उम्मीद लागू पर विपक्ष भी नाउम्मीद नहीं

उम्मीद लागू पर विपक्ष भी नाउम्मीद नहीं वक्फ संशोधन कानून 2025 राष्ट्रपति की मंजूरी और अधिसूचना के बाद लागू हो गया है किंतु विरोधी अब भी लकीर पीट रहे कानून के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में लगभग 20 याचिकाएं दाखिल की गई हैं, अगले 16 अप्रैल को सुनवाई की उम्मीद केंद्र सरकार ने भी उच्चतम न्यायालय में कैविएट दाखिल कर उसका भी पक्ष सुनने का किया है निवेदन इन याचिकाओं का भी वही हस्र होने की चर्चा जो राम मंदिर विवाद, अनुच्छेद 370 और तीन तलाक से संबंधित यशिकाओं का हुआ भाजपा अब इस कानून को लेकर देश भर में जागरूकता अभियान चलाएगी, इसके लिए नेताओं को निर्देशित कर दिया गया है

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नयी दिल्ली। काफी जद्दोजहद के बाद वक्फ संशोधन बिल संसद से पास हो गया। इसे राष्ट्रपति की अनुमति भी मिल गई और फिर अधिसूचना के जरिए पूरे देश में इसे लागू भी कर दिया गया है। किंतु विरोध करने वाले अभी भी नहीं मान रहे। उन्हें अब भी लगता है कि अपनी लड़ाई जरूर जीतेंगे। इसीलिए इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विभिन्न पक्षों की ओर से लगभग 20 याचिकाएं दाखिल कर दी गई हैं। हालांकि विपक्ष की ओर से एक पार्टी की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता और कांग्रेस सांसद कपिल सिब्बल ने तुरंत सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस से निवेदन किया तो उन्होंने कहा कि आप चिंता न करें, जब इसका समय आएगा तो हम इसे देख लेंगे। वैसे खबर मिली है कि सुप्रीम कोर्ट ने इन याचिकाओं के भविष्य पर 16 अप्रैल को सुनवाई करने का मन बनाया है। उसके बाद ही तय होगा कि ये याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में सुनी जाएंगी या फिर पहले ही नजर में खारिज हो जाएंगी। उधर केंद्र सरकार ने कोर्ट में कैविएट याचिका दाखिल कर इस मामले में उसका पक्ष सुनने का निवेदन किया है।

उधर इन याचिकाओं का समर्थन करने वाले लोगों के खिलाफ हिंसा की भी खबरें हैं, फिर भी कानून का समर्थन करने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है। वे खुलकर सोशल मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और बयानों के जरिए समर्थन कर रहे हैं। यह भी खबर है कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी ने सभी जिलाधिकारियों को निर्देशित कर दिया है कि वे अपने जिले में वक्फ की विवादित संपत्तियों की सूची बनाएं ताकि आगे उस पर उचित कार्रवाई की जा सके। इसके अलावा मोदी सरकार अब पूरे देश में इस कानून के बारे में लोगों को जागरूक भी करने जा रही है। नेताओं को निर्देश दे दिए गए हैं। पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने दिल्ली में इसके लिए ट्रेनिंग भी दी है।

बीते आठ अप्रैल को केंद्र सरकार की अधिसूचना के जरिए वक्फ संशोधन कानून 2025 यानी उम्मीद पूरे देश में तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया गया है। इसके बाद इस कानून का विरोध और समर्थन दोनों ही तेज हो गया है। विरोध करने वाले अब इस लड़ाई को सुप्रीम कोर्ट तक ले गए हैं। उनकी ओर से लगभग 20 याचिकाएं इस कानून के खिलाफ दाखिल की गई हैं। आगामी 16 अप्रैल को यह तय किया जाएगा ये याचिकाएं आगे सुनी जाएंगी अथवा नहीं। कुछ उन्मादी लोगों ने माहौल भी खराब करने की कोशिश की है। खबर है कि मणिपुर में इस कानून का समर्थन करने पर भाजपा प्रदेश अल्पसंख्यक मोर्चे के अध्यक्ष का मकान जला दिया गया है। ये घटना रात में अंजाम दी गई। हरियाणा में भी एक रिटायर्ड फौजी को एक कैब ड्राइवर ने सिर्फ इसलिए पीट दिया कि वह वक्फ संशोधन कानून के समर्थन में बोल रहे थे। बड़ी वारदात पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद से आई जहां उन्मादी भीड़ ने पत्थरबाजी करके कई लोगों और पुलिस वालों को घायल किया और अब बहुत सारी संपत्तियों को नुकसान भी पहुंचाया है। धीरे-धीरे कोलकाता समेत देश के कुछ अन्य हिस्सों में में भी प्रदर्शन और बैठकों का दौर जारी है। इस कानून के समर्थन और विरोध को लेकर जम्मू कश्मीर विधानसभा में भी बवाल हुआ। सत्ता पक्ष के ही कुछ विधायक पीडीपी विधायकों और कांग्रेस विधायकों के साथ मिलकर इस बिल पर चर्चा करना चाहते थे। किंतु विधानसभा अध्यक्ष में ये कहकर अनुमति नहीं दी कि यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है। इसलिए नियमानुसार इस पर सदन में इस पर चर्चा नहीं की जा सकती। इस मांग का भाजपा विधायक विरोध कर रहे थे। इसलिए विधानसभा अध्यक्ष को ऐसा फैसला लेना पड़ा। खबर है कि इस कानून को लेकर सत्ताधारी नेशनल कांफ्रेंस में फूट भी पड़ गई है और विधानसभा अध्यक्ष को हटाने की भी मांग हो गई। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला पर भाजपा से मिल जाने का आरोप भी लगा है। विरोधी उन पर इस बात को लेकर सवाल उठा रहे हैं कि उन्होंने बिल को पेश करने वाले केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री किरेन रिजीजू के साथ ट्यूलिप गार्डन का भ्रमण क्यों किया। खबर है कि इस दौरान उनके साथ नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला भी थे। पर अब खबर है कि नेशनल कांफ्रेंस भी इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएगी। इसके अलावा कुछ मुस्लिम नेता और मौलाना लगातार मुसलमानों को भड़काने में लगे हैं। दूसरी तरफ सत्ता पक्ष अपने समर्थक दलों के साथ मुसलमानों में पसमांदा कहे जाने वाले लोगों को यह समझाने में लगभग सफल दिख रहा है कि इस कानून में उनका हित है। इस समाज के कई नेता और मौलाना खुले रूप से नरेंद्र मोदी, अमित शाह और इस कानून का समर्थन करते दिख रहे हैं। ऐसे में इस कानून के नाम पर मुस्लिम विभाजित होता दिख रहा है।

उधर इस कानून के बन जाने के बाद विपक्ष के कुछ कुछ लोगों ने अपनी भूमिका को सीमित करना भी शुरू कर दिया है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मौलाना महमूद मदनी ने कहा है कि हमने संसद में जो लड़ाई लड़नी थी, लड़ी। हम कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भी गए हैं। और अब जो फैसला होगा, उसका सम्मान करेंगे, परंतु हम विरोध के लिए सड़क पर उतरने में विश्वास नहीं रखते। इससे आगे बढ़ते हुए शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा है कि हम इसके खिलाफ जितनी आवाज संसद में उठा सकते थे, हमने उठाया और आगे भी उठाते रहेंगे। किंतु हम इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं देंगे। पार्टी प्रवक्ता संजय राउत ने तो पहले ही कह दिया था कि वक्फ कानून का चैप्टर अब हमारे लिए क्लोज हो गया है। हम इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट नहीं जाएंगे।

