जानिए यहाँ है पशुबलि की परम्परा

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महाकाली को ही हम माँ काली भी कहते है। महाकाली हिन्दू धर्म के एक प्रमुख देवी है। माँ ने यह रूप राक्षसों का संघार करने के लिए लिया था। इनकी सबसे ज्यादा पूजा और उपासना बंगाल, उड़ीसा और असम में की जाती है। यहाँ पर महाकाली के भव्य और प्राचीन मंदिर भी है। महाकाली के भक्त देश के कोने-कोने से दर्शन करने के लिए आते है। माँ काली का यह रूप बुराई पर अच्छाई की जीत दिलवाता है।

आपने महाकाली (माँ काली) की फोटो या मूर्ति देखी होगी। जिसमें माँ को नरमुंड माला पहने हुए देखा होगा। इसमें माँ की चार भुजाएं है जिसमें एक भुजा में खड्ग, एक में त्रिशूल, एक भुजा में नरमुंड और एक में खप्पर ली है। एक पैर भगवान शिव के ऊपर और जीभ निकली हुई है। माँ का यह रूप देखकर दानव, दैत्य और राक्षस डर जाते है जबकि महाकाली के भक्त इसी रूप की पूजा-अर्चना करके आनंदित होते है। माँ काली आठ भुजा वाली है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कोलकाता को माँ काली का निवास स्थान माना जाता है। यहाँ पर दक्षिणेश्वर काली मंदिर और कालीघाट मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध है। दोनों मंदिर तंत्र-मन्त्र की सिद्धि के लिए बड़ा ही उपयुक्त माना जाता है। देश भर के तांत्रिक यहां पर महाकाली की पूजा करने आते है। कालीघाट मंदिर अघोर क्रियाओ और तंत्र-मन्त्र के लिए प्रसिद्द है। यह मंदिर 200 वर्ष पुराना है। यहाँ पशुबलि की भी परम्परा है। जन श्रुतियो के अनुसार ऐसा माना जाता है कि रामकृष्ण परमहंस को दक्षिणेश्वर काली मंदिर में महाकाली के दर्शन हुए थे।