चुनाव प्रचार में खूब चला आरक्षण बनाम आरक्षण

* ओबीसी आरक्षण को लेकर एनडीए और इंडिया में होता रहा वाक युद्ध * संविधान की रक्षा और अल्पसंख्यक तुष्टिकरण पर भी हुई जोर आजमाइश * प्रचार के आखिरी दिन से एक जून तक मोदी के कन्याकुमारी में ध्यान वाली खबर भी खूब चर्चा में रही * फिर भी राम मंदिर, मुफ्त राशन और आरक्षण सातों चरणों में सर चढ़कर बोले

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लखनऊ। 18वीं लोकसभा के लिए आखिरी दौर के मतदान के लिए चुनाव प्रचार 30 मई की शाम को खत्म हो गया। एक जून को मतदान होगा। चुनाव प्रचार में कई मुद्दे उछले। पर आखिरी चरण आते-आते राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा, मुफ्त राशन, बेरोजगारी, संविधान की रक्षा और ओबीसी आरक्षण के मुद्दे ही सुर्खियां बटोरते रहे। प्रचार के आखिरी दिन जब खबर आई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 30 की शाम से एक जून तक कन्याकुमारी में ध्यान लगाएंगे तो विपक्ष इस पर हमलावर हो उठा। बाकी सारे मुद्दे थोड़ा काम चर्चा में रहे।

2024 के लोकसभा चुनाव के प्रचार में जो सर्वाधिक चर्चित मुद्दा रहा वह था ओबीसी के आरक्षण में मुस्लिमों की सेंध। एनडीए ने इस मुद्दे पर विपक्ष को काफी घेरा। आरोप था कि पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और राजस्थान में चोर दरवाजे से ओबीसी कैटेगरी में मुस्लिमों को शामिल कर ओबीसी का हक मारा गया है। इसके जवाब में इंडी गठबंधन ने कहा कि भाजपा तो 400 सीट ही इसलिए चाहती है ताकि वह संविधान में संशोधन करके ओबीसी वर्ग का आरक्षण समाप्त कर दे। इसके पीछे तर्क दिया गया कि जब वीपी सिंह ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू की तब भाजपा ने उनकी सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। इस मामले में भाजपा की नीयत ठीक नहीं है। इस पर भाजपा का जवाब था कि हम 400 सीट इसलिए चाहते हैं ताकि कानून में संशोधन करके ऐसी व्यवस्था कर दें कि ओबीसी का आरक्षण कभी समाप्त ही न किया जा सके। इस मुद्दे पर दोनों ही गठबंधनों के बीच बहुत किच-किच हुई।

चुनाव प्रचार के आखिरी दिन 30 मई को खबर आई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रचार के आखिरी दिन से एक जून तक कन्याकुमारी में रहेंगे और वहां राक मेमोरियल में ध्यान करेंगे। विपक्ष ने इसे चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन से जोड़ दिया। कांग्रेस ने बकायदा चुनाव आयोग से शिकायत कर यह सुनिश्चित करने का निवेदन किया है कि टीवी चैनलों में इसका प्रचार न हो। उधर ममता बनर्जी ने भी इसे ध्यान नहीं बल्कि वोटरों का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश कहा। उल्लेखनीय है कि राक मेमोरियल वह स्थान है जहां स्वामी विवेकानंद ने ध्यान किया था। वे पश्चिम बंगाल के रहने वाले थे। ऐसे में विपक्ष को इस बात का डर है कि मोदी के इस कदम से मतदाता विशेषकर पश्चिम बंगाल के प्रभावित होंगे क्योंकि वहां के बहुत से लोग स्वामी विवेकानंद के आदर्शों को मानते हैं।

प्रचार के दौरान संविधान की रक्षा को लेकर भी दोनों गठबंधनों के अपने-अपने दावे रहे। दरअसल चुनाव प्रचार के दौरान बीच-बीच में भाजपा नेताओं द्वारा ही बयान दिए गए कि सरकार तो 272 सीटों पर भी बन जाएगी पर संविधान संशोधन के लिए 400 सीटें चाहिए। इसी को विपक्षी गठबंधन ने लपक लिया और आरोप लगाने लगे कि भाजपा 400 सीट मिलने के बाद संविधान में संशोधन करके पिछड़ों और दलितों का आरक्षण खत्म कर देगी। इसके जवाब में संघ प्रमुख मोहन भागवत, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को भी उतरना पड़ा। एनडीए ने जवाब दिया कि बाबा साहब भी आ जाएं तो पिछड़ों का आरक्षण खत्म नहीं हो सकता। वो तो विपक्ष के लोग ही पिछले दरवाजे से पिछड़ों का आरक्षण खत्म कर उसे मुसलमानों को दे रहे हैं। इसलिए हम 400 सीट चाहते हैं ताकि ऐसी व्यवस्था कर दें पिछड़ों का आरक्षण खत्म कर मुसलमानों को न दिया जा सके। विपक्ष ने आरक्षण खत्म करने के मुद्दे को जोरदारी से उठाया और पूरे एनडीए को आरोपित करने की कोशिश की। दोनों तरफ से खूब आरोप-प्रत्यारोप चले। एनडीए विपक्ष को मुस्लिम तुष्टीकरण के नाम पर भी खूब घेरता रहा। एनडीए का आरोप था कि विपक्ष की जहां सरकारें हैं वहां पर पिछड़ों का हक छीनकर मुसलमानों को दिया जा रहा है। एनडीए की और मजबूत सत्ता आई तो हम यह सुनिश्चित करेंगे की ऐसा न हो। दरअसल पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और राजस्थान में विपक्ष की सरकारों ने मुसलमानों की कई जातियों को पिछड़ों में लाकर आरक्षण दिया है। चुनाव प्रचार के दौरान ही कोलकाता हाई कोर्ट ने ममता सरकार की पिछड़ों की लिस्ट को खारिज कर दिया और नए सिरे से पिछड़ा वर्ग आयोग की निगरानी में सूची बनाने का आदेश जारी कर दिया। इसके बाद तो एनडीए को हथियार मिल गया। इस बात को एनडीए ने पूरी ताकत से उठाया। इस पर विपक्षी गठबंधन को कई बार असहज स्थिति का सामना करना पड़ा। टीवी चैनलों पर उनके प्रवक्ता जवाब देने से बचते रहे।

विरासत कर को लेकर भी चुनाव प्रचार में दूसरे, तीसरे चरण तक काफी गरमा गरमी रही। दरअसल कांग्रेस के अंतर्राष्ट्रीय विंग के अध्यक्ष सैम पित्रोदा ने बयान दिया था कि इंग्लैंड में जब किसी को संपत्ति विरासत में प्राप्त होती है तो उससे 45% विरासत कर लिया जाता है। एनडीए ने इसी बात को लपक लिया और आरोप लगाने लगी कि कांग्रेस और विपक्षी जब सत्ता में आएंगे तो लोगों पर विरासत कर लगा देंगें। और नहीं देने पर संपत्ति छीन लेंगे। इस पर कांग्रेस ने सैम पित्रोदा के इस बयान से अपने को पूरी तरह से अलग कर लिया और कहा कि भारत में इस तरह के विचार बिल्कुल लागू करने लायक नहीं है। पर एनडीए के नेताओं ने इस पर इतना बवाल मचाया कि अंततः सैम पित्रोदा को अपने पद से इस्तीफा तक देना पड़ गया। हालांकि पूरे चुनाव भर यह मुद्दा एनडीए की तरफ से गाहे-बगाहे उठाया जाता रहा।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा था कि कांग्रेस के सत्ता आने के बाद सबकी संपत्ति का सर्वे कराया जाएगा और बराबर वितरण होगा। उन्होंने यह भी कहा था कि देश की अधिकतर संपत्ति कुछ लोगों के हाथ में है, उसे उनसे लेकर गरीबों में बांटा जाएगा। इसके विरोध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और एनडीए के बाकी नेताओं ने मोर्चा संभाला। पीएम ने एक इंटरव्यू में कहा कि जुटाने वाले भी इस देश की जरूरत हैं, तभी विकास हो सकता है। एनडीए द्वारा आरोप लगाया गया कि अब विपक्ष महिलाओं का मंगल सूत्र तक छीनना चाहता है। और उसे छीन कर घुसपैठियों को देना चाहता है। इसको लेकर दोनों तरफ से खूब आरोप प्रत्यारोप चले। यह मुद्दा चुनाव के आखिरी चरण तक खूब चर्चा में रहा। इसका जवाब देने में विपक्षी गठबंधन को बहुत परेशानी उठानी पड़ी। एनडीए का दावा था के कांग्रेस की इस कुत्सित चाल से वही जनता को बचा सकता है। कांग्रेस के घोषणा पत्र की एक और बात बहुत चर्चा में रही। उसमें कहा गया था कि कांग्रेस ये सुनिश्चित करेगी कि देश में बहुसंख्यकवाद को प्रश्रय न मिले और अल्पसंख्यकों का हित सुरक्षित हो। एनडीए ने इस बात को पूरी शिद्दत से उठाया और कहा कि कांग्रेस का यह घोषणा पत्र मुस्लिम लीग का घोषणा पत्र है। इंडी गठबंधन देश के बहुसंख्यक हिंदुओं का हक मार कर मुसलमानों को देना चाहती है। टीवी चैनलों के कार्यक्रमों में विपक्ष के प्रवक्ता बहुसंख्यकवाद के विरोध की इस अवधारणा का उचित जवाब नहीं दे पाए। यह विषय प्रचार में खूब चर्चा में रहा और सातवें चरण के मतदान के पहले तक एनडीए इसे जोरदारी के साथ उठाता रहा।

इस दौरान हिंदुओं की आस्था से जुड़े धर्मस्थलों की भी खूब चर्चा हुई। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में कांग्रेस तथा विपक्ष के कुछ अन्य नेताओं के नहीं आने पर भी सवाल उठाए गए। एनडीए ने तो इसे प्रभु श्रीराम और सनातन धर्म का अपमान बताया। विपक्ष इसके जवाब में यह कहता रहा कि ये बीजेपी का शो था जिसमें जाने का कोई मतलब नहीं था। राम हमारी आस्था का विषय हैं, हम मन से उनका आदर करते हैं। विपक्ष ने इसमें कुछ शंकराचार्यों के नहीं आने का भी मुद्दा उठाया और कहा कि शंकराचार्य हमारे सनातन धर्म का स्तंभ हैं। अगर वे किसी कार्यक्रम में नहीं आ रहे हैं तो इसका मतलब कार्यक्रम सही नहीं है। उधर एनडीए नेता गांधी परिवार, अखिलेश यादव तथा कुछ अन्य नेताओं के अयोध्या में रामलला के दर्शन न करने का सवाल जोरदारी से उठाते रहे। सपा के प्रमुख महासचिव रामगोपाल यादव का वह बयान बहुत चर्चा में रहा जिसमें उन्होंने कहा कि राम मंदिर बेकार है, उसका वास्तु ठीक नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने भाषणों में इसे स्थान दिया और कहा कि विपक्ष को तो न राम पसंद आते हैं, न राम मंदिर पसंद आता है, न हिंदू पसंद आते हैं और न ही सनातन धर्म पसंद आता है। विपक्ष तो मुस्लिम तुष्टिकरण में लगा हुआ है। एनडीए ने विपक्ष को रामद्रोही तक करार दिया। बवाल मचने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को परिवार समेत अयोध्या जाकर रामलला के दर्शन करने पड़े। इसके अलावा भाजपा की दूसरी पंक्ति के कई नेताओं ने चुनाव प्रचार के दौरान काशी और मथुरा के मंदिरों के उत्थान की भी खूब चर्चा की। कहा कि अगर भाजपा की 400 सीटें पार हो गईं तो काशी और मथुरा में भी मंदिर बन जाएंगे। विपक्ष ने भी इस मुद्दे पर अल्पसंख्यकों को वरगलाने की खूब कोशिश की। प्रचार के दौरान ही किसी मुस्लिम नेता ने यह बयान दे दिया था कि अगर विपक्ष की सत्ता आयी तो राम मंदिर तोड़कर वहां पर फिर बाबरी मस्जिद बनाई जाएगी। इस मुद्दे को भी एनडीए और भाजपा ने खूब जोरदारी से उठाया और हिंदुओं की सिंपैथी प्राप्त करने की कोशिश की।

पूरा एनडीए मुफ्त राशन वितरण योजना को सही साबित करने में लगा रहा। मोदी ने भी कहा कि हम देश में किसी को भी भूखे नहीं मरने देंगे। इसलिए पिछले 10 सालों से मुफ्त राशन योजना चला रहे हैं पर विपक्ष को इसमें भी दिक्कत है। दरअसल एनडीए सरकार की 80 करोड लोगों को मुफ्त राशन वितरण योजना को विपक्ष शुरू से ही निशाने पर लेता रहा और कहता रहा कि भाजपा का गरीबी हटाने का दावा झूठा है। अगर देश से गरीबी हट गई है तो 80 करोड लोगों को मुफ्त राशन देने की क्या जरूरत है। इस मुद्दे का असर यह रहा कि पांचवें चरण का मतदान आते-आते लखनऊ में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव की पत्रकार वार्ता में खड़गे को यह कहना पड़ा कि यह योजना हमारे ही बनाए कानून का परिणाम है। हमारी सरकार ने ही फूड सिक्योरिटी एक्ट लागू किया था इसलिए राशन देना सरकार की मजबूरी है। उन्होंने यह भी कहा कि इस योजना में राशन बहुत कम मिल रहा है। हम अगर सत्ता में आए तो 5 किलो राशन को बढ़ाकर 10 किलो कर देंगे। पत्रकार वार्ता के समय सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव भी सिर हिलाते हुए दिखे। एक प्रकार से उन्होंने मोदी सरकार कि इस योजना के ताईद कर दी। बाद में एनडीए के नेताओं ने कांग्रेस और विपक्ष को इस पर अर्दब में लेने की भी कोशिश की और कहा कि अभी तक तो ये लोग कह रहे थे कि यह योजना गलत है। यदि योजना गलत थी तो इसको बढ़ाने की बात खड़गे क्यों कर रहे हैं। यानी अभी तक विपक्ष मोदी सरकार पर इस मामले में झूठा आरोप लगाता रहा है। यह योजना पूरे चुनाव प्रचार के दौरान काफी चर्चा का विषय रही। इसके अलावा गरीबों को मुफ्त आवास, मुफ्त गैस सिलेंडर और मुफ्त इलाज का मुद्दा भी एनडीए की प्रचार सामग्री में शामिल रहा।

जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति के मुद्दे को भी एनडीए ने भुनाने की कोशिश की। उसका दावा था कि जम्मू कश्मीर में 370 हटाने के बाद वहां का माहौल सुधरा है, विकास तेजी से बड़ा है और लोगों ने शांति महसूस की है। दूसरी तरफ विपक्ष इसको लेकर हमलावर रहा। उसका मानना था कि अगर कश्मीर में हालात अच्छे हैं तो सरकार वहां विधानसभा चुनाव क्यों नहीं करा रही। इस पर एनडीए का कहना था कि चुनाव तो वहां हो ही रहे हैं। विधानसभा चुनाव कराने में बहुत तैयारियां बाकी हैं इसलिए उसको अगले दिनों में कराया जाएगा। इसके अलावा एनडीए गठबंधन के कुछ नेताओं द्वारा इस बात के दावे किए जाते रहे कि केंद्र में मजबूत सरकार होने पर अगले 6 महीने में पीओके भारत में शामिल कर लिया जाएगा। केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने तो यहां तक कह दिया कि हमें इसकी जरूरत ही नहीं पड़ेगी। पीओके के लोग ही स्वयं भारत में आने के लिए बेताब हैं। हमें सिर्फ उसको रेगुलराइज करना है। इस मुद्दे पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी बयान दिया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, असम के मुख्यमंत्री हेमंत विश्व सर्मा समेत कई एनडीए नेताओं ने कहा कि मजबूत सरकार बनने पर पीओके को भारत ने मिला लिया जाएगा। विपक्ष के एक बड़े नेता ने एनडीए के नेताओं के इस दावे पर चुटकी लेते हुए कहा कि यह सोचना बेवकूफी है क्योंकि पाकिस्तान के पास एटम बम है। इस बयान की काट के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं उतरे। उन्होंने कहा कि विपक्षी गठबंधन के लोग पाकिस्तान से डरते हैं और देश को भी डराना चाहते हैं। आज पूरे विश्व में भारत का डंका बज रहा है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तो यहां तक कहा कि अगर पाकिस्तान के पास एटम टम बम है तो क्या हमारा एटम बम फ्रिज में रखने के लिए है।

तीन तलाक के खात्मे के मुद्दे को भी एनडीए ने खूब जोरदारी से उठाया और मुस्लिम खातून का समर्थन प्राप्त करने की भरपूर कोशिश की। हालांकि इस मुद्दे का विरोध करने वाले कुछ मुस्लिम नेता ही थे। बाकी किसी ने भी इस मामले का विरोध नहीं किया। कुछ मुसलमान नेता अपनी शरीयत के नाम पर तीन तलाक और बुर्के की ताइद करते दिखे। पर यह मुद्दा बहुत रंग नहीं ले पाया।

इस मुद्दे को उछाल कर एनडीए यह साबित करने में लगा रहा कि मुस्लिम महिलाओं का अगर कोई खैरख्वाह है तो सिर्फ वही है। महिला उत्थान और महिला सुरक्षा का मुद्दा भी चुनाव प्रचार के दौरान काफी चर्चा में रहा। विपक्ष इस मसले पर मणिपुर, हाथरस, पहलवान बेटियों, बृजभूषण शरण सिंह, प्रज्वल रेवन्ना और बिलकिस बानो के मामलों को लेकर एनडीए और भाजपा पर हमलावर रहा। जवाब में एनडीए के नेता पश्चिम बंगाल के संदेश खाली और दिल्ली महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल के साथ मुख्यमंत्री आवास में पिटाई और बदसलूकी के मामले को उठाकर विपक्ष पर हमलावर रहे। संदेश खाली और स्वाति मालीवाल के मुद्दों ने भाजपा और एनडीए को काफी संजीवनी प्रदान की। दोनों ही मामलों में दोनों ही गठबंधन अपने पर लगे आरोपों का कोई जवाब तो नहीं दे पाए किंतु अपने बचाव में दोनों ही ने एक दूसरे गठबंधनों पर खूब कीचड़ उछाल। टीवी चैनलों में आए दिन इस पर चर्चाएं होती रहीं।

विपक्ष के नेता बेरोजगारी के मुद्दे के मुद्दे को भी पूरी शिद्दत के साथ उठाते रहे। कांग्रेस ने तो अपने घोषणा पत्र में 30 लाख नौकरियां देने का वादा भी किया। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने तो कहा कि हमने अपने डेढ़ साल के कार्यकाल में बिहार में बहुत नौकरियां बांटीं हैं। आगे मौका मिला तो और बाटेंगे। जवाब में भाजपा और एनडीए के नेता बताते रहे कि उनके कार्यकाल में ईपीएफओ का डाटा इस बात का गवाह है कि हमने अब तक करोड़ों लोगों को नौकरियां दी हैं। ख़ैर इस मुद्दे पर दोनों के दावे प्रतिदावे चलते रहे। ये मुद्दा विपक्ष के चुनाव प्रचार का एक मजबूत हथियार था।

मल्लिकार्जुन खड़गे का कर्नाटक में दिया गया एक बयान भी बहुत चर्चा में रहा। उन्होंने चुनाव एक सभा में कहा कि हमारे प्रत्याशी के नाम में ही शिव है। और ये शिव उनके राम को बता देगा कि वह कितना ताकतवर है। एनडीए ने तुरंत इस बयान को लपक लिया और मल्लिकार्जुन खड़गे को राम द्रोही करार दिया। एनडीए नेताओं का कहना था कि कांग्रेस राम और शिव को ही लडाने में जुटी हुई है। कांग्रेस ने अपने वोट बैंक के लिए राम और शिव को भी नहीं छोड़ा। मल्लिकार्जुन का बयान काफी दिनों तक चुनाव प्रचार का विषय बना रहा। इसके अलावा दक्षिण के नेताओं द्वारा सनातन का अपमान और इस पर इंडी गठबंधन की चुप्पी भी भी काफी चर्चा में रही। दरअसल चुनाव शुरू होने के पहले और चुनाव शुरू होने के बाद प्रचार में दक्षिण भारत के कई नेताओं ने सनातन के अपमान संबंधी बयान दिए। इस पर एनडीए के नेता बहुत हमलावर रहे। दक्षिण भारतीय नेताओं के सनातन के अपमान सम्बंधित बयानों का उत्तर भारत के इंडी गठबंधन से जुड़े किसी नेता ने निंदा नहीं की। बस यही कह कर पल्ला झाड़ लिया कि यह उनका निजी बयान है। हालांकि विपक्ष भी कभी संजय निषाद और कभी ओमप्रकाश राजभर के पूर्व के बयानों को लेकर एनडीए पर हमलावर रहा। कुल मिलाकर 18वीं लोकसभा के लिए चुनाव प्रचार के दौरान मुद्दे तो कई उछले किंतु अंतिम दौर तक जीवित रहने वाले कुछ ही मुद्दे बचे। जिनमें राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा, मुफ्त राशन योजना, संविधान की रक्षा, बेरोजगारी, पीओके की वापसी और मुस्लिम तुष्टिकरण। इन मुद्दों ने खूब सुर्खियां बटोरीं।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक