आखिर शिव के पूजन में क्यों नहीं होती है तुलसी

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सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित है। ऐसे में कहा जाता है कि अगर सोमवार को भगवान शिव की सच्चे मन से पूजा की जाए तो सारे कष्टों से मुक्ति मिलती है और सभी मनोकामना पूरी होती है। शिव सदा अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं।

मान्यता है कि भगवान शिव को खुश करने के लिए सोमवार को सुबह उठकर स्नान करके भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए। ऐसी मान्यता है कि इस दिन सच्चे मन से भोले भगवान की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। अधिकतर कुंवारी लड़कियां सोमवार क व्रत रखती हैं और शिव शंकर की पूजा करती हैं। मान्यता के अनुसार, ऐसा करने पर उन्हें मन चाहे वर की प्राप्ति होती है।

श‍िव पूजा में यूं तो हर तरह की सामग्री का इस्तेमाल होता है लेकिन इस पूजन में कभी भी तुलसी की पत्‍त‍ियां नहीं रखी जाती हैं। यह चौंकाने वाली बात है क्‍योंकि तुलसी को हिंदू मान्‍यताओं में पवित्र स्‍थान दिया गया है और सुबह-शाम तुलसी पूजन की महिमा भी बताई गई है। वहीं तुलसी को विष्‍णुप्रिया भी कहा जाता है। कहते हैं कि तुलसी की व‍िध‍ि‍वत पूजा करने पर श्रीहरि और लक्ष्‍मी जी की विशेष कृपा मिलती है।

श‍िव पूजन में तुलसी को शामिल न करने के पीछे एक पौराण‍िक कहानी है। जिसमें खुद विष्‍णुप्र‍िया ने महादेव के पूजन में अपनी उपस्‍थित‍ि निषेध कर दी थी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जालंधर नाम के असुर को अपनी पत्नी की पवित्रता और विष्णु जी के कवच की वजह से अमर होने का वरदान मिला हुआ था। अमर होने की वजह से वह पूरी दुनिया में आतंक मचा रहा था। ऐसे में उसके वध के लिए भगवान विष्णु और भगवान शिव ने उसे मारने की योजना बनाई।

पहले भगवान विष्णु ने जालंधर से अपना कवच मांगा और इसके बाद वह उसकी पत्‍नी वृंदा के पास जालंधर का रूप धर कर चले गए। इससे भगवान शिव को जालंधर को मारने का मौका मिल गया। जब वृंदा को अपने पति जालंधर की मृत्यु का पता चला तो वह बहुत दुखी और क्रोध‍ित हो गई। इसी क्रोध में उसने भगवान शिव को श्राप दिया कि उनके पूजन में तुलसी की पत्‍त‍ियां हमेशा निषेध रहेंगी।