लखनऊ। इटावा में गैर ब्राह्मण कथावाचकों के साथ हुई कथित बदसलूकी के मामले ने अब सियासी रंग ले लिया है। समाजवादी पार्टी जहां इसे यादव वर्ग का अपमान बता पीडीए के स्वाभिमान से जोड़ रही है, वहीं भाजपा इसे जातीय संघर्ष कराने की कोशिश करार दे रही है। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का कहना है कि भाजपा नहीं चाहती कि पीडीए के लोग कथावाचन के क्षेत्र में भी आएं जबकि शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का कहना है कि व्यास पीठ पर तो सिर्फ ब्राह्मण ही बैठ सकता है। हालांकि उनका यह भी कहना है कि अब समय बदल रहा है और दूसरे लोग भी कथाएं करने लगे हैं। ऐसे में उन्हें भी इग्नोर नहीं किया जा सकता, पर यह शास्त्रसम्मत तो नहीं है। उधर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओपी राजभर का कहना है कि लोग बेवजह इसमें राजनीति कर रहे हैं, जबकि हम लोग अभी भी ब्राह्मणवादी व्यवस्था को ही मान रहे हैं। चाहे वह जन्म हो या फिर मरण का समय, हमारा काम बिना ब्राह्मणों के चलता ही नहीं। अब धीरे-धीरे यह विवाद बिहार भी पहुंच गया है। बिहार में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने कहा है कि यही है भाजपा और संघ का असली चरित्र। वे नहीं चाहते कि पिछड़ा और दलित वर्ग के लोग आगे बढ़ें, उनकी कथनी और करनी में अंतर है। वैसे जहां तक बात शास्त्रों की है तो उनमें इस बात का वर्णन है कि कथावाचन गैर ब्राह्मणों ने भी किया है। चाहे वह महर्षि वेदव्यास हों, चाहे महर्षि वाल्मीकि हों या फिर सूत जी। सत्यनारायण व्रत कथा की तो शुरुआत ही सूतजी के वचन से ही होती है। ऐसे में ये विवाद हांलांकि निरर्थक लग रहा है किंतु चुनावी मौसम है, इसलिए ये आगे बढ़ता ही रहेगा। चाहे वह बीजेपी हो, सपा हो या फिर कोई और पार्टी इसमें उन्हें राजनीतिक स्वार्थ दिख रहा है तो वे इस आग में घी डालने का प्रयास करेंगे ही।
इस मामले में उल्लेखनीय यह है कि सपा और यादव संगठनों ने उन कथावाचकों का सम्मान किया है, जिन पर आरोप है कि उन्होंने यजमान के घर महिलाओं से बदसलूकी की और अपनी पहचान छिपा कर खुद को ब्राह्मण भी बताया। अब पुलिस इस मामले में मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई कर रही है। फिलहाल इस विवाद के बाद इटावा जिले का माहौल काफी गर्म हो चला है। अब चूंकि मामला इटावा का है तो सपा को अपने शक्ति प्रदर्शन का मौका भी मिल गया है, इसलिए माहौल तो खराब होना ही है।
उधर जानकारी मिली है कि इटावा में जिन दो यादव कथावाचकों के साथ दुर्व्यवहार किया गया था, उन्हें यादव समाज के द्वारा सम्मानित किया जा रहा है। इसके अलावा लखनऊ के सपा ऑफिस में बुलाकर उन्हें अखिलेश यादव ने भी सम्मानित किया था। इसके अलावा बीते 25 जून को इन कथावाचकों को ‘विश्व यादव परिषद संगठन’ के लोगों ने भी सम्मानित किया है। इस दौरान कथावाचक मुकुट मणि यादव और उनके सहयोगी संत यादव ने अपनी योग्यता बताते हुए कहा कि हम लोग पढ़े-लिखे हैं, और हमने कथावाचन गुरु-शिष्य परंपरा से सीखा है।
…और अखिलेश यादव का पीडीए राग जारी : ऊहे गीतिया गाईं, जेमे पियवा के नमवा आवे। उत्तर प्रदेश और बिहार के भोजपुरी बेल्ट में ये कहावत बहुत पहले से चली आ रही है। इसमें एक महिला लगातार वही गीत गाना चाहती है, जिसमें उसके पिया का नाम आता है। ऐसी ही कुछ हालत इस समय समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की हो गई है। घूम फिरकर वे पीडीए राग अलापना शुरू कर देते हैं। इस बार भी उन्होंने इटावा में दो यादव कथावाचकों के साथ हुई अभद्रता को लेकर यही राय अलापना शुरू कर दिया है। ये सही बात है कि भगवान का भजन करने से या कथा वाचन से किसी को रोका नहीं जा सकता, क्योंकि ये उसका धर्म संगत अधिकार है, किंतु झूठ बोलकर लोगों की भावनाएं आहत करना तथा महिलाओं से छेड़खानी का अधिकार किसी को नहीं है। अपनी पूरी मुहिम में अखिलेश यादव उन दो कथावाचकों को पीडीए का यादव कहना तो नहीं भूलते हैं लेकिन इस बाबत चुप्पी साध जाते हैं कि उन्होंने महिलाओं से बदसलूकी क्यों की, या फिर उन्होंने क्यों अपनी जाति छिपाकर आदर प्राप्त करने की कोशिश की। उनके इस प्रयास में एक बात और साफ हो गई लगती है कि बीते विधानसभा उपचुनाव में अखिलेश यादव ने अपने पीडीए के ए समीकरण में अल्पसंख्यकों के साथ जिन अगड़ों को जोड़ने की बात की थी, उनमें शायद ब्राह्मण समाज नहीं आता है। और इसीलिए शायद वे और उनके समर्थक अब इस लड़ाई को ब्राह्मण बनाम यादव का रूप देने की कोशिश में लगे हैं। यानी सपा तब भी ब्राह्मण समाज को बेवकूफ बना रही थी। इसीलिए एक ही झटके में उनके खिलाफ माहौल बनाना शुरू कर दिया है। खैर, ऐसा करके वे दोराहे पर खड़े ब्राह्मणों को भाजपा की गली की ओर जाने का ही इशारा कर रहे हैं। कहीं यह दांव उन पर उल्टा न पड़े। हिंदू जनमानस में कथावाचकों का बड़ा सम्मान है, उन्हें बड़ी आदर की दृष्टि से देखा जाता है। यहां तक कि संभ्रांत घरों की महिलाएं तक उनके पैर छूती हैं। और शायद यही बात उन दोनों यादव कथावाचकों को समझ में आई थी और उन्होंने अपना चोला बदल लिया। पर अगर उनको कथावाचन करना था तो वे अपनी पहचान के साथ भी कर सकते थे किंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्हें लगा कि वे अगर ब्राह्मण नाम धारण करेंगे तो उनकी ज्यादा इज्जत होगी। अर्थात वे भी मानते हैं कि कथावाचक होने के लिए ब्राह्मण होना बहुत जरूरी है। परंतु यही बात अखिलेश यादव को समझ में नहीं आ रही है, और वे खामखां इस मामले को तूल दे रहे हैं। ऐसे में यहीं पर वे एक राजनीतिक चूक कर बैठे हैं। इससे उनका पीडीए मजबूत होगा या नहीं यह तो नहीं मालूम किंतु उनके जो थोड़े ब्राह्मण समर्थक बचे हैं, वे जरूर उनसे छिटक जाएंगे। क्योंकि जब भी वे पीडीए की बात करते हैं तो इसका नकारात्मक असर ब्राह्मणों पर पड़ता है। वैसे भी उनके पीडीए की पूरी राजनीति ब्राह्मण और ब्राह्मणवादी व्यवस्था के खिलाफ मानी जाती है। उनका सीधे-सीधे यही कहना है कि ब्राह्मणवादी मानसिकता ने सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचाया है। और ऐसे में अगर वे कहते हैं कि कथावाचन का अधिकार सिर्फ ब्राह्मणों को नहीं है, तो वे अप्रत्यक्ष रूप से ब्राह्मणों को नाराज करते हैं। जहां तक सवाल उन दो यादव कथावाचकों का है तो उनके बारे में जो सूचनाएं आ रही हैं, उनके अनुसार वे पहले बौद्ध धर्म का पालन करते थे और बौद्ध धर्म के उपदेशों का प्रचार-प्रसार करते थे। ऐसे में उन्हें कथावाचन करने और सनातन धर्म की पूजा पद्धति में आने के लिए नाम तो बदलना ही था। क्योंकि पुराने नाम से उन्हें सनातन के कथा वाचक के रूप में कोई स्वीकार नहीं करता। शायद इसीलिए उन्होंने अपने नाम में से यादव हटाकर अग्निहोत्री जोड़ लिया, और बाकायदा नया अग्निहोत्री ब्राह्मण वाला आधार कार्ड भी बनवा लिया। यहीं पर वे भूल कर बैठे, क्योंकि ऐसा नहीं है कि कथा वाचन के क्षेत्र में सिर्फ ब्राह्मण ही हैं, दूसरी जातियों के लोग भी हैं। और लोग बड़े सम्मान के साथ उनकी कथा सुनते हैं। कई मंदिरों में तो गैर ब्राह्मण पुजारी के रूप में भी काम कर रहे हैं। और लोग यह जानते हुए कि वे गैर ब्राह्मण हैं, उनका सम्मान करते हैं, चरण छूते हैं। बहरहाल, इन दोनों यादवों के कथावाचन की पद्धति के जो वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हो रहे हैं, उनके अनुसार वे कथावाचक कम नर्तक ज्यादा दिखाई दे रहे हैं। वीडियो में जिस प्रकार वे घूम-घूम कर नाचते हुए भजन कर रहे हैं, ऐसा काम कथावाचक तो नहीं करते हैं। कथावाचक तो अपने मंच पर बैठे रहते हैं और बाकी श्रोता उनके भजनों पर मगन होकर नृत्य करते हैं। ऐसे में इनका कथा वाचन का तरीका भी गैर परंपरागत लग रहा है।
इसके अलावा अगर आपने सत्यनारायण कथा सुनी हो तो ध्यान दिया होगा कि पूजन कराने आए पंडित जी अक्सर बोलते हैं ‘सूत उवाच’, यानी कि सूतजी ने कहा। ऐसा कहकर वे कथा सुनाना शुरू करते हैं। हम सभी जो सत्यनारायण कथा सुनते हैं, वह कभी ‘सूत जी’ ने सुनाई थी। इसी कथा में यह भी पता चलता है कि यह कथा स्कंद पुराण के रेवा खंड में दर्ज है। सूत जी ने सिर्फ सत्यनारायण कथा ही नहीं, बल्कि स्कंद पुराण भी सुनाया था। और सिर्फ स्कंद पुराण ही क्यों, उन्होंने 18 महापुराणों में 10 पुराणों की कथा कही है। इसलिए बहुत से पुराणों में शुरुआत यहीं से मिलेगी कि सूत उवाच। असल में सूत एक जाति है, जो प्राचीन जाति व्यवस्था के अंतर्गत वर्ण संकर जाति में आति में आती है। वर्ण संकर से अभिप्राय यह है कि दो जाति के लोगों के मिलन से पैदा हुई संतानें।
तो ये सपा मुखिया का चुनावी शिगूफा है….. : उत्तर प्रदेश में वर्ष 2026 के पंचायत चुनावों, 2027 के विधानसभा चुनावों के कारण सूबे में राजनैतिक सरगर्मियां तेज हैं। सपा के साथ-साथ अन्य दल भी इन चुनावों में पहले की ही तरह जातिवाद-तुष्टीकरण को ही प्रमुख हथियार बनाने के प्रयास में हैं। अखिलेश यादव ने जिस प्रकार पीडीए के नाम पर हिन्दू समाज को जातियों में विभाजित कर स्वार्थ सिद्ध करने की योजना बनाई है वह प्रदेश के सामाजिक ताने-बाने को ध्वस्त करने का एक खतरनाक खेल है। बीते कुछ दिनों में प्रदेश में कई ऐसी घटनाएं घटी हैं जो इस खतरनाक खेल का इशारा कर रही हैं। इस क्रम में अखिलेश यादव द्वारा पीडीए की राजनीति को संबल देने के लिए जो बयानबाजी की जा रही है और समर्थकों द्वारा सोशल मीडिया पर जो टिप्पणियां की जा रही हैं, उनसे प्रदेश में शांति भंग की आशंका बढ़ रही है। वैसे अखिलेश यादव इटावा की घटना पर आक्रामक होकर जिस तरह आपत्तिजनक बयान दे रहे हैं उतना ही चुप वे नैमिषारण्य में एक अन्य कथावाचक के साथ घटी अप्रिय घटना पर, हैं। और यह शुभ संकेत नहीं है। ये तो अच्छा हुआ कि पुलिस ने इटावा की घटना में चार लोगों को गिरफ्तार कर लिया है, और जांच आरंभ हो गई है। इस घटना को लेकर जिस प्रकार से ब्राह्मण समाज के विरुद्ध सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक टिप्पणियां की गई हैं, वे सामाजिक वैमनस्यता बढ़ाने वाली हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि पीडीए की बात करने वाले सपा मुखिया की 2012 में सरकार बनते ही सीतापुर में बड़ी संख्या में दलित समाज के घरों को जला दिया गया था। इसलिए भी अखिलेश यादव की इस मुहिम के संकेत अच्छे नहीं दिखाई दे रहे। हालांकि इटावा कांड की जांच चल रही है किंतु अखिलेश यादव उसे प्रभावित करने के लिए गलतबयानी भी कर रहे हैं। हिंदू समाज में वैसे भी कथावाचक की जाति पर कभी चर्चा नहीं होती, पऱंतु यदि कोई जाति व धर्म छिपाकर कथावाचन करता है, तो चिंता की बात है। किसी को अपना सही नाम बताने में कठिनाई नहीं होनी चाहिए। इस मामले में नाम छिपाने के साथ एक से अधिक आधार कार्ड रखने का भी आपराधिक कृत्य किया गया है। इस पूरी घटना में सपा की प्रतिक्रिया से लगता है कि संभव है कि इटावा की घटना सुनियोजित षड्यंत्र हो। इसके अलावा सपा ने राज्यसभा चुनावों के दौरान क्रास वोटिंग करने वाले तीन विधायकों ऊंचाहार से मनोज कुमार पांडेय, गोसाईगंज से अभय सिंह और गौरीगंज से राकेश प्रताप सिंह को पार्टी से निकालने की वजह भी पीडीए विरोधी विचारधारा को बढ़ावा देना ही बताया है। सपा की ओर से एक्स पर भी लिखा गया है कि सांप्रदायिक व पीडीए विरोधी विचारधारा का साथ देने के कारण तीनों विधायकों को निकाला गया है । दूसरी ओर इन विधायकों का कहना है कि भगवान राम और रामचरित मानस के अपमान का विरोध करने के कारण इन सभी को निष्कासित किया गया है। विधायक मनोज पांडेय ने कहा कि मैंने सपा नेताओं द्वारा हिंदू देवी- देवताओं को गाली दिए जाने तथा रामायण की प्रतियां जलाने का विरोध किया था। इसी से पार्टी नेतृत्व नाराज था। इन्होंने कहा है कि सपा में हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़़ किया जाता है। ऐसे में लगता है कि पार्टी अब लोहियावादी विचार त्याग दिया है।
बात सिर्फ पीडीए की नहीं इटावा का भी है मामला : बात सिर्फ पीडीए वर्ग के कथावाचकों की होती तो अखिलेश यादव शायद इतना रिएक्टिव न होते। पर बात जन्मभूमि इटावा की थी तो उनका इस विवाद में पढ़ना स्वाभाविक था। इटावा उनकी, उनके पिता की और उनके परिवार की बुनियाद है। वहां पर अगर कोई विवाद होता है, और वह भी किसी यादव पर तो अखिलेश यादव का उसमें कूद पड़ना लाजमी है। वैसे भी सपा को राजनीतिक रूप से फिलहाल ऐसा कोई मुद्दा मिला नहीं है, जिसे उठाकर वह भाजपा को टक्कर दे सके। बीते विधानसभा उपचुनाव में भी पीडीए के नाम पर ही हिंदू वोटरों को बांटने की कोशिश सफल नहीं हो पाई। और हुआ यह कि लोकसभा चुनाव में गलती कर गया सनातनी वोटर विधानसभा उपचुनाव में एकजुट हुआ और भाजपा को फायदा मिला। इस कारण अखिलेश के पीडीए को सफलता नहीं मिली और उन्हें मिल्कीपुर जैसी विधानसभा सीट गंवानी पड़ी। और ये वह सीट थी जो फैजाबाद के वर्तमान सांसद ब इंडी गठबंधन के पोस्टर बॉय अवधेश प्रसाद पासी की थी। मिल्कीपुर की हार ने समाजवादी पार्टी को बहुत हताश किया है। ऐसे में वह मुद्दों की तलाश में है। पहलगाम की घटना में भी सीजफायर के मामले को उछालकर नरेंद्र मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा कर मुद्दा बनाने की कोशिश की गई किंतु जनमानस विपक्ष के इस नैरेटिव को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं दिखा। इसके अलावा विदेशों में भी गए सांसदों के प्रतिनिधिमंडल ने पार्टी लाइन छोड़कर देशहित की बात की। इससे सपा और इंडी गठबंधन के बाकी दलों को समझ में आ गया कि इस पर सरकार को घेर पाना न तो संभव है, और न ही राजनीतिक बुद्धिमानी। इसलिए अब अखिलेश यादव एक बार फिर अपने पीडीए की ओर लौटने की कोशिश में हैं। और शायद इसी कोशिश का परिणाम है कि पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव ने भी सेना की ओर से ब्रीफिंग करने वाली कर्नल व्योमिका सिंह की भी जाति बता दी। इसको लेकर खूब हो हल्ला भी हुआ। सपा और विपक्ष की कोशिश यही रही कि पहलगाम कांड के बाद पाकिस्तान से बदला लेने के मोदी सरकार के काम को किसी तरह डैमेज करके उसे जातीय रंग दिया जा सके और मोदी सरकार की सफलता को भोथरा किया जाए। किंतु पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देना मोदी सरकार के लिए गेम चेंजर साबित हुआ। और विपक्ष की कोई रणनीति उसके आगे चल नहीं पाई। इसके अलावा आगरा के पार्टी सांसद रामजीलाल सुमन का मुद्दा भी उछला, जब उन्होंने राणा सांगा को गद्दार कह दिया। इसको लेकर क्षत्रिय समाज काफी नाराज रहा। सुमन के आगरा आवास पर प्रदर्शन भी हुए। तब अखिलेश ने इसे दलित समाज के स्वाभिमान से जोड़कर राजनीति करनी चाही, किंतु वह मुद्दा भी धीरे-धीरे टांय-टांय फिस्स हो गया। ऐसे में अखिलेश यादव को एक बार फिर जब इटावा और यादव का मुद्दा एक साथ मिला, तो वे एक्टिव हो गए। यहां तक कि उन्होंने दोनों यादव कथावाचकों को लखनऊ बुलाकर सम्मानित भी किया। जबकि उनके विरोध में इटावा के उस गांव के कई ब्राह्मण परिवार हैं, और और उन्होंने उनके खिलाफ महिलाओं से छेड़खानी और धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज कराया है। गांव के पीड़ित ब्राह्मण परिवार का कहना है कि अखिलेश यादव ने आरोपी कथावाचकों को सम्मानित करके हमारा विश्वास तोड़ा है। वे कम से कम हमें भी बुला कर हमारा भी पक्ष सुन लेते। खैर, मामला गर्म है, आगे इसका क्या परिणाम निकलेगा यह तो भविष्य ही बताएगा। पर ये तय है कि यह भाजपा के हिंदू एकजुटता के नैरेटिव के सामने पीडीए नैरेटिव लाने की कोशिश जरूर है। सपाइयों को लगता है कि अगर वे हिंदुओं के मतों में बंटवारा करने में कामयाब हो गए तो वक्फ को लेकर भाजपा से खार खाए मुसलमान उनकी नैया पर लगा सकते हैं। उधर दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी ने जातीय जनगणना को हरी झंडी देकर हिंदुओं में फूट डालने की विपक्ष की कोशिशों पर पानी फेर दिया है। कुल मिलाकर रस्साकशी जारी है।
सूबे में जातीय संघर्ष कराने की कोशिश-सीएम योगी : उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कहना है कि इस विवाद के जरिए प्रदेश में जातीय दंगा कराने की कोशिश है। अब जनता को समझना होगा कि वह सपा के बहकावे में न आवे। उन्होंने प्रशासन और पुलिस को खुली छूट देते हुए यह कहा है कि दोषियों पर कार्रवाई की जाए, और किसी आदेश की प्रतीक्षा न की जाए। उन्होंने हर हाल में कानून व्यवस्था को बनाए रखने के निर्देश दिए हैं। पुलिस भी अपने काम में लग गई है। पुलिस ने इटावा के बकेवर थाना क्षेत्र में बड़ा जातीय संघर्ष होने से फिलहाल बचा लिया है। मुख्यमंत्री ने इटावा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से कहा कि कुछ लोग यूपी में जातीय हिंसा कराना चाहते हैं, इस पर नजर रखें। सीएम ने कहा कि जिस जिले में ऐसी घटनाएं होंगी तो उस जिले के अधिकारी पर कड़ी कार्रवाई होगी। इसके अलावा इटावा पुलिस ने कथावाचकों की तहरीर पर रिपोर्ट दर्ज की और तुरंत कार्रवाई करते हुए 21 वर्षीय आशीष,19 वर्षीय उत्तम,24 वर्षीय प्रथम उर्फ मनु और 30 वर्षीय निक्की को गिरफ्तार कर लिया। इनमें निक्की पर कथा वाचकों के बाल जबरन काटने का आरोप है। इस मामले में एएसपी के नेतृत्व में एक जांच टीम गठित की गई है।
व्यासपीठ पर ब्राह्मण को बैठना चाहिए-शंकराचार्य : इस मामले में शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा है कि धर्म सम्मत व्यवस्था यही है कि व्यास पीठ पर ब्राह्मण बैठे, लेकिन समाज में अगर कोई बदलाव आ रहा है तो उससे भी इनकार नहीं किया जा सकता। उनका कहना है कि जन्म से कोई ब्राह्मण नहीं होता, कर्म से होता है। दूसरे वर्ग के कथावाचक की बात पर उन्होंने कहा कि किसी को मना नहीं किया जा सकता, हालांकि हालांकि यह शास्त्र सम्मत नहीं है। और जहां तक उन कथावाचकों का सम्मान करने की बात है, इसे उचित नहीं ठहराया जा सकता। उन्होंने कहा कि पीड़ित व्यक्ति के साथ सहानुभूति की जा सकती है, लेकिन उसका सम्मान करना उचित नहीं।शंकराचार्य ने कहा कि लोग जाति का आड़ में अपने कुकृत्यों को छिपाने का काम करते हैं। आप अगर यादव हैं, जाटव हैं तो इसमें क्या खराबी है। पर अपनी जाति छिपाकर कथा करने जाना, लोगों की भावनाओं से खेलने के समान है। इसके अलावा अखिल भारतीय संघ समिति के अध्यक्ष स्वामी जितेंद्र आनंद सरस्वती ने भी इस बेवजह के विवाद पर चिंता जताई है।
लोग बेवजह विवाद खड़ा कर रहे-ओपी राजभर : सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और यूपी सरकार के मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने कहा है कि हम अभी भी जाति व्यवस्था में ही काम कर रहे हैं। चाहे जन्म का समय हो, चाहे मौत का, बिना ब्राह्मण के काम नहीं चलता है। ये सब बोलने की बातें हैं कि ब्राह्मण गलत हैं। कोई भी पढ़ा-लिखा व्यक्ति जिसे वेदों का ज्ञान है, शास्त्रों का ज्ञान है, कथावाचन कर सकता है। लोग बेवजह राजनीति कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह जरूर है कि कथावाचकों की पिटाई करना और कानून हाथ में लेना गलत है। इसके अलावा अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के प्रदेश अध्यक्ष अरुण दुबे ने भी इस बेवजह के विवाद प अफसोस जाहिर किया है और संयम बरतने की सलाह दी है।
बिहार तक भी पहुंची इटावा कांड की आग : इटावा में कथावाचकों के साथ बदलसूकी और मारपीट की आग अब बिहार भी पहुंच चुकी है। बिहार में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने इस पूरे मामले को दलितों, पिछड़ों और अति पिछड़ों से जोड़ते हुए बीजेपी को घेरा है। चूंकि बिहार में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में नेता किसी भी मुद्दे पर एक-दूसरे को घेरने का मौका नहीं छोड़ रहे हैं। बिहार में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने पूछा है कि क्या अति पिछड़ों को कथावाचक बनने का हक नहीं है। तेजस्वी ने कहा कि ये भाजपा और आरएसएस का असली चरित्र है। यूपी में यादव कथावाचकों के साथ भेदभाव किया जा रहा है। कथा कहने का हक सभी को है। उन्होंने पूछा है कि क्या दलित किसी मंदिर का पुजारी नहीं बन सकता, क्या हमलोग हिन्दू नहीं हैं। यह लोग सामने से तो दलितों-पिछड़ों के लिए बात करते हैं लेकिन इनके मन में उनके लिए बहुत नफरत है।
अखिलेश ने तेज प्रताप से की बात, लखनऊ बुलाया : ताजा घटनाक्रम में खबर है कि सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के बड़े पुत्र और फिलहाल पार्टी और परिवार से निष्कासित तेज प्रताप यादव से फोन पर वार्ता की है, और पूछा है कि इस बार आप कहां से चुनाव लड़ेंगे। इस पर बताया जाता है कि तेज प्रताप यादव ने कहा है कि चुनाव तो लड़ना ही है, पर उसके पहले लखनऊ में आकर आपसे बात करेंगे। तेज प्रताप यादव ने इसके लिए अखिलेश यादव से समय मांगा तो उन्होंने कहा है कि फोन करके आ जाना। खबर है कि यह मुलाकात इसी हफ्ते में कभी हो सकती है। यानी इस मुलाकात के लिए अखिलेश यादव ने भी अपनी हामी भर दी है, और तेज प्रताप यादव को लखनऊ बुला लिया है। इसका मतलब बिहार की राजनीति में भी समाजवादी पार्टी कुछ बड़ा करने की कोशिश में है। सूत्रों का कहना है कि अखिलेश यादव तेज प्रताप को चुनाव लड़ने में समर्थन तो करेंगे ही, यह भी हो सकता है कि तेज प्रताप यादव को समाजवादी पार्टी के टिकट पर ही बिहार में चुनाव लड़ा दें। फिर तो उनका सामना लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद से भी होगा। इसको लेकर अटकलों का बाजार गर्म है। अब सब कुछ लखनऊ में प्रस्तावित अखिलेश यादव और तेज प्रताप यादव की बैठक पर निर्भर है। उल्लेखनीय है कि लालू प्रसाद यादव की बेटी की शादी अखिलेश यादव के परिवार के भतीजे तेजू से हुई है। ऐसे में रिश्तों का असर इस राजनीति पर भी पड़ना स्वाभाविक है।
इटावा में क्या हुआ… : उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में दांदरपुर गांव में कथित तौर पर ब्राह्मण समुदाय के लोगों ने यादव जाति के दो कथावाचकों का सिर मुंडवा दिया, और बदसलूकी की। उधर इन कथावाचकों पर आरोप है कि उन्होंने यजमान के घर की महिलाओं से छेड़खानी की। फिर उसके बाद नाराज होकर घर के पुरुषों ने उनके साथ बदसलूकी की थी। कथा वाचकों पर यह भी आरोप है कि उन्होंने अपनी पहचान छिपाई और यादव होते हुए भी खुद को ब्राह्मण के रूप में प्रदर्शित किया। हालांकि इन दोनों कथावाचकों का कहना है कि हम लोग काफी सालों से कथा कह रहे हैं।, और सभी लोग हमारी जाति जानते हैं। उन्होंने कहा कि जब कथा के लिए बुकिंग हुई थी तब भी हमने सबको अपना परिचय यादव के रूप में ही दिया। ऐसे में सवाल यह उठता है कि अगर सब लोगों ने यह जानकर दोनों यादव कथावाचकों को बुलाया था तो फिर बाद में विवाद किस बात पर हुआ। कहीं ऐसा तो नहीं है कि छेड़खानी के आरोप से बचने के लिए यादव के अपमान का नैरेटिव गढ़ा गया है। इस मामले में एक पुलिस अधिकारी ने सोमवार देर रात बताया था कि घटना का एक वीडियो सोशल मीडिया पर आया था, जिसपर संज्ञान लेते हुए पुलिस ने मुख्य आरोपी समेत चार लोगों को गिरफ्तार किया है। जबकि दूसरे पक्ष का कहना है कि कथावाचकों ने उनसे जाति छिपाई। एक कथावाचक संत यादव ने कहा कि मैं एक निजी स्कूल संचालित करता था लेकिन सरकार ने स्कूल बंद करवा दिया तो मैं भागवत कथा करने लगा और कथा वाचक मुकुट मणि का सहायक बन गया। उसने कहा कि हमें 21 जून से दांदरपुर गांव में भागवत कथा के लिए बुलाया गया था। बाद में हमसे हमारी जाति पूछी गई, और यादव बताने पर पूरी रात प्रताड़ित किया गया और मेरे बाल मुंडवा दिए गए। सोशल मीडिया पर घटना का वीडियो वायरल होते ही इटावा पुलिस ने तत्काल कार्रवाई की। अब सच्चाई जो भी हो, जांच के बाद ही सामने आएगी किंतु इटावा में माहौल खराब होने का अंदेशा है और प्रदेश में ब्राह्मण बनाम यादव का नैरेटिव गढ़ने की कोशिशें तेज हैं। और फिलहाल यही चिंता का विषय है।
अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक