांसी की सजा दी गई थी। इस गलत इतिहास को सही किया जाना चाहिए। सन 1857 की क्रांति के नायक महारानी लक्ष्मी बाई किसके कारण शहीद हुई आज तक अज्ञात है। ग्वालियर और दतिया के राज परिवारों ने रानी लक्ष्मीबाई के साथ गद्दारी की थी। ग्वालियर में किन लोगों ने तात्या टोपे को पकडवाया था, यह सब स्पष्ट बताया जाना चाहिए। मंगल पांडे ने क्यों विद्रोह किया स्पष्ट रूप से बताया जाना चाहिए।

चंद्रशेखर आजाद इलाहाबाद में अल्फ्रेड पार्क की और जा रहे हैं, यह बात अंग्रेजों को किसने बताई? अल्फ्रेड पार्क मैं चंद्र शेखर आजाद के साथ दूसरा वह कौन आदमी था, जिसने जासूसी की थी और चन्द्र शेखर आजाद को शहीद होना पड़ा था। यह सब बातें आज की नई पीढ़ी को पता होनी चाहिए।
मुगलों के बाद अंग्रेजों ने भारतीयों पर बहुत अत्याचार किए हैं। भारत ने सात सौ साल गुलामी भोगी है। अगणित क्रांतिकारियों ने बलिदान दिए हैं तब भारत आजाद हुआ है और आज की पीढ़ी समुचित शिक्षा के अभाव में अपने क्रांतिकारियों, शहीदों और देश के वीरों को भूलती जा रही है।

यह सच है कि अगर गद्दार न होते तो भारत गुलाम न होता। गद्दार ना होते तो देश कब का आजाद हो जाता। गद्दारों के ही कारण हमारे लाखों नौजवानों को अपना बलिदान देना पड़ा। भारत की यह आजादी हमारे आजादी के दीवानों की देन है, जिन्होंने अपना सब कुछ देश की आजादी के लिए न्यौछावर कर दिया। आज हम उन आजादी के दीवानों को भूलते जा रहे हैं।

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले।
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशा होगा।

आज शहीदों के निशान मिटते जा रहे हैं हम उन्हें भूलते जा रहे हैं। इन्हीं सब को याद करने के लिए आजादी के दीवानों के संदेश को जन जन तक पहुंचाने के लिए ही आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है।

उत्तर प्रदेश सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने पहले से ही आजादी के दीवानों के लिए जागृति अभियान हर जिले में चला रखा है। चौरी चौरा आंदोलन से इस की शुरुआत भी की जा चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आजादी अमृत महोत्सव का शुभारंभ कर एक अच्छे काम की शुरुआत की है। इसे गांव गांव से लेकर शहरों शहरों और राजधानियों तक व्यापक रूप दिया जाना चाहिए। नाटक सभा समारोह कवि सम्मेलन, कवि गोष्ठियों चर्चा परिचर्चा, लेखन प्रकाशन के माध्यम से आजादी के भूले बिसरे दीवानों क्रांतिकारियों बलिदानियों की सच्ची घटनाओं को हमारी नई पीढ़ी तक पहुंचाया जाना चाहिए।

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के अनुसार
कलम आज उनकी जय बोल।
जो चढ़ गए पुण्य वेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल।।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं