हिम तेंदुआ: प्यारा पर बेहद खतरनाक

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‘हिम तेंदुआ” एक खूबसूरत व प्यारा वन्य जीव पर बेहद खतरनाक। जी हां, ‘हिम तेंदुआ” कम खतरनाक नहीं होता। उसकी शक्ल-ओ-सूरत देख कर एक पल को आप उससे प्यार करने लगेंगे लेकिन उसका फुर्तीलापन व शिकारी तेवर देख आपको एहसास होगा कि उससे दूर रहना ही मुनासिब होगा। ‘हिम तेंदुआ” बर्फीले इलाके का बेहद शर्मीला जीव होता है। इसे खास तौर से अकेलापन अच्छा लगता है। सहचरी के अलावा कोई अन्य जीव साथ हो, इसे कतई पसंद नहीं। देश-दुनिया की दुलर्भ वन्य जीव श्रेणी में शुमार होने वाला ‘हिम तेंदुआ” पाकिस्तान में राष्ट्रीय धरोहर पशु घोषित है।

‘हिम तेंदुआ” खास तौर से समुद्रतल से पैंतीस सौ से चार हजार मीटर की ऊंचाई वाले हिल एरिया में पाया जाता है। करीब 65 से 70 किलो वजन वाले ‘हिम तेंदुआ” की त्वचा खास तौर से सफेद चमक वाली होती है। इस पर काले धब्बे होते हैं। इसकी खाल मखमली व चमकीली होती है। यही सब दर्शकों को लुभाते हैं। इसकी आैसत आयु बीस वर्ष होती है लेकिन कई बार इससे अधिक जीवन जीते हैं। एक बार में हिम तेंदुआ दस मीटर तक छलांग लगा सकते हैं लेकिन शिकार की रफ्तार देख इससे अधिक तेज छलांग भी लगा लेते हैं।

हिम तेंदुआ शिकार के लिए खास तौर से रात में निकलते हैं। हिरन, भेड़, खरगोश व लोमड़ी आदि को यह अपना शिकार बनाते हैं। बर्फीले इलाकों के अलावा देश-दुनिया के कुछ खास चिड़ियाघरों में यह देखे जा सकते हैं। इनकी लम्बाई पूंछ सहित 75 से 130 सेंटीमीटर तक होती है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि देश-दुनिया में ‘हिम तेंदुआ” की संख्या 4500 से 7500 के बीच होगी। देश में करीब 75000 किलोमीटर एरिया में यह प्रवास करते हैं। देश में इनकी आबादी चार सौ से छह सौ के बीच होने का अनुुमान है।

दुनिया में ‘हिम तेंदुआ” रुस से लेकर चीन तक व नेपाल, भूटान, मंगोलिया आदि में पाये जाते हैं जबकि देश में उत्तराखण्ड, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश, जम्मू एण्ड कश्मीर व अरुणाचल प्रदेश आदि में पाये जाते हैं। देश-दुनिया में हिम तेंदुआ को दुलर्भ वन्य जीव की श्रेणी में रखा गया है। इसकी हड्डियों व नाखून का दवाओं के लिए उपयोग किया जाता है जबकि मखमली व चमकदार खाल को शान-ओ-शौकत के आइने से देखा जाता है। लिहाजा ‘हिम तेंदुआ” हमेशा शिकारियों की निगाह में रहते है। इसकी खाल, हड्डियों व नाखून की मांग हमेशा चीन व अन्य देशों में रहती है। इसकी तस्करी भी होती है। इन सब कारणों से इनका अस्तित्व खतरे में है। हालांकि ऐसा नहीं है कि इनके संरक्षण के लिए कोई प्रयास नहीं हो रहे।