बदलते संभल में फिर दंगल की आहट

बदलते संभल में फिर दंगल की आहट इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज कर दी सर्वे के खिलाफ आपत्ति मस्जिद इंतजामिया कमेटी सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में अपने बुने जाल में खुद फंस गई शाही जामा मस्जिद कमेटी संभल विवाद का पूरे प्रदेश की राजनीति पर पड़ा है बड़ा असर प्रदेश की कई दरगाहों पर लगने वाले मेलों पर भी लगा ग्रहण

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लखनऊ। 24 नवंबर 2024 को संभल में की गई एक गलती मुस्लिम पक्ष पर भारी पड़ती दिख रही है। इसका परिणाम यह हुआ है कि पूरे प्रदेश में विभिन्न दरगाहों को लगने वाले मेलों पर ग्रहण लग गया है। अब तो संभल की नवैयत भी बदलने लगी है। पहले जिस संभल में मुसलमानों की दबंगई के चलते सनातन के कीर्तन और भजन बीते दिन की बात हो गए थे, अब वहां पर घंटा-घड़ियाल बजने लगे हैं, कीर्तन-भजन होने लगे हैं। अब तो सनातन के भूले-बिसरे चिन्ह भी मिलने लगे हैं। संभल के शाही जामा मस्जिद बनाम हरिहर मंदिर विवाद ने ऐसा रायता फैलाया कि मुस्लिम पक्ष को बैकफुट पर आना पड़ गया है। बची-खुची कसर मस्जिद इंतजामिया कमेटी ने रमजान के महीने में मस्जिद की पुताई की मांग करके पूरी कर दी थी। हाईकोर्ट ने पुताई का आदेश तो दिया पर उसमें एएसआई का दखल भी मजबूत कर दिया। हालांकि ये मस्जिद कानूनन एएसआई के ही संरक्षण में थी, लेकिन सिर्फ कागजों में। एएसआई को भी मस्जिद में प्रवेश के लिए इंतजामिया कमेटी की अनुमति लेनी पड़ती थी, पर अब ऐसा नहीं है। हाईकोर्ट के दखल के पूर्व काफी सालों से एएसआई ने परिसर में जाना ही छोड़ दिया था, पर अब उसका दखल बढ़ गया है। यानी पुताई और रंगाई की मांग करके मस्जिद इंतजामिया कमेटी अपने ही दांव से मात खा गयी है। और परिसर पर उसका चला आ रहा एकाधिकार खत्म हो गया है। हाईकोर्ट ने पुताई के लिए मंजूरी देते समय यह कहा था कि यह काम एएसआई की निगरानी में होगा। इसके अलावा कोर्ट ने परिसर को विवादित भी माना है। और यह मंदिर पक्ष की पहली जीत मानी जा रही है।

संभल में विवादित परिसर के सर्वे को लेकर हुए विवाद में जिला प्रशासन को दखल का मौका मिल गया और उसने दबाव बना लिया। नतीजा यह हुआ कि बीते 24 नवंबर 2024 को मुस्लिम पक्ष ने पथराव के लिए जिस ईंट और पत्थर का इस्तेमाल किया था, उसी का इस्तेमाल करके मस्जिद के ठीक सामने पुलिस चौकी का निर्माण करा दिया गया है। उस पुलिस चौकी का नाम सत्यव्रत पुलिस चौकी रखा गया है। इसके बाद अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी मस्जिद के सर्वे को हरी झंडी देकर मुस्लिम पक्ष को कमजोर कर दिया है। ऐसे में ये मामला आगे तक जाएगा, इसकी पूरी संभावना है। खबर है कि मुस्लिम पक्ष हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने वाला है। वैसे भी ये मामला योगी सरकार और भाजपा की हिंदुत्व की राजनीति को सूट करता है, इसलिए वे इसे हर हाल में आने वाले विधानसभा चुनाव तक तो जिंदा रखने की कोशिश करेंगे ही। इस मामले की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद जिला प्रशासन एक्शन मोड में आ गया। और जिले में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए डीएम और एसपी ने फ्लैग मार्च निकाला। सुरक्षा व्यवस्था और चौकस कर दी गई है। जिला प्रशासन का कहना है कि हाईकोर्ट से मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज होने के बाद अब सर्वे की कार्रवाई आगे बढ़ेगी। ऐसे में यह कवायद माहौल शांत बनाए रखने के लिए थी। उधर हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद प्रतिक्रिया देते हुए मुस्लिम विद्वान मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने याचिका खारिज किये जाने को खेदजनक और निराशा जनक बताया है। उन्होंने कहा कि इस्लामी कानून के अनुसार किसी दूसरे की जमीन पर कब्जा करके मस्जिद नहीं बनाई जा सकती, और मुसलमान हमेशा इस धार्मिक आदेश का पालन करते हैं। उधर संभल हिंसा के पांच फरार आरोपियों के खिलाफ कोर्ट ने कुर्की की अनुमति दे दी है। इसके बाद पुलिस ने ढोल-नगाड़े साथ उनके घर जाकर कुर्की की मुनादी कराई और घरों पर कोर्ट का नोटिस चिपकाया। नोटिस के अनुसार समय सीमा में पुलिस या न्यायालय के समक्ष पेश न होने पर कुर्की की भी कार्रवाई हो सकती है।

यहां 24 नवंबर 2024 को हुई हिंसा का प्रभाव यह हुआ है कि अब संभल की आबो-हवा बदलने लगी है। प्रशासन द्वारा बनाए गए दबाव के बाद मुस्लिम पक्ष पुलिस की कार्रवाई के डर से भागा-भागा फिर रहा है। अब वहां रोज सनातन के नए-नए निशान मिलते जा रहे हैं। जिस संभल में घंटा घड़ियाल बजने लगभग बंद हो गए थे, वहां अब लोगों का मंदिरों में आना-जाना बढ़ गया है। इसके अलावा प्रशासन के प्रयासों से संभल के पुराने अवशेषों की तलाश शुरू हो गई है। पुराने अवशेष मिलने भी शुरू हो गए हैं। जिसमें 19 कूपों और कई तीर्थों की कल्पना की गई है। इनमें से कुछ मिले हैं और बाकी की तलाश जारी है। इस तरह संभल अब हिंदुत्व की प्रयोगशाला बन रहा है, इसमें दो राय नहीं है। यहां के सांसद जियाउर्रहमान वर्क को भी प्रशासन ने लपेटे में ले लिया है। उनके खिलाफ एक पुराने हिट एंड रन मामले में कार्रवाई शुरू है। इसके अलावा संभल में मस्जिदों और मदरसों के पास अवैध अतिक्रमण भी हैं, जिनको हटाने के लिए नोटिस दिए गए हैं। कुल मिलाकर इस समय संभल राज्य सरकार और जिला प्रशासन की हिट लिस्ट में है।

इस समय संभल की डेमोग्राफी बदलने के प्रमुख कारण 1978 में हुए दंगों और उसमें 184 हिंदुओं की हत्या के मामले की जांच भी हो रही है। इस सवाल पर यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने कहा है कि जब जैसी जरूरत होगी, वैसा निर्णय लिया जाएगा। उधर यूपी सपा अध्यक्ष श्याम लाल पाल ने ये कहकर विवाद खड़ा कर दिया कि संभल में कोई मंदिर नहीं मिला है। जबकि कल्कि धाम के पीठाधीश्वर आचार्य प्रमोद कृष्णम ने कहा है कि अब सनातन का दौर है। पहले अयोध्या में राम मंदिर बना और अब संभल में कल्कि धाम बनाया जा रहा है। बात यहीं तक नहीं रुकी। इसके बाद बारी आई संभल में सैयद सालार गाजी की याद में लगने वाले नेजा मेले की। हर साल लगने वाले इस मेले को प्रशासन ने इस बार अनुमति नहीं दी और कहा कि सैयद सालार गाजी आक्रांता था। उसकी याद में मेला लगाना उसको सम्मानित करने के समान है, ऐसे में मेले की अनुमति नहीं दी जा सकती। उसके बाद बदायूं, मुरादाबाद