लो आ गयी उनकी याद… भावुक व संवेदनशील अभिनेत्री थीं नरगिस

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जन्मदिन- 1 जून : पुण्यतिथि- 3 मई

आज के हिन्दी फिल्म दर्शक संजय दत्त और उनके पिता सुनील दत्त के नाम से परिचित तो हैं ही उनकी माँ नरगिस दत्त के बारे में भी जरूर सुने होंगे, लेकिन पुरानी फिल्मों के शौकीन दर्शकों को भलीभांति उनकी फिल्मों की याद होगी। उत्कृष्ट अभिनय कला तथा सौंदर्य की प्रतिमूर्ति नरगिस का जन्म कोलकाता में 1 जून, 1929 को हुआ था।

फिल्मों में उनकी अनूठी अभिनय क्षमता, उनकी समाजसेवा और अपने देश के लिए किये गए तमाम महत्वपूर्ण कार्यों की याद आज भी ताजा है। फिल्म उद्योग अगर किसी अभिनेत्री और इस ऐतिहासिक क्षेत्र में उनके कार्यों पर गर्व कर सकता है तो वह अभिनेत्री निश्चित ही नरगिस दत्त हैं। एक विचारक और समाजसेवी के तौर पर नरगिस ने उतना ही सम्मान अर्जित किया जितना एक अभिनेत्री के तौर पर उनकी मां जद्दनबाई, जो खुद एक बहुत ही कुशल अभिनेत्री निर्माता-निर्देशक रह चुकी हैं, ने नरगिस को ईमानदारी के गुण सिखाए।

नरगिस कहा करती थीं- “यदि मैंने जिंदगी की यूनिवर्सिटी से कुछ सीखा है तो उसका श्रेय मेरी मां को ही जाता है”। वक्त के साथ-साथ वे एक अभिनेत्री के सभी गुणों को सीखकर इतनी होशियार हो गईं कि किसी भी विषय पर वह आत्मविश्वास के साथ तर्क दे देती थीं। यह सच है कि आरके यूनिट में आने के बाद उनकी प्रतिभा को निखारने में राज कपूर का बड़ा हाथ रहा। राज कपूर के आरके बैनर को स्थापित करने में नरगिस ने बराबर का सहयोग दिया और कड़ी मेहनत की। वैसे वह राज कपूर की मात्र नायिका ही नहीं बल्कि प्रेमिका व उनकी एक प्रेरणास्रोत भी रहीं।

समाज सेवा के क्षेत्र में भी नरगिस हमेशा सम्माननीय बनी रहीं। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी से उनके बहुत ही दोस्ताना रिश्ते थे। राज्यसभा में नरगिस का नामांकन गांधी परिवार में उनकी प्रतिष्ठा का प्रमाण बन गया था। सुनील दत्त और नरगिस फिल्म जगत की ऐसी जोड़ी थी जिसने देश की सीमाओं पर जाकर सैनिकों के कल्याण कार्यक्रमों में गहरी दिलचस्पी दिखाई। यही नहीं, पाकिस्तान से लड़ाई के वक्त अजंता आर्ट का ग्रुप सीमा पर जवानों का उत्साह बढ़ाने जा पहुंचा था।

फिल्म पत्रकारिता की प्रमुख स्तंभ और कई फिल्मी पत्रिकाओं की संपादक रहीं उदयतारा नायर कहा करती थीं कि नरगिस और उसके करियर पर नजर डालें तो पता चलता है कि अभिनेत्री के रूप में उनकी क्षमता अपूर्व थी और उनकी भूमिकाएं अतिसंवेदनशील थीं जिनकी सहायता से किसी भी क्षेत्र में ढाला जा सकता था। उन्होंने जोर देकर कहा था कि अभी तक यह एक चुनौती बनी हुई है। हिंदी फिल्मों की कोई भी अभिनेत्री ऐसा रोल नहीं कर पायी जैसा नरगिस ने मदर इंडिया में किया था। यह रोल अभिनेत्री नरगिस की अभिनय क्षमता का शिखर था।

यह सही भी है कि नरगिस का एक अंदाज कभी नहीं बना, जबकि उस समय की अभिनेत्रियां अपने एक ही अंदाज में कई-कई फिल्में किया करती थीं। “चोरी-चोरी” में वह बेहद शौकीन लगीं तो “लाजवंती” में जिस कदर ममतामयी अभिनय किया था अभी तक के आयाम खुद ब खुद टूटते चले गए। मिसाल बन जाने वाला “मदर इंडिया” का किरदार भी तो उन्हीं के हिस्से आया जिसे उन्होंने इतने मन से जीया कि उसने नरगिस की याद को न तो कभी मरने दिया और ना कभी मरने देगा। यह तो उनकी मां जद्दनबाई की देन कहा जा सकता है। जद्दनबाई तो एक नाचने गाने वाली कलावंती थी मगर उन्होंने अपनी बेटी नरगिस को नाच-गाने की तालीम नहीं दिलायी।

नरगिस को एक बेहतरीन अभिनेत्री बनाने के लिए उनकी पारखी निगाह क्रियाशील रही थी। उन्होंने नरगिस को मुंबई के क्वीन मैरी हाई स्कूल में दाखिल कराया था, जहां से उसने सीनियर कैंब्रिज किया। जद्दन बाई ठीक से जानती थीं और कहा भी करती थीं कि नरगिस के नक्श सामान्य और शक्ल-सूरत साधारण ही हैं। उनके गले में गान विद्या के सुरीले सुर को जन्म लेना भी संभव नहीं है। इसीलिए उनकी पारखी निगाहें यह भी दूर तक देख रही थीं कि इसके भीतर एक ऐसी प्रतिभा अवश्य सोई पड़ी है। जिसे ठीक से विकसित किया जाए तो एक ऐसा आकर्षण और दिलकशी उत्पन्न की जा सकती है जो भविष्य में उसे अभिनय कला का जगमगाता चंद्रमा बना देगी।

इसीलिए उन्होंने अपनी पहली फिल्म निर्माण संस्था की पहली फिल्म “तलाश-ए-हक” के दौरान नरगिस को सिर्फ 4 साल की उम्र में ले जाना शुरू कर दिया था। मेरे मुंबई प्रवास के दौरान फिल्मी दुनिया के बहुत बड़े प्रचारक और पत्रकार राम औरंगाबादकर से अक्सर इस परिवार के बारे में बातचीत हुआ करती थी, जिन्होंने जद्दनबाई की एक आत्मकथा सीरीज तब के एक प्रमुख समाचार पत्र में शुरू की थी।

उन्होंने बताया था- “नरगिस का असली नाम कनीज फातिमा राशिद था। जद्दनबाई के गीत संगीत और फिल्मों में रुचि के कारण घर में फिल्मकारों का आना जाना लगा रहता था। 1942 में फिल्मकार महबूब फिल्म तकदीर बना रहे थे। जिसमें उन्होंने जद्दनबाई की बेटी बेबी रानी को लिया, जो कल की बाल कलाकार रह चुकी थी और अब वह 14 साल की थी। महबूब ने ही उसको फिल्मी नाम दिया था नरगिस। उसे चमकाने में उन्होंने वाकई मेहनत की। मोतीलाल जैसे प्रतिभाशाली कलाकार के साथ उसे हीरोइन बना देना, वह भी पहली फिल्म में मामूली बात नहीं थी।

रॉक्सी टॉकीज में जब 1943 में फिल्म रिलीज हुई तो कल की बेबी रानी भी अपनी मां के साथ फ्रॉक पहने हुए फिल्म देखने गयी थी। वहां जाते समय वह फातिमा बेबी रानी थी। फिल्म देख कर बाहर निकली तो नरगिस नाम का शोर मच गया। इसके बाद तो नरगिस ने पीछे मुड़कर नहीं देखा”। सही भी है कि एक के बाद एक महबूब खान की कई फिल्मों में उन्होंने काम किया, जिन्होंने उन्हें स्थापित अभिनेत्रियों में शुमार कर दिया।

इसी दौरान नरगिस को राज कपूर के साथ फ़िल्मी परदे पर काफी पसंद किया गया। लगभग 15 फिल्मों में दोनों ने साथ काम किया। 1956 में आयी फिल्म ‘चोरी चोरी’ नरगिस और राजकपूर की जोड़ी वाली अंतिम फिल्म थी। कहा जाता है कि असल जिंदगी में भी नरगिस और राजकपूर की अच्छी केमेस्ट्री थी। 1957 में महबूब खान की फिल्म ‘मदर इंडिया’ में नरगिस सुनील दत्त की मां की भूमिका में थी।

मदर इंडिया की शूटिंग के दौरान सुनील दत्त ने नरगिस को आग से बचाया था। इस घटना के बाद नरगिस ने कहा था कि पुरानी नरगिस की मौत हो गयी है और नयी नरगिस का जन्म हुआ है। नरगिस ने उसी दिन से सुनील दत्त को अपना जीवन साथी चुन लिया। शादी के बाद नरगिस ने फिल्मों में काम करना कम कर दिया। करीब दस साल के बाद अपने भाई अनवर हुसैन और अख्तर हुसैन के कहने पर नरगिस ने 1967 में फिल्म ‘रात और दिन’ में काम किया। इस फिल्म के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

यह पहला मौका था जब किसी अभिनेत्री को राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया। नरगिस को अपने सिने करियर में मान सम्मान बहुत मिला। वह पहली अभिनेत्री थीं जिन्हें पद्मश्री पुरस्कार मिला और वह राज्यसभा सदस्य बनीं।

नरगिस एक अभिनेत्री से ज्यादा एक समाज सेविका रही हैं। उन्होंने नेत्रहीन और विशेष बच्चों के लिए काम किया था। वह भारत की पहली स्पास्टिक्स सोसाइटी की पेट्रन बनी थीं। उन्होंने अजंता कला सांस्कृतिक दल बनाया जिसमें तब के नामी कलाकार-गायक सरहदों पर जा कर तैनात सैनिकों का हौसला बढ़ाते थे, उनका मनोरंजन करते थे। बांग्लादेश बनने के बाद 1971 में उनका दल पहला था जिसने वहां कार्य किया था।

मुंबई में बांद्रा में उनके नाम पर सड़क है। हर साल हो रहे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में राष्ट्रीय एकता पर बनी सर्वश्रेष्ठ फिल्म को नरगिस दत्त अवॉर्ड दिया जाता है। कैंसर से जूझ रही नरगिस 03 मई, 1981 दुनिया से सदा के लिए रुखसत हो गयीं। उस साल की 3 मई तारीख इतनी मनहूस थी जिसने भारतीय फिल्म जगत की एक संवेदनशील भावुक अभिनेत्री नरगिस को हमसे छीन लिया था। मुंबई के उस ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल से जहाँ उनका निधन हुआ था, अपने चाहने वालों को रोता छोड़ कर अनन्त यात्रा पर चल दी थीं। जब यह 3 मई आती है तो उनकी याद फिल्मों में उनकी अनोखी अभिनय क्षमता, उनकी समाज सेवा और अपने देश के लिए किये गए तमाम महत्वपूर्ण कार्यों की याद दिला जाती है।

नरगिस की उल्लेखनीय फिल्में : मदर इंडिया, अंदाज़, अनहोनी, जोगन, आवारा, रात और दिन, अदालत, घर संसार, लाजवंती, परदेशी, चोरी चोरी, जागते रहो, श्री 420, अंगारे, आह, धून, पापी, शिकस्त, अम्बर, अनहोनी, आशियाना, बेवफा, शीशा, दीदार, हलचल, प्यार की बातें, सागर, आधी रात, बाबुल।

■ हेमन्त शुक्ल