अर्जुन जैसा मछली पर लक्ष्य साधता है किलकिला

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Kingfisher

* शिवचरण चौहान

किलकिला पक्षी सारे भारत और एशिया महाद्वीप के अधिकांश देशों में पाया जाता है। अंग्रेजी में इसे किंगफिशर कहते हैं।
छोटा किलकिला 5 इंच और बड़ा किलकिला करीब 11 इंच का पाया जाता है। किलकिला को चंद्रकांत मीन रंक, कौड़िल्ला,कौड़िल्ली, मछराल फटका आदि नामों से जाना पहचाना जाता है।

किसी नदी झील तालाब या जहां पर पानी भरा हो यह पक्षी उसी के आसपास मंडराता मिल जाता है। जहां पर भी छोटी-छोटी मछलियों का झुंड पानी के ऊपर तैरता दिखाई देता है। किलकिला पंछी उससे 10 फुट पर उपर जाकर उड़ने लगता है और फिर उड़ते उड़ते स्थिर हो जाता है। फिर यकायक चोच खोलकर पंख बंद कर पानी में गोता लगा देता है। जैसे कोई मछली इस की चोंच में आती है यह किलकिल पंछी किल किल की आवाज निकालता हुआ उड़ जाता है और किसी पेड़ की डाल पर बैठकर मछली या किसी अन्य जीव को नोच नोच कर खाता है।

किलकिला भारत में ढाई हजार फुट हिमालय क्षेत्र से लेकर सारे उत्तर भारत और दक्षिण भारत तक पाया जाता है। किलकिला पक्षी की चोंच कत्थई रंग की मजबूत होती है। इसके पंख नीले काले और पीठ नीले रंग के पंखों से सुसज्जित होती है। इसके पंखों के रंग चमकीले और चटक होते हैं।

छोटा किलकिला 5 इंच लंबा होता है जबकि उत्तर भारत में पाया जाने वाला किंगफिशर 11 इंच तक लंबा पाया गया है। कवि तुलसीदास ने रामचरितमानस में लिखा है कि हनुमान जी ने सबद किलकिला कपिन सुनावा । किलकिल की आवाज निकालने के कारण ही इसका नाम किलकिला पड़ा है। मुख्यता यह मछली खाने वाला पंछी है। पर छोटी-छोटी गिरगिट छिपकली तथा अन्य कीड़े मकोड़े खाने से यह परहेज नहीं करता। मछली को पानी से पकड़ कर पेड़ की डाल में पटक-पटक कर मार कर यह पंछी खा जाता है।

वैज्ञानिक इसके तेज उड़ने और एक जगह स्थिर होने हेलीकॉप्टर जैसी स्थित में एक जगह उड़ना को अजूबा मानते हैं।
यह पंछी तालाबों झीलों नदी और नालों और नहरो के किनारे ही रहता है। इन्हीं के आसपास ऊंचे पेड़ों, ऊंची दीवारों में गहरे तक छेद बनाकर यह पक्षी अपना घोंसला बनाता है। करीब चार पांच फीट अंदर जाकर यह अपना निवास बनाता है। जनवरी से लेकर अप्रैल तक मादा पंछी चार से पांच अंडे देती है। करीब ढाई 3 हफ्ते में अंडों से बच्चे निकल आते हैं।

मादा और नर दोनों बच्चों की हिफाजत करते हैं। किलकिला पंछी अक्सर अकेले ही शिकार करता दिखाई देता है। प्रजनन काल में ही यह पंछी जोड़ा बनाता है। और फिर बहुत तेज आवाज करता हुआ गांव के बाहर नदी तालाब के किनारे उड़ता दिखाई देता है। खाली समय में जब यह शिकार नहीं करता तो यह पंछी ऊंचे पेड़ की डाल पर या किसी ऊंची शिला पर बैठकर अपने शिकार पर निगाह बनाए रखता है और जैसे ही कोई छोटा चूहा मेडक छिपकली गिरगिट दिखाई पड़ता है यह पंछी झपट कर उस पर टूट पड़ता है और अपनी चोंच में दबाकर उड़ जाता है। और उसे मारकर खा जाता है।
किलकिला या किंगफिशर कत्थई रंग की होती है। गले और मुख के आसपास एक सफेद चित्ता पडा रहता है। आंख की पुतली भूरी चोंच कत्थई या गहरी लाल होती है। पीठ का भाग चमकीला नीला और गहरा नीला दुम काली चमकीली होती है। इस पंछी के पैर कमजोर होते हैं। इसलिए जमीन पर बहुत कम चलता फिरता है।

या लुभावना सुंदर पंछी भारत के अलावा श्रीलंका पाकिस्तान अफगानिस्तान जावा सुमात्रा चीन जापान तथा एशिया के कई देशों में पाया जाता है। मिस्र में भी किंगफिशर की कई जातियां पाई जाती हैं। भारतीय किलकिला पंछी भारत छोड़कर और कहीं नहीं जाता। रेगिस्तान और शुष्क प्रदेशों को छोड़कर यह पंछी बारहमास भारत में ही रहता है।

# मछली खोर किलकिला कौड़िल्ल्ला वर्ग का पक्षी है।
# अंग्रेजी भाषा में किलकिला को किंगफिशर कहते हैं।
# दुनिया के अधिकांश देशों में किल किला पाया जाता है
# भारतवर्ष में इसकी 5 जातियां पाई जाती हैं।