अब ‘बीमा सुगम’ बदलेगा Insurance Sector की तस्वीर

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क्रांति कराने आ रहा ‘बीमा सुगम’…… करोड़ों बीमा ग्राहकों के लिए सुखद समाचार है, साथ में बोनस के तौर पर तमाम झंझटों से छुटकारा दिलाने के लिए भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीए आई) इन दिनों पूरी जोरदारी के साथ जुटा हुआ है। बस यूं समझिए कि भारतीय बीमा उद्योग क्रांति की दहलीज पर खड़ा है, उल्टी गिनती भी शुरू हो चुकी है। जिसके समाप्त होते ही यह क्रांति ‘बीमा सुगम’ का रूप धारण किए प्रकट हो जाएगी।

आईआरडीएआई संपूर्ण बीमा उद्योग, जिसमें पालिसी धारक (ग्राहक) से लेकर बीमा कर्ता कंपनियां, ब्रोकर और एजेंट तक शामिल हैं, के लिए ‘बीमा सुगम’लांच करने की तैयारी में है। ‘बीमा सुगम’ आनलाइन प्लेटफॉर्म (पोर्टल) होगा जो प्रथम चरण में बीमा कंपनियों के लिए डेटा बैंक का काम करेगा। दूसरे चरण के अंतर्गत प्लेटफॉर्म पर सभी तरह के बीमा उत्पादों को सूचीबद्ध किया जाएगा अर्थात उनके बारे में डिटेल उपलब्ध रहेंगे, ग्राहक अपनी आवश्यकता के अनुसार इनमें से चयन कर सकेगा। यह प्लेटफॉर्म अन्य आनलाइन, ई कामर्स या शापिंग प्लेटफॉर्म की तरह कार्य करेगा।

आईंआरडीएआई से लिए गए ब्यौरे के अनुसार ‘बीमा सुगम’ के पांच अंग होंगे जो इसमें शेयर पूंजी लगाएंगे। जीवन बीमा कंपनियां और स्वास्थ्य बीमा कंपनियां 45_45 प्रतिशत की हिस्सेदारी के आधार पर शेयर पूंजी लगाएंगी, बाकी 10 प्रतिशत में प्लेटफॉर्म के सेवा प्रदाता (सर्विस प्रोवाइडर), ब्रोकर और एजेंटों की संस्था की हिस्सेदारी रहेगी। शुरुआत में ‘बीमा सुगम’ की चुकता शेयर पूंजी (पेड अप इक्विटी कैपिटल) सो करोड़ रुपए रखने का निर्णय किया गया है।

आईआरडीएआई के चेयरमैन की अगुवाई में बोर्ड सेवा प्रदाता का चयन बहुत जल्दी करने की कोशिश में है। सेवा प्रदाता प्लेटफॉर्म पर जो सेवाएं मुहैया कराएगा उनके एवज में बीमा कंपनियों से फीस चार्ज करेगा। ‘बीमासुगम’ से सभी पक्षों को आसानी हो जायेगी, पालिसी धारकों को किस्तों के भुगतान से लेकर मैच्योरिटी की तारीख और दावों के भुगतान के खातिर भटकना नहीं पड़ेगा। बीमा कंपनियों को ग्राहकों_पालिसी धारकों से संबंधित जानकारियां प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध होंगी। एक और बड़ा फायदा होगा _ दावों के भुगतान में होने वाले अरबों रुपए के फर्जीवाड़े पर अंकुश लगेगा। स्वास्थ्य और जीवन बीमा के क्षेत्र में देशी -विदेशी, सरकारी -निजी सहित कुल कोई 32 कंपनियां बिज़नेस कर रही हैं।

आईआरडीएआई के आंकड़ों से ही तथ्य सामने आया है कि दावों के भुगतान में होने वाली धोखाधड़ी से प्रति वर्ष औसतन पंद्रह हजार करोड़ रुपए की चपत बीमा उद्योग को लगती है। आंकड़े बताते हैं कि पिछले दस सालों में डेढ़ लाख करोड़ रु के फर्जीवाड़े किए गए। आश्चर्य यह है कि बीमा विनियामक आंखें मूंदे है। लम्बे अरसे से यूके में इंश्योरेंस फ्राड ब्यूरो, कनाडा में बीमा अपराध निरोध ब्यूरो और न्यूयॉर्क सहित अमेरिका के विभिन्न राज्यों में और दूसरे देशों में पृथक से सरकारी संस्थाएं सक्रिय हैं, फिर भी भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण इतने सालों से इतने बड़े पैमाने पर होने वाले फर्जीवाड़े की रोकथाम की व्यवस्था करने के बजाय आंखें मूंदे चैन की बंशी बजा रहा है, क्यों ? जबकि कई बार तो बीमा कंपनियों के अधिकारियों -ऐजेंटों की सांठगांठ से लम्बे फर्जीवाड़े किए गए।

प्रणतेश बाजपेयी