समेत प्रदेश के कई अन्य जगहों पर भी सैयद सालार मसूद गाजी की याद में लगने वाले मेलों पर पाबंदी लग गई। सबसे चर्चित मामला बहराइच के जेठ मेले का था। प्रशासन ने कानून-व्यवस्था का हवाला देकर मेले की अनुमति देने से इनकार कर दिया, तो मेला समिति हाईकोर्ट चली गई। पर बीते दिनों हाईकोर्ट ने भी प्रशासन के अनुमति न देने के फैसले को जायज ठहरा दिया है। हां, इतना जरूर हुआ कि हाई कोर्ट ने दरगाह में धार्मिक कार्य पहले जैसे होते रहने की अनुमति दे दी है। इसके बाद मुख्यमंत्री योगी की कर्मभूमि गोरखपुर में लगने वाले बाले मियां के मेले पर भी रोक लग गई है। सभी जगह पर मेले की अनुमति न देने के पीछे वक्फ संशोधन बिल पर उठे विवाद और कानून व्यवस्था का हवाला दिया गया है।संभल में बीते 24 नवंबर 2024 को हुई हिंसा का प्रभाव यह हुआ है कि अब संभल की आबो-हवा बदलने लगी है। प्रशासन द्वारा बनाए गए दबाव के बाद मुस्लिम पक्ष पुलिस की कार्रवाई के डर से भागा-भागा फिर रहा है।

जारी रहेगा संभल के मंदिर/मस्जिद का सर्वे : संभल के शाही जामा मस्जिद और हरिहर मंदिर विवाद मामले में सोमवार 19 मई को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की रिवीजन पिटीशन खारिज कर दी है। इससे मस्जिद इंतजामिया कमेटी को बड़ा झटका लगा है। अब उस परिसर के सर्वे का रास्ता साफ हो गया है। मस्जिद कमेटी ने बीते 19 नवंबर 2024 को सिविल कोर्ट द्वारा दिए गए सर्वे के आदेश को चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में मस्जिद कमेटी की ओर से दाखिल की गई उसी रिवीजन याचिका को खारिज कर दिया है। हाईकोर्ट के इस निर्णय के बाद एक बार फिर संभल सुर्खियों में आ गया है। मस्जिद कमेटी ने दाखिल सिविल रिवीजन याचिका में हिंदू पक्ष के मुकदमें की पोषणीयता को चुनौती दी थी। इसी मुकदमे के तहत कोर्ट ने सर्वे का आदेश दिया था, और उसी सर्वे के दौरान बीते 24 नवंबर 2024 को हिंसा हुई थी। खैर, तब हाईकोर्ट ने फौरी तौर पर मुस्लिम पक्ष की याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वे पर रोक लगा दी थी। अब इस मामले में हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को झटका देते हुए सर्वे को हरी झंडी दे दी है। हिंदू पक्ष ने अदालत के फैसले का स्वागत किया, और कहा कि हाईकोर्ट ने बिल्कुल सही निर्णय लिया है। इस मामले में हाईकोर्ट ने निचली अदालत का सर्वे का आदेश न्यायसंगत माना है और कहा कि उस आदेश पर रोक लगाने का कोई कारण नहीं है। संभल के सिविल जज (सीनियर डिविजन) द्वारा दिया गया सर्वे का आदेश पूरी तरह कानूनी और उचित था। हिंदू पक्ष ने कहा है कि अगर मुस्लिम पक्ष इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाता है तो वहां भी मजबूती से अपना पक्ष रखा जाएगा। उन्होंने आरोप लगाया है कि मुस्लिम पक्ष मुकदमे को लटकाना चाहता है। उधर मुस्लिम पक्ष ने हाईकोर्ट के आदेश को न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा बताया, और कहा कि अदालत ने सभी तथ्यों को ध्यान में रखकर ही यह निर्णय लिया होगा। ऐसे में अब इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने का निर्णय शाही जामा मस्जिद इंतजामिया कमेटी पर निर्भर करेगा। पर अब इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले से मामले में नया मोड़ आ गया या है। सभी की नजरें अब इस बात पर टिकी हैं कि क्या मस्जिद पक्ष का अगला कदम सुप्रीम कोर्ट की ओर बढ़ेगा। इस प्रकार इस फैसले के बाद हिंदू और मुस्लिम पक्ष एक बार फिर आमने-सामने आ सकते हैं।

राजनीति पर राम मंदिर की तरह ही डालेगा असर : संभल का यह विवाद सिर्फ उत्तर प्रदेश की राजनीतिक को ही नहीं प्रभावित करेगा बल्कि इसका असर राम मंदिर विवाद की तरह पूरे देश की राजनीति पर होगा। सर्वे जारी रखने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद तो यह तय हो गया है कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट भी जाएगा। भाजपा भी इस मुद्दे को बनाए रखना चाहती है और मुस्लिम पक्ष भी पीछे हटने को तैयार नहीं है। ऐसे में लगता तो यही है कि यह विवाद देश में दूसरे राम मंदिर विवाद की और बढ़ रहा है। उधर हरियाणा और महाराष्ट्र की जीत के बाद संघ परिवार और भाजपा को एक बात समझ में आ गई है कि बीस फीसदी वालों में से चंद लोग ही उसकी राष्ट्रवादी राजनीति को समझते हैं। इसलिए उसे देश के 80 फीसद वालों पर ही अधिक भरोसा करना चाहिए। इसीलिए उन्होंने अपनी राजनीति का केंद्र इसी वर्ग को बनाने का फैसला किया है। यूपी में योगी आदित्यनाथ की ताज़ा रणनीति का भी यही संदेश है। अयोध्या, काशी और मथुरा के बाद अब संभल को लेकर जारी उनकी रणनीति सीधे तौर पर इशारा कर रही है कि यूपी में 2027 के विधान सभा चुनावों की लड़ाई की जमीन संभल ही बनेगी। जिस तरह से शासन और प्रशासन वहां एक्टिव है, उसे देखकर तो यही लगता है कि यहां के प्रशासन को योगी सरकार का विशेष आशीर्वाद प्राप्त है। ऐसे में उम्मीद यही है कि यह मामला अब कम से कम 2027 तक तो जिंदा ही रहेगा। संभल में शाही जामा मस्जिद और हरिहर मंदिर को लेकर उठे विवाद के बाद अतिक्रमण और मलबे में दबे लगभग 500 साल पुराने सनातन के चिह्न मिलने शुरू हो गये हैं। यहां संभलेश्वर महादेव मंदिर और प्राचीन कुएं मिलने के बाद संभल क्षेत्र में स्थित बताए जा रहे 19 और कूपों की भी तलाश की जा रही है। अब संभल को तीर्थ क्षेत्र घोषित करने की मांग भी उठ गई है। डीएम के पत्र पर आयी एएसआई की टीम ने भी यहां जांच पड़ताल की है। एक जानकारी के अनुसार यहां 1947 से लेकर अब तक हुए दंगों में 209 लोगों की मौत हो गई हैं। बीते 24 नवंबर को कथित शाही जामा मस्जिद के सर्वे को लेकर हुए बवाल के बाद से संभल में स्थिति बहुत बदल गई हैं। यहां जिला प्रशासन लगातार सक्रिय है। यूपी विधानसभा के शीतकालीन सत्र में भी ये मुद्दा उछला था। जिस तरह से सीएम योगी आदित्यनाथ ने इस मामले में विपक्ष विशेष रूप से सपा को घेरा उससे तो यही लगता है कि भाजपा इस अवसर को गंवाने के मूड में बिल्कुल नहीं दिखाई दे रही है। वैसे जिस जय श्रीराम के नारे को लेकर संभल में दंगे हुए उसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी पूछा है कि ये नारा आपराधिक कृत्य कैसे हो सकता है। शीर्ष कोर्ट 16 दिसम्बर को वर्ष 2023 के एक मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट के एक आदेश के खिलाफ सुनवाई कर रही थी। बाद में यही सवाल यूपी विधानसभा में सीएम योगी ने भी विपक्ष से किया था।

बीते नवंबर में संभल में शाही जामा मस्जिद को प्राचीन हरिहर मंदिर बताने को लेकर उठे विवाद की बाबत लोअर कोर्ट के आदेश पर गयी सर्वे टीम पर हमले की घटना ने इतना गंभीर रूप ले लिया कि हालात खराब हो गए थे। वहां इतने पत्थर बरसाए गए कि गलियां पत्थरों में से पट गईं। इतनी कि प्रशासन को दूसरे दिन गाड़ियों में लादकर पत्थर हटाने पड़े। खैर, बात सीधे सुप्रीमकोर्ट के दरवाजे पर पहुंची तो कोर्ट ने मामले को अपने पास रख लिया और मुस्लिम पक्ष को हाईकोर्ट जाने का निर्देश दिया। उसके बाद मस्जिद पक्ष हाईकोर्ट गया जहां से उसको कोई राहत नहीं मिली है। इस मामले में हो रही राजनीति का आलम यह है कि सपा ने दंगे में मरने वाले मुस्लिमों के परिजनों को पांच-पांच लाख रुपए सहायता दी, लेकिन हिंदुओं के लिए संवेदना के दो शब्द भी नहीं कहे। ये मामला लोकसभा में उठाते हुए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने आरोप लगाया कि संभल में भाईचारे का कत्ल हुआ है, और ईरादतन हत्या की गई है। विपक्ष ने एक स्वर से मामले की न्यायिक जांच की मांग की थी जिसे योगी सरकार ने स्वीकार भी कर लिया। बाद में हाईकोर्ट के एक रिटायर्ड जस्टिस की अध्यक्षता में न्यायिक जांच आयोग का गठन किया गया है। आरोप है कि घटना के पहले जुमे की नमाज में सांसद जियाउर्रहमान बर्क की तकरीर ने माहौल अधिक खराब किया। कुछ लोग इसे सांसद और विधायक इकबाल अहमद के बीच की लड़ाई का परिणाम बता रहे हैं। लोगों का कहना है कि सांसद तुर्क विरादरी से आते हैं और विधायक शेख, पठान और पसमांदा विरादरी का प्रतिनिधित्व करते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि ये दंगा दोनों के वर्चस्व की लड़ाई का परिणाम है। आरोप है कि सांसद जुमे के दिन अपनी तकरीर करके निकल गये तो विधायक के पुत्र सर्वे टीम के साथ 24 नवंबर को मौजूद रहे। सर्वे टीम के साथ रहे हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने सर्वे के समय विधायक पुत्र के रहने पर सवाल भी उठाया। खैर, विवाद के बाद सांसद और विधायक के बेटे के खिलाफ मुकदमा लिख लिया गया है। दंगे वाले स्थान पर पाकिस्तान में बने कारतूस के खोखे भी मिले है। इससे लगता है कि इसमें विदेशी ताकतों का भी हाथ हो सकता है। अपुष्ट सूत्रों का तो यह भी कहना है कि दंगे के लिए हापुड़ से लोगों को बुलाया गया था। इस संबंध में पुलिस को एक पत्र इ-मेल के जरिए भेजा गया था। इस विवाद पर सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव कहना है कि ऐसी खुदाई पूरे देश में कहीं भी हो जाए तो कुछ न कुछ मिल ही जाएगा। किंतु गड़े मुर्दे उखाड़ने से क्या फायदा। उधर एक आंकड़े अनुसार 1947 में संभल में 45 फीसद हिंदू थे। ये आबादी अब घटकर 15 फीसद रह गई है। संभल में जहां संभलेश्रर मंदिर मिला था, वहां कई हिंदू परिवार रहते थे, जो 1978 के दंगे के बाद घर छोड़कर चले गए थे। मंदिर मिलने के बाद वहां एक दंपति 46 साल बाद फिर पहुंचा। दर्शन करने के बाद उस अनिल रस्तोगी नामक व्यक्ति ने बताया कि जब 1978 के दंगे के समय भीड़ आ रही थी तो मैं अपनी दुकान बंद करके घर चला गया था। शाम को जानकारी मिली कि दुकान जल चुकी है। यहां के पुराने निवासी विष्णु रस्तोगी ने आकर बताया कि दंगों के चलते आए असुरक्षा बोध ने यहां से पलायन के लिए मजबूर किया। ऐसे में कुल मिलाकर यह मामला 80 बनाम 20 की तरफ बढ़ता दिखाई दे रहा है।

विधानसभा में बताया गया कि संभल में क्या हुआ था : विधानसभा में सीएम योगी आदित्यनाथ ने बताया कि 1947 से अब तक संभल में 209 हिंदुओं की हत्या हुई है। जहां तक बात नवंबर में हुए दंगों की है तो जुमे की नमाज के पहले और दौरान जिस प्रकार की तकरीरें दी गईं, उससे ही माहौल खराब हुआ। उनका आरोप है कि माहौल तो 1947 से लगातार खराब किया गया। संभल में सर्वे तो कोर्ट के आदेश पर हो रहा था। योगी ने बताया 1947 से अनवरत दंगे प्रारंभ हुए। 1947 में एक मौत हुई और 1948 में छह लोग मारे गए। 1958, 1962 में भी दंगा हुआ। 1976 में पांच लोगों की मौत हुई थी। 1978 में 184 हिंदुओं को सामूहिक रूप से जला दिया गया था। कई महीनों तक कर्फ्यू लगा रहा। 1980 और 1982 के दंगों में एक-एक की मौत हुई। 1986 में चार लोग मारे गए। 1990-1992 में पांच और 1996 में दो मौतें हुई। सीएम ने हरिहर मंदिर के पक्ष में तर्क देते हुए कहा कि बाबरनामा भी कहता है कि हरिहर मंदिर तोड़कर वर्तमान ढांचा खड़ा किया गया। पुराण भी कहता है कि श्रीहरि विष्णु का दसवां अवतार संभल में होगा।

संभल का इतिहास : पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्री हरि विष्णु के दसवें अवतार कल्कि भगवान का प्राकट्य संभल की ही धरती पर होने वाला है। इसीलिए आचार्य प्रमोद कृष्णम ने यहां पर कल्कि धाम की स्थापना करने का बीड़ा उठाया है। इस धाम के निर्माण के शिलान्यास कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पहुंचे थे। ये धरती हिंदुओं के लिए बहुत पवित्र है। कहा जाता है कि यहां पर पिछली शताब्दी तक हरिहर मंदिर था जिसे बाद में कब्जा कर मस्जिद का रूप दिया है। यह इमारत एएसआई प्रोटेक्टेड भी है। संभल को समाट पृथ्वीराज चौहान की दूसरी राजधानी के रूप में भी याद किया जाता है। इतिहासकार अजय अनुपम की मानें तो पुरानी किताबों में इस बात का जिक्र भी मिलता है कि पृथ्वीराज चौहान ने संभल में हरिहर मंदिर का निर्माण कराया था, जिसे बाबर के आदेश से शाही जामा मस्जिद का रूप दे दिया गया था। उनके शोध में भी कुछ प्रमाण ऐसे मिले हैं जो बताते हैं कि संभल की जामा मस्जिद ही हरिहर मंदिर है। मुरादाबाद के सरकारी गजेटियर में तो लिखा है कि मंदिर अब अस्तित्व में नहीं है, इसका स्थान एक मस्जिद ने ले लिया है। इसके अलावा 1966 के गजेटियर में भी जिक्र है कि संभल में हरिहर मंदिर है। विवादित इमारत के बारे में एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि नियमानुसार एएसआई के नियंत्रण वाली इमारतों में पूजा अथवा नमाज के लिए एएसआई की परमीशन लेनी पड़ती है, लेकिन यहां तो मामला ही अलग था।‌ एएसआई को ही परिसर में जाने की अनुमति लेनी पड़ती थी।अब रमजान के महीने में मस्जिद की पुताई के लिए हाईकोर्ट द्वारा दिए गए आदेश के एएसआई का दखल बढ़ गई है, क्योंकि हाईकोर्ट ने पुताई का काम एएसआई की निगरानी में कराया था ताकि इमारत के मूल स्वरूप पर कोई असर न हो।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक