लोकसभा कानपुर में कौन नरम कौन गरम, रमेश @ आलोक

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कानपुर। गर्मी बढ़ने के साथ ही कानपुर महानगर लोकसभा क्षेत्र में चुनाव प्रचार का तापमान भी बढ़ने लगा है। प्रत्याशियों के नामांकन दाखिल होने के बाद चुनावी माहौल में राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा हो रही है। गली- नुक्कड़ पर स्थानीय मुद्दों पर चर्चा ख़ूब गर्म है। बस्ती-बस्ती, रमेश अवस्थी का नारा गली-गली गूंज रहा है। नगर के पांचों विधानसभा क्षेत्रों में अलग-अलग तरह तरह के समीकरण नजर आने लगे हैं। महानगर में होली गंगा मेला के बाद से ही चुनावी रंग चढ़ने लगा था, जिसमें केसरिया सुगंध भी लोगों ने महसूस की।

भारतीय जनता पार्टी ने प्रचार में तेजी लाते हुए माहौल को भगवामय कर दिया है। मोदी मैजिक और भाजपा के चार सौ पार के नारे के असर को देख कर प्रमुख प्रतिद्वंद्वी दलों में बैचेनी है। ये सभी दल अब स्थानीय स्तर पर जातीय गुणा-गणित पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं और एकजुटता का दंभ भर रहे हैं। खासकर कांग्रेस उम्मीदवार की नजर ब्राह्मण वोटों पर है। क्षत्रिय और ब्राह्मण मतदाताओं का रुझान जिस ओर बन गया, उस ओर चुनाव परिणाम मुड़ सकता है। इस वर्ग का रुझान पिछले कई चुनावों से भाजपा की और रहा है। इसे देखते हुए कांग्रेस – सपा के चुनावी रणनीतिकार इस वर्ग पर भी अपना प्रभाव बनाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं।

खासकर आर्यनगर, सीसामऊ और छावनी विधानसभा क्षेत्रों में इनकी अच्छी संख्या को देखते हुए भाजपा के लिए सुखद स्थिति है। वहां इंडी गठबंधन प्रत्याशी समर्थकों में खलबली मची है। इन तीनों विधानसभा सीटों पर सपा का कब्जा जरूर है लेकिन मामला लोकसभा चुनाव का है और इसमें राष्ट्रीय स्तर के मुद्दे असरकारी होते हैं। खास बात ये है कि छावनी विधानसभा सीट पर भाजपा विगत में चुनाव जीत चुकी है जिसमें ब्राह्मण और क्षत्रिय मतदाताओं की एकजुटता देखने को मिली थी।

इंडी गठबंधन के लिए इन तीनों सीटों पर मुस्लिम मतों का सहारा मिलता रहा है लेकिन इस लोकसभा चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं के बीच विधानसभा चुनाव जैसी मन:स्थिति नहीं है। इसके अलावा उनमें यह भी चर्चा है कि एक बार भाजपा प्रत्याशी को आजमाने में बुराई नहीं है। गैर राजनीतिक कई मुस्लिम प्रमुख तो यह कह रहे हैं कि भाजपा सरकार में उन्हें परेशान नहीं किया गया। जैसा कि गैर भाजपा दल भाजपा को मुसलमानों के बीच एक हौव्वा बना कर खड़ा करते हैं, वैसा कुछ तो 2014 से अब तक देखने को नहीं मिला।

दरअसल, कोई भी चुनाव कार्यकर्त्ताओं के हौसले के बल पर जीता जाता है। इस चुनाव में नजर डालें तो जहां भारतीय जनता पार्टी का संगठन एकजुटता के साथ अपने प्रत्याशी रमेश अवस्थी की जीत ज्यादा से ज्यादा मतों के अंतर से सुनिश्चित करने में लगा है वहीं गठबंधन प्रत्याशी आलोक मिश्रा गठबंधन के कार्यकर्ताओं में तालमेल बैठाने में अभी तक तो असफल हैं। मंगलवार को नामांकन के दौरान इसकी झलक तब देखने को मिली जब आलोक मिश्रा अपने प्रस्तावक सपा विधायक अमिताभ वाजपेई को मनाते नजर आये। इसका वायरल वीडियो ख़ूब चर्चा में रहा।

भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी रमेश अवस्थी की साफ सुथरी छवि मतदाताओं को प्रभावित कर रही है। उनके पास मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मजबूत नेतृत्व है, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय नीतियां हैं वहीं प्रदेशस्तर पर योगी सरकार की उपलब्धियां हैं। कांग्रेस प्रत्याशी आलोक मिश्रा इस लिहाज से उहापोह की स्थिति का सामना करने पर विवश हैं। इंडी गठबंधन के नेताओं का सारा समय भाजपा नेताओं द्वारा सेट किये गये मुद्दों पर जवाब देने में ही गुज़र रहा है। वह अपनी तरफ से कोई मुद्दा सेट ही नहीं कर पा रहे हैं। बहरहाल, मतदान की तिथि अभी कुछ दूर है। ऐसे में सभी दलों का प्रचार अभियान कई रंग बदलेगा। बड़े नेता मैदान में उतरकर प्रचार कुछ कमान संभालेंगे। मतदाताओं को अंतिम तौर पर जो रिझा लेगा, बाजी उसी के हाथ लगेगी।