अंततः पहलवान जी का बना रहा दबदबा

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आगामी 4 जून को बैलट बॉक्स जो भी परिणाम दिखाए और जिस किसी को भी कैसरगंज लोकसभा सीट से सांसद बनाए परंतु वहां से जीते तो भारतीय कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष और कैसरगंज के सिटिंग एमपी बृजभूषण शरण सिंह ही हैं। विश्व की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के रणनीतिकारों को भी उन्होंने झुका दिया। इतनी बड़ी पार्टी को भी बृजभूषण के दबदबे के आगे झुकना पड़ा और उनकी इच्छा का मान रखना पड़ा। और टिकट भी उसे ही मिला जिसे बृजभूषण शरण सिंह ने चाहा। अब यह लगभग तय लग रहा है है कि कैसरगंज से भाजपा ही जीतेगी क्योंकि भाजपा के साथ बृजभूषण शरण का साथ है। और शायद यही मजबूरी थी कि भाजपा को उन्हें इग्नोर करना महंगा लगा।

गोंडा-बहराइच जनपदों की पांच विधानसभाओं कर्नलगंज, कटरा, कैसरगंज, पयागपुर और तरबगंज को मिलाकर बने इस लोकसभा क्षेत्र में बृजभूषण शरण सिंह का क्या दबदबा है इसका अंदाजा भाजपा के इस निर्णय को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है। जैसा कि बृजभूषण शरण सिंह खुद कहते हैं कि दबदबा तो पहले भी था, अब भी है और आगे भी बना रहेगा। अपने इस वाक्य को उन्होंने सच भी करके दिखा दिया। भाजपा के रणनीतिकार जानते थे कि बृजभूषण शरण सिंह को नाराज करना मतलब कैसरगंज समेत आसपास की दो-चार और सीटों पर भी ठाकुर मतदाताओं को नाराज करना। वैसे भी इस चुनाव में अचानक यह बात उठी थी कि भाजपा से ठाकुर नाराज हैं। इस बात को जानने और सुनने के बाद भाजपा कोई जोखिम नहीं लेना चाहती थी। अन्यथा भाजपा बृजभूषण का टिकट काटने का मन बना चुकी थी। इस बार यहां से किसी ब्राह्मण चेहरे को मैदान में लाने की तैयारी थी। किंतु मामला 400 सीट पार करने का था ऐसे में एक-एक सीट महत्वपूर्ण थी। ऐसे में बृजभूषण शरण की लॉटरी निकल गई और भाजपा को भी समझौता करना पड़ा। बीच का रास्ता निकाला गया और बृजभूषण की मर्जी का प्रत्याशी यानी उनके छोटे बेटे करण भूषण सिंह को भाजपा ने टिकट दे दिया। उन्होंने पर्चा भी दाखिल कर दिया है।

ये सब हरियाणा के जाट वोटरों को खुश करने के लिए या यों कहें उनकी नाराजगी से बचने के लिए भाजपा ने किया और बीच का रास्ता निकाला गया। हालांकि विपक्ष इस बात को लेकर भी भाजपा पर हमलावर है।‌ उसका कहना है यह बात वैसे ही है जैसे नई बोतल में पुरानी शराब पेश कर दी जाए। उनका आरोप है की सांसद चाहे बेटा बने या बाप, चलेगी तो बृजभूषण की ही। सांसदी का असली अधिकार बृजभूषण के पास ही रहेगा। विपक्ष का मानना है कि भाजपा का यह निर्णय पहलवान बेटियों के साथ धोखा है। अब भाजपा का यह निर्णय भाजपा को हरियाणा और दिल्ली में कितनी मदद दे पाएगा यह तो आने वाला 4 जून ही बता पाएगा किंतु बृजभूषण शरण सिंह अपने दबाव की राजनीति में कामयाब हो गए।

हालांकि वे इस जिद पर अड़े हुए थे कि टिकट मुझे ही चाहिए। कई बार जब पत्रकारों ने भी पूछा कि क्या आपका टिकट कट रहा है तो उन्होंने कहा, मेरा टिकट कौन काटेगा। वे पत्रकार से ही पूछ बैठे और कहा कि क्या तुम काटोगे मेरा टिकट। यानी वे कंफर्म थे कि चलेगी तो उन्हीं की। सूत्रों का कहना है कि समाजवादी पार्टी भी ताक में बैठी थी कि कब बृजभूषण शरण सिंह का टिकट बीजेपी काटे और वे उन्हें लपक ले। किंतु भाजपा ने सपा को यह मौका नहीं दिया। बृजभूषण शरण सिंह भी जानते थे कि भाजपा केंद्र की राजनीति में अभी बहुत मजबूत है। अगर वह भाजपा को नाराज करके कैसरगंज से सपा के टिकट पर सांसद बन भी जाते हैं तो उसे कुछ हासिल होने वाला नहीं। क्योंकि रूलिंग पार्टी से बगावत करके राजनीति करना आसान नहीं है। वे एक बार भाजपा से नाराज होकर सपा से सांसद रह भी चुके हैं और इस बात को समझ चुके हैं।

उधर बृजभूषण शरण सिंह को पार्टी में बनाए रखकर भाजपा ने ठाकुरों को भी यह संदेश दे दिया है कि विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भाजपा उनका साथ नहीं छोड़ेगी। इसीलिए महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न संबंधी तमाम आरोपों के बावजूद भाजपा ने बृजभूषण का साथ नहीं छोड़ा। उधर इस निर्णय से भाजपा को हरियाणा और दिल्ली में जाट वोटरों को समझाने में आसानी होगी कि चूंकि बृजभूषण शरण सिंह पर आरोप लगे थे इसलिए उन्होंने अपने इस सिटिंग एमपी का टिकट काट दिया। यानी इस तरह से भाजपा ने एक तीर से दो शिकार कर लिया। बृजभूषण भी खुश, ठाकुर भी खुश और पहलवान बेटियों को समझने के लिए एक बहाना भी मिल गया।

अभयानंद शुक्ल
वरिष्ठ पत्रकार, लखनऊ