एनजीओ पर बरस रहे डाॅलर, घालमेल रोकने की तैयारी

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एनजीओ पर बरस रहे डाॅलर, घालमेल रोकने की तैयारी…. ‌ एनजीओ बहुत पढ़ा सुना हुआ नाम है। जिस तरह से इन पर डाॅलर में मिलने वाले विदेशी चंदा बरसता है और उसमें घालमेल भी जमकर होता है उसे काबू करने ‌के लिए सरकार एक पृथक वैधानिक संस्था (संभवतः ‘चैरिटी कमिश्नर’ नाम से) की स्थापना करने की तैयारी कर रही है। साल दर साल गुजरते इनकी आबादी अपने देश की जनसंख्या की तरह घनी होती गई। अब देश में इनकी संख्या 34 लाख के पार निकल गई, जाहिर है इनके बहुआयामी क्रियाकलापों के विस्तार ने देश के विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित किया है। जैसे बरगद के घने महाकाय वृक्ष की जड़ें भी बहुत गहरे होना एक प्राकृतिक सत्य होता है। ठीक वैसे ही भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की आबोहवा में अंकुरित सामाजिक -राजनीतिक जागरूकता की पौध का अकल्पनीय विस्तारित आकार‌ आज सामने ‌दिखाई पड़ रहा है।

पहाड़ों पर से गिरने वाले झरनों की कल-कल मधुर ध्वनि बिना चट्टानों -पत्थरों के संभव कैसे हो सकती है। अंग्रेजों का अत्याचारी राज और इससे मुक्त‌ होने की छटपटाहट 1857 का विद्रोह रहा। जिसके परिणामस्वरूप भारतीयों में अंग्रेजी गुलामी के विरुद्ध सामाजिक -राजनीतिक चेतना जागृत हुई, भारतीय अग्रजों ने संगठन बनाने शुरू कर‌ दिए, इन्हें जनमानस का समर्थन मिलने लगा। इनके वृहद स्वरूप के बारे में संक्षिप्त जानकारी से रूबरू कराते हैं। 1857के बाद फ्रेंडइननीड सोसाइटी 1858में अस्तित्व में ‌आई, 1873 में सत्यशोधन समाज, 1875में आर्य समाज और उसी वर्ष नेशनल कौंसिल फाॅर विमेन इन इंडिया की स्थापना की गई।

इन संगठनों की सक्रियता से ‌लोगों में ‌हर स्तर पर जागरूकता उत्पन्न‌ हुई और इस परिवर्तन के भविष्य को भांपते हुए अंग्रेजी हुकूमत ने इनके नियमन के लिए 1860 में सोसाइटी रजिस्ट्रेशन ऐक्ट, 1882 में ट्रस्ट ऐक्ट बनाया। वर्तमान में तो सामाजिक संगठनों, परमार्थ संस्थाओं, ट्रस्टों आदि का पंजीकरण, नियमन में इनके अलावा कंपनी अधिनियम, पब्लिक ट्रस्ट ऐक्ट सहित कोई 37 कानून सक्रिय हैं। समय की करवट के साथ देश में स्वास्थ्य, शिक्षा,धर्म, गरीबी, बेरोजगारी, जीवन स्तर में सुधार, महिला उत्थान, लिंग भेद, उत्पीड़न, नवोन्मेष और पर्यावरण आदि विभिन्न क्षेत्रों में काम करने के उद्देश्य को लेकर परमार्थ -परोपकारी संस्थाओं, धार्मिक ट्रस्टों, गैर लाभकारी तथा गैर सरकारी संस्थाओं की संख्या आहिस्ता -आहिस्ता बहुत बढ़ने लगी। कार्पोरेट यानी निजी कंपनियों, उद्यमियों व सरकारी उपक्रमों की स्थापना और इनको सामाजिक उत्तरदायित्व के दायरे में लाने के लिए नियम (जैसे कि सीएसआर, 80 जी, 12 ए ए के तहत टैक्स छूट आदि) लागू होने से इनकी गतिविधियों में फर्राटे से विस्तार हुआ।

देश में टाटा, आजिम प्रेमजी, महिंद्रा, अंबानी, शिव नाडार जैसे बड़े -छोटे देसी उद्योगपतियों से लेकर फोर्ड फाउंडेशन, बिल गेट जैसे ग्लोबल लीडर्स भारत में परमार्थ कार्यों में अच्छा खासा धन खर्च कर रहे हैं। देश में सक्रिय गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) की लंबी फेहरिस्त है। जिसे यहां प्रस्तुत कर पाना संभव नहीं है। कुछ पुराने और प्रमुख नाम ये हैं_ केयर इंडिया 1946 से, हेल्पेज इंडिया 1978 से चाइल्ड राइट यू (क्राइ) 1979 से, प्रथम 1994 से, नन्हीं कली (आनंद महिंद्रा की) 1996 से अच्छा काम कर रहे हैं। गूंज, गिव इंडिया फाउंडेशन, सम्मान फाउंडेशन, उड़ान वेल्फेयर फाउंडेशन, अक्षयपात्र, भारती फाउंडेशन, स्माइल, भूमि, सलाम बालक ट्रस्ट, स्वदेश फाउंडेशन, इन्नोवेशन टीचिंग जाने माने एनजीओ हैं।

सोसाइटी फाॅर पार्टीसिपेटरी रिसर्च इन एशिया के आंकड़ों के अनुसार भारत में 27 फीसद एनजीओ धार्मिक गतिविधियों में, 20 फीसद शिक्षा क्षेत्र में, 6 फीसद स्वास्थ्य क्षेत्र में, 21फीसद सामाजिक-सामुदायिक सेवा में, 18 फीसद खेल- संस्कृति के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। एनजीओ को घरेलू स्तर पर और विदेशी दानदाताओं से चंदा मिलता है। विदेशी स्रोतों से मिलने वाली धनराशि की भूमिका बहुत बड़ी है, और इसमें घालमेल भी खूब होता रहा है। दुरुपयोग को रोकने के मकसद से सरकार ने विदेशी अभिदान नियमन अधिनियम (एफसीआरए) में संशोधन करके नियम सख्त कर दिए।

विदेशी चंदा प्राप्त करने के लिए एनजीओ को एफसीआरए के अंतर्गत पंजीकृत होना तो पहले से अनिवार्य था पर बाद में नई दिल्ली संसद मार्ग स्थित भारतीय स्टेट बैंक में खाता होना भी अनिवार्य कर दिया गया। कोई भी एनजीओ कुल प्राप्त चंदाराशि की 20 फीसद से अधिक धनराशि अपने प्रशासनिक-प्रबंधन आदि मदों पर नहीं खर्च कर सकता। साथ ही प्राप्त धनराशि, इसके व्यय आदि का वार्षिक लेखा -जोखा (रिटर्न) केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास भेजना अनिवार्य है। प्रावधानों का उल्लंघन करने पर पंजीकरण रद्द कर दिया जाता है।

गृह मंत्रालय के आंकड़ों ‌के अनुसार 2017 से 2021 तक 6677 एनजीओ के पंजीकरण रद्द किए गए। इसमें तमिलनाडु के 755, महाराष्ट्र के 734, यूपी के 635, आंध्र के 627 और पश्चिम बंगाल के 612 एनजीओ थे। अब मुख्य बिंदु – प्राप्त होने वाले विदेशी चंदा की राशि पर आते हैं जोकि डाॅलर के रूप होती है। गृह मंत्रालय की रिपोर्ट से पता चलता है कि एनजीओ को 2017-18 से लेकर 2021-22 यानी पांच सालों में 88 हजार करोड़ रुपए से अधिक का विदेशी चंदा प्राप्त हुआ। इसमें से 15438 करोड़ रुपए 2019-20 में, 17058 करोड़ 2020-21 में और 22085 करोड़ 2021-22 में मिले।

प्रणतेश बाजपेयी