लखनऊ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष में संगठन एक बड़ा बदलाव करने जा रहा है, क्योंकि वाराणसी में संघ प्रमुख मोहन भागवत द्वारा मुसलमानों के बारे में दिए गए बयान का यही निचोड़ है। संघ प्रमुख के अनुसार अब संगठन में मुसलमानों की भी एंट्री हो सकेगी। शर्त सिर्फ यह है कि वे राष्ट्रवादी हों, उन्हें भारत माता की जय बोलने में दिक्कत न हो और वंदे मातरम बोलने से भी परहेज न हो। संघ प्रमुख का कहना है कि संघ में ऐसे हर मुसलमान का स्वागत है जो राष्ट्रवादी सोच रखता हो और सनातनी हो। यहां सनातनी से उनका अभिप्राय मुगलों के वंशजों से नहीं है। देश में वक्फ संशोधन बिल पारित होने के बाद संघ की ओर से मुसलमान को दिया गया यह संदेश बहुत महत्वपूर्ण है और बड़ा नीतिगत बदलाव भी। अभी भाजपा में जितने मुस्लिम नेता हैं वे सीधे-सीधे संघ से नहीं जुड़े हैं। इसीलिए शायद संगठन को अपने अल्पसंख्यक मोर्चे का अध्यक्ष इंद्रेश कुमार को बनाना पड़ा है।
इस नीतिगत बदलाव का मतलब यह भी है कि अब संघ को लगता है कि सिर्फ हिंदुओं की बात करने से न तो संगठन मजबूत होगा और न ही देश। संघ का मानना है कि वैसे भी बदलती डेमोग्राफी से अब देश की स्थितियां बहुत कठिन होती जा रही हैं। ऐसे में मुस्लिमों के इस वर्ग को साथ लाना बुद्धिमानी है। वैसे भी भाजपा ने पहले ही मुसलमानों में पसमांदा वर्ग को खोज कर उसके हित की बात करनी शुरू कर दी है। इधर अब वक्फ संशोधन कानून भी पास किया गया है। कहा गया है कि ये कानून मुसलमानों के इसी वर्ग के लिए लाया गया है, ताकि उनका आर्थिक उत्थान और सामाजिक विकास हो सके। इस रास्ते हो सकता है कि संघ का ये प्रयास मुसलमानों से जुड़े कुछ कानूनों जैसे तीन तलाक, नागरिकता संशोधन कानून और प्रस्तावित यूसीसी से पैदा हुए नकारात्मक नैरेटिव को तोड़ने में भी सहूलियत दे।
पिछले दिनों संघ प्रमुख मोहन भागवत द्वारा दिए गए कुछ बयानों को भी इस संदर्भ में देखना और समझना होगा। संघ प्रमुख ने ही कुछ दिनों पूर्व यह बयान दिया की हर मस्जिद में मंदिर क्यों खोजना, इससे सांप्रदायिक सौहार्द को चोट पहुंचती है। इस बयान की बड़ी आलोचना हुई। संत समाज एकदम इसके खिलाफ आ गया था। रामभद्राचार्य जी ने तो यहां तक कह दिया कि संत समाज संघ प्रमुख का अनुचर नहीं है कि वह उनकी बात मानेगा। तब संघ के कई जिम्मेदारों को मैदान में उतरकर सफाई भी देनी पड़ी थी। इसके अलावा औरंगजेब को लेकर उठे विवाद पर भी संघ के पूर्व सह सर कार्यवाह भैया जी जोशी ने कहा कि औरंगजेब का विवाद बिना मतलब है, इससे बचना चाहिए। इसके पूर्व संघ प्रमुख ने ही कहा था कि भारत में रहने वाला हर व्यक्ति सनातनी है, चाहे वह मुसलमान ही क्यों न हो। यह बयान और इससे जुड़े अन्य सभी बयान संघ के बदलते रुख का संदेश पहले ही दे चुके हैं। अब बनारस में संघ प्रमुख ने स्वयंसेवकों के सामने यह बात कह कर एक बड़ी लकीर खींच दी है। अगर संघ प्रमुख के बयान से प्रभावित होकर मुस्लिमों ने संघ की शाखाओं की ओर रुख कर लिया तो यह देश में एक बड़ा बदलाव होगा। साथ ही यह हिंदू-मुस्लिम के नाम पर राजनीति करने वाली विपक्ष की पार्टियों के मुंह पर बड़ा तमाचा होगा।
पिछले दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत वाराणसी के दौरे पर रहे। रविवार को सुबह वे मलदहिया के लाजपत नगर पार्क की शाखा पर पहुंचे और शाखा के कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। वहीं पर उन्होंने स्वयंसेवकों के कुछ सवालों के भी जवाब दिए। इस दौरान एक सवाल आया कि क्या आरएसएस की शाखा में कोई भी आ सकता है, इस पर संघ प्रमुख ने कहा की शाखा में मत, संप्रदाय, जाति, पंथ और भाषा के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है। संघ प्रमुख ने एक बात और स्पष्ट करते हुए कहा कि जो भी भारत माता की जय बोल सकता है, उसके शाखा आने पर कोई मनाही नहीं है, संघ की शाखा में सभी का स्वागत है, बस उन लोगों को छोड़कर जो खुद को औरंगजेब का वंशज मानते हैं। दरअसल स्वयंसेवक का सवाल था कि क्या हम अपने मुस्लिम पड़ोसियों को भी शाखा में ला सकते हैं। इसी के जवाब में संघ प्रमुख ने कहा, ‘संघ की शाखा के दरवाजे उन सभी के लिए खुले हैं, जो भारत माता की जय बोलते हैं और भगवा ध्वज का सम्मान करते हैं। उन्होंने कहा कि आरएसएस की विचारधारा में पूजा पद्धति के आधार पर भेदभाव का कोई विचार नहीं है। ऐसे में उन लोगों को छोड़कर वे सभी यहां आ सकते हैं, जो खुद को औरंगजेब का वंशज मानते हैं। उन्होंने कहा कि हमारी जाति, पंथ, संप्रदाय अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन संस्कृति तो एक ही है।
मोहन भागवत ने इस दौरान अखंड भारत की अवधारणा पर भी बात की। उन्होंने कहा कि कुछ लोगों को लगता है कि अखंड भारत का विचार व्यवहारिक नहीं है, लेकिन सच यह है कि ऐसा संभव है। उन्होंने कहा कि आज सिंध प्रांत की हालत देखिए। भारत से जिन हिस्सों को अलग किया गया था, उनके साथ आज भेदभाव की स्थिति है। आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने कहा कि संघ में कभी भी किसी से भेदभाव नहीं किया गया।
अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक