करोड़ों दिलों को पनाह देने वाले डॉ के के अग्रवाल नहीं रहे

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गायत्री मंत्र को हृदय रोगों की संजीवनी बताते थे

ज्ञानेंद्र सिंह, नई दिल्ली। देश-विदेश के करोड़ों दिलों को पनाह देने वाले प्रख्यात ह्रदय रोग विशेषज्ञ, पद्मश्री डॉ के के अग्रवाल नहीं रहे। निजी क्षेत्र में दुनिया के शायद वे इकलौते ऐसे डॉक्टर होंगे जो स्वयं तो करोड़पति भी नहीं थे मगर 10 करोड़ से ज्यादा लोगों के दिलों को बचा कर एक ऐसा इतिहास रच गए है जिसे दुबारा रच पाना पूंजीवादी व्यवस्था में आकंठ डूबे डॉक्टरों के वश में संभव नहीं है।

चिकित्सा जगत का यह दुर्भाग्य है कि डॉ अग्रवाल बहुत जल्दी चले गए। यदि जिंदगी ने साथ दिया होता तो शायद वे बिना चीरफाड़ के हृदय को स्वस्थ करने के नए-नए तरीके सिखा जाते। अपोलो अस्पताल से लेकर बड़े-बड़े अस्पतालों में उन्होंने काम किया और 90 फीसद से ज्यादा मरीजों को बिना ऑपरेशन के स्वस्थ किया और इनमें भी अधिकांश वे लोग होते थे जिनसे वे न केवल फीस, बल्कि महंगी जांच के पैसे तक नहीं लेते थे।

इसकी वजह कई बार उनका निजी अस्पतालों के प्रबंध तंत्र से विवाद भी होता था और अपोलो एवं मूलचंद जैसे अस्पताल को उन्होंने गरीब मरीजों के हितों को ध्यान में रखते हुए छोड़ दिया था। गरीबों को स्वास्थ्य की दृष्टि से जागरूक करने के लिए प्रतिवर्ष दिल्ली में हेल्थ मेला लगाते थे। जिसमें अब तक करोड़ों लोगों ने लाभ उठाया। उनकी इन्हें सेवाओं की वजह से तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने पद्मश्री से सम्मानित किया था और चिकित्सीय कार्यों के लिए उन्हें डॉ बी सी राय अवार्ड से भी नवाजा गया था।

डॉ अग्रवाल न केवल करोड़ों दिलों की धड़कन थे बल्कि “चिकित्सक-बिरादरी” में भी उनका पूरा वर्चस्व था। जिसके चलते वे दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे फिर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं महासचिव चुने गए। आईएमए व डीएमए में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने मांसाहार एवं मदिरा सेवन को प्रतिबंधित करने का साहस पूर्ण फैसला लिया था। उन्हें अध्यात्म से भी काफी रुचि थी और मरीजों के उपचार के दौरान वे गायत्री मंत्र के तमाम प्रयोग करते थे। 3 वर्ष पूर्व संसद मार्ग पर गायत्री परिवार द्वारा आयोजित “नशा भारत छोड़ो आंदोलन” की “सर्व धर्म सभा” को संबोधित करते हुए उन्होंने गायत्री मंत्र को हृदय-रोगों की संजीवनी बताया था।

पिछले 1 वर्षों में लगातार लोगों को कोरोना संक्रमण से बचने के गुर सिखा रहे थे लेकिन यह किसी को नहीं पता था कि कोरोना से इस जन्म में लोगों को बचाते बचाते डॉ अग्रवाल अपनी शहादत दे देंगे। 1 सप्ताह पूर्व उन्हें एम्स में भर्ती किया गया था यहां हालत बिगड़ने पर उन्हें मेदांता अस्पताल ले जाया गया जहां उन्होंने सोमवार की रात को अंतिम सांस ली। वे अपने पीछे धर्मपत्नी डॉ वीना अग्रवाल, पुत्र नीलेश, पुत्री नैना एवं सैकड़ों ऐसे सहयोगियों को छोड़ गए हैं जो उनके कंधे से कंधा मिलाकर स्वास्थ्य जागरूकता मिशन के लिए दिन-रात काम कर रहे थे।