हाथरस कांड : वोट का सवाल है कुछ मत बोलो

* मायावती को एसआईटी रिपोर्ट पर भरोसा नहीं पूछा-बाबा के प्रति नरमी क्यों दिखा रही सरकार * एडवोकेट विशाल तिवारी की स्वतंत्र एजेंसी से जांच की मांग भी सुप्रीम कोर्ट से खारिज * अब निगाहें न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट पर टिकी हैं, उसी से है न्याय की उम्मीद * बड़ा सवाल, नारायण साकार हरि का नाम प्राथमिकी में क्यों नहीं और कार्रवाई क्यों नहीं

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लखनऊ। गत 2 जुलाई को हाथरस में साकार नारायण हरि उर्फ भोले बाबा के सत्संग में हुई भगदड़ के मामले ने अब पूरी तरह सियासी रंग ले लिया है। इस मामले में बसपा सुप्रीमो मायावती खुलकर बाबा के खिलाफ मैदान में आ गई हैं जबकि दूसरी तरफ भाजपा और सपा समेत अन्य राजनीतिक दल अभी भी चुप्पी साधे हुए हैं। कोई भी बाबा के खिलाफ सीधे बोलने को तैयार नहीं है। उधर इस मामले के लिए गठित स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम यानी एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट दे दी है। और उस पर कार्रवाई करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वहां के एसडीएम, तहसीलदार और स्थानीय पुलिस इकाई के अफसरों को निलंबित कर दिया है। पर यह मामला शांत होता दिख नहीं रहा। इस रिपोर्ट पर उंगलियां उठनीं शुरू हो गई हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती ने तो यहां तक कह दिया है कि बाबा के मामले में सरकार की चुप्पी चिंता का विषय है। बाबा से पूछताछ न होने पर और कई लोग भी सवाल उठा रहे हैं। काफी लोग और इसे वोट बैंक की राजनीति करार दे रहे हैं।

हाथरस कांड की जांच के लिए गठित एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस मामले की विस्तृत जांच की जरूरत है। इतने कम समय में विस्तृत जांच संभव नहीं है। फिलहाल इस मामले में उन कुछ जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की संस्तुति की जा रही है जिन्होंने अपने कर्तव्यों में लापरवाही बरती है। इस मामले की एसआईटी रिपोर्ट आने के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने ट्विटर पर अपने पोस्ट में लिखा है कि हाथरस कांड में आयी एसआईटी रिपोर्ट राजनीति से प्रेरित है। इस सत्संग के मुख्य आयोजक ओंकार नारायण हरि पर सरकार की चुप्पी चिंता का विषय है। मायावती इस मामले में अकेली राजनेता हैं जिन्होंने ओंकार नारायण हरि के प्रति सरकार की नरमी पर सवाल उठाए हैं। उनका शुरू से ही सवाल है कि बाबा नारायण साकार हरि का नाम प्राथमिकी में क्यों नहीं है।

इस मामले की जांच के लिए गठित एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मामले की विस्तृत जांच की जरूरत है। विस्तृत जांच के लिए और वक्त चाहिए। इस मामले में भोले बाबा के अभी भी अंडरग्राउंड होने से पीड़ितों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है। बे कहते हैं कि बाबा के पास चमत्कार है तो वह क्यों नहीं हमारी पीड़ा समझ रहे हैं। उन्हें सभी मृत लोगों को जिंदा कर देना चाहिए। उधर स्थानीय लोगों में आक्रोश बढ़ता ही जा रहा है। वे खुलकर बाबा के खिलाफ बयान देने लगे हैं। ऐसे में बाबा की कलई और उनके कारनामे सामने आते जा रहे हैं।

जानकारों का कहना है कि सरकार की बाबा के प्रति नरमी का सबसे बड़ा कारण उनसे जुड़ा वोट बैंक है। इस मामले में दिक्कत यह है कि बाबा दलित वर्ग से आते हैं, दलितों के भगवान हैं। और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 26 जिलों व 137 विधानसभा क्षेत्रों समेत हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के कुछ हिस्सों में भी दलित वोटरों पर उनका अच्छा खासा प्रभाव है। अधिकतर दलित उनके भक्त हैं और उन्हें भगवान मानते हैं। आलम यह है कि इतना सब कुछ हो जाने के बावजूद बाबा के आश्रमों में बाबा के लिए पूजा-पाठ जारी है। इसी के चलते भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी, कांग्रेस या कोई अन्य दल बाबा के खिलाफ कुछ भी बोलने से कतरा रहे हैं। केवल बसपा नेता मायावती ने ही अब तक जमकर नारायण साकार हरि उर्फ भोले बाबा के खिलाफ जमकर बैटिंग की है।

इस मामले में एडवोकेट विशाल तिवारी ने भी इस कांड की किसी स्वतंत्र एजेंसी से जांच की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। उनका तर्क था कि सरकारी एजेंसियों से निष्पक्ष जांच की उम्मीद नहीं है। यह जनता के हित से जुड़ा हुआ मामला है। किंतु कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से इन्कार कर दिया है। इस प्रकार यह मामला अब और उलझ गया है। बाबा का सामने नहीं आना और अभी उनको जांच के दायरे में नहीं लाना भाजपा और योगी सरकार की नीयत पर सवाल उठा रहा है। अखिलेश यादव का अभी तक हाथरस नहीं जाना और बाबा पर चुप्पी साधे रहना भी उनकी नीयत पर सवाल उठा रहा है। राहुल गांधी भी हाथरस जाकर रस्म अदायगी कर आए हैं। पर उन्होंने भी बाबा पर पूछे गए सवालों पर चुप्पी ही रखी। कुल मिलाकर इस पूरे मामले को मायावती के अलावा अन्य राजनीतिक दल वोट बैंक के चश्मे से देख रहे हैं।

इस बारे में एक टीवी चैनल की डिबेट में समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता अनुराग भदौरिया ने बाबा के खिलाफ सीधे न बोलते हुए कहा कि सरकार क्या विपक्ष के कहने पर और उससे पूछकर सरकार चला रही है। इस मामले में बड़े लोग या बड़े अफसर जैसे डीएम, एसपी और उससे बड़े अफसर अभी तक क्यों बचे हुए हैं। इन सबके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। सरकार छोटे अफसरों पर कार्रवाई करके अपनी नाकामियों पर पर्दा डालने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस प्रवक्ता मुकेश प्रताप सिंह ने भी यही कहा कि इस मामले में लीपापोती हो रही है। छोटी मछलियों को पकड़ा जा रहा है और बड़ी मछलियों को बचाया जा रहा है। उनका सवाल है कि बड़े अधिकारियों पर क्यों कार्रवाई नहीं की गई है।

इस मामले में सरकार का बचाव करते हुए रालोद प्रवक्ता रोहित अग्रवाल का कहना है कि अगर हमें मामले का राजनीतिकरण करना होता तो अब तक अखिलेश यादव गिरफ्तार हो चुके होते। क्योंकि इस मामले में अखिलेश यादव सीधे बाबा से जुड़े हुए दिखाई दे रहे हैं। वे एक वीडियो में बाबा का गुणगान करते हुए उनके सत्संग में घूम रहे हैं। वे क्यों नहीं बाबा के खिलाफ कोई बयान दे रहे हैं। साफ है कि वे वोट बैंक की राजनीति कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने कहा कि पुलिस और प्रशासन अगर चाहे तो बाबा तुरंत गिरफ्तार हो सकता है। ऐसा हो ही नहीं सकता कि बाबा के वकील एपी सिंह उनसे मिल लेते हैं लेकिन पुलिस को उनकी सुराग नहीं लगा है। इस मामले में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है। राजनीतिक विश्लेषण सतीश प्रकाश का कहना है कि सरकार वोट की राजनीति के चलते बाबा को बचाना चाहती है। इसीलिए अभी तक इस मामले में उनका नाम नहीं आया है। डिबेट में शामिल वरिष्ठ पत्रकार विनोद अग्निहोत्री का कहना है कि इस मामले में बाबा से भी पूछताछ होनी चाहिए। उसके बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है। यह एक ऐसा पॉइंट है जो सरकार की नीयत पर सवाल उठना स्वाभाविक है।

इस मामले में एडीजी आगरा अनुपम कुलश्रेष्ठ और कमिश्नर अलीगढ़ चैत्रा बी की एसआईटी ने डेढ़ सौ अफसरों, कर्मचारियों और पीड़ित परिवारों के बयान दर्ज किए हैं। सीएम योगी ने एसआईटी से 24 घंटे में रिपोर्ट मांगी थी । हालांकि एसआईटी को अपनी जांच पूरे करने में छह दिन लगे। एसआईटी ने आयोजन की शर्तों के अनुपालन की भी जांच की है। एसआईटी ने आयोजकों को भी हादसे का दोषी पाया है। ये बात भी सामने आई है कि सत्संग के दौरान क्राउड मैनेजमेंट के लिए पर्याप्त इंतजाम नहीं थे। इस मामले पर उठा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। परंतु अभी भी बाबा के मामले में भाजपा या विपक्ष ने अभी तक अपना मुंह नहीं खोला है। पर बसपा सुप्रीमो मायावती लगातार बैटिंग कर रही है।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक