भारतीय संस्कृति में नारी के सम्मान को बहुत महत्व दिया गया है। संस्कृत में एक श्लोक है- ‘यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता:। अर्थात्, जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। किंतु वर्तमान में जो हालात दिखाई देते हैं, उसमें नारी का हर जगह अपमान होता चला जा रहा है। उसे ‘भोग की वस्तु’ समझकर आदमी ‘अपने तरीके’ से ‘इस्तेमाल’ कर रहा है। यह बेहद चिंताजनक बात है। लेकिन हमारी संस्कृति को बनाए रखते हुए नारी का सम्मान कैसे किय जाए, इस पर विचार करना आवश्यक है।
भारत में मां दुर्गा और काली की पूजा होती है इसलिए हमारे देश में नारी को देवी भी कहा गया है। हालांकि, आज भी देश का एक बड़ा तबका ऐसा है जहां रूढ़िवादी सोच ने कब्जा जमाया हुआ है। ऐसे लोगों के लिए बेटी का जन्म खुशी नहीं बल्कि शर्म की बात होती है। पिछले कुछ समय से महिलाओं की स्थिति में सुधार आया है वो पढ़ रही हैं और आगे बढ़ रही हैं। लेकिन फिर भी ये लोग सच्चाई से मुंह फेर लेते हैं और लड़कियों को केवल चूल्हा-चौका तक ही सीमित रखते हैं। ऐसे में हमें हर संभव कोशिश करना चाहिए इन लोगों को जागरुक करने के लिए क्योंकि जहां नारी का सम्मान नहीं वहां सुख नहीं।
इसका जीवंत उदाहरण मैंने अपने घर में देखा जब पापा हमारे पड़ोस में रहने वाले परिवार ने अपनी पोती को स्वीकारा नहीं ओर पापा उसे घर ले आयें। छोटे होने के कारण उस समय पापा के इस कदम को समझें नहीं पर आज उसकी गहराई को मैं आज समझ पाई। जो सम्मान उसे अपने माँ ओर पिता से नहीं मिला वो मेरे माँ ओर पिता ने दिया।
कंधे से कंधा मिलाकर चलती नारी :नारी का सारा जीवन पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने में ही बीत जाता है। पहले पिता की छत्रछाया में उसका बचपन बीतता है। पिता के घर में भी उसे घर का कामकाज करना होता है तथा साथ ही अपनी पढ़ाई भी जारी रखनी होती है। उसका यह क्रम विवाह तक जारी रहता है।
गर्व है मुझे मैं नारी हूँ
तोड़ के हर पिंजरा
जाने कब मैं उड़ जाऊँगी
चाहे लाख बिछा लो बंदिशे
फिर भी दूर आसमान मैं अपनी जगह बनाऊंगी मैं
आज की महिला निर्भर नहीं हैं। वह हर मामले में आत्मनिर्भर और स्वतंत्र हैं और पुरुषों के बराबर सब कुछ करने में सक्षम भी हैं। हमें महिलाओं का सम्मान जेंडर के कारण नहीं, बल्कि स्वयं की पहचान के लिए करना होगा। हमें यह स्वीकार करना होगा कि घर और समाज की बेहतरी के लिए पुरुष और महिला दोनों समान रूप से योगदान करते हैं। यह जीवन को लाने वाली महिला है। हर महिला विशेष होती है, चाहे वह घर पर हो या ऑफिस में। वह अपने आस-पास की दुनिया में बदलाव ला रही हैं, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बच्चों की परवरिश और घर बनाने में एक प्रमुख भूमिका भी निभाती है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम उस महिला की सराहना करें और उसका सम्मान करें जो अपने जीवन में सफलता हासिल कर रही हैं और अन्य महिलाओं और अपने आस-पास के लोगों के जीवन में सफलता ला रही है।
किसी ज़माने में अबला समझी जाने वाली नारी को मात्र भोग एवं संतान उत्पत्ति का जरिया समझा जाता था। जिन औरतों को घरेलू कार्यों में समेट दिया गया था, वह अपनी इस चारदीवारी को तोड़कर बाहर निकली है और अपना दायित्व स्फूर्ति से निभाते हुए सबको हैरान कर दिया है। इक्कीसवीं सदी नारी के जीवन में सुखद संभावनाएँ लेकर आई है। नारी अपनी शक्ति को पहचानने लगी है वह अपने अधिकारों के प्रति जागरुक हुई है। लेकिन यहां हम इस कटु सत्य से मुंह नहीं मोड़ सकते कि महिलाओं को आज भी पुरुषों की तुलना में कम मजदूरी मिलती है।
हर रूप रंग में ढल कर सवर जाऊं,
सब्र की मिसाल, हर रिश्ते की ताकत हूँ।
महिला दिवस की सफलता की पहली शर्त जहां मूलत: महिलाओं के सर्वोतोमुखी विकास में निहित है, वही दूसरी शर्त के बतौर हमें यह कहने में भी लेशमात्र हिचक नहीं है कि पुरुष मानसिकता में आमूलचूक बदलाव आए और वह इस वास्तविकता को जाने कि घर के कामकाज के साथ जब महिलाये अन्य महत्वपूर्ण और चुनौती भरे क्षेत्रों में भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ने का जज्बा रखती हैं।
अपने हौसले से तक़दीर को बदल दूँ,
सुन ले ऐ दुनिया, हाँ मैं औरत हूँ.
मै अबला नादान नहीं हूँ, दबी हुई पहचान नहीं हूँ।
अशिक्षित होने की वजह अधिकांश महिलाएं अपने जीवन स्तर में सुधार करने में खुद को असमर्थ महसूस करती हैं। इसलिए महिलाओं को शिक्षित करना है जरूरी।
मै स्वाभिमान से जीती हूँ,
रखती अंदर ख़ुद्दारी हूँ।।
मै आधुनिक नारी हूँ।।
समाज का दर्पण हैं महिलाएं
वर्तमान स्थिति में नारी ने जो साहस का परिचय दिया है, वह आश्चयर्यजनक है। आज नारी की भागीदारी के बिना कोई भी काम पूर्ण नहीं माना जा रहा है। समाज के हर क्षेत्र में उसका परोक्ष – अपरोक्ष रूप से प्रवेश हो चुका है।
मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो, तो ना संसाधनों की कमी खलती है और ना ही रुकावटें आड़े आती हैं। जरूरत सिर्फ अपने आत्मबल को पहचानने की है, अपने आसमान की ओर कदम बढ़ाने की है, जिससे हिम्मत के पंख फैलाकर उड़ान भरी जा सके। हाल ही में भारतीय वायु सेना की फ्लाइंग ऑफिसर अवनी चतुर्वेदी ने ऐसा ही कर दिखाया है। एक सामान्य मध्य वर्गीय परिवार से संबंध रखने वाली इस बेटी ने मिग-21 फाइटर प्लेन उड़ाकर इतिहास रचा है। पिछले दिनों विश्व कप जिमनास्टिक्स प्रतियोगिता में अरुणा बी. रेड्डी व्यक्तिगत पदक जीतने वाली पहली भारतीय जिमनास्ट बनीं।
अंत में हम यही कहना ठीक रहेगा कि हम हर महिला का सम्मान करें। अवहेलना, भ्रूण हत्या और नारी की अहमियत न समझने के परिणाम स्वरूप महिलाओं की संख्या, पुरुषों के मुकाबले आधी भी नहीं बची है। इंसान को यह नहीं भूलना चाहिए, कि नारी द्वारा जन्म दिए जाने पर ही वह दुनिया में अस्तित्व बना पाया है और यहां तक पहुंचा है। उसे ठुकराना या अपमान करना सही नहीं है ।अत: उसे उचित सम्मान दिया ही जाना चाहिए।
सीमामोहन