चीतल : किसी का भी मन मोह ले

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‘चीतल” को कुलांचें-चौकड़ी भरते देख किसी का भी मन प्रफुल्लित हो जाये। ‘चीतल” हिरन प्रजाति का वन्य जीव है। इसका सौन्दर्य व लालित्य किसी को भी बरबस आकर्षित कर लेता है। लाल व भूरे रंग की त्वचा  चीतल के सौन्दर्य व लालित्य में चार-चांद लगा देती है क्योंकि सूर्य की किरणें लाल व भूरे रंग की त्वचा को सुनहरा व चमकदार बना देती है जिससे चीतल का सौन्दर्य आैर भी अधिक बढ़ जाता है।

चीतल का यही लालित्य व सौन्दर्य उसका दुश्मन भी साबित होता है क्योंकि चीतल की खाल की सौन्दर्य के दीवाने उसे किसी भी कीमत पर पाना चाहते हैं  लिहाजा चीतल शिकारियों की निगाह में रहते हैं। चीतल सामान्य तौर पर भारत, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश व पाकिस्तान आदि देशों में पाया जाने वाला वन्य जीव है। देश में चीतल खास तौर से राजस्थान, गुजरात, उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, सिक्किम सहित कुछ खास प्रदेशों के जंगलों व मैदानों में कुलाचें भरते दिख जायेंगे।

जंगलों-मैदानों के अलावा देश के विभिन्न चिडियाघरों में भी दिखेंगे। लाल व भूरा रंग की त्वचा पाने वाला चीतल अपनी खूबियों के कारण अलग ही दिखता है। लाल व भूरा रंग की त्वचा में सफेद धब्जे उसे आैर भी खूबसूरत बनाते हैं। सामान्य तौर पर चीतल के तीन शाखाओं वाले सींग होते हैं। सींग की लम्बाई सामान्यत: पच्चहत्तर सेंटीमीटर तक होती है।

विशेषज्ञों की मानें तो चीतल हर वर्ष एक खास समय पर सींग छोड़ देता है। चीतल का वजन करीब पच्चासी किलो तक होता है जबकि लम्बाई एक सौ पचास सेंटीमीटर तक होती है। मादा की तुलना में नर चीतल कुछ बड़ा होता है। चीतल की सामान्य आयु बारह वर्ष आंकलित है लेकिन कई बार चीतल इससे भी अधिक आयु जीते हैं।

चीतल के सूघंने की शक्ति बड़ी प्रबल होती है जिससे किसी भी खतरे को भांप कर चीतल कुलाचें भरते हुये शिकारी की गिरफ्त से दूर भाग निकलता है। चौकड़ी-कुलांचे भरने में दक्ष चीतल एक अच्छा तैराक भी होता है। चीतल खास तौर से झुण्ड में रहना पसंद करते हैं। घास व पत्तियां उसका आहार होते हैं।