यानी दोनों ही संगठन इस लड़ाई को लम्बा नहीं खींचना चाहते।‌ खबर है कि मौलाना महमूद मदनी को यह बात समझ में आ गई है कि कानून अब एक सच्चाई हो गया है। इसलिए लड़कर अब कोई फायदा नहीं है। उनका मानना है कि जब उनके माफिक सत्ता होगी तब फिर देखा जाएगा। क्योंकि पिछले कई कानूनों की तरह इसकी भी लड़ाई लम्बी खिंचने वाली है। ऐसे में सड़क पर उतर सरकार को नाराज करना होशियारी नहीं है। इसके अलावा कुछ मुस्लिम संगठनों, नेताओं द्वारा बिल का समर्थन कर देने से भी माहौल बदला है।

वहीं उद्धव गुट को अब अपने हिंदू आधार वोट की चिंता सताने लगी है। खबर तो यह भी है कि संसद में इस बिल का विरोध करने वाले पार्टी के कुछ नेताओं ने बिल के पक्ष में वोटिंग कर दी है। इसकी जानकारी मिलने के बाद उद्धव ठाकरे में यह निर्णय लिया है। राजद नेता तेजस्वी यादव ने कहा है कि जब हमारी सरकार आएगी तो हम इस कानून को कूड़ेदान में फेंक देंगे। पर सच्चाई यह है कि इसके पहले भी मुसलमानों से जुड़े कई कानूनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई किंतु उनमें से किसी का परिणाम मुसलमानों के हित में नहीं आया। ऐसे में विरोधियों को लगता है कि कानून के खिलाफ जाने से फायदा होने वाला नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में नागरिकता संशोधन कानून को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं का अभी तक निस्तारण नहीं हो पाया है, और वह कानून लगातार अमल में है। इसी प्रकार राम मंदिर विवाद, अनुच्छेद 370 और तीन तलाक के विरोध में दाखिल की गई याचिकाओं को शीर्ष कोर्ट ने खारिज ही कर दिया है। ऐसे में नहीं लगता कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में विपक्ष को तत्काल कोई राहत दे देगा। लगता यही है कि विपक्ष और मुस्लिम पक्ष सिर्फ अपनी राजनीति चमकाने के लिए और मुसलमानों का हिमायती बनने के लिए अपना राजनीतिक खेल खेल रहा है।

हालांकि इस बिल का समर्थन करने वाली पार्टियों के कई मुस्लिम नेताओं ने विरोधी रुख अख्तियार करते हुए पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। पर अब कुछ अन्य नेताओं का पार्टी में आगमन सभी शुरू हो गया है। अर्थात बिल का समर्थन करने पर नुकसान तो हुआ है परंतु दूसरे हाथ मदद के लिए आगे बढ़ गए हैं, इसलिए भरपाई भी होने लगी है।‌ इस मामले में सर्वाधिक चर्चा जद यू की रही। उसके कई मुस्लिम नेताओं ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया लेकिन पार्टी इससे साफ इंकार कर कर रही है। पार्टी का यह कहना है कि इस्तीफा देने वालों का हमारी पार्टी से कभी संबंध नहीं रहा है। पार्टी प्रवक्ता राजीव रंजन ने कहा है कि ये लोग कभी हमारी पार्टी का हिस्सा नहीं रहे। विपक्ष इस बारे में अफवाह फैला रहा है। एक नेता के बारे में कमेंट करते हुए केंद्रीय मंत्री ललन सिंह ने कहा कि वो तो पतंग छाप से चुनाव लड़े थे और साढ़े चार सौ वोट पाकर हार गए थे। इन लोगों का हमारी पार्टी से कभी सम्बन्ध नहीं रहा। परंतु पार्टी के गुलाम रसूल बलियावी नामक नेता के रुख ने पार्टी को परेशान कर रखा है। उनका कहना है कि वे पार्टी पदाधिकारी होने से पहले अपने धार्मिक संगठन के नेता हैं। बाकी सब उसके बाद है। उन्होंने अपने धार्मिक संगठन के नेताओं के साथ पटना में एक बड़ी बैठक भी की है। इसके अलावा राष्ट्रीय लोकदल के भी कुछ नेताओं ने समर्थन के विरोध में इस्तीफा दिया तो कुछ नए मुस्लिम नेताओं ने पार्टी का दामन थामकर उसकी भरपाई भी कर दी है। इसके अलावा पसमांदा समाज के कई नेताओं और अजमेर शरीफ दरगाह के सज्जादानशीन के वारिस ने भी कानून का समर्थन कर दिया है। इसलिए धीरे-धीरे कानून के पक्ष में मुस्लिम समाज में भी माहौल दिखने लगा है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी ने तो इस कानून पर राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के पहले ही जिलाधिकारियों को निर्देशित कर दिया कि वे अति शीघ्र प्रदेश में वक्फ के अवैध कब्जे वाली संपत्तियों को चिन्हित करें ताकि आगे की कार्रवाई की जा सके। इस पर सपा के महासचिव रामगोपाल यादव ने कहा कि राष्ट्रपति की मंजूरी से पहले ही योगी वक्फ की संपत्तियों की पहचान करने में लग गए हैं। इससे साबित होता है कि वक्फ संपत्तियों के प्रति उनकी मंशा कितनी खराब है। इसके अलावा कई मुस्लिम नेता दूसरा शाहीन बाग बनाने, 1947 को दोहराने जैसी धमकियां भी दे रहे हैं। कुल मिलाकर धीरे-धीरे विरोध का भी माहौल जोर पकड़ रहा है।

