भारतीय साफ्टवेयर उद्योग पर भारी पड़ा अमेरिकी बैंकिंग संकट का खतरा

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अमेरिकी बैंकिंग संकट का खतरा भारतीय साफ्टवेयर उद्योग पर…..  भारतीय अर्थव्यवस्था तीनतरफा आक्रमण से घिर गई है। देश की वित्तीय बाजार पिछले महीने तक सिर्फ दो जटिल समस्याओं से जूझ रहा था, इनसे निकल भी नहीं पाया था कि अमेरिकी बैंकिंग उद्योग से निकला वित्तीय बवंडर तीसरी चुनौती बनकर मंडरा रहा है। इसका फैल रहा वैश्विक संक्रमण भारतीय वित्तीय बाजार को भी भयभीत तो कर ही रहा है।

ऐसे में 2008 के अमेरिका में लेहमन ब्रदर्स के ढहने से आए वैश्विक संकट की यादें और भी डरा रही हैं। ताजा संकट ने वैश्विक स्तर के वित्तीय संस्थानों के साथ ही शेयर बाजार में उथल पुथल पैदा कर दी है। इसका सीधा असर भारतीय बैंकिंग उद्योग पर पड़ता नहीं दिख रहा है लेकिन भारतीय कंप्यूटर साफ्टवेयर यानी इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी सेक्टर को चोट लगना तय है। क्यों कि यह उद्योग अपने सकल निर्यात का 86 फीसद हिस्सा सिर्फ अमेरिका और यूरोप से प्राप्त करता है। इन दो ठिकानों से इस उद्योग ने वित्तीय वर्ष 2021-22 में 13550 करोड़ डॉलर की विदेशी मुद्रा कमाई थी।

मार्च महीने ने अमेरिकी बैंकिंग-वित्तीय उद्योग के लिए नकारात्मक घटनाओं के साथ अपना खाता खोला। सिगनेचर बैंक, सिलिकॉन वैली बैंक, सिल्वरगेट कैपिटल काॅर्पोरेशन और फर्स्ट रिपब्लिक के औंधे मुंह गिरने का सिलसिला थम नहीं रहा है। अमेरिका का केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व की अगुवाई में एफ आई डी सी सहित अन्य सरकारी संस्थान, वहां के निजी क्षेत्र के वित्तीय संस्थान और बैंकें संकटग्रस्त बैंकों को उबारने की कोशिश में जुटे हैं।

कमोबेश अन्य तीनों संकटग्रस्तों को बचाने के प्रयास किए जा रहे हैं। इस घटनाक्रम से घबराए निवेशकों की ओर से वैश्विक शेयर बाज़ारों में बिकवाली का झोंका आने से भाव खासकर बैंकों और वित्तीय संस्थानों के शेयरों के भाव काफी लुढ़के भी। यही नहीं क्रूड ऑयल बाजार भी चपेट में आया, ब्रेंट क्रूड काफी नीचे आ गया। 6 मार्च से लेकर 18 मार्च तक की अवधि में अमेरिका और यूरोप के कोई सत्तर बैंकों की शेयर मार्केट वैल्यू 60 हजार करोड़ डॉलर (48 लाख करोड़ रुपए) घट गई। संक्रमण अमेरिकी सरहदें पारकर यूरोप आ पहुंचा है। आगे किस किस महाद्वीप में और किन देशों के वित्तीय संस्थानों, बैंकों को अपनी चपेट में लेगा यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।

पिछले करीब तीन सालों से गड़बड़ ‌चल रहे क्रेडिट स्विस का नाम भी संकटग्रस्तों की सूची में जुड़ गया। 167 वर्ष पुराना क्रेडिट सुइस संकट में नहीं आता अगर इसके प्रमुख सपोर्टर सऊदी नेशनल बैंक ने इसे अतिरिक्त मदद देने से इंकार नहीं किया होता। बताते चलें कि क्रेडिट सुइसको 2022 में 790 करोड़ डॉलर (तकरीबन 63 हजार करोड़ रुपए) का घाटा हुआ। स्विट्जरलैंड की सरकार और बैंकिंग नियामक – स्विस फाइनेंशियल मार्केट सुपरवाइजरी अथाॅरिटी (FINMA) यूबीएस पर इसका विलय करने के लिए दबाव डाल रही है। यूबीएस (पहले का नाम यूनियन बैंक ऑफ स्विट्जरलैंड) भी क्रेडिट स्विस का पूरा कारोबार अथवा सिर्फ स्विट्जरलैंड में पसरे इसके कारोबार का अधिग्रहण करने को बात कर रहा है। यूबीएस इसका अधिग्रहण करने में सक्षम है भी, इसने 2022 में 790 करोड़ डॉलर का लाभ अर्जित किया था।

बीते दिन FINMA ने क्रेडिट स्विस को 5400 करोड़ डॉलर (लगभग 4 लाख 32 हजार करोड़ रुपए) की आपात सहायता उपलब्ध कराने का निर्णय किया। उधर बीते दस दिनों में अमेरिकी बैंकों ने इस वित्तीय आपदा से उबरने के खातिर नियामक फेडरल रिजर्व से 65300 करोड़ डॉलर का आपात पैकेज मुहैया कराने का अनुरोध किया है। वहां का बैंक कंसोर्टियम सैनफ्रांसिस्को स्थित फर्स्ट रिपब्लिकन को दो हजार करोड़ डॉलर का पैकेज मुहैया कराने की कोशिश में है। इस स्तर के वित्तीय संक्रमण से भारतीय बैंकों के अछूते रहने की पूरी संभावना है। उसका कारण सख्त नियमों का कवच जिसे भारत के केंद्रीय बैंक यानी भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने इन्हें ओढ़ा रखा है, आरबीआई के नियमानुसार बैंकों को अपनी कुल जमाधनराशियों का 18 फीसद स्टेट्यूटरी लिक्विड रेशिओ (एसएलआर) के रूप में और 4.5 फीसद कैश रिजर्व रेशिओ के तौर पर जमा रखना अनिवार्य है।

कोटक महिंद्रा के वित्तीय बाजार के तजुर्बेकार अधिकारी नीलेश शाह मानते हैं कि भारतीय बैंकिंग -वित्तीय प्रणाली के प्रभावित होने की संभावना नहीं है क्योंकि प्रणाली का ढांचा बहुत मजबूत है। उनका कहना है अमेरिका और यूरोपीय देशों में कारोबार करने वाले भारतीय कंप्यूटर साफ्टवेयर, आईटी उद्यमों को इस संक्रमण से बहुत बहुत सतर्क रहते हुए शीघ्रातिशीघ्र नई रणनीति बनाने की जरूरत है। यह वित्तीय सच है कि भारतीय कंप्यूटर, साफ्टवेयर, इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी उद्योग एवं इससे जुड़ी सेवाएं विदेशी बाजारों और खासकर अमेरिका और यूरोप में कारोबार करके बड़े पैमाने पर विदेशी मुद्रा अर्जित करता है।

भारतीय कंप्यूटर, साफ्टवेयर और आईटी उद्योग ने वित्तीय वर्ष 2021-22में कुल करीब 15670 करोड़ डॉलर (लगभग 13 लाख करोड़ रुपए) का निर्यात किया इसमें से सिर्फ अमेरिका और यूरोप की हिस्सेदारी क्रमशः 8690 करोड़ डॉलर (5.35 लाख करोड़ रुपए) और 4860करोड़ डॉलर (3.56लाख करोड़ रुपए) रही, कुल निर्यात में इन दो ठिकानों की समग्र हिस्सेदारी 86फ़ीसद के आसपास रहने से ताजे घटनाक्रम का सर्वाधिक प्रभाव भी इसी उद्योग पर पड़ने वाला है। इस उद्योग की प्रमुख कंपनियों में टापमोस्ट टाटा कंसल्टेंसी, इन्फोसिस, विप्रो, एचसीएल, कैप जेमिनी और कागनिजेंट शामिल हैं।

प्रणतेश बाजपेयी