बाराह सिंगा : दलदल का मृग

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बाराह सिंगा को दलदल का मृग कहा जाये तो शायद कोई अतिश्योक्ति न होगी क्योंकि दलदल या उससे मिलता-जुलता परिवेश ही खास तौर से उसका आशियाना होता है। वन्य जीवन में बाराह सिंगा ही एक मात्र ऐसा जीव होता है, जो अपनी सींगों आैर सींगों के घुमावदार आकर्षण के लिए खास तौर से जाना-पहचाना जाता है। सामान्य तौर से बाराह सिंगा के बारह से चौदह सींग होते हैं लेकिन यह संख्या कई बार बीस तक भी पहंुच जाती है।

शायद इसी लिए उसे बाराह सिंगा कहा जाता है। उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश में इसे राज्य पशु घोषित किया जा चुका है। उत्तरी मध्य भारत व दक्षिणी पश्चिमी नेपाल में खास तौर से पाया जाने वाला बाराह सिंगा पाकिस्तान व बांगलादेश का विलुप्त वन्य जीव है। उसकी विलक्षणता उसकी सींग होती है। घुमावदार सींग की श्रंखला उसे अन्य वन्य जीवों से एकदम अलग-थलग रखती हैं। बाराह सिंगा नर को गोइजंक आैर मादा को गाओनी कहते हैं।

करीब एक सौ सत्तर से एक सौ अस्सी किलो वजन वाले बाराह सिंगा के सींगों की लम्बाई सामान्यत: पचहत्तर सेन्टीमीटर या इसके आसपास होती है लेकिन सींगों का घुमाव उसे भारी भरकम नहीं बनाता। गंगा के मैदानी क्षेत्र, गोदावरी नदी के मैदानी क्षेत्र, दलदली व तराई वाले इलाकों में खास तौर से बाराह सिंगा पाया जाता है। बाराह सिंगा खास तौर से झुण्ड में रहना पसंद करते हैं। झुण्ड में बाराह सिंगा की संख्या अठारह से बीस तक होती है लेकिन कई बार यह संख्या साठ से भी अधिक हो जाती है। झुण्ड में नर बाराह सिंगा की तुलना में मादाओं की संख्या दो गुना या इससे अधिक भी होती है। विशेषज्ञों की मानें तो यह हिरन प्रजाति का वन्य जीव है। यह शाकाहारी होता है। खास तौर से सुबह व शाम ही घास व अन्य पौधों से अपना पेट भरता है।

जम्मू एवं कश्मीर का बाराह सिंगा खास तौर से एक अलग ही आकर्षण रखता है। देखने में कश्मीरी बाराह सिंगा अलग ही दिखता है लेकिन अब कश्मीरी बाराह सिंगा दुर्लभ श्रेणी में आ चुका है। कश्मीर के दीचीग्राम नेशनल पार्क में अब इनकी संख्या घट काफी कम रह गयी है। विशेषज्ञों की मानें तो कश्मीरी बाराह सिंगा कुछ दशक पहले पांच हजार के आसपास थी लेकिन अब इनकी संख्या सिमट कर तीन सौ करीब रह गयी है। वन्य जीव प्रेमियों के लिए इनकी संख्या कम होना चिंता का विषय हैै।