उपज तैयार होने से पहले बहुत जरूरी है इस बात पर गौर करना……..हम अक्सर इस तरह की खबरें पढ़ते रहते हैं कि आलू मंडियों में सड़ रहा है। टमाटर के उचित मूल्य नहीं मिल रहे हैं। मौसम की मार से गेहूं खेत में खराब हो गया। किसान लागत भी नहीं निकाल पा रहा है। निसंदेह किसान के लिए ये स्थितियां दुखद होती हैं। लेकिन इसका मूल कारण क्या है किसान और सरकार को इस पर ध्यान देने की जरूरत है। इस दिशा में पहल किसान को ही करनी होगी और उसे फसल पूर्व की जोरदार तैयारियों की तरह फसल तैयार होने के बाद जल्दबाजी में खेत खाली करने की जगह पहले से प्लान करना होगा कि उसे फसल तैयार होने के बाद कितने दिन इंतजार करने के बाद बाजार का रुख देखकर अपना माल निकालना है और फसल के इस बीच कितने दिन तक और कैसे सुरक्षित रखना है ताकि उसकी फसल की ताजगी बनी रहे और खराब भी न हो। इस दिशा में सरकार को भी किसान की जरूरत को ध्यान में रखते हुए कोल्ड स्टोरेज की चेन तैयार करनी होगी।
अनुसंधानकर्ता सी. महेश्वर, टी.एस. चाणक्य ने 2006 में लिखे अपने रिसर्च पेपर में कहा था कि भारत में उगाए जाने वाले फलों और सब्जियों का लगभग 30 प्रतिशत जो कि 40 मिलियन टन, यानी 13 बिलियन यूएस डालर की राशि के बराबर है खराब बुनियादी ढांचे, अपर्याप्त कोल्ड स्टोरेज क्षमता, कोल्ड स्टोरेज की निकटता में कोल्ड स्टोरेज की अनुपलब्धता जैसे कोल्ड चेन में अंतराल, खेतों में ही या खराब परिवहन बुनियादी ढांचे आदि के कारण सालाना बर्बाद हो जाता है। इस कमी का फायदा मार्केट में बीच के दलाल उठाते हैं जो कि फसल कटाई के समय जानबूझकर उस उपज के दाम गिरा देते हैं और फिर किसान को घटी दरों पर माल बेचने को मजबूर करते हैं। इस तरह कटाई खत्म होने के बाद ये बीच के दलाल व्यापारी अपनी होल्डिंग से भारी मुनाफा कमाते हैं। जिसके परिणामस्वरूप कीमतों में अस्थिरता आती है। क्योंकि कोल्ड चेन उपलब्ध न होने पर किसान अपनी उपज खराब होने के डर से औने पौने दाम पर बेचने को मजबूर हो जाता है। और किसान को लाभकारी मूल्य नहीं मिल पाता है। इससे उत्पन्न ग्रामीण गरीबी के परिणामस्वरूप किसानों में निराशा बढ़ती है और आत्महत्याएं होती हैं।
भारत जितनी खपत करता है अगर उसका रख रखाव ठीक से व्यवस्थित हो जाए तो कोई समस्या ही नहीं है। लेकिन यहां खपत से ज्यादा फल और सब्जियां बर्बाद कर दी जाती हैं। एग्रीकल्चर सेक्टर में मल्टीनेशनल कंपनियों की जबर्दस्त घुसपैठ के बावजूद आज भी किसान घाटे में है। यहां के बाद गौरतलब है कि उपज बढाने के लिए एक ओर जहां फसल रोटेशन, मृदा संरक्षण, कीट नियंत्रण, उर्वरक, सिंचाई आदि जैसी तकनीकों द्वारा उत्पादन के स्तर को बढ़ाने के लिए यहां पूर्व-कटाई चरण पर पर्याप्त ध्यान दिया गया है, लेकिन कटाई के बाद के मुद्दों को अभी तक यानी इस रिसर्च के लगभग डेढ़ दशक बाद भी जो काम किया गया है वह पर्याप्त नहीं है। नतीजा फसलों की बर्बादी के रूप में या किसान को फसल का लाभकारी मूल्य न मिलने के रूप में सामने आता है।
खास बात यह है कि एग्रीकल्चर सेक्टर में वर्तमान समय में रूरल एकोनॉमी कम्युनिकेटर्स और साइंस कम्युनिकेटर्स का नितांत अभाव है। जिसके चलते कारपोरेट को भी अपनी जरूरत की उपज सही कीमत पर नहीं मिल पा रही है न ही किसान को फायदा हो रहा है। वस्तुतः कारपोरेट का मैसेज किसान तक सीधे कम्युनिकेट नहीं हो पा रहा है और किसान की समस्या से कारपोरेट जगत अंजान है क्योंकि दोनों के बीच में मलाई तीसरा खा जा रहा है।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा प्राप्त करने के बावजूद, तीस करोड़ से अधिक भारतीय किसानों और कृषि श्रमिकों के हित की यह बात गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है जो कि जो भारतीय कृषि की रीढ़ हैं। कोल्ड स्टोरेज संचालन में पश्चिम में 30 डॉलर से कम लागत आती है जबकि इसकी तुलना में भारतीय कोल्ड स्टोरेज इकाइयों के लिए परिचालन लागत प्रति वर्ष 60 डालर प्रति घन मीटर से अधिक है। पश्चिम के 10% की तुलना में ऊर्जा व्यय भारतीय कोल्ड स्टोरेज के कुल खर्च का लगभग 28% है। जो कि बहुत अधिक है और ये कारक कोल्ड स्टोरेज की स्थापना को कठिन, और अव्यवहारिक तो बना रहे हैं। जिस पर ध्यान दिये जाने की जरूरत है।
लगभग 30-35% नुकसान को ताज़ा कटे हुए फलों और सब्जियों को प्रशीतित कंटेनरों में परिवहन करके कम किया जा सकता है और इस प्रकार कोल्ड चेन में इस अंतर को कम किया जा सकता है। जिसे किसान को भी लाभ होगा और फसलों की बर्बादी भी रुकेगी। कंटेनर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (CONCOR), रेल मंत्रालय के तहत एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम (PSU), 37,000 कंटेनरों के साथ भारत का सबसे बड़ा कंटेनर फ्लीट ऑपरेटर हैं। भविष्य की जरूरतों से निपटने के लिए हमें मानक टीईयू आकार के लगभग 20,000 प्रशीतित कंटेनरों की आवश्यकता होगी। पूरे देश में खेतों में विभिन्न स्थानों पर रणनीतिक रूप से रखी गई ताज़ी कटी हुई उपज का परिवहन करने के लिए इसकी जरूरत होगी।
ये तो हुई कोल्ड चेन की बात। अब इसे सामान्य शब्दों में या सीधे सपाट शब्दों में कहें तो देश में दो साल पहले आई कोविड महामारी के बाद वैक्सीन के रखरखाव के लिए जब कोल्ड चेन की जरूरत पड़ी तब इस ओर ध्यान गया। लेकिन यह ध्यान फसल के लिए नहीं वैक्सीन के रखरखाव को लेकर था। जरूरत हर फसल के तैयार होने पर किसान को उसका लाभकारी मूल्य मिलने तक फसल के रखरखाव के समुचित प्रबंध करने की है। साथ ही किसानों से जुड़ी इस समस्या से बाजार किस हद तक प्रभावित हो रहा है इसे देखने के लिए कृषि और विज्ञान कम्युनिकेटर्स की अहम भूमिका है जो किसान को उसकी उपज का लाभकारी मूल्य दिलाने में सहायक हो सकते हैं।
रामकृष्ण वाजपेयी एसोसिएट प्रोफेसर जागरण इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड मॉस कम्युनिकेशन कानपुर