पहले हाफ किया, अब साफ करने का इरादा

* अब अखिलेश के पीडीए का मतलब पिछड़ा, दलित और अगड़ा * अखिलेश ने माता प्रसाद पांडे को यूपी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया * इस निर्णय के जरिए भाजपा से नाराज ब्राह्मणों को साधने की है कोशिश * कमंडल-मंडल मिलाकर नया सियासी समीकरण बनाने का प्रयास

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लखनऊ। समाजवादी पार्टी अब अपना चेहरा बदलने की प्रक्रिया में है। उस पर सिर्फ दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की पार्टी होने का ठप्पा न लगे इसलिए पार्टी के वयोवृद्ध ब्राह्मण नेता माता प्रसाद पांडेय को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया गया है। पार्टी के लोगों में कोई गलत संदेश न जाए इसलिए दो मुसलमान और एक पिछड़े वर्ग नेता को भी विधान मंडल दल के पदों पर समायोजित किया गया है। यानी अखिलेश यादव के पीडीए में ए का मतलब आधी आबादी और अल्पसंख्यक के बाद अब अगड़ा भी हो गया है। शायद यह अखिलेश यादव की उस रणनीति का हिस्सा है जिसमें उन्होंने कहा था कि अभी तो हमने लोकसभा चुनाव में भाजपा को हाफ किया है, आगे चलकर साफ भी कर देंगे।

सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव का शायद यह सोचना है कि पिछड़ा दलित और अगड़ा हमारे साथ आ जाएगा तो मुसलमान वैसे ही हमारी बढ़ती ताकत देख अपने आप हमसे जुड़ जाएगा। क्योंकि मुसलमान को तो भाजपा के खिलाफ एक बेहतर विकल्प चाहिए। और अगड़ों के आ जाने के बाद वह बेहतर विकल्प समाजवादी पार्टी ही बनेगी। पार्टी में फैजाबाद के नये सांसद अवधेश प्रसाद पासी की बुजुर्गियत के सम्मान के बाद अब माता प्रसाद पांडेय की बुजुर्गियत को भी सम्मान मिला है। ऐसा करके अखिलेश यादव ने पार्टी के पुराने नेताओं के अनुभव का लाभ लेने की कोशिश की है। इसके अलावा पार्टी पर लगने वाले परिवारवाद के आरोपों को भी खारिज किया है।

खबर है कि अखिलेश यादव द्वारा 28 जुलाई रविवार को बुलाई पार्टी विधायक दल की बैठक में शिवपाल यादव को भी नेता प्रतिपक्ष बनाने पर चर्चा हुई किंतु अंत में अखिलेश यादव को ही इस पर अंतिम फैसला करने के लिए अधिकृत कर दिया गया। बाद में अखिलेश ने चाचा शिवपाल यादव के करीबी माता प्रसाद पांडेय को नेता प्रतिपक्ष बनाने की घोषणा कर दी। माता प्रसाद पांडे पार्टी में बहुत वरिष्ठ नेता हैं और बस्ती मंडल से आते हैं। वे सिद्धार्थनगर जिले की इटवा विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। बस्ती, गोरखपुर और आजमगढ़ मंडल योगी के हिंदू युवा वाहिनी के कार्यक्षेत्र वाले इलाके हैं।

ऐसे में पार्टी को योगी के प्रभाव को रोकने में भी मदद मिलेगी। साथ ही योगी से नाराज ब्राह्मणों को भी सहेजने में आसानी रहेगी। पूर्वांचल के इस इलाके में ब्राह्मण बनाम ठाकुर की लड़ाई का एक लम्बा इतिहास है। इस लिहाज से यह नियुक्ति एक सही कदम माना जा सकता है। विधानसभा में भी माता प्रसाद पांडेय का विधाई अनुभव काम आएगा। वे दो बार विधानसभा अध्यक्ष और कई बार मंत्री रह चुके हैं। वे मुलायम सिंह के समय से ही पार्टी के पायनियर मेंबर हैं। उनका अनुभव न सिर्फ सपा बल्कि सत्तापक्ष को भी लाभ पहुंचाएगा।

जानकार बताते हैं कि योगी आदित्यनाथ के खिलाफ ब्राह्मणों की नाराजगी को कैश करने की अखिलेश की ये नई रणनीति है। पर इसमें दिक्कत ये है कि सपा पर मुस्लिम समर्थक होने का ठप्पा लगा हुआ है। ऐसे में सनातन धर्म के विरोधी मुसलमानों के समर्थक अखिलेश के साथ कितने ब्राह्मण जाएंगे, यह देखने वाली बात होगी। हो सकता है कि कुछ इलाकों में थोड़े बहुत ब्राह्मणों का समर्थन मिल भी जाए किंतु इसका नुकसान उन्हें अल्पसंख्यकों की नाराजगी से भी उठाना पड़ सकता है। क्योंकि पीडीए के ए के रूप में सिर्फ मुसलमान ही रहना चाहते हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि अखिलेश ने पीडीए के नाम पर वोटरों को गुमराह किया।

समाजवादी पार्टी की राजनीति में दखल रखने वाले जानकार बताते हैं कि यह प्रयोग मुलायम-जनेश्वर की जोड़ी की तर्ज पर अखिलेश-माताप्रसाद की जोड़ी के रूप में कारगर सिद्ध हो सकता है। पर इस निर्णय में एक रिस्क भी हो सकता है। माता प्रसाद पांडेय को नेता प्रतिपक्ष बनाकर अखिलेश यादव नमक में दाल खाने की कोशिश कर रहे हैं। यानी पार्टी में बहुतायत में पीडीए हैं और थोड़ी मात्रा में ब्राह्मण। ऐसे में पार्टी के स्वास्थ्य के लिहाज से यह समीकरण कितना ठीक रहेगा, यह आने वाला समय ही बताएगा। क्योंकि पार्टी में तो अभी यही नैरेटिव बना हुआ है कि वोट तो ब्राह्मण वर्ग को गाली देने से ही मिलता है। ऐसे में नमक में डाला गया ब्राह्मण रूपी दाल पार्टी की सेहत बिगाड़ भी सकता है। कुछ लोग इस जुगलबंदी को मंडल प्लस कमंडल की गणित का नाम दे रहे हैं। उनका कहना है कि पार्टी के पास पहले से ही मंडल समीकरण वाला वोट बैंक है। अब इसमें ब्राह्मण यानी कमंडल भी जुड़ जाएगा तो पार्टी और मजबूत हो जाएगी। परंतु इतिहास गवाह है कि ये दोनों समीकरण एक साथ बहुत अधिक समय तक साथ नहीं रह सकते।

खैर, इस निर्णय पर भाजपा की ओर से जैसी प्रतिक्रिया की अपेक्षा थी उसकी फर्ज अदायगी पार्टी प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कर दी है। परंतु प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने माता प्रसाद पांडेय को बधाई देते हुए कहा है कि अखिलेश यादव ने पिछड़े और दलितों को धोखा दिया है। मौर्य ने उम्मीद जताई है कि माता प्रसाद पांडेय रचनात्मक नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभाएंगे। बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने भी एक्स पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि सपा मुखिया ने लोकसभा चुनाव में संविधान बचाने की आड़ में पीडीए को गुमराह किया। गुमराह करके उनका वोट तो ले लिया लेकिन प्रतिपक्ष का नेता बनाने में उनकी उपेक्षा की गई। सपा में उनके लिए कोई जगह नहीं। उन्होंने आरोप लगाया कि सपा-भाजपा सरकार में ब्राह्मण समाज की उपेक्षा हुई। उनका विकास एवं उत्थान बीएसपी में ही है।अतः ये लोग जरूर सावधान रहें।

बहरहाल, समाजवादी पार्टी को मनोज पांडेय के पार्टी का साथ छोड़ देने के बाद एक ब्राह्मण चेहरे की तलाश थी, वह पूरी हो गई। इस निर्णय से शिवपाल यादव को भी साधने में आसानी हो गई। बताया जाता है कि माता प्रसाद पांडेय उनके खास लोगों में से हैं। परंतु शिवपाल यादव कब तक विधायक बने रहकर अखिलेश यादव के पीछे-पीछे घूमते रहेंगे, ये देखने वाली बात होगी। उनका धैर्य कब तक पार्टी का साथ देगा, सबसे महत्वपूर्ण सवाल यही है। क्योंकि कुछ जानकार इसे शिवपाल यादव के लिए मीठी गोली बता रहे हैं। ऐसे में जब तक मीठी गोली का रस मुंह में रहेगा तब तक तो सब कुछ ठीक ही रहेगा। पर एक दिन तो गोली का रस खत्म होना ही है।

विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी मिलने के उपरांत माता प्रसाद पाण्डेय ने विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना के कार्यालय कक्ष में पहुंचकर शिष्टाचार भेंट की। पत्रकारों से बात करते हुए माता प्रसाद पांडेय ने अखिलेश यादव को धन्यवाद देते हुए उन पर विश्वास जताने के लिए उनका आभार व्यक्त किया। अपनी प्राथमिकताएं बताते हुए उन्होंने कहा कि प्रदेश को भाजपा के भ्रष्टाचार युक्त शासन और धर्म आधारित राजनीति से मुक्त कराना ही प्राथमिकता है। परंतु उन्होंने शिवपाल यादव का नहीं लिया।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक