दिल्ली में धमकी का नागपुर में असर

दिल्ली में धमकी का नागपुर में असर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा जंतर-मंतर पर किए गए कमजोर प्रदर्शन के बाद ही सामने या नागपुर का विवाद नागपुर में दंगा नहीं हिंदुओं पर हमला हुआ, जिसमें सिर्फ हिंदुओं के घरों, संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया नागपुर में कश्मीर पैटर्न भी देखने को मिला, बवाल करने वालों ने कश्मीर स्टाइल में पुलिस पर हमला किया अफसोसनाक बात ये थी कि पुलिस के इकबाल को चुनौती दी गई और महिला पुलिसकर्मियों पर हाथ डाला गया

0
114

पब्लिक किसी बात पर नाराज हो, नाराजगी में प्रदर्शन करे और सरकार के खिलाफ नारेबाजी करे तो यह उसका संविधान प्रदत्त अधिकार है। परंतु वह पुलिस के इकबाल को चुनौती दे तो बात गंभीर हो जाती है, और नागपुर में यही हुआ। महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस भी इसे गंभीर मानते हुए कहते हैं कि और कोई बात होती तो हम उसे बर्दाश्त कर लेते। परंतु ये हमला तो पुलिस के इकबाल पर हुआ है, और ये बर्दाश्त के काबिल नहीं है। इसके आरोपियों को हम कब्र से भी खोज निकालेंगे और सजा देंगे। नागपुर के बवाल की तह में जाने पर पता लगता है कि यह विवाद एक सोची-समझी प्लानिंग का हिस्सा था।

सूत्र बताते हैं कि वक्फ संशोधन बिल का विरोध करने के लिए दिल्ली के जंतर-मंतर में आयोजित प्रदर्शन जब कामयाब नहीं हुआ तो नागपुर को टारगेट किया गया। जंतर-मंतर में प्रदर्शन के दौरान ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मोहम्मद अदीब के बयान पर गौर करें तो बात साफ हो जाती है। उन्होंने साफ-साफ धमकी दी थी कि अगर आपने वक्फ संशोधन बिल को पास करा लिया तो देखिएगा कि हम क्या करते हैं। और उसी के बाद नागपुर कांड हो गया। अदवी का यह बयान संयोग भी हो सकता है, पर शक की पूरी गुंजाइश है। और नागपुर भी इसलिए क्योंकि यहां पर 1992 में अयोध्या का विवादित ढांचा गिराए जाने के समय भी बवाल नहीं हुआ था। यहां आरएसएस का मुख्यालय भी है। इसलिए शायद यह मैसेज देने की कोशिश की गई कि अगर आप मुसलमानों को छेड़ेंगे तो वे नागपुर को भी नहीं छोड़ेंगे।

शायद इसीलिए महाराष्ट्र की सरकार इसे गंभीरता से ले रही है। इस मामले में सरकार की नाराजगी मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के बयानों में देखी जा सकती है। पार्टी प्रवक्ताओं का भी साफ कहना है ये दंगा नहीं था, ये हिंदुओं पर सुनियोजित हमला था। पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी में भी साफ लिखा गया है कि हिंदुओं के घरों, उनकी संपत्तियों, उनकी दुकानों और उनके वाहनों को ही नुकसान पहुंचाया गया। किसी भी मुस्लिम की संपत्ति या मकान को नुकसान नहीं पहुंचाया गया। यहां तक कि इलाके में सड़कों पर खड़ी रहने वाली मुसलमानों की सैकड़ों गाड़ियां भी वारदात के समय हटा दी गई थी। वैसे पुलिस ने नागपुर कांड के मास्टरमाइंड फहीम खां को गिरफ्तार कर लिया है। इसके अलावा लगभग 100 लोगों को पकड़ कर मामले के सूत्र तलाशने की कोशिश हो रही है। इस मामले में एनआईए ने भी अपनी आमद दर्ज कर ली है, और उसने भी जांच शुरू कर दी है।

इस मामले में अंतरराष्ट्रीय साजिश के भी संकेत मिले हैं। खबर है कि बांग्लादेश से आए एक सोशल मीडिया पोस्ट ने इस विवाद की नींव रखी। इसके अलावा पुलिस और साइबर सेल ने लगभग 200 से अधिक सोशल मीडिया अकाउंट को चिह्नित किया है, जिनके जरिए विवाद फैलाने की बात कही गई है। कुल मिलाकर नागपुर का बवाल छोटी घटना नहीं है। यह ट्रेलर लगता है, क्योंकि इस घटना के बाद मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में भी माहौल खराब करने की कोशिश की गई किंतु वहां पुलिस की मुस्तैदी ने मामले को संभाल लिया। और नागपुर में मामला इसलिए नहीं संभल पाया क्योंकि पुलिस का यह मानना था कि जो नागपुर 1992 में भी दंगे कि आग से बचा रहा वहां पर इस तरह की घटना होने की कोई आशंका नहीं है। यहां के रहने वाले हिंदू भी इस घटना से स्तब्ध हैं। उन्हें भी इसकी कोई आशंका नहीं थी। इलाके का रहने वाले एक युवक आदित्य, जिसकी दुकान बवाल ने जला दी गई, का दर्द यही है कि हम तो भाईचारे से रहते थे तो मुसलमानों ने भाईचारा क्यों नहीं दिखाया। अर्थात यह आग लगी नहीं है, लगाई गई है। ऐसे में इससे सबक लेने की जरूरत है।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक