क्या है यह कार्बन फुटप्रिंट ? कैसे फिजा का प्रदूषण है यह ? कार्बन फुटप्रिंट का नाम सुनते ही यह प्रश्न हमारे मस्तिष्क में आता है कि पहले तो कभी यह नाम नहीं सुना… अचानक यह कहां से है। ? इसके मायने हैं कि फिजा में विष या जहर कार्बन डाइऑक्साइड कितना बढ़ रहा है ? उसको माप कर जाना जाता है कि किसका कितना कार्बन फुटप्रिंट है।
कार्बन फुटप्रिंट में समाज या संस्था के क्रियाकलाप भी शामिल है। वैसे माध्यम कोई भी हो यह प्रक्रिया हम मानव की ही है। दूसरे शब्दों में इसका मतलब कार्बन डाइऑक्साइड या ग्रीन हाऊस गैस का उत्सर्जन भी होता है। क्या हमारे खान-पान का असर ग्लोबल वार्मिंग पर होता है? जी हॉ, बिल्कुल हमारी धरती को गर्म करने वाली ग्रीन गैसों के उत्सर्जन का एक तिहाई दोष हमारे भोजन का है। इसमें शामिल है भोजन का उगाना, पालना जैसे जानवर, भोजन की पैकिंग और उसका परिवहन सड़क, जलवायु, हमारे खाना बनाने का तरीका भी इसमें शामिल है।
कार्बन फुटप्रिंट होता कैसे है ? हम इंसानों की जरूरतों के लिए जंगल को काटकर खेती करना प्रारंभ कर दिया। यह प्रक्रिया निरंतर चल रही है। खेती का काम करने के लिए पशुओं की आवश्यकता होती है और पशुओं के लिए पशुपालन बढ़ता जा रहा है। पशुपालन आदि के लिए जानवरों को पालना की वजह से ढेर सारा कार्बन उत्सर्जन होता है। मवेशियों के चारे और मल से “मीथेन गैस “का गैस उत्सर्जन वातावरण में होता है, जो वातावरण मे प्रदूषण को बढ़ाती है। दूसरे शब्दों में हर कार्य करने में ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा जितनी अधिक होती है, कार्बन डाइऑक्साइड गैस उतनी अधिक निकलती है। जो घर धरती को गर्म करती है। धरती को आग का गोला बनाने में सबसे अहम कार्बन डाइऑक्साइड गैस है। हम खाना पकाने या बनाते समय बहुत सारा ईंधन इस्तेमाल करते हैं और ऊर्जा बहुत उपयोग होती है। खाना बनाना जो कि एक लंबी पकाने की प्रक्रिया है। जिसके चलते हम प्रकृति का नुकसान करते हैं। इन सब तथ्यों का अर्थ है कि हम दिन, महीने, साल में जितनी कार्बन डाइऑक्साइड गैस पैदा करते हैं, वह हमारा कार्बन फुटप्रिंट है। इसे हम कम करेंगे। तभी प्रकृति जलवायु परिवर्तन के प्रकोप से बच सकते है।
क्या हम दम घोटू जीवन जिए या नहीं ? हम नई पीढ़ी को एक दम घोटू जीवन दे रहे है। कार्बन फुटप्रिंट शब्द या नाम एक इकोलॉजिकल फुटप्रिंट से निकला है, यह इको लॉजिकल फुटप्रिंट का एक अंश है। उससे अधिक यह जीवन चक्र आकलन का हिस्सा है। हमारा जीवन निरंतर भौतिक सुख की ओर बढ़ रहा है, क्योंकि इच्छा तो प्रथम हो गयी है। घरों में और शहरों में काम जल्दी करने के लिए, आसान बनाने के लिए, समय की बचत के लिए, बिजली का प्रयोग ज्यादा से ज्यादा किया जा रहा है। जितना ज्यादा बिजली का उत्पादन होता है, उतना ही ज्यादा ऊर्जा का प्रयोग करते हैं। जिससे कार्बन डाइऑक्साइड गैस का उत्पादन भी उतना.. प्रदूषण ज्यादा और धरती गर्म की ओर बढ़ती है। वर्तमान समय में प्राकृतिक चीजों का प्रयोग कम हो रहा है और अप्राकृतिक चीजों का प्रयोग बढ़ गया। जैसे -एसी, पंखे, कूलर, हीटर, गीजर आजकल हर व्यक्ति कार, स्कूटर, बाइक या स्कूटी से चलना पसंद करता है। साइकिल का प्रयोग तो बंद हो चुका है। लोग साइकिल पर चलना नापसंद करते थे परंतु आज जिस तरह से कारों के चलने से धुआ गर्माहट और वातावरण का तापमान एकदम बढ़ने लगा। जिससे कार्बन फुटप्रिंट बहुत ऊपर बढ़ गया। लोगों लोगों में घबराहट बेचैनी पैदा होने लगी। तब लोगों का मन साइकिल की तरफ दौड़ पड़ा। आजकल कुछ लोग आने जाने के लिए साइकिल का प्रयोग करने लगे या पैदल चलना पसंद करने लगे हैं। जिससे उनकी कसरत भी होती है और अपने पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए कोशिश शुरू की है।
खाने पीने के बर्तनों में बदलाव : प्लास्टिक, डिस्पोजेबल कप आदि का उपयोग हम जितना अधिक करते हैं, कार्बन फुटप्रिंट उतना अधिक बढ़ता है। आजकल शादी ब्याह, घर के छोटे से भी कार्यक्रम में हम प्लास्टिक या डिस्पोजेबल के बर्तनों का उपयोग करते हैं, जो कि रिसाइकिल या रियूज़ नहीं होता है और वह कार्बन फुटप्रिंट बढ़ाता है। बरसों तक यह प्लास्टिक के डिस्पोजल बर्तन उसी तरह जमीन में अवशेष के रूप में पड़े रहते हैं। जो ना घटते हैं और मिट्टी की उत्पादकता को कम करते हैं।
शाकाहारियों का कार्बन फुटप्रिंट कम होता है। दाले, अनाज और फलों का सेवन पर्यावरण के लिए लाभदायक है। यह उत्पादन प्राकृतिक संपदा बढाने मे लाभकारी है। इसको पकाने में समुद्र की आवश्यकता होती है। जिसके कारण कम कार्बन डाइऑक्साइड गैस का उत्पादन होता है, जो कम फुटप्रिंट की ओर जाता है। वैसे ही चीज, पनीर, दूध आदि जटिल और उत्पाद का सेवन भी न्यूनतम करने की सलाह दी जाती है परंतु आजकल फास्ट फूड का उपयोग ना करें तो वह समाज में अच्छा नहीं माना जाता है। फास्ट फूड का सेवन एक सामाजिक स्तर को बढ़ावा दे रहा है। इसके उत्पादन में काफी ऊर्जा लगती है और साथ में फास्ट फूड की पैकिंग पॉलीथिन में या प्लास्टिक के या डिस्पोजेबल के बर्तनों में होती है, जो कि वातावरण को बहुत नुकसान पहुंचा रहा है।
स्टोर करें परंपरा से : खाना कई दिनों तक बनाकर रखने की परंपरा बढ़ गई है। जिसके कारण ऊर्जा बहुत लगती है। बैक साइड गैस ज्यादा से ज्यादा प्रदूषण की और बढ़ाने में मदद करती है। रसोई घर में मौसम के अनुसार खाद्य पदार्थ को संचित यानी स्टोर करने की प्रथा है। जैसे अमचूर, आंवला, मेंथी आदि को धूप में सुखाकर डिब्बो में संचित किया जाता है। जिसके उपयोग से ऊर्जा का कम लगती है। इस तरह किसी भी चीज को धूप में सुखाकर उसे संचित किया जाता है तो उससे ऊर्जा का उत्पादन यानी ईंधन कम उपयोग होता है। जिससे कार्बन डाइऑक्साइड गैस का उत्पादन कम होता है। इसलिए इस तरह से प्रयोग करने पर पर्यावरण का हम ध्यान रख सकते हैं। फ्रोजन मटर गाजर आदि को संचित या स्टोर करने में काफी ऊर्जा खर्च होती है। इस तरह फ्रिज दिन रात चलता है। दिन रात चलने से ईंधन यानी उर्जा उत्पन्न होती है.. वह धन खर्च होता है और गर्माहट बढ़ती है। जिसके कारण कार्बन फुटप्रिंट भी बढ़ता है। जितनी उर्जा उतना कार्बन फुटप्रिंट बढ़ेगा। यदि कार्बन डाइऑक्साइड गैस का उत्सर्जन कम करें या ऊर्जा का उत्पादन कम करें तो भविष्य को हम एक अच्छा प्राकृतिक वातावरण दे सकते हैं।
सीमा मोहन