पक्षी: खतरे में है तीतर का अस्तित्व

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# शिवचरण चौहान

आपने एक पहेली बहुत सुनी होगी तीतर के दो आगे तीतर, तीतर के दो पीछे तीतर बोलो कितने तीतर। यानी कुल 3 तीतर। आज हम इसी तीतर की चर्चा कर रहे हैं। तीतर की कुल 62 प्रजातियां विश्व भर में पाई जाती हैं। करीब 18 प्रजातियां दक्षिण एशिया या भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाती हैं। भारत के मैदानी क्षेत्र में पाया जाने वाला तीतर को ही भूरा तीतर, सफेद तीतर, राम तीतर  या गौर तीतर कहते हैं।

भूरे रंग का यह तीतर जिसका सारा शरीर सफेद और काली लकीरों से भरा होता है। गले और आंखों में कत्थई रंग की पट्टी होती है। करीब 11 या 12 इंच का या पक्षी नर और मादा अक्सर साथ साथ रहते दिखाई देते हैं। दूर से देखने में चित्रला दिखाई देता है और जोर से तीन टका तीन टका  या टी टो टी टो बोलता है। पंख भूरे जिस पर सफेद रंग की बिंदिया और धारियां होती हैं। पेट का रंग बादामी होता है नर की टांग में एक खार भी होता है जबकि मादा की टांग में खार नहीं होता। यह पंछी भारत के कुछ स्थानों को छोड़कर पूरे भारत में पाया जाता है। म्यामार, पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, बांग्लादेश आदि देशों में बहुतायत से पाया जाता है।

यह पंछी घास के मैदानों, गन्ने के खेतों, धान के खेतों, गेहूं के खेतों के आसपास सरकंडो के जंगल के आस पास पाया जाता है। भूरा तीतर का प्रजनन काल साल में दो बार होता है। फरवरी से जून तक और जून से नवंबर तक मादा झाड़ियों के बीच गड्ढा खोदकर अपने अंडे रखती है और सेती है। करीब 20 दिन बाद अंडों से बच्चे निकल आते हैं। इन्हें दाना चुगना और अपनी रक्षा करना सिखाती है। करीब 3 महीने बाद बच्चे आत्मनिर्भर हो जाते हैं। इस तीतर को पकड़ कर लोग बांस की खपचियों से बने पिंजड़े में पालते हैं। गेहूं, जो, बाजरे और चने के आटे को घी में सान कर छोटी छोटी गोली बनाकर तीतर को खिलाते हैं। तीतर को दीमक खाना बहुत पसंद है। नर तीतर आपस में बहुत तेज लड़ते हैं। हमारे देश में राजा महाराजा और बाद में आने वाले मुगल बादशाह तीतर की लड़ाई के दंगल आयोजित कराते थे। नर तीतर आपस में इतनी जोर से लड़ते हैं की एक की जान ही चली जाती है। भारत सरकार ने अब तीतर की लड़ाई पर रोक लगा रखी है।

काला पहाड़ी तीतर भारत का मशहूर पंछी है। लोग कहते हैं कि यह बोलता है सुभान तेरी कुदरत सुभान तेरी कुदरत। और फिर लोग इसका अर्थ भी बताते हैं। काले पहाड़ी तीतर की कुल लंबाई  13 या 14 इंच तक होती है। यह तीतर पहाड़ों पर नदियों के चारों के किनारे घास के मैदानों में पाया जाता है। इसका पूरा शरीर काला चमकीला और सफेद बिंदुओं से भरा होता है। आंख के नीचे एक सफेद चित्ता बना होता है। गले के चारों ओर कत्थई रंग का कंठ बना होता है। पंख भूरे जिस पर सफेद बिंदिया होती हैं। पीठ और दुम काली होती है। पेट का निचला हिस्सा कत्थई रंग का होता है। जिस पर सफेद धारियां बनी होती हैं। काला तीतर हिमालय के पहाड़ियों और अन्य पर्वतीय क्षेत्रों को छोड़कर बाहर कहीं नहीं जाता। कहते हैं इसका मांस बड़ा स्वादिष्ट होता है और पौरुष शक्ति को बढ़ाता है। इस कारण शिकारी इसका शिकार करते हैं और दिल्ली, देहरादून, लखनऊ, मुंबई आदि अनेक बड़े शहरों में महंगे होटलों में इसका मांस भेजते हैं। इस कारण यह पंछी आज दुर्लभ होता जा रहा है। नर पंछी मादा से जुड़ा बनाते समय उसे रिझाने के लिए खूब तेज आवाज में गाता है।

इसके अलावा भारत में तेलिया तीतर यानी काला छोटा तीतर। जिसे तित्तर कलितुर आदि नामों से भी पुकारा जाता है। मैदानी क्षेत्रों में घास के मैदानों में यह दाना खाना तलाशते देखा जा सकता है। शिकारी का खतरा देखकर यह जमीन पर ही बहुत तेज दौड़ता है। और फिर तेज गति से उड़ जाता है। इसका निवास नरकुल की झाड़ियों में सरकंडों के वनों में बांस के झुरमुट आदि में होता है। पियरा तीतर पहाड़ों का प्रसिद्ध तीतर है। इसके शरीर का रंग जैतून के रंग की तरह होता है। पहाड़ों में या 6000 फुट की ऊंचाई तक मिलता है। मादा जमीन में छिछला गड्ढा बना कर 8 या 10 अंडे देती है।

कूर मोनाल या जंगुरिया तीतर इसे बर्फ का तीतर भी कहा जाता है। कुछ लोग तुषार तीतर कहते हैं। यह 15 या 16 इंच तक लंबा होता है। नर और मादा रंग और रूप में समान होते हैं। यह हिमालय पहाड़ के बर्फीले क्षेत्र में पाया जाता है। इसकी आवाज तेज सीटी की आवाज की तरह होती है। चीनी तीतर। चीनी तीतर चीन में पाया जाता है। इसी से इसका नाम चीनी तीतर है। इसका रंग सफेद कारी धारियों से भरा होता है यह भारत के कुछ पहाड़ी स्थानों को छोड़कर कहीं और नहीं दिखाई देता। केहा तीतर, सन तीतर और वन तीतर भी भारत में पाए जाते हैं।

वैसे तो तीतर भारत का बारहमासी पक्षी है। किंतु कुछ तीतर स्थान परिवर्तन करते हुए देखे जा सकते हैं। मनुष्य, लोमड़ी, सियार, कुत्ते, सांप, नेवले इनके दुश्मन है। इनको देखते हैं तीतर बहुत तेज जमीन में दौड़ लगा देता है और खतरा पास आते ही उड़कर दूर चला जाता है। बहुत कम ही तीतर पेड़ पर बैठते हैं अधिकांश तीतर झाड़ियों में निवास करते हैं। गन्ने का खेत सरपत के जंगल नरकुल की झाड़ियों बांस के झुरमुट में में ही रहते हैं। वन तीतर भूटान की पहाड़ियों ब्रह्मपुत्र नदी के आसपास में पाया जाता है। शिकारियों द्वारा अंधाधुंध शिकार के कारण वन तीतर का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। चकोर भी तीतर कुल का ही पंछी है।

लंबी पूंछ वाला तीतर बहुत सुंदर दिखाई देता है। शिकारियों द्वारा इसका अंधाधुन शिकार किया गया है। आज लंबी पूंछ वाला तीतर विलुप्त होने की स्थिति में आ गया है। असम की पहाड़ियों में कुछ बन तीतर देखने की खबरें मिली हैं। पालतू हो जाने पर तीतर आदमी के पीछे पीछे दौड़ता और चलता है। हमें चाहिए कि हम इन सुंदर पंछियों को धरती में बना रहने दे ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी जान तो रखें कि तीतर और बटेर भी हमारे साथ रहने वाले सुंदर पंछी थे।

# विश्व भर में तीतर की करीब 62 जातियां प्रजातियां पाई जाती हैं।

# भारत में काला तीतर, भूरा तीतर सहित करीब 18 प्रजातियां तीतर की पाई जाती हैं।

# नर तीतर को पिंजरे में डालकर पाला जाता है, प्राचीन काल में नर तीतरों की लड़ाई देखने के लिए मेले लगते थे।

# तीतर के पिंजरे लोहे के ना होकर बांस की खप्पचियों से बनाए जाते हैं।

# वैसे तो तीतर छोटे-छोटे बीज ,धान, गेहूं के दाने, घास के बीज खाता है पर इसे दीमक खाना बहुत पसंद है।

# पहाड़ी काले तीतर का अत्यधिक शिकार होने से अब यह लुप्त चिड़िया की श्रेणी में आ गया है।