बजट की आहट : मुस्कराएं या मायूस हों

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‌‌एफडीआई बढ़ा है, खरब-अरबपतियों की संपदा में अप्रत्याशित वृद्धि (अर्थव्यवस्था और आम आबादी के उलट), टेसला का भारत भूमि पर पदार्पण, डिजिटलीकरण और विदेशी शैक्षिक संस्थानों की अगवानी की तैयारी हम भारतीयों के लिए हर्षोल्लास के लिए बहुत है, हमें यही तो पसंद है। पर ‘आमदनी चवन्नी खर्च रुपया’ राहु-केतु का पैटर्न है कि साये बनकर लिपटा है। पेट पालन, स्वास्थ, शिक्षा के खातिर खेती किसानी, मैन्युफैक्चरिंग व्यापार और इनसे जुड़े रोजगार का बैक गियर, आंकड़ों को शर्मसार करती महंगाई जनजीवन को दलदल में डुबाने के लिए कुछ ज्यादा ही इकट्ठा हो गया है।

वर्ष नया आ चुका नया बजट भी दस्तक दे रहा है, जो चिंताओं को बढ़ाने लगा है। घोषणाएं होनी हैं। ज्वलंत समस्या है संसाधन अभाव से जूझ रही अपनी सरकार तमाम जरूरी योजनाओं कार्यक्रमों को अमली जामा पहनाने के लिए पर्याप्त संसाधन कहां से, कैसे और कितने जुटा पाएगी। राजकोषीय और राजस्व घाटा सितंबर में ही बजट लक्ष्य से 115 फीसद हो गया था। कर संग्रह अब तक काफी कम रहा। कोविड ने ‘गरीबी में आटा गीला’ किया, वित्तीय समस्या को गहरा दिया।

जानकारों की राय में कर क्षेत्र में नए कदम, हर स्तर पर अनियोजित व फालतू खर्च में कटौती, अनुत्पादक आस्तियों और उत्पादकता के आधार पर प्रत्येक मंत्रालय, विभाग से लेकर सार्वजनिक उपक्रमों संस्थानों, निकायों में वर्कफोर्स पर मानकीकरण सख्ती से लागू करने के साथ ही सरकारी आमदनी बढ़ाने के नये उपाय तलाशने और अपनाने की सख्त दरकार है ताकि शिथिल पड़ी अर्थव्यवस्था फिर फर्राटे भरने लगे। जारी ……