‘शुगरग्लट’ में फंसा भारतीय चीनी उद्योग

0
1273

‘शुगरग्लट’ में फंसा भारतीय चीनी उद्योग… चालू पेराई सत्र में अधिक उत्पादन, दो कोविड लाॅक डाउन से घरेलू खपत में आई गिरावट, स्टाॅक में इजाफा और खाद्य मंत्रालय से चीनी निर्यात पर सब्सिडी में अचानक एक तिहाई कटौती की घोषणा से ‘शुगरग्लट’ की स्थिति बन गई है। और गन्ना की लंबी देनदारियों से घिरे चौतरफा दबाव में आकर चीनी मिलें कम कीमत पर भरपूर मात्रा में चीनी बेंचकर धन जुटा रही हैं।

राष्ट्रीय स्तर पर तो इस वर्ष मई अंत तक तक चीनी उत्पादन में चौदह फीसद बढ़त दर्ज की गई लेकिन सबसे बड़े उत्पादक उत्तर प्रदेश को तगड़ा झटका लगा है। इससे दूसरे सबसे बड़े उत्पादक महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के बीच का फासला सिमट कर महज चार लाख टन रह गया है, जोकि पहले तीस-पैंतीस लाख टन हुआ करता था।

उधर खाद्य मंत्रालय ने जून माह के लिए चीनी मिलों को 22 लाख टन का बिक्री कोटा जारी कर दिया है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चीनी मूल्यों में तेजी होते हुए भी खाद्य मंत्रालय ने निर्यात सब्सिडी में अचानक 20 मई को 33 फीसद कटौती की घोषणा कर दी। इन सब कारणों से ‘शुगरग्लट’ की स्थिति बनने से घरेलू मंडियों में आगे भी भाव मौजूदा स्तर पर ही पड़े रहने की संभावना है।

.. क्योंकि उत्तर प्रदेश में अगले साल चुनाव के मद्देनजर गन्ना किसानों के बकाये का जल्द से जल्द भुगतान कराने के लिए चीनी मिलों पर सरकार का दबाव पड़ना शुरू हो जाएगा। प्रदेश के गन्ना किसानों का तकरीबन 11 हजार करोड़ रु मिलों पर बकाया है।

चालू पेराई सत्र में मई के अंत तक देश की 555 चीनी मिलों का सकल उत्पादन तकरीबन चौदह फीसद की वृद्धि के साथ तीन करोड़ टन के ऊपर पहुंच गया। महाराष्ट्र की मिलों ने दस करोड़ टन गन्ना की पेराई कर 1 करोड़ 6 लाख टन के आसपास चीनी बनाई, जो पिछले सत्र में हुए उत्पादन 62 लाख टन से 45 लाख टन या 70 फीसद अधिक है।

उत्तर प्रदेश में इस बार उत्पादन 1 करोड़ 10 लाख टन रह गया, जो पिछले 1 करोड़ 26 लाख टन से सोलह लाख टन कम है। कर्नाटक ने भी इस साल 42 लाख चीनी बनाकर आठ लाख टन की बढ़त हासिल की। स्थिति यह है कि देश में इस बार कुल उत्पादन करीब चौदह फीसद बढ़कर 3 करोड़ टन (पूर्व सत्र में 2.65 करोड़ टन से अधिक) हो गया।

पिछले सत्र के 1.05 करोड़ टन के बचे स्टाॅक के साथ चालू सत्र शुरू हुआ था। इस साल कुल 4 करोड़ टन से अधिक चीनी की उपलब्धता में से 60 लाख टन निर्यात मात्रा (वह भी संभव नहीं दिखती) को निकालने पर 3 करोड़ 35 लाख टन बचती है, दो लाॅकडाउन से खपत भी 10 लाख टन घटकर 2.50 करोड़ टन रह जाने का अनुमान है।

चालू सत्र की समाप्ति अर्थात 2021, 30 सितंबर को 85-90 लाख टन का क्लोज़िंग स्टाॅक रहने का अनुमान है। एक्स मिल बिक्री मूल्य प्रति टन 31000 रु की दर से क्लोज़िंग स्टाॅक में चीनी मिलों का 23 हजार करोड़ रु से ज्यादा की पूंजी अटक जाएगी, और स्टाॅक पर बैंकों से कर्ज लेने पर ब्याज चुकाने से निश्चित रूप से मुनाफे पर ग्लट की आंच तो आएगी ही।

उत्तर प्रदेश में चीनी मिलों ने चालू सत्र में मई के अंत तक 10 करोड़ टन से अधिक गन्ने की पेराई की और किसानों को 20 हजार करोड़ रु से ज्यादा भुगतान किया। इसके बावजूद अभी 11 हजार करोड़ रु से ज्यादा राशि बकाया है। प्रदेश के मिल मालिकों ने अगले चुनावी साल को ध्यान में रखते हुए इस बार 3000-3200रु प्रति क्विंटल के भावों पर दिसंबर से मई तक में 3200- 3470 रु की दर पर (एक्स मिल) थोक सौदे करके अधिक से अधिक रकम खड़ी करने की कोशिश की।

उत्तर प्रदेश में चीनी व्यापारियों के सबसे बड़े और पुराने संगठन दि कानपुर शुगर मर्चेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष गोपाल कृष्ण महेश्वरी का कहना है कि पिछले साल की तरह इस बार भी लाॅक डाउन में मिठाई की दुकानों, रेस्टरां-होटलों में बंदी से आइसक्रीम तथा कोल्ड ड्रिंक्स की कम बिक्री के अलावा बताशा और पेठा बनाने वाली असंगठित इकाइयों में उत्पादन बहुत ही घट गया।

महेश्वरी का कहना है कि इन कारणों से चीनी की खपत में काफी कमी हुई है। जून लगने के बावजूद हर साल के स्तर की गर्मी नहीं पड़ने का असर भी खपत पर पड़ा है। फुटकर दुकानदार चीनी कम खरीद रहे हैं, थोक बिक्री में पहले की तरह उठान नहीं है। खाद्य मंत्रालय ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी के मूल्यों में तेजी आते ही 20 मई‌ को चीनी निर्यात पर सब्सिडी में अचानक 2000 रु प्रति टन की कटौती (33 फीसद) की घोषणा कर दी। जिससे अच्छी रफ़्तार से चल रहे निर्यात को अप्रत्याशित झटका लगा।

ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि इस सत्र में चीनी निर्यात 60 लाख टन से ऊपर चला जाएगा। हमारे देश में नीतियों में ऐसी ही अस्थिरता के कारण उद्योग और व्यापार जगत सरकार के फैसलों पर पूर्ण भरोसा नहीं कर पाता है, और अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अच्छी छवि अभी तक नहीं बन सकी है।

बता दें कि चीनी उद्योग की लगातार मांग के चलते 2020-21 सत्र के लिए 60 लाख टन निर्यात पर प्रति टन 6000 रु की दर से सब्सिडी देने की घोषणा जब 16 दिसंबर को की गई थी तब तक सत्र के 75 दिन निकल चुके थे और अनिश्चितता में फंसे निर्यातक विदेशी खरीदारों से निर्यात अनुबंध नहीं कर सके थे। 2019-20 सत्र में प्रति टन लगभग 11000 रु के हिसाब से निर्यात सब्सिडी दी गई थी।

प्रणतेश नारायण बाजपेयी