बैड लोन पर खड़े उद्योग में होने वाली है उथल-पुथल !

0
638

भारतीय परिसंपत्ति पुनर्निर्माण उद्योग (एसेट रिकंस्ट्रक्श‌न इंडस्ट्री- एआरआई) में उथल-पुथल के पहले की हलचल शुरू हो गई है। एक तरफ 8 लाख करोड़ रु के परिसंपत्ति पुनर्निर्माण के घरेलू बाजार पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर के बड़े हेज फंड, पेंशन फंड और प्राइवेट इक्विटी फर्मों सहित अन्य निवेशकों की कारोबारी गतिविधियां जोर पकड़ेंगी। दूसरी तरफ बजट में प्रस्तावित तथाकथित बैड बैंक नाम से चर्चित ‘नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड’ (एनएआरसी) को अगस्त तक सक्रिय करने की तैयारी पूरी जोरदारी से चल रही है।

इसकी भारी भरकम शेयर पूंजी संरचना का निर्धारण फाइनल स्टेज पर है। इन दो परिवर्तनों से भारतीय एआर उद्योग का नया अध्याय शुरू हो जाएगा। इस उद्योग के कमतर पूंजी वाले खिलाड़ी प्रतिस्पर्धा में बाजार बाहर हो जाएंगे या बड़ी एआरसी में अपना विलय करने को मजबूर हो जाएंगे। दो दशक पूर्व अस्तित्व में आए इस उद्योग में छोटी बड़ी मिलाकर अट्ठाइस कंपनियां सक्रिय हैं। जिनमें देशी विदेशी दोनों तरह के प्रमोटरों की पूंजी लगी हुई है।

बता दें कि इस उद्योग का कच्चा माल बैंकों और वित्तीय संस्थानों के बैड लोन हैं, और अपने देश में ये प्रचुर मात्रा में उपलब्ध भी हैं। उदारीकरण के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था का द्रुत विकास हुआ जिसके लिए बैंकों और वित्तीय संस्थानों ‌से औद्योगिक इकाईयों को खुलकर वित्तीय सहायता मुहैया कराई गई। विभिन्न कारणों से तमाम उद्योगों का वित्तीय मोर्चे पर प्रदर्शन निराशाजनक रहने से वे कारोबारी कर्ज की अदायगी नहीं कर पाते थे। जिससे ऋणदाता बैंकों और वित्तीय संस्थानों का काफी धन फंसने लगा और बहुत रकमें डूब भी गईं।

इस पर नरसिंहम समिति और आंध्यारुजिना समिति की संस्तुतियों के आधार पर नीतिकारों ने क़ानून बनाने का निर्णय लिया और इस तरह दि सिक्योरिटाइज़ेशन ऐंड रिकंस्ट्रक्शन आॅफ फाइनेंशियल एसेट्स ऐंड एनफोर्समेंट आॅफ सिक्योरिटी इंटरेस्ट ऐक्ट 2002 (एसएआरएफएईएसआई) बना। इसे बोल-चाल में संक्षिप्त नाम सरफेसी दिया गया। सरफेसी के अस्तित्व में आते ही देश में बैंकों और वित्तीय संस्थानों को अपनी संकटग्रस्त/ खराब अथवा प्रतिफल न देने वाली परिसंपत्तियों/आस्तियों को नीलाम करने की शक्तियां मिल गईं।

ऐसी परिसंपत्तियों को ठिकाने लगाने के लिए सबसे बड़े भारतीय स्टेट बैंक ने 20%, आईडीबीआई बैंक ने 19.2%, आईसीआईसीआई बैंक ने 13.3%, पंजाब नेशनल बैंक ने 10% और सिंगापुर की जीआईसी ने 9% शेयर पूंजी लगाकर देश की पहली परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी – एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी आॅफ इंडिया लि. (एआरसीआईएल-आरसिल) की स्थापना वर्ष 2003 में की।

भारतीय परिसंपत्ति पुनर्निर्माण उद्योग (एआरआई) के साल 2003 से 2014 तक के प्रथम चरण में चौदह एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनियों (आरसी) की स्थापना हुई। उस दौरान भारतीय रिज़र्व बैंक के नियमानुसार किसी संकटग्रस्त परिसंपत्ति को हासिल करने/ खरीदने के लिए उसकी कीमत का सिर्फ 5% भुगतान करने की बाध्यता थी। 2014-15 और 2015-16 तक उद्योग तेजी से पनपता गया। 2015-16 तक उद्योग में ऋण और इक्विटी मिलाकर कोई 6 हजार करोड़ रु की पूंजी लग चुकी थी। ‌‌ ‌

‌‌वर्ष 2016, 5 मई को दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (इनसाॅलवेंसी ऐंड बैंक्रप्सी कोड- आईबीसी) को लोकसभा की मंजूरी मिली और उसी साल 1 अक्टूबर को भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड (आईबीबीआई) की स्थापना की गई। नतीजतन आईबीसी की शक्तियां इस बोर्ड में निहित हो गई। 2016 में ही एआरसी में विदेशी प्रमोटर की 49% की हिस्सेदारी सीमा समाप्त कर सौ फीसद कर दिया गया।

इससे संकटग्रस्त परिसंपत्तियों की बिक्री तो काफी बढ़ गई लेकिन वित्तीय रूप से ताकतवर तीन कंपनियों एडलवीज एआरसी, जेएम एआरसी और आरसिल का वर्चस्व उद्योग पर कायम हो गया था। उद्योग का दूसरा चरण 2014-2017 तक रहा। रिज़र्व बैंक ने एआरसी को संकटग्रस्त परिसंपत्ति खरीदने के लिए शुरुआत में ही उसकी कीमत का भुगतान 5% से बढ़ाकर 15% अनिवार्य कर दिया।

उस दौरान बढ़ी हुई संकटग्रस्त परिसंपत्तियों के दबाव में स्टेट बैंक और बैंक आॅफ इंडिया ने वसूली बढ़ाने की गरज़ से ऊंचे डिस्काउंट पर एआरसी से सौदे किए। उद्योग का कारोबार अच्छा चल रहा था। रिज़र्व बैंक ने नए नियम के तहत 2019, 1 अप्रैल को एआरसी के लिए न्यूनतम पूंजी 2 करोड़ रु से बढ़ाकर 100 करोड़ रु कर दी। अप्रत्यक्ष तौर पर यह बड़ी कंपनियों को आगे बढ़ने का मौका और छोटी पूंजी की एआरसी के लिए अप्रत्याशित झटका था।

दरअसल आईबीसी इस उद्योग में एआरसीके सशक्त प्रतिद्वंद्वी की तरह उभरकर आया। आईबीसी के जरिए अभी तक यानी करीब चार सालों में 6 लाख करोड़ रु के संकटग्रस्त परिसंपत्तियों की रिकवरी होना इसकी कामयाबी का प्रमाण है। जबकि एआरसी समग्र रूप से 2019-20 में सिर्फ़ 29.7% बकाया की रिकवरी कर सकीं। आईबीसी की रिकवरी दर 45.5% रही।

हालांकि 2019-20 में तकरीबन एक लाख करोड़ रु की रिकवरी के मुकाबले 2020-21 में (मुख्य वजह कोविड) से आईबीसी के माध्यम से होने वाली रिकवरी लुढ़ककर 26 हजार करोड़ रु रह गई। रिज़र्व बैंक की 2021, अप्रैल रिपोर्ट के अनुसार बैंक और वित्तीय संस्थानों ने संकटग्रस्त परिसंपत्तियों को ठिकाने लगाने में दूसरे विकल्प -आईबीसी का अधिक उपयोग किया।

इस रिपोर्ट के अनुसार एआरसी ने ‌समग्र रूप से शुरू से लेकर 2020, 31 मार्च तक कुल जितनी परिसंपत्तियां खरीदीं थीं। उनकी बुक वैल्यू 4 लाख 31 हजार 339 करोड़ रु थी। इन आंकड़ों से साफ है कि एआरसी के तेरह सालों बाद अस्तित्व में आया। आईबीसी कुछ ही सालों के अंदर कारोबार में कितना आगे निकल गया।

ताज़ा घटनाक्रम में बैड बैंक यानी नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड (एनएआरसी) को अगले दो महीने में सक्रिय करने के लिए सरकार, रिज़र्व बैंक और बड़े बैंक बहुत तत्परता से लगे हुए हैं। बैंकों के प्रमुखों की पिछले सप्ताह हुई बैठक में एनएआरसी की भारी भरकम पूंजी संरचना के बारे में ऊर्जा उद्योग के वित्तपोषकों का भागीदारीस्तर तय होने के अलावा बाकी करीब- करीब फाइनल भी हो गया है।

एनएआरसी की 51% हिस्सेदारी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की होगी। सिर्फ़ शीर्षस्थ मंजूरी मिलते ही इसके प्रमोटर रिज़र्व बैंक से लाइसेंस लेकर काम शुरू कर देंगे। एनएआरसी को काम शुरू करने के लिए मोटेतौर पर 6 हजार करोड़ रु की पूंजी चाहिए। यह धनराशि बैंकें आपसी सहयोग से जुटाने में सक्षम हैं।

नवगठित एनएआरसी के आगमन से उद्योग सांसत में है। क्योंकि भरपूर वित्तीय संसाधनों से लैस बड़े खिलाड़ियों से बाजार प्रतिस्पर्धा में टिक पाना कमतर पूंजी वाली कंपनियों के लिए पहले से ही मुश्किल है। ऊपर से सरकार से पूर्ण समर्थित और बैंकों तथा ऊर्जा क्षेत्र के वित्तीय संस्थान से सौ प्रतिशत पोषित एनएआरसी के आने से भविष्य को लेकर ये सहमी हैं। एनएआरसी ने अभी कारोबार शुरू भी नहीं किया है और बैंकों दोकी तरफ से उसके लिए एक लाख करोड़ रु से अधिक कीमत के बैड लोन प्रस्ताव तैयार हैं।

चिंताग्रस्त एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनियों ने अपने संगठन एसोसिएशन आॅफ एआरसी इन इंडिया ने रिज़र्व बैंक से एनएआरसी का उल्लेख किए बिना उद्योग को भेदभाव रहित फील्ड उपलब्ध कराने की अपील की है। हालांकि रिज़र्व बैंक ने पहले ही संकटग्रस्त परिसंपत्तियों के पुनर्निर्माण में एआरसी की भूमिका, इनके बिज़नेस माॅडल, संबंधित नियामकीय, वैधानिक ढांचे का आकलन करने और इनकी प्रभावोत्पादकता में सुधार करने संबंधी उपाय सुझाने के लिए अप्रैल में 6 सदस्यीय समिति का गठन किया है।

रिजर्व बैंक के पूर्व अधिशासी निदेशक सुदर्शन सेन की अध्यक्षता में गठित यह समिति अगस्त में अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। समिति में मैनेजमेंट डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रोहित प्रसाद ,अर्न्स्ट ऐंड यंग के पार्टनर ए. दीवानजी, सीए आर. आनंद, आईसीआईसीआई बैंक के अधिशासी निदेशक वी.मुलये, एसबीआई के पूर्व डिप्टी एमडी पीएन प्रसाद सदस्य हैं।

प्रणतेश नारायण बाजपेयी