सभी कयास बेकार, 2022 चुनाव केवल और केवल मोदी के चेहरे पर होगा

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उत्तर प्रदेश में पिछले 2 महीने से तरह-तरह के योगी-मोदी को लेकर कयास लगाए जा रहे है। ख़बरें छप रही हैं। चैनलों में डिबेट हो रहे हैं। कोई योगी को मोदी से चुनौती दिला रहा है तो कोई योगी को 2024 का दावेदार बता रहा है। ऐसे तमाम तरह के कयास चल रहे हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय से रिटायर करके भेजे गए ए० के० शर्मा को लेकर भी तरह तरह की ख़बरें छप रही थी और उनको संगठन में उपाध्यक्ष बनाये जाने के बाद मीडिया में योगी की जीत बतायी जा रही है।

लखनऊ से दिल्ली तक जिन्हे ज़मीनी हक़ीक़त नहीं पता है वह इस तरीके से दिल्ली लखनऊ के बीच कयासों में लगे है लेकिन वास्तविकता यह की 2017 का चुनाव मोदी के चेहरे पर लड़ा गया था। 2022 का चुनाव भी केवल मोदी के चेहरे पर ही होगा।

योगी का चेहरा 2022 में जरूर होगा लेकिन इस चेहरे से चुनाव में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। कयास लगाने वालों को यह समझना चाहिए कि साढ़े चार वर्ष के कार्यकाल में एक भी योजना ऐसी नहीं है कि योगी सरकार गिना सकते और गरीबों को बता सके कि यह प्रदेश सरकार की कल्याणकारी योजना है। जितनी भी योजना है वह सब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लागू की गयी है। उन्ही का प्रचार प्रसार हुआ है। गाँव गरीब, किसान एवं जनता सभी कल्याणकारी योजनाओं को मोदी की ही योजना समझते है। कोरोना संकट में जो परेशानी, दिक्कत पैदा हुई, लोगों की जाने गई है उसका ठीकरा प्रदेश सरकार पर फूट रहा है। मोदी सबको वैक्सीन लगाकर कोरोना संकट के दौरान केंद्र सरकार पर उठी उंगली को भी नीचे कर देंगे। अगले एक माह के अंदर जिस तेजी के साथ कोरोना वाइरस से बचाव के वैक्सीन का अभियान शुरू किया गया। उसका भी क्रेडिट मोदी को ही मिलेगा।

अब हम योजनाओं को सिलसिलेवार बताए तो 2014 में प्रधानमंत्री बनते ही 28 अगस्त 2014 को प्रधानमंत्री जनधन योजना, 2 अक्टूबर 2014 को स्वस्थ्य भारत अभियान, 11 अक्टूबर को सांसद आदर्श ग्राम योजना और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय श्रमेव जयते योजना, जनवरी 2015 में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना, प्रधानमंत्री सुकन्या समृद्धि योजना, फरवरी 2015 में मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, मार्च 2015 किसान पत्र योजना, स्वदेश दर्शन योजना, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति योजना, अटल पेंशन योजना, प्रधानमंत्री रोजगार प्रोत्साहन योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सिचाई योजना और 2016 में जनधन खाताधारकों के लिए बीमा योजना, ग्राम उदय से भारत उदय योजना, प्रधानमंत्री जन औषधि योजना, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, 2017 में प्रधानमंत्री किसान सम्पदा योजना, प्रधानमंत्री शादी शगुन योजना, प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना, प्रधानमंत्री महिला शक्ति केंद्र योजना, नेशनल आयुष मिशन, धन लक्ष्मी योजना, वरिष्ठ पेंशन बीमा योजना, 2018 में महिला स्वाभिमान अभियान योजना, महिला सशक्तिकरण योजना, डिजिटल गांव योजना, प्रधानमंत्री राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा मिशन, 2019 प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधी योजना, वन नेशन वन कार्ड योजना, जल जीवन मिशन, प्रधानमंत्री जन आरोग्य अभियान, खाद्य सुरक्षा मित्र योजना, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना, आत्मनिर्भर भारत अभियान योजना, प्रधानमंत्री स्वामित्व योजना, घर घर तक फाइबर योजना जैसे 205 योजनाएँ लागू की है। जितनी भी महत्वपूर्ण योजनाएँ है। जिससे गाव, गरीब किसान, महिलाएं, पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक लाभान्वित हो रहा है। वह सभी कल्याणकारी एवं विकास की योजनाएँ प्रधानमंत्री मोदी द्वारा शुरू की गई और मोदी के नाम पर ही चलायी जा रही है। कयास लगाने वाले गाव में जाकर देखे तो आज भी उन्हें मोदी से नाराजगी नहीं है, नाराजगी योगी और प्रदेश सरकार से है। जो पिछड़ों एवं ब्राह्मणों की नाराजगी की बात कर रहे हैं। इनकी भी नाराजगी योगी एवं योगी सरकार से है मोदी से नहीं। यह हम कह सकते हैं कि राजस्थान की स्थिति बनती जा रही है। मोदी से बैर नहीं और योगी की खैर नहीं। जो भी लोग दो माह से दिन रात इस पर चर्चा कर रहे हैं उन्हें यह समझना चाहिए कि ए० के० शर्मा को उपाध्यक्ष बना कर एक तीर से कई निशाने साध दिये है। संगठन में रह कर जितने महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी चुनाव में निभा सकते है शायद सरकार में रहकर वैसे नहीं कर पाते। क्योकि संगठन जनता से जुड़ा रहता और सरकार अधिकारी और कर्मचारी पर आश्रित रहती है। वोट जनता को देना होता, अधिकारी और कर्मचारी केवल व्यवधान पैदा करते हैं। सरकार को जिताने में कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा पाते है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जिस तरह से आक्रामक सियासत है वह उत्तर प्रदेश को योगी के हवाले कैसे छोड़ सकते है। जबकि सभी जानते है कि केंद्र की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है और 2024 की सत्ता भी उत्तर प्रदेश के ही रास्ते से मिलेगी। इसलिए किसी भी प्रकार के कयास जो योगी मोदी को लेकर केंद्र एवं प्रदेश सरकार को लेकर लगते है चर्चा का विषय तो है लेकिन वास्तविकता से दूर है।

सांसद हो या विधायक सभी मोदी के नाम पर जीत कर आए हैं। मोदी की अगुवाई में ही उन्हें टिकट मिला है। मोदी के नाम पर चुनावी जीत मिली है। जबकि योगी 2017 में मात्र एक सांसद थे। न उनका टिकट देने मे कोई भूमिका थी और ना ही सरकार बनाने में। जहां तक सवाल हिंदुत्व चेहरा का है यह चेहरे समय और सत्ता के साथ जिसे भी अगुवाई करने का अवसर मिलता है बनते बिगड़ते रहते हैं। लालकृष्ण आडवाणी और कल्याण सिंह से बड़ा चेहरा योगी आदित्यनाथ का नहीं है। मीडिया का युग है इसलिए योगी योगी योगी ज्यादा दिखाई देते है जबकि कल्याण सिंह और आडवाणी का चेहरा योगी से ज्यादा प्रभावी एवं मजबूत था लेकिन चूंकि उस समय मीडिया की भूमिका आज जैसी नहीं थी। इसलिए एहसास नहीं हो पा रहा है लेकिन जिन लोगों ने आडवाणी और कल्याण सिंह के हिंदुत्व चेहरे को जनता के बीच 1990, 1991, 1992 में राम मंदिर आंदोलन के समय देखा है वह एहसास कर सकते है कि वह धार्मिक उन्माद कितना जोशीला था। आज के समय में जनता परेशान है। रोजी रोटी के लाले पड़े है। ऐसे मे हिन्दुत्व एजेण्डा है लेकिन व्यक्तिगत कारणों से परेशानियों से वैसा जोशीला और आक्रामक नहीं है जैसा कि आडवाणी और कल्याण सिंह के समय राम मंदिर आंदोलन के समय था। छुट-पुट घटनाएँ हिन्दू मुस्लिम का रूप लेकर जिस तरह से मीडिया दिखाती है वैसे स्थिति हिन्दू मुस्लिम की नहीं है। सियासत जरूर 2022 में हिन्दू मुस्लिम की तरफ धार्मिक उन्माद को लेकर आगे बढ़ रही है लेकिन मोदी का चेहरा इन सब पर आज भी बहुत भारी है क्योकि प्रदेश सरकार के पास गिनाने के लिए उपलब्धि नहीं है।

विपक्ष कोरोना संकट में बिल्ली के भाग से छींका टूटने के आस में बैठा रहा, निष्क्रिय था केवल बयानों तक सीमित रहा। अच्छाई और बुराई दोनों मोदी के आस पास और मोदी के नाम पर ही घूम रही है। चल रही है और जो चलता है दिखता है, वही बिकता है। योगी आदित्यनाथ के हिन्दुत्व चेहरा का जहां तक सवाल है यह चेहरा तभी तक तेजस्वी रूप में दिखाई दे रहा है जब तक मुख्यमंत्री की कुर्सी, सरकारी संसाधन और मीडिया का बहुत बड़ा सपोर्ट है। जिन दिन यह तीनों चीजें योगी से हटेगी हिन्दुत्व चेहरे का रूप जैसा दिखाई दे रहा है वैसा नहीं होगा। 2022 में जाने के लिए योगी आदित्यनाथ के पास मोदी की योजनों को छोड़ दे तो कोई ऐसी एक भी योजना नहीं है जोकि उपलब्धि के साथ चुनाव में जनता के बीच गिनाई जा सके।

पूर्वांचल एक्सप्रेस वे, बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे, मेडिकल कॉलेज व जिनते भी घोषणाएँ हुई है साढ़े चार वर्षों में अभी तक निर्माणाधीन है। उपलब्धि गिनाने के लिए पूरी नहीं हो पायी है। जनता की यादें बड़ी कमजोर होती हैं। कुम्भ मेला, अपराधियों पर कार्यवाई यह सभी ऐसा कोई प्रभावी चुनावी मुद्दा नहीं बन सकती जिससे चुनाव जीता जा सके। विकास के नाम पर अखिलेश यादव, मायावती की तरह क्षेत्र विशेष गोरखपुर का विकास योगी भी कर रहे है। जैसे सैफई को अखिलेश यादव और बादलपुर का अपने घर का विकास मायावती ने किया था।

कयास लगाने वाले जनता के बीच जाकर देखे और समझे तो उन्हें वास्तविकता पता चल जाएगी कि जमीनी हक़ीक़त क्या है। कोरोना संकट के दौरान और कोरोना के कम होने के बाद हमने काफी ग्रामीण क्षेत्रों का भ्रमण किया। मोदी-योगी के चल रहे कयास पर लोगों से बातचीत की। इन सब में एक बात निकल कर आई कि आज भी मोदी का प्रभाव सबसे अधिक है। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री के चहरे के रूप में अखिलेश यादव की लोकप्रियता जरूर है लेकिन तुलनात्मक रूप से अखिलेश भी मोदी के सामने कहीं नहीं ठहरते। चुनाव के 8 महीने है। कयास लगाने वालों का भ्रम दूर हो जाएगा और उन्हें फिर दिखाई देगा कि 2022 के चुनाव में केंद्र बिन्दु में मोदी ही है और उनके द्वारा तय किया गया ही चुनावी एजेंडा पर विपक्ष उलझा हुआ है। यह सही है कि मोदी के नाम पर स्थितियाँ 2014, 2017 और 2019 जैसी नहीं है लेकिन इन सब के बाद भी विकल्पहीनता के चक्कर में विपक्ष में 24 घंटे मेहनत करने वाला, कद्दावर नेता नहीं है इसलिए तमाम कयास, आरोप प्रत्यारोप, उठापटक के बीच मोदी का प्रभाव तुलनात्मक रूप से आज भी जनता में बहुत भारी है।

राजेन्द्र द्विवेदी, वरिष्ठ पत्रकार