वक्फ संशोधन बिल के मामले में संसद के दोनों सदनों में मात खाने के बाद इस अभियान की अगुवाई कर रहे ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने ऐलान किया था कि वह इसे सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज करेगा और इसके खिलाफ पूरे देश में आंदोलन भी करेगा। अब धीरे-धीरे इसका असर दिखाई देने लगा है। बिहार से कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद, आम आदमी पार्टी दिल्ली के विधायक अमानतुल्लाह और एआइएमआइएम के सदर असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस के इमरान मसूद समेत लगभग 20 लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। ओवैसी ने कहा है कि इसका विरोध करना हमारा संवैधानिक अधिकार है, क्योंकि इसके जरिए हमारे धार्मिक अधिकार छीने जा रहे हैं। इसके अलावा कई मुस्लिम संगठनों ने वक्फ बिल के खिलाफ राष्ट्रपति से मिलने के लिए समय मांगा पर अभी तक उन्हें समय मिलने की कोई सूचना नहीं आई है। उधर भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री शाहनवाज हुसैन ने कहा कि मैंने वक्फ बिल का समर्थन किया था, इसलिए मुझे जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं और सोशल मीडिया पर गलत कमेंट किए जा रहे हैं।

दूसरी ओर लखनऊ से मिली खबर के अनुसार वक्फ संशोधन बिल को संसद से पास होने वाले दिन यानी 3 अप्रैल को भाजपा अब आजादी दिवस के रूप में मनाएगी। इसके अलावा भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा मुस्लिम बस्तियों में जाकर लोगों को बिल की सच्चाई बताएगा और लोगों की चिंताओं का समाधान करेगा।‌ भाजपाई इन इलाकों में वक्फ की फैक्ट फाइल लेकर जाएंगे और नए-पुराने कानून के बारे में लोगों को जागरूक करेंगे। अब तो खबर है कि भाजपा यह अभियान पूरे देश में चलाएगी। इसके लिए नेताओं को निर्देश दे दिया गया है।

चर्चा में भाग न लेने पर गांधी परिवार पर सवाल : संसद में वक्फ संशोधन बिल पर गांधी परिवार द्वारा चर्चा में भाग न लेने पर भी सवाल उठ रहे हैं। लोगों का कहना है कि अपने इसाई वोटरों को मैनेज करने के लिए ही गांधी परिवार का कोई व्यक्ति संसद में इस मुद्दे पर नहीं बोला। जबकि लोकसभा में राहुल गांधी और राज्यसभा में सोनिया गांधी पूरे समय मौजूद रहे। हां प्रियंका गांधी इस दौरान सदन में मौजूद नहीं रहीं। सूत्रों का कहना है कि प्रियंका गांधी ने अपनी गैर हाजिरी की सूचना लोकसभा अध्यक्ष को दे दी थी, शायद उन्हें अपने किसी परिचित को देखने के लिए जाना था। किंतु सदन में रहने के बावजूद राहुल गांधी और सोनिया गांधी द्वारा इस मुद्दे पर चर्चा में भाग नहीं लेने को उनकी सियासत बताया जा रहा है। इस बाबत केरल के एक मुस्लिम संगठन ने भी संसद में चर्चा के समय गांधी परिवार के भाग न लेने पर सवाल उठाए हैं। जानकारी के अनुसार केरल के एर्नाकुलम में इसाई समुदाय की जमीन हड़पने के मामले में काफी विवाद हुआ, और पिछले कई महीनो से चर्चा का विषय बना हुआ है। गांधी फैमिली द्वारा चर्चा में नहीं बोले जाने को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। वैसे राहुल गांधी ने डैमेज कंट्रोल के लिए यह कहना शुरू कर दिया है कि अभी तो मुसलमानों की प्रॉपर्टी छीनी जा रही है, आगे जाकर इसाइयों, बौद्धों, और जैनियों आदि अल्पसंख्यकों की भी जमीनें छीनी जाएंगी। किंतु सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस को मालूम था कि लोकसभा और राज्यसभा में बिल पास हो ही जाएंगे। इसीलिए कुछ भी बोलकर गांधी फैमिली केरल के ईसाइयों को नाराज नहीं करना चाहती थी।

मोदी की गैरमौजूदगी पर भी उठे सवाल : हालांकि बिल पर चर्चा के समय एक अनुपस्थिति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी थी, किंतु बताया जाता है कि उनका थाईलैंड और श्रीलंका का दौरा पहले से तय था। इसलिए भाजपाई इसे मोदी के कॉन्फिडेंस से जोड़कर देख रहे हैं। उनका तर्क है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह मैसेज देना चाहते थे कि देश में रहें या देश के बाहर, हम जो चाहते हैं, उसे सबका समर्थन है। हमारी पार्टी एकजुट है और पूरा एनडीए एकजुट है। ऐसे में पीएम नरेंद्र मोदी की गैरमौजूदगी में भी इतना महत्वपूर्ण बिल पास हो जाना उनकी राजनीतिक क्षमता को ही दर्शाता है। वैसे भी एनडीए के पास पर्याप्त नंबर थे और सारी सेटिंग पहले से हो गई थी।

इसलिए सत्ता पक्ष की ओर से मोर्चा राजनाथ सिंह, अमित शाह, जेपी नड्डा, ललन सिंह,किरेन रिजीजू और जगदंबिका पाल आदि लोगों ने संभाला। और इसमें एनडीए के समर्थक दलों ने भी भरपूर साथ दिया और दोनों बिल सकुशल संसद से पास हो गए। राजनीति के जानकार भी मानते हैं कि इससे नरेंद्र मोदी का कॉन्फिडेंस उजागर हुआ है। उनका मानना है कि वे नहीं रहकर भी एक मैसेज देना चाहते थे।‌ वैसे खबर यह भी है कि बिल पर पर चर्चा और मतदान के समय लोकसभा से अनुपस्थित कुछ भाजपा सांसदों को कारण बताओ नोटिस भी दिया गया है। लोकसभा में इस बिल के पक्ष में 288 सांसदों ने और राज्यसभा में 128 सांसदों ने मतदान किया जो बहुमत के आंकड़े से बहुत अधिक था। बताया जा रहा है कि लोकसभा में एनडीए को 294 सांसदों का समर्थन था लेकिन 288 मत ही मिले। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला का मत हटा भी दें तो ऐसे चार सांसद हैं, जिन्होंने चर्चा और मतदान में हिस्सा नहीं दिया। उधर राज्यसभा में एनडीए को कुल 123 सदस्यों का समर्थन प्राप्त था, पर उसे पांच वोट अधिक यानी 128 सांसदों का बहुमत मिला। इसका साफ मतलब है कि विपक्ष के पांच सांसदों ने अपनी पार्टी लाइन छोड़कर बिल के पक्ष में मतदान किया है ऐसे में माना जा रहा है कि शिवसेना उद्धव और बीजेडी के कुछ सांसदों ने अपनी अंतरात्मा की आवाज पर बिल का समर्थन किया है। बीजेडी ने राज्यसभा में मतदान के पूर्व कोई ह्विप जारी नहीं किया था और कहा था कि सांसद अपनी अंतरात्मा की आवाज पर मतदान करें। मतलब यह है कि विपक्ष की एकता में सेंधमारी हुई है। शिवसेना उद्धव ठाकरे के प्रवक्ता संजय राउत के शनिवार के बयान से भी पिक्चर साफ होती जा रही है। संभव है कि उनके भी कुछ सांसदों ने अंदर खाने खेल कर दिया हो। सच्चाई यह भी है कि यह बिल लोकसभा में पारित होने के बाद विपक्ष राज्यसभा में पस्त दिखा। विपक्ष की उम्मीद नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू से थी, पर दोनों पार्टियों ने गठबंधन धर्म का निर्वाह किया। लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी 12 घंटे से अधिक समय तक चली मैराथन बहस के बाद इसे पारित कर दिया गया। बिल पर लोकसभा में 288 सांसदों का समर्थन मिला तो विरोध में 235 सांसदों ने वोट किया। इसी प्रकार राज्यसभा में विधेयक के समर्थन में 128 और विरोध में 95 वोट पड़े। इस विधेयक पर विपक्ष की ओर से कई संशोधन पेश किए गए, जिसे दोनों सदनों ने खारिज कर दिया। विधेयक पारित करने के लिए लोकसभा की तरह राज्यसभा में भी आधी रात के बाद तक कार्यवाही चली। राज्यसभा में विधेयक को लेकर वैसे तो भारी हंगामा और विपक्ष के कड़े विरोध की उम्मीद थी, लेकिन लोस में विधेयक पारित होने और सरकार की ओर से विधेयक को मुस्लिमों के हित में होने को लेकर जिस तरह के तर्क दिए गए, उससे शायद विपक्ष के हौसले थोड़े पस्त थे। यही वजह थी कि राज्यसभा में विधेयक पेश होने के दौरान विपक्ष ने किसी तरह की टोका टाकी या शोरशराबे से परहेज किया। इतना ही नहीं, विधेयक पर चर्चा के दौरान विपक्ष की अधिकांश सीटें खाली दिखीं, जबकि सत्ता पक्ष की सीटें खचाखच भरी हुई थीं।

नरेंद्र मोदी की गैर मौजूदगी में शाह ने संभाला मोर्चा : लोकसभा की तरह राज्यसभा में भी सरकार की ओर से गृह मंत्री अमित शाह मोर्चा संभाले दिखे। चर्चा के दौरान उन्होंने कई बार खड़े होकर न सिर्फ हस्तक्षेप किया, बल्कि विपक्ष को आईना भी दिखाया। ट्रिब्यूनल पर बोल रहे कांग्रेस सांसद नासिर हुसैन को उन्होंने बीच में टोका और कहा कि अब तक ट्रिब्यूनल के फैसले को चुनौती नहीं दी जा सकती थी, पर नए विधेयक में हम इसे लेकर आए हैं। उन्होंने चर्चा के दौरान समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव को भी आड़े हाथों लिया। जब चर्चा में बोलते हुए अखिलेश यादव ने यह कहा कि इसके लिए जनता आपको सबक सिखाएगी तो शाह ने कहा कि चिंता मत करिए, अगले कई चुनावों तक आपका नम्बर नहीं आने वाला। इस पर अखिलेश यादव ने फिर सवाल किया कि योगी जी के बारे में क्या कहेंगे, तो गृहमंत्री ने कहा कि वे भी रिपीट करेंगे। भाजपा अध्यक्ष और सदन के नेता जेपी नड्डा ने कहा कि कांग्रेस ने अपने शासनकाल में मुस्लिम महिलाओं को दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया था। मिस्त्र, सूडान, बांग्लादेश और सीरिया जैसे मुस्लिम देशों में कई साल पहले तीन तलाक पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। लेकिन कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार ने एक दशक तक सत्ता में रहने के दौरान मुस्लिम महिलाओं के लिए कुछ नहीं किया।

किरेन रिजीजू का विपक्ष पर हमला : विधेयक पेश करते हुए संसदीय कार्य और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री किरेन रिजीजू ने विपक्ष के उन आरोपों को खारिज कर दिया कि इससे मुस्लिमों के अधिकार छीने जा रहे हैं। रिजीजू ने विधेयक की खूबियां गिनाईं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस कानून का उद्देश्य मुस्लिम महिलाओं को सशक्त बनाना और सभी मुस्लिम समुदायों के अधिकारों की रक्षा करना है। उन्होंने कहा कि यह विधेयक मुस्लिमों के खिलाफ बिल्कुल नहीं है, बल्कि उनका उत्थान करने वाला है। रिजीजू ने विपक्ष की ओर से फैलाए जा रहे दुष्प्रचार का भी जवाब दिया। उन्होंने कहा कि यह विधेयक गरीब व पिछड़े मुस्लिमों के परिवारों के विकास का रास्ता खोलने वाला है। इसलिए इसका नाम उम्मीद रखा गया है। उन्होंने उम्मीद का फुल फॉर्म (यूनीफाइड वक्फ मैनेजमेंट इम्पावरमेंट, इफिशिएंसी एंड डेवलपमेंट) बताया। उन्होंने कहा कि जब भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश को विकसित बनाने की बात करते हैं, तो मुस्लिम उससे अलग नहीं हैं। रिजीजू ने अभी तक के वक्फ बोर्ड पर मनमाने व्यवहार का आरोप लगाया और कहा कि दिल्ली के भीतर मौजूद शहरी विकास मंत्रालय व दिल्ली विकास प्राधिकरण की 123 संपत्तियों पर वक्फ अपना दावा कर रहा है, जिसे कांग्रेस ने चोरी से दे दिया है। ऐसे में इसमें कोई संदेह नहीं है कि कल वक्फ संसद भवन पर भी दावा पेश कर दे। इसीलिए इस बिल की जरूरत है। उन्होंने केरल और तमिलनाडु के कुछ और उदाहरण भी गिनाए। मंत्री रिजीजू ने विश्वास दिलाया कि यह कानून मुस्लिमों के अधिकार नहीं छीनेगा। विपक्ष वक्फ इस बिल से मुसलमानों को डरा रहा हैं। रिजीजू ने कहा कि वक्फ बोर्ड एक वैधानिक निकाय है, और इसे धर्म निरपेक्ष होना ही चाहिए। फिर भी हमने इसमें गैर-मुस्लिमों की संख्या सीमित कर दी है। इस विधेयक से मुसलमानों को हम नहीं डरा रहे, बल्कि विपक्षी पार्टियां डरा रही हैं। उन्होंने पूछा कि अगर मुसलमानों में गरीबी ज्यादा है, तो उन्हें गरीब किसने बनाया, कांग्रेस ने। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो सबका साथ, सबका विकास की बात की है। और वही तो संविधान की भावना है। वक्फ संशोधन असंवैधानिक नहीं है।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक