एक पत्र बम यह भी…

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मौसम भी है। फर्ज़ भी है और दस्तूर भी। अब एक किस्सा हमारा भी झेलिए। एक लड़का था। अब हम ये क्यों बताएं कि जवानाधीन था। उसके कुछ हमउम्र दोस्त थे। ये क्यों बताएं कि सब आपस में जिगरी दोस्त थे। सब पढ़ते थे। अलग – अलग स्कूलों में लेकिन दर्जा एक था – इंटरमीडिएट। ये क्यों बताएं कि सबकी बोर्ड परीक्षा का साल था। उम्र और पढ़ाई की दृष्टि से नाज़ुक समय।

उम्र के इस दौर में हसीन सपनों का रोग भी लग जाता है। ये क्यों बताएं कि उस लड़के को भी लग गया। उसके दोस्तों के पास एक-एक अदद गर्लफ्रेंड थी। लड़के के पास नहीं थी इसलिए उसे सपने ज़्यादा परेशान करते थे। अब ये क्यों बताएं कि दोस्तगण रोज़ अपनी – अपनी वाली के किस्से लड़के से शेयर करते। आदान – प्रदान किए गए प्रेम पत्र दिखाते। पढ़कर सुनाते। वह इससे और ज़्यादा परेशान होता।

अब ये क्यों बताएं कि दोस्तों के इश्क के किस्सों और लव लेटर्स ने उस लड़के का दिन का चैन और रातों की नींद छीन ली। अब उसे सपने आने भी बंद हो गए। वह दिन – रात बेचैन रहने लगा। उसका ना स्कूल में मन लगता, ना मोहल्ले में। अब ये क्यों बताएं कि एक अदद माशूका के अभाव में उसे अपनी सोलह साल पुरानी ज़िन्दगी और पांच फीट छह इंच लम्बा जिस्म बेमानी लगने लगा। दोस्तों के बीच वह हीनभावना की बुलंदियों पर पहुंचने लगा।

उसने महसूस किया कि समय के प्रचलन और दोस्तों में इज़्ज़त बनाए रखने की खातिर उसके पास भी एक दिलरुबा होनी ही चाहिए। अब ये क्यों बताएं कि लड़के ने इस मामले को अपने प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया। मोहल्ले में थीं तो कई लेकिन उसकी हिम्मत नहीं थी कि वह अपने दिल की बात किसी से कह सके। अतः प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाने के छह महीने बाद भी नतीजा ढाक के तीन पात।

अब ये क्यों बताएं कि आखिर लड़के ने एक अजीबोगरीब फैसला किया। निराकार माशूका से इश्क लड़ाने का फैसला। यहां तक तो ठीक था लेकिन उसने अपनी उस माशूका की तरफ से खुद को प्रेम पत्र लिखने भी शुरू कर दिए, जिसका वजूद कहीं था ही नहीं। अब यह बताने की ज़रूरत नहीं कि इन फर्जी प्रेम पत्रों से दोस्तों में उसकी साख अच्छी हो गई और वह भी किसी हद तक कुंठा से बाहर निकल आया।

वक्त गुजरता रहा। काफी साल बीत गए। बचपन और जवानी के वे दोस्त यहां – वहां, पता नहीं कहां – कहां सेटल हो गए। वह बदकिस्मत लड़का भी कालांतर में बीवी – बच्चों को प्राप्त हुआ। हाल में उसके घर में भी दिवाली से पहले सफाई – पुताई का काम शुरू हुआ। इसी क्रम में लड़के की एक पुरानी अटैची उसकी पत्नी ने खोली तो उसमें से तमाम पुराने कागज निकले। उनमें एक कागज उस माशूका का खत था, जो कभी थी ही नहीं। पत्नी ने खत को लेकर आसमान सर पर उठा लिया। वह भूतपूर्व लड़का सफाई कराने के बदले सफाई देते – देते परेशान है। अब हम क्या बताएं कि वह लड़का हम ही हैं।

# कमल किशोर सक्सेना