नयी दिल्ली। आपरेशन सिंदूर से भाजपा और नरेंद्र मोदी सरकार को कोई राजनीतिक लाभ मिलेगा या नहीं, यह तो देश की जनता ही तय करेगी। किंतु विदेशों में भारत का पक्ष रखने के लिए सांसदों का दल भेजकर मोदी सरकार ने एक बड़ी राजनीतिक जीत हासिल कर ली है। विदेश गए सांसदों में से कम से कम तीन विपक्षी सांसद मोदी सरकार के करीब आ गए हैं, इसमें कोई दो राय नहीं। इनमें एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस सांसद पूर्व विदेश राज्यमंत्री शशि थरूर और पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद शामिल हैं। ओवैसी चूंकि अपनी पार्टी के मुखिया हैं, इसलिए उनके खिलाफ तो पार्टी में बोलने वाला कोई नहीं है, लेकिन वे अब अपनी पुरानी कट्टर मुस्लिम नेता की छवि गंवा चुके हैं। ऐसे में वे देश वापस आकर मोदी सरकार के खिलाफ पुराने अंदाज में आवाज उठा पाएंगे या नहीं यह देखने वाली बात होगी। दूसरी तरफ कांग्रेस के शशि थरूर और सलमान खुर्शीद जैसे-जैसे भारत की सकारात्मक छवि विदेश में गढ़ते जा रहे हैं, वैसे-वैसे देश के अंदर उनकी पार्टी में उनके खिलाफ बयानबाजी बढ़ती जा रही है। और बात इतनी आगे बढ़ चुकी है कि दोनों नेता अब अपनी पार्टी में सहजता से काम भी कर पाएंगे, इसमें संदेह है। यानी घोषित तौर पर भले ही नहीं, किंतु अघोषित रूप से ये सांसद अब सत्ता पक्ष के पाले में आ जाएंगे, ऐसा लगता है। इसके अलावा सीज फायर निलंबित किए जाने के मुद्दे पर मोदी को पूर्व मंत्री और कांग्रेस नेता पी चिदंबरम का साथ भी मिल चुका है, जबकि कांग्रेस इसी मुद्दे पर मोदी सरकार को घेर रही है। वैसे भी राजनीति तो संभावनाओं का खेल और आवश्यकताओं का मेल कही जाती है। इसलिए कब, क्या हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। क्योंकि घर के लोग जब दरवाजा बंद कर लेते हैं, तो आदमी मजबूरन किसी परिचित या फिर पड़ोसी का दरवाजा खटखटा ही देता है।
ऑपरेशन सिंदूर को बीच में स्थगित कर विपक्ष की आलोचनाओं का शिकार बनी नरेंद्र मोदी सरकार को फिर भी काफी राजनीतिक फायदा होता दिख रहा है। हालांकि सरकार लगातार यह कहने की कोशिश कर रही है कि ऑपरेशन सिंदूर समाप्त नहीं हुआ है, सिर्फ स्थगित हुआ है किंतु विपक्ष विशेषकर कांग्रेस इसे मोदी सरकार की हार के रूप में देख रही है। और सरकार को लगातार को फेल बता रही है। हां, विपक्ष इतनी सावधानी जरूर बरत रहा है कि वह सेना को कुछ नहीं कह रहा है, किंतु मोदी सरकार को विश्व पटल पर फेल साबित करने की कोशिश में लगा हुआ है। ऐसे में विपक्ष के कुछ सांसद मोदी सरकार द्वारा विदेशों में भेजे गए संसदीय दल का हिस्सा बनकर भारत की छवि सुधारने में लगे हैं, तो विपक्षी पार्टियों का पेट दर्द स्वाभाविक है।
जैसे-जैसे ये सांसद विदेश में भारत का पक्ष मजबूती से रखते जा रहे हैं, वैसे-वैसे भारत के अंदर कांग्रेस अपने सांसदों को कोस रही हैं। इसे लेकर कांग्रेस में छटपटाहट अधिक है। उसके दो बड़े नेताओं शशि थरूर और सलमान खुर्शीद ने पार्टी लाइन से हटकर मोदी सरकार की सैन्य कार्रवाई की तारीफ की है। शशि थरूर ने तो इस मामले में साफ कह दिया है कि देश की राजनीति अलग होती है किंतु विदेश में हम भारतीय हैं और हमारा घर्म है कि हम भारत की अच्छी छवि प्रस्तुत करें। शशि थरूर का एक बयान पार्टी को पसंद नहीं आया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि 1971 के बाद यह पहला मौका है जब भारत ने कोई सैन्य स्ट्राइक की है, और पाकिस्तान को घर में घुस कर मारा है।
इसके लिए उन्हें अपनी पार्टी के लोगों का कमेंट भी सुनना पड़ा है। सर्वाधिक मुखर कांग्रेस नेता उदित राज हैं, जिन्होंने शशि थरूर को पार्टी के प्रति बेईमान तक कह दिया है। उन्होंने कहा कि जिस पार्टी ने आपको सब कुछ दिया उसके प्रति भी आपका कुछ फर्ज है। यहां यह उल्लेखनीय है कि कांग्रेस पार्टी ने शशि थरूर का नाम संसदीय दल के लिए प्रस्तावित नहीं किया था, किंतु मोदी सरकार ने अपनी ओर से उनके अनुभव को देखते हुए उन्हें भेजा है। और शशि थरूर ने इसे अपना सम्मान बताते हुए और देश के प्रति अपने कर्तव्यों को जाहिर करते हुए स्वीकार भी कर लिया। कांग्रेस में इसी को लेकर नाराजगी है।
पार्टी के दूसरे नेता सलमान खुर्शीद भी विदेश गए सांसदों की टीम में हैं। उन्होंने मोदी सरकार द्वारा कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने जाने को सही ठहराकर कांग्रेस पार्टी को मुसीबत में डाल दिया है। इस पर वे भी कांग्रेसियों की आलोचना का शिकार हैं, लेकिन वह अपने बयान पर अडिग हैं। जहां तक सवाल असदुद्दीन ओवैसी का है तो वे अपनी कट्टर मुस्लिम राजनीति को लेकर हमेशा चर्चा में रहते हैं। अपने बयानों में भाजपा, संघ और नरेंद्र मोदी को निशाने पर रखने वाले एआइएमआइएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी इस समय विशेष चर्चा में है। वे देशभक्ति की आवाज उठा रहे हैं, और पाकिस्तान को लगातार लताड़ रहे हैं। उनकी बातें भारत की जनता को इतनी पसंद आ गई हैं कि उन्होंने कहना शुरू कर दिया है कि अगर कांग्रेस को देशभक्ति सीखना है तो असदुद्दीन ओवैसी से सीखे। इसके अलावा सीज फायर निलंबित किए जाने के मुद्दे पर नरेंद्र मोदी सरकार को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम का साथ मिल चुका है। उन्होंने एक अखबार में लिखे एक लेख में मोदी सरकार के इस निर्णय की तारीफ की है।
हालांकि यह भी सच है कि नरेंद्र मोदी सरकार के सबसे खास मित्र कहे जाने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ऐन मौके पर भारत का साथ लगभग छोड़ दिया और पाकिस्तान को आईएमएफ से बेल आउट पैकेज दिलाने में मदद की। लोगों का मानना है कि ये मदद तभी संभव थी जब अमेरिका भी साथ देता। ऐसे समय में जब पाकिस्तान भारत के साथ लड़ाई की स्थिति में हो उसे बेल आउट पैकेज मिलना भारत के लिए अच्छा नहीं माना गया। विपक्ष लगातार इसी को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार पर हमलावर है। विपक्ष इसे नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप की कथित दोस्ती पर लगातार सवाल उठा रहा है।
विपक्ष का यह भी आरोप है कि इस संकट के समय में किसी भी राष्ट्र ने भारत का समर्थन नहीं किया है, और यह भाजपा सरकार की कूटनीतिक हार है। और बात यहीं तक नहीं रुकी। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सीजफायर स्थगित किए जाने की सूचना भी भारत से पहले देकर विपक्ष को मोदी के खिलाफ हमलावर होने का मसाला दे दिया है। विपक्ष का कहना है कि डोनाल्ड ट्रंप कौन होते हैं, हमारे बीच में बोलने वाले। इसका सीधा मतलब तो यही है कि डोनाल्ड ट्रंप ने मध्यस्थता कराई है। हालांकि डोनाल्ड ट्रंप अपने बयानों में इससे साफ इनकार भी कर चुके हैं कि उन्होंने मध्यस्थता नहीं कराई, लेकिन विपक्ष है कि मानता ही नहीं। कुल मिलाकर ऑपरेशन सिंदूर में सेना के शौर्य का जो मजा देशवासियों को आना चाहिए था, उसमें विपक्ष ने नकारात्मकता का तड़का लगाकर हल्का कर दिया है।
इसके चलते विपक्ष के बयान पाकिस्तान में खूब चर्चा का विषय भी बन रहे हैं। किंतु नरेंद्र मोदी सरकार के लिए इन सब में अच्छी बात यह है असदुद्दीन ओवैसी, शशि थरूर और सलमान खुर्शीद की भारत के पक्ष में की जा रही बैटिंग भाजपा को नैतिक संबल प्रदान कर रही है। पी चिदंबरम के लेख ने तो मोदी के सीज फायर निलंबित करने के निर्णय को मजबूती प्रदान कर दी है। विदेश गए संसदीय दल में अन्य विपक्षी पार्टियों के भी सांसद हैं, लेकिन उनकी पार्टियां पहले से ही इस मुद्दे पर सरकार का समर्थन कर रही हैं, इसलिए उनकी चर्चा कम हो रही है। चूंकि कांग्रेस इस मुद्दे पर सरकार को लगातार घेरना चाहती है, और ऐसे में अगर उसके सांसद विदेश में भारत का महिमा मंडन कर रहे हैं तो यह उसके लिए तकलीफ दे हो जा रही है। अब ऐसे में इन तीनों सांसदों पर चर्चा भी जरूरी हो जाती है। इसके अलावा शिवसेना उद्धव गुट के प्रवक्ता संजय राउत भी मोदी सरकार के खिलाफ लगातार मुखर हैं, इतने कि उनके मुंह से निकल गया कि आपरेशन सिंदूर एक फेल आपरेशन है। हालांकि बाद में उन्होंने इस पर सफाई भी दी।
ओवैसी तो सबसे बड़े देशभक्त निकले : भारत में मुसलमानों के नेता के रूप में उभर चुके सांसद असदुद्दीन ओवैसी इस समय नए अवतार में हैं। पहलगाम में 26 पर्यटकों की नृशंस हत्या के बाद उसके खिलाफ चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर का समर्थन करने से लेकर विदेश गई भारतीय सांसदों की टीम के सदस्य के रूप में ओवैसी ने अपना नया रूप दिखाया है। उन्होंने विदेश में जाकर पाकिस्तान को खूब गरियाया है,और इतना कि पाकिस्तान में उनके नाम को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। ओवैसी ने पाकिस्तान को स्टूपिड, बेगैरत, जल्लाद और न जाने क्या-क्या कहा है। उन्होंने तो यहां तक कह दिया पाकिस्तान भारत की नकल करना चाहता है, पर उन मूर्खों को नहीं मालूम कि नकल करने के लिए भी अकल चाहिए। दरअसल वे उन खबरों पर कमेंट कर रहे थे जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऑपरेशन सिंदूर के बाद अपने सैनिक ठिकानों पर जाकर सैनिकों का हौसला बढ़ाया और पाकिस्तान के उस झूठ को भी बेनकाब किया, जिसमें पाकिस्तान द्वारा भारत के सैन्य ठिकानों को नुकसान पहुंचाने की बात कही गई है। उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ और सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर पर भी पीएम मोदी नकल करने पर खिल्ली उड़ाई। ओवैसी ने कहा कि वे दोनों गलत वीडियो दिखाकर हंसी का पात्र बन रहे हैं। इसके अलावा भारत की तर्ज पर विदेश में प्रतिनिधिमंडल भेजने की मुद्दे पर भी उन्होंने पाक को लताड़ा है, और कहा है कि नकल करने के लिए भी अकल चाहिए, पर यह बात स्टुपिड पाकिस्तानियों को नहीं मालूम है। उसके बाद से पाकिस्तान में उनको कोसने वालों की एक लंबी फेहरिस्त सामने आई है। कोई उन्हें इस्लाम का हवाला दे रहा है, कोई उन्हें इस बात के लिए डरा रहा है कि तुम जिंदगी भर भारत में अपनी वफादारी साबित करते रह जाओगे लेकिन तुम्हें आरएसएस वाले कभी भी अपना नहीं मानेंगे। इस सिलसिले में पाकिस्तानी जिन्ना का हवाला देते हैं, जो कहा करते थे कि बंटवारे के समय जो मुसलमान भारत में रह गए हैं, वे बाद में पछताएंगे और जिंदगी अपनी वफादारी साबित करने में लगा देंगे। उधर कुछ पाकिस्तानी कहते हैं की ओवैसी मजबूर हैं, क्योंकि वे जिनके साथ रहते हैं उनकी खिलाफत कैसे कर सकते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि भारत के मुसलमान देश के प्रति वफादार हैं, इसलिए वे पाकिस्तान की बुराई करते हैं। उनका कहना है कि ओवैसी भी भारत के मुसलमान हैं। उधर अपने बारे में पाकिस्तान में चल रही चर्चाओं को लेकर ओवैसी का कहना है कि हम तो पाकिस्तान के दूल्हा भाई हो गए हैं। लोग मुझे वहां बहुत पसंद करते हैं, इसलिए मेरी चर्चाएं बहुत करते हैं। पर ये भी सच है कि ओवैसी ने जिस तरह से अपनी लाइन बदली है, उसे लेकर भारत में भी उनके प्रति नजरिया बदला है। लोग उनकी नजीर दे रहे हैं, और कांग्रेस से कह रहे हैं कि अरे, कुछ ओवैसी से ही सीख लेते हैं। पर कांग्रेस तो वोट बैंक की राजनीति के चलते देश के खिलाफ बोल रही है। कुल मिलाकर इस समय असदुद्दीन ओवैसी भारत के मुसलमानों के साथ-साथ हिंदुओं के दिल में भी अपनी पैठ बनाते जा रहे हैं। हालांकि कुछ हिंदू ये भी कहते हैं कि यह सब असदुद्दीन ओवैसी का दिखावा है। दरअसल ओवैसी उस अलतकिया का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिसमें कहा गया है कि जब तक कमजोर रहो तब तक भाईचारे की बात करो। और जब ताकतवर हो जाओ तो इस्लाम के रास्ते पर चलो। पर भारत जिंदाबाद का नारा लगाकर सभी हिंदुस्तानियों का दिल जीतने वाले असदुद्दीन ओवैसी ने हिंदुस्तानी चोला पहन लिया है। ओवैसी ने कहा कि पाकिस्तान से आए इन कुत्तों को सबक सिखाना जरूरी है। इनके खात्मे से ही पीड़ित परिवारों को न्याय मिलेगा।उन्होंने कहा कि आतंकियों को पनाह देने वाले देशों के खिलाफ अब एकजुट होकर कार्रवाई करने की जरूरत है। ओवैसी ने अल्जीरिया में दुनिया को पाकिस्तान की हकीकत बताते हुए कहा कि आतंकी जकीउर रहमान लखवी जेल में बैठकर बेटे का पिता बन गया, क्योंकि जेल उसकी आरामगाह थी। उन्होंने पाकिस्तान को एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में डालने की भी वकालत की। कुल मिलाकर ओवैसी ने अपने बयानों से खूब टीआरपी बनायी है। कभी उनकी मुस्लिम कट्टरता के चलते उनसे बेहद नफरत करने वाले लोग भी अब उनके इस अवतार के मुरीद हो गये हैं।
सांसद शशि थरूर पर कांग्रेस और कांग्रेसी फायर : विदेश जाने वाले सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में कांग्रेस सांसद शशि थरूर के शामिल होने की घोषणा के बाद कांग्रेस में मतभेद बढ़ गए हैं। उन पर परोक्ष रूप से कटाक्ष करते हुए कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा है कि कांग्रेस में होने और कांग्रेस का होने में जमीन और आसमान का फर्क है। उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने इस मामले में ईमानदारी नहीं, सिर्फ शरारत दिखाई है। अच्छी लोकतांत्रिक परंपरा यह रही है कि किसी सरकारी प्रतिनिधिमंडल में शामिल होने वाले सांसद पार्टी नेतृत्व से अनुमति लेते हैं।
इसके बाद ऑपरेशन सिंदूर पर भाजपा सरकार का समर्थन करने पर शशि थरूर लगातार अपनी पार्टी के नेताओं की आलोचना का सामना कर रहे हैं। उन्होंने इस पर सफाई दी और कहा कि आलोचक और ट्रोल करने वाले उनके विचारों को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहे हैं। थरूर ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में लिखा कि एलओसी के पार भारतीय वीरता पर मेरी कथित अज्ञानता पर भड़कने वाले कट्टरपंथियों को मैं बताना चाहता हूं कि मैं स्पष्ट रूप से केवल आतंकवादी हमलों के प्रतिशोध के बारे में बोल रहा था, न कि पिछले युद्धों के बारे में। लेकिन हमेशा की तरह मेरे शब्दों, विचारों को तोड़ा मरोड़ा गया। दरअसल थरूर ने पनामा में 2016 के उरी सर्जिकल स्ट्राइक, 2019 के बालाकोट एयर स्ट्राइक और ऑपरेशन सिंदूर को लेकर भारत सरकार की तारीफ की थी। उन्होंने कहा कि हाल के सालों में आतंकवाद के खिलाफ भारत का रुख बदला है, जबकि पहले ऐसा नहीं होता था। इस पर कांग्रेस नेता उदित राज ने थरूर से पूछा है कि वे इतने बेईमान कैसे हो सकते हैं। उदित राज ने सोशल मीडिया पर अपनी पोस्ट में लिखा है कि मैं प्रधानमंत्री मोदी से कहूंगा कि वे आपको भाजपा का सुपर प्रवक्ता घोषित कर दें, या भारत आने से पहले ही विदेश मंत्री घोषित कर दें। उदित राज ने कहा कि आप कांग्रेस के स्वर्णिम इतिहास को ये कहकर कैसे बदनाम कर सकते हैं कि मोदी से पहले भारत ने कभी भी एलओसी और अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार नहीं की। उदित राज के अलावा भी कांग्रेस के कई नेता थरूर की आलोचना कर चुके हैं। खैर, शशि थरूर ने बीते 8 मई को कहा था कि ऑपरेशन सिंदूर पाकिस्तान और दुनिया के लिए मजबूत संदेश है। भारत ने 26 बेकसूर नागरिकों की मौत का बदला लेने के लिए सटीक कार्रवाई की। थरूर के इस बयान के बाद से ही कांग्रेस के कई नेता उनसे नाराज चल रहे हैं। इस पर बीजेपी ने कांग्रेस से पूछा है कि क्या उसे थरूर से जलन हो रही है। बीजेपी ने पूछा है कि कांग्रेस ने थरूर को क्यों नहीं चुना। वहीं कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने आरोप लगाया है कि सरकार ने अपने हिसाब से नाम तय कर लिए और बाद में नाम मांगे। उन्होंने इसे बेईमानी और शरारतपूर्ण’ बताया।
उधर शशि थरूर के 8 मई के बयान के बाद कांग्रेस वर्किंग कमेटी की 14 मई की मीटिंग में कुछ लोगों ने शिकायत की थी कि वह पार्टी लाइन से भटक रहे हैं। इन सब बातों को देखते हुए थरूर का सरकार का प्रस्ताव स्वीकार करना, पार्टी को चुनौती देने जैसा लग रहा है। पर शिकायतों के बावजूद कांग्रेस शशि थरूर के खिलाफ कोई कदम नहीं उठा रही है। पार्टी थरूर के बारे में फैसला लेने से पहले कई बातों पर विचार करेगी। सबसे जरूरी बात यह है कि केरल में आने वाले चुनाव में पार्टी को लेफ्ट फ्रंट और BJP से कड़ी टक्कर मिल रही है। उधर बीजेपी कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस को पता है कि बीजेपी थरूर वे कंधे पर रखकर बंदूक चला रही है। ऐसे में कोई फैसला लेने से पहले कांग्रेस हाई कमान विभिन्न पहलुओं पर विचार करेगा। दूसरा, शशि थरूर की छवि जेंटलमैन की है, और पार्टी नहीं चाहेगी कि पार्टी से एक भद्रजन चला जाए।
सलमान खुर्शीद भी हैं कांग्रेसियों के निशाने पर : सर्वदलीय संसदीय दल के साथ विदेश गए सांसद और पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद भी जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने की हिमायत करने के बाद भारत में कुछ कांग्रेसियों के निशाने पर आ गए हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने उनका जवाब देते हुए कहा है कि पार्टी की राजनीति और देश की राजनीति अलग-अलग होती है। किंतु जब आप देश का प्रतिनिधित्व करते हैं तो आप सिर्फ हिंदुस्तानी होते हैं। ऐसे में आपका धर्म है कि आप सिर्फ देश की हिमायत करें। उन्होंने अपनी आलोचना करने वाले कांग्रेस नेताओं को कहा है कि मैं सिर्फ अपना फर्ज अदा कर रहा हूं। और मैं जो काम करने आया हूं, वही कर रहा हूं। और कौन क्या कहता है मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखे अपने एक संदेश में कहा है कि हम आतंकवाद के खिलाफ़ मिशन पर हैं, और हम भारत का