यूपी में शिशु मृत्यु दर में भी आई काफी कमी

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लखनऊ। जननी सुरक्षा, राष्ट्रीय पोषण माह और प्रधानमंत्री मातृ वंदना जैसी योजनाओं के सफल क्रियान्वयन के साथ ही उत्तर प्रदेश ने संस्थागत प्रसव के मामले में भी ऊंची छलांग लगायी है। धात्री व गर्भवती महिलाओं को लेकर योगी सरकार की स्वास्थ्य रणनीति का नतीजा है कि प्रदेश में बीते साढ़े पांच वर्ष में लगभग 84 प्रतिशत बच्चों ने कुशल स्वास्थ्यकर्मियों की देखरेख में जन्म लिया है। वहीं शिशु मृत्यु दर के मामले में 18 फीसदी से ज्यादा की कमी दर्ज की गयी है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के नतीजों के अनुसार संस्थागत प्रसव के साथ-साथ मैटरनल एनीमिया व शिशु मृत्यु दर सहित सभी मानकों पर प्रदेश में अभूतपूर्व सुधार हुआ है। आकंड़ों को देखें तो पहले उत्तर प्रदेश में लगभग 67 प्रतिशत संस्थागत प्रसव होता था, जिसमें 17 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। अब प्रदेश में प्रशिक्षित और सक्षम स्वास्थ्यकर्मियों की समग्र देख-रेख में बच्चे जन्म ले रहे हैं। इससे किसी भी आपात स्थिति को संभालने और मां-बच्चे के जीवन को बचाने में सहायता मिल रही है। शिशु मृत्यु दर के मामले में भी काफी कमी आई है। योगी सरकार से पहले प्रदेश में शिशु मृत्यु दर 78.1 प्रतिशत थी जो अब घटकर 59.8 प्रतिशत हो गई है।

लिंगानुपात के मामले में भी उत्तर प्रदेश का प्रदर्शन बेहतर है। वर्ष 2015 की बात करें तो उस समय प्रदेश में लिंगानुपात 995 था। वहीं अब प्रति हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या बढ़कर 1017 हो गई है। उत्तर प्रदेश में एनीमिया प्रभावित महिलाओं की संख्या में 5.1 प्रतिशत की कमी आयी है। जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह कमी 1.8 प्रतिशत है। प्रदेश में सामान्य से कम वजन के बच्चों के मामलों में 7.4 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है, जो राष्ट्रीय स्तर पर 3.7 प्रतिशत से ज्यादा है।

इन कार्यक्रमों के सफल क्रियान्वयन से मिली सफलता : जननी सुरक्षा योजना के अंतर्गत प्रदेश में सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में सामान्य प्रसव और सीजेरियन ऑपरेशन तथा बीमार नवजात (जन्म के 30 दिन बाद तक) सहित गर्भवती महिलाओं को पूरी तरह से मुफ्त एवं कैशलेस सेवाएं प्रदान की जा रही हैं। प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के तहत सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में लेबर रूम और मैटरनिटी ऑपरेशन थिएटर में देखभाल की गुणवत्ता में सुधार किया जा रहा है। वहीं राष्ट्रीय पोषण अभियान के माध्यम से (0-6 वर्ष) और गर्भवती महिलाओं तथा स्तनपान कराने वाली माताओं की पोषण स्थिति में समयबद्ध तरीके से सुधार किया गया है।