बलवर्धक व चमत्कारी प्रभाव वाला च्यवनप्राश

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आयुर्वेद में च्यवनप्राश को बलवर्धक व चमत्कारी प्रभाव वाला माना गया है। कथा है कि तपस्या में लीन च्यवन ऋषि बहुत वृद्ध हो गये तो उन्होंने यौवन की पुनर्प्राप्ति के लिये अश्विनी कुमार से प्रार्थना की। अश्विनी कुमारों ने ऋषि च्यवन के लिये एक दैवीय औषधि तैयार की जिससे ऋषि च्यवन ने फिर से यौवन अवस्था को प्राप्त कर लिया।

इसी औषधि को च्यवन ऋषि के नाम पर च्यवनप्राश कहा जाता है। आयुर्वेद के अनुसार कमजोरी, पुराने जुकाम-खांसी सहित फेफड़े व क्षय रोग के निदान के लिए दी जाने वाली औषधियों के साथ च्यवनप्राश जरूरी है। च्यवनप्राश में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली जड़ी बूटियां आंवला, गिलोय व अष्टवर्ग भरपूर मात्रा में होती है।

च्यवनप्राश स्मरण शक्ति, बुद्धि व शरीर के विकास में भी मददगार है। च्यवनप्राश में आंवला, शुद्ध घी, केशर, नागकेशर, पिप्पली, छोटी इलायची, दालचीनी, बंसलोचन, शहद तथा तेजपात के साथ ही करीब 46 प्रकार की जड़ी-बुटि़यां मिलाई जाती हैं। च्यवनप्राश त्रिदोष नाशक है। इसमें पांचों रस भरे हुये हैं।

अध्ययनों की माने तो आंवले में पाया जाने वाला एंटी ऑक्सीडेंट एन्जाइम बुढापे को रोकता है। वायरस के फैलने की स्थिति में च्यवनप्राश शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देती है।

आनंद कुमार मिश्र