संदेश दुनिया तक पहुंचाने के लिए निकले हैं। ऐसे में ये दुखद है कि घर में ही कुछ लोग हमारी निष्ठाओं का हिसाब कर रहे हैं। उन्होंने पूछा है कि क्या देशभक्त होना इतना मुश्किल है। खैर, सलमान खुर्शीद ने भी आलोचनाओं को दरकिनार कर अपना अभियान जारी रखा है। उनका कहना है कि मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन, क्या कह रहा है। मेरा मेरे देश के प्रति जो फर्ज है, मैं उसको अदा कर रहा हूं। सूत्रों का कहना है कि भारत आकर सलमान खुर्शीद किस करवट बैठेंगे, यह कह पाना मुश्किल है। परंतु अपनी आलोचना से वे आहत हैं।
कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने भी की मोदी की तारीफ : कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने भी मोदी सरकार की तारीफ करते हुए कहा है कि उनकी युद्ध नीति बहुत अच्छी है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्त मंत्री ने एक अखबार में प्रकाशित अपने एक कॉलम में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की युद्ध नीति की जमकर तारीफ की है। उन्होंने पाकिस्तान को दिए जवाब को बुद्धिमत्तापूर्ण और संतुलित बताया। उन्होंने कहा कि 22 अप्रैल को पहलगाम में पर्यटकों पर आतंकी हमले के बाद देश में बदला लेने की आवाजें तेज थीं, लेकिन सरकार ने सीमित सैन्य कार्रवाई का रास्ता चुनकर बड़ा युद्ध टाल दिया। सैन्य कार्रवाई का उद्देश्य आतंकी संगठनों के बुनियादी ठांचे को नष्ट करना था। उन्होंने पीएम मोदी के इस कदम को समझदारी भरा बताया।
उन्होंने कहा कि भारत ने पूर्ण युद्ध की स्थिति टालते हुए वैश्विक स्थिरता को प्राथमिकता दी। चिदंबरम ने 2022 में पीएम मोदी द्वारा व्लादिमीर पुतिन से बोले गए शब्दों का भी जिक्र किया, जिसमें मोदी ने कहा था कि यह युद्ध का युग नहीं है। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी के ये शब्द आज भी दुनिया को याद हैं। चिदंबरम ने ये भी स्पष्ट किया कि पूर्ण युद्ध न केवल क्षेत्रीय बल्कि वैश्विक अस्थिरता पैदा कर सकता था। उन्होंने रूस-यूक्रेन और इजरायल-गाजा के संघर्षों का उदाहरण देते हुए कहा कि दुनिया युद्ध बर्दाश्त नहीं कर सकती है।
थरूर के मामले में कांग्रेस का विरोध कमजोर पड़ा : कांग्रेस नेता शशि थरूर ने ऑपरेशन सिंदूर पर भारत की राय रखने के लिए गठित प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बनने का प्रस्ताव खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया तो कांग्रेस का विरोध कमजोर पड़ गया। हालांकि कांग्रेस ने उनका नाम इसके लिए प्रस्तावित नहीं किया था। नाम आने के बाद शशि थरूर ने कहा कि ये उनके लिए सम्मान की बात है। उन्होंने यह भी कहा कि यह मामला राष्ट्रीय हित से जुड़ा है, इसे राजनीतिक नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। शशि थरूर पहले भी यूएन में बड़े पद पर काम कर चुके हैं, वे विदेश मंत्रालय में राज्यमंत्री भी रह चुके हैं। पिछले साल कांग्रेस ने उन्हें विदेश मामलों की स्थायी समिति का अध्यक्ष बनाने की सिफारिश की थी। चूंकि इंडी गठबंधन के अन्य दलों ने सरकार द्वारा घोषित सांसदों के नाम को सहर्ष स्वीकार कर लिया, इसलिए कांग्रेस भी इस मामले को बहुत तूल नहीं दे पाई। इसके अलावा शशि थरूर के रुख से भी स्पष्ट हो गया कि उसका विरोध चल नहीं पाएगा तो उसने हथियार डाल दिए। लेकिन इसके बाद से थरूर कांग्रेस नेताओं के निशाने पर हैं।
अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक