जानिए वेद-पुराण में भगवान का सजीव और सगुण चित्रण क्यों ?

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ऋषियों और मुनियों ने वेद और पुराण में भगवान को सजीव और सगुण चित्रण क्यों किया?….जिस प्रकार जीवन प्रारंभ करने वाले बच्चे को सगुण चित्र दिखाकर प्राथमिक शिक्षा दी जाती है। जिसको आत्मसात कर बच्चे धीरे धीरे जीवन की वास्तविक शिक्षा को ग्राह्य करने योग्य बन जाते है।

चूंकि मनुष्य किसी भी विषय को तभी संज्ञान में लेता है जब वो विषय मनुष्य की तरह सगुण और साकार दिखे क्योंकि वो पंच ज्ञानेंद्रियों से ही किसी विषय को ग्राह्या करता है यानी जो देखता है, सुनता है, स्वाद में परखता है, गंध के रूप में एहसास करता है और स्पर्श का अनुभव करता है वो उसी को सत्य एवम साकार मानता है।

इसीलिए बच्चे की भांति भगवान की ओर ले जाने के लिए मनुष्य को आध्यात्म की प्राथमिक शिक्षा में भगवान को सगुण, साकार, दोहे और कहानियों में वर्णित कर उसको अपने जीवन के कर्मों में आत्मसात करने के लिए प्रेरित किया जाता है। बाद में मनुष्य जब आध्यात्म की प्राथमिक शिक्षा ग्रहण कर लेता है।

जैसे अपने आराध्य अथवा पूज्य हनुमान जी की कथा या चालीसा आदि किसी ग्रंथ को अपने दैनिक क्रिया में पूजा पद्धति के रूप में आत्मसात कर लेता है, तब वो स्वयं ही भगवान के वास्तविक निराकार तथा कालोपरि सहित उसके वास्तविक स्वरूप के दर्शन पाने के लिए आतुर होकर स्वयं ही आगे बढ़कर ज्ञान हासिल करने का प्रयास करता है।

एस वी सिंह आध्यात्म प्रहरी