पानी में रहता है पन कौवा

0
7398

# शिवचरण चौहान

पन कौआ, कौवे की ही तरह काला कलूटा पक्षी है जो पानी में रहता है। तालाबों पोखरा और नदियों में पानी में गहरे गोता लगाकर तैरता है और मछलियां केकड़े छोटे मेंढक पकड़ कर खाता है। कभी-कभी पानी से निकलकर किसी ऊंची चट्टान पर पेड़ की डाल पर सूखे पेड़ की डाल पर बैठकर यह अपने पंख खोल कर धूप में सुखाता देखा जा सकता है।

भारत में दो तरह के पन कौवे पाए जाते हैं। एक छोटा पन कौवा तथा दूसरा बड़ा पन कौवा। श्रीलंका पाकिस्तान अफगानिस्तान बांग्लादेश नदियों तालाबों और जलाशयों पोखरा के पानी में यह पड़ता देखा जा सकता है। आदमी को आते देख कर या खतरा भापकर पानी के अंदर डुबकी लगाकर चला जाता है। पानी में जाल फैलाते देखकर यह पानी से बहुत तेज उड़कर किसी ऊंचे पेड़ की डाल पर बैठ जाता है।

पन कौवा करीब 20 इंच लंबा पंछी है। क्यों से लेकर पीठ तक पंख और डैनो तक तथा लंबी दुम तक पूरा काला होता है। इसका काला रंग भी चमकीला होता है। नर और मादा एक समान होते हैं। मादा नर से कुछ छोटी होती है। मादा को रिझाने के लिए पन कौवा उसे मछलियां खिलाता है पंख फैलाकर सीटी बजाता है। इसका प्रजनन काल 1 जुलाई से लेकर सितंबर अक्टूबर तक देखा गया है। तालाब में किसी ऊंची जगह पर यह पेड़ के किसी ऊंची डाल पर यह अपना घोंसला बनाता है और मादा तीन से चार अंडे देती है। सहने होकर बच्चे अपना शिकार खुद तलाश करते हैं।

वैसे तो पन कौवा एकाकी पंछी है। तालाबों नदियों में गोता लगाते शिकार करते इसे अक्सर देखा जा सकता है। सर्दियों और गर्मियों में यह अपना शिकार पानी के अंदर ही तलाश करता है। छोटे घोंघे छोटी मछलियां मेंढक के छोटे-छोटे बच्चे इसका शिकार होते हैं। बाहर छिपकली और गिरगिट बिच्छू आडी कीड़े मकोड़े भी कभी कबार खा लेता है। प्रजनन काल के समय किसके गले के पास का सफेद निशान भी काला हो जाता है। पन कौवे की जांच लंबी पतली नुकीली और नीचे की तरफ घुमावदार होती है। दुम नुकीली होती है।

बत्तख पंछियों की अपेक्षा जल कौवा पानी में बहुत गहरे डुबकी लगाकर तेज तेज तैर लेता है और गहराई से मछली पकड़ लाता है। दक्षिण भारत में कुछ शिकारी पन कौवे व जल कौवे को पालतू बना लेते हैं और उसके गले में रस्सी बांधकर उसे पानी में उतार देते हैं जब पन कौआ पानी के अंदर मछली पकड़ लेता है तो शिकारी पन कौवे को ऊपर खींच कर उसकी चोंच से मछली छीन लेते हैं। रस्सी बंधी होने के कारण जल कौवा मछली निगल नहीं पाता। काले रंग और लंबी टेढ़ी गर्दन के कारण पन कौवा जल्दी पहचान में आ जाता है।

पेड़ों में रहने वाले कौवे के कोई अवगुण इसमें नहीं पाए जाते। काला होने के कारण ही इसे जल कौवा या पन कौवा कहा जाता है। भारत में पन कौवे की जी तरह बनावर या काली नागिन चिड़िया पाई जाती है जिसके गर्दन नागिन की तरह पतली और टेढ़ी-मेढ़ी होती है इसकी लंबाई 30 इंच तक पाई गई है। बनावर यानी काली नागिन चिड़िया पन काऊ की तरह ही फुर्ती ली और पानी में डुबकी लगाकर मछली पकड़ने में उस्ताद होती है। इसके सिर पर एक चोटी पाई जाती है। बनावर और पन कौआ को अलग अलग पहचान पाना बहुत मुश्किल है। यह जल कौओं की ही एक प्रजाति है। नागिन जैसी काली लंबी टेढ़ी गर्दन होने कारण इसे जल नागिन चिड़िया कहते हैं।

भारत में हिमालय के पहाड़ों को छोड़कर सभी जलाशयों, तालाबों, नदियों, नालों, पोखरों और जहां पर भी पानी जमा हो वहां पर से देखा जा सकता है। अपने पंखों को सुखाने के लिए और धूप सेकने के लिए या किसी सूखे पेड़ की चोटी पर बैठकर अपने पंख फैलाती है। गहरा काला नीला चमकीला रंग इसकी पहचान है। इसकी आंखें पीली रंग की होती हैं। पन कौआ और नागिन चिड़िया में यही बड़ा अंतर है। यह भारत और उसके आसपास देशों का बारहमासा पक्षी है। इसके संरक्षण की जरूरत है। कई चिड़िया घरों में इसे देखा जा सकता है। पन कौवे की ही तरह एक पनडुब्बी पक्षी होता है।

#भारतीय उपमहाद्वीप में पन कौवे की दो प्रजातियां पाई जाती हैं जबकि पूरी दुनिया में एक दर्जन
# तालाबों, पोखरों, झीलों, नदियों के पानी में रहता है पन कौवा
# जल काग, जल कौआ, घोगुर, पन कौड़ी जोग्राबी नाम से भी जाना जाता है पन कौआ।
# पेड़ों पर रहने वाला कौवा धूर्त और चालाक पंछी है तो पन कौवा सीधा पंछी है।