संभल विवाद की भेंट चढ़ी 500 साल पुरानी परंपरा

संभल विवाद की भेंट चढ़ी 500 साल पुरानी परंपरा एलआईयू की रिपोर्ट के बाद प्रशासन ने नहीं दी जेठ मेले की अनुमति 500 सालों के इतिहास में पहली बार नहीं लग पाएगा ये सालाना मेला मेला प्रबंधन कमेटी की याचिका पर हाई कोर्ट में 14 को है सुनवाई

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लखनऊ। उत्तर प्रदेश के संभल और मुरादाबाद में अब तक लगते रहे गाजी मियां के नेजा मेलों पर रोक लगने के बाद अब बारी बहराइच में लगने वाले गाजी मियां के सालाना उर्स की है। यहां भी प्रशासन ने मेले की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। और अगर ये मेला नहीं लगता है तो पिछले 500 सालों में ऐसा पहली बार होगा जब गाजी मियां का उर्स यानी जेठ मेला नहीं लगेगा। मेले का आयोजन 15 मई से 15 जून तक प्रस्तावित था, लेकिन कुछ सिरफिरे कट्टर मुस्लिमों की सनक ने इस मेले पर ग्रहण लगा दिया। सिटी मजिस्ट्रेट ने लोकल इंटेलीजेंस यूनिट की रिपोर्ट के बाद वक्फ संशोधन कानून पर उठे विवाद और पहलगाम हमले से हुए पैनिक के मद्देनजर कानून व्यवस्था का हवाला देते हुए मेले की इजाजत देने से इनकार कर दिया है। उधर मेला कमेटी का कहना है कि इस मेले को लगाने का फैसला बसंत पंचमी के दिन हुई बैठक में ही ले लिया गया था, और तैयारी शुरू कर दी गई थी। पर बाद में प्रशासन की हरी झंडी न मिलने के कारण मेले के लिए ठेके देने का काम रोक दिया गया था। किंतु जिन जायरीन को जानकारी नहीं हो पाई है, वे आ सकते हैं। अब चूंकि प्रशासन ने मेला की अनुमति देने से इन्कार कर दिया है, इसलिए अब इस मेले का आयोजन संभव नहीं दिख रहा है। उनका कहना है कि वैसे यह दरगाह सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की प्रॉपर्टी है, इसलिए हमने उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को भी इसकी सूचना दे दी है, और अब उनके निर्देश का भी इंतजार है। मेला कमेटी का यह भी कहना है कि अब यह प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वह यहां पर जायरीन की आमद रोके और उनको नियंत्रित करने का इंतजाम करें। इसके बाद पुलिस ने सूचना जारी कर लोगों से मेले के लिए न आने की अपील की है। हालांकि खबर ये भी है कि मेले की अनुमति न मिलने के बाद मेला कमेटी ने अनुमति के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट का रुख किया है। आगामी 14 मई को इस मामले की सुनवाई होगी। हाईकोर्ट ने मेला कमेटी और प्रशासन को तलब भी किया है और अपना-अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया है।

उधर सैय्यद सालार मसूद गाजी की दरगाह पर लगने वाले सालाना जेठ मेले की अनुमति न मिलने से मेले पर फिलहाल रोक लग गई है। इसके बाद दरगाह प्रबंध समिति ने उत्तर प्रदेश सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड से सम्पर्क कर दिशा निर्देश मांगा है। मेला प्रबंध समिति ने जिला प्रशासन को भी पत्र लिखकर आने वाले जायरीनों को नियंत्रित करने का निवेदन किया है। मेला प्रबंध समिति का कहना है कि चूंकि मेले की घोषणा बसंत पंचमी के दिन हुई मीटिंग में ही हो गया था, इसलिए जायरीन आ सकते हैं। इस बाबत मेला प्रबंध समिति अध्यक्ष वकाउल्ला का कहना है कि हमने सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को सूचना दे दी है और उसके दिशा निर्देश का इंतजार है। इसके अलावा मेला प्रबंध समिति ने मेले में आने वाले जायरीनों को रोकने और नियंत्रित करने में भी असमर्थता व्यक्त करते हुए प्रशासन से ही इसका बन्दोबस्त करने की मांग की है। इसके बाद बहराइच जिले की पुलिस ने एक अपील जारी कर लोगों से जेठ मेले में न आने को कहा है। पुलिस द्वारा जारी अपील में कहा गया है कि प्रशासनिक निर्णय के तहत इस साल दरगाह शरीफ मेला का आयोजन सुरक्षा व कानून व्यवस्था के दृष्टिगत नहीं किया जा रहा है। इसलिए आप मेला के लिए जनपद बहराइच की यात्रा न करें। और किसी भी प्रकार की असुविधा से बचते हुए प्रशासन का भी सहयोग करें। मीडिया से भी अपील की गई है कि वह इस सूचना के प्रसारण में सहयोग कर विभिन्न जनपदों से दरगाह मेला हेतु बहराइच आने वाले जन सामान्य को असुविधा से बचाने में सहयोग करें।
ज्ञात हो कि यहां पर पिछले काफी सालों से प्रतिवर्ष एक माह का जेठ मेला लगता है, जिसे गाजी मियां का उर्स भी कहा जाता है। जिसमें जियारत के लिए बड़ी संख्या में जायरीन आते हैं। परंतु संभल और मुरादाबाद में इसी सालार गाजी से जुड़े नेजा मेले पर रोक के बाद इस मेले पर भी विवाद बढ़ गया है। विभिन्न हिंदू संगठन पहले से ही इस स्थान को सूर्य कुण्ड और बालार्क ऋषि का आश्रम मानते हैं। और वे सैय्यद सालार मसूद गाजी को विदेशी आक्रांता बताते हुए मेले का विरोध पहले से ही करते आ रहे हैं। इन संगठनों का कहना है कि कालान्तर में सैय्यद सालार मसूद गाजी और स्थानीय महाराजा सुहेलदेव में भीषण युद्ध हुआ था। इस युद्ध में मसूद गाजी मारा गया था। हिंदू पक्ष का आरोप है कि उस समय के मुस्लिम शासकों ने जबरन बालार्क ऋषि के आश्रम के स्थान पर मजार और दरगाह बना दिया। इसे खाली कराया जाए। इसके अलावा सीएम योगी आदित्यनाथ भी यहां आकर कई बार मसूद गाजी को आक्रांता बता कर उसकी आलोचना करते रहे हैं। पिछले साल नवंबर में संभल की शाही जामा मस्जिद के सर्वे के समय हुए दंगों के बाद बने दबाव के बाद प्रशासन ने संभल समेत मुरादाबाद और अन्य स्थानों पर सालार गाजी मसूद के नेजा मेलों को यह कह कर अनुमति नहीं दी कि वह आक्रांता था। ऐसे में उसके मेले लगाकर उसके महिमा मंडन की अनुमति नहीं दी जा सकती। तभी से ही बहराइच में भी सालार मसूद गाजी की दरगाह पर पिछले पांच सौ सालों से लगने वाले इस मेले पर भी संकट के बादल घिर आए थे। और अंततः प्रशासन ने इसकी अनुमति नहीं दी।

मेला प्रबंध समिति के अनुसार प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी बीते 2 फरवरी को बसंत पंचमी के दिन हुई बैठक में दरगाह प्रबंध समिति ने जेठ मेला 15 मई से 15 जून तक लगाने की घोषणा की थी। पर एलआईयू रिपोर्ट के आधार पर प्रशासन ने अनुमति न दिए जाने का फैसला लिया और इसकी सूचना दरगाह प्रबंध समिति को दे दी। जिसके बाद प्रशासन के इस फैसले से मेले की तैयारी पर रोक लगा दी गई है। अब दरगाह प्रबंध समिति अध्यक्ष ने कहा है कि मेले की तैयारी नहीं की जा रही है, और दुकान, शो या गेम्स के लिए कोई रसीद नहीं काटी गई है। इसके अलावा मेला प्रबंध समिति द्वारा प्रशासन को लिखे पत्र में कहा गया है कि चूंकि मेले की तारीख पहले ही घोषित हो चुकी है, तो ऐसी दशा में मेले के समय यदि जायरीन आते हैं तो उन्हें रोकने की व्यवस्था प्रबंध समिति नहीं कर पाएगी। इसके लिए पुलिस बल की जरूरत होगी। इस पत्र में दी गई सबसे महत्वपूर्ण बात ये कही गई है कि सैय्यद सालार मसूद गाजी की दरगाह को वक्फ संस्था बताया गया है। और इसका संचालन उत्तर प्रदेश सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड द्वारा किया जाता है। मेले के सम्बन्ध में वक्फ बोर्ड से भी सम्पर्क किया गया है। इस बाबत बोर्ड के जैसे निर्देश होंगे उसकी सूचना दी जाएगी। वैसे प्रशासन के सख्त रुख को देखते हुए मेला लगने की उम्मीद न के बराबर है।

पांच सौ सालों में पहली बार नहीं लगेगा जेठ मेला : बहराइच में इस साल सैयद सालार मसूद गाजी का मेला नहीं लगेगा। प्रशासन ने कानून व्यवस्था का हवाला देकर अनुमति नहीं दी है। इस प्रकार 500 साल में यह पहला मौका होगा कि जब यह मेला नहीं लग पाएगा। प्रशासन के अनुसार पहलगाम आतंकी हमला, वक्फ कानून आदि के विरोध में प्रदर्शनों के मद्देनजर शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए यह फैसला लिया गया है। उधर वहीं हिंदू संगठन पहले से ही इस मेले के विरोध में थे, वे मसूद गाजी को विदेशी आक्रांता मानते हैं। जानकारों के अनुसार मेले में करीब 15 लाख हिंदू और मुस्लिम श्रद्धालुओं के आने की संभावना थी। कमेटी ने मेले के आयोजन को लेकर प्रशासन से अनुमति मांगी थी। लेकिन लोकल इंटेलिजेंस यूनिट (एलआईयू) ने 12 पन्नों की रिपोर्ट कमिश्नर शशि भूषण लाल सुशील और मुंहडीआईजी अमित पाठक को भेजी थी। इसके बाद बहराइच की सिटी मजिस्ट्रेट शालिनी प्रभाकर ने मेले की अनुमति देने से इंकार कर दिया। उन्होंने बताया कि डीएम के आदेश पर मेले की अनुमति नहीं दी गई है, और यह निर्णय शांति व्यवस्था बनाए के लिए लिया गया है।

मेले की मंजूरी के लिए हाईकोर्ट में पीआईएल : बहराइच ज़िले में स्थित दरगाह हज़रत सैयद सालार मसूद गाजी, जिसे गाजी मियां की दरगाह के नाम से भी जाना जाता है, में हर साल आयोजित होने वाला विश्व प्रसिद्ध जेठ मेला की इजाजत के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है। इसमें मांग की गई है कि मेले की इजाजत दी जाए ताकि इस मेले से आर्थिक रूप से जुड़े लोगों को नुकसान से बचाया जा सके। पीआईएल के अनुसार यह मेला पिछले 800 वर्षों से हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक रहा है। इस मेले में देश-विदेश से लाखों हिंदू-मुस्लिम शामिल होते हैं और ज़ियारत करने और चादर चढ़ाने के लिए आते हैं। यह मेला न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मज़बूती प्रदान करता है। तर्क दिया गया है कि जिसमें हज़ारों दुकानदारों और छोटे व्यवसायियों की आजीविका जुड़ी होती है। इस वर्ष, जिला प्रशासन द्वारा कानून व्यवस्था और अन्य कारणों का हवाला देते हुए प्रस्तावित जेठ मेले की मंजूरी नहीं दी गई है। इस निर्णय से लाखों श्रद्धालुओं की भावनाएं आहत हुई हैं। और इसके अलावा इस निर्णय से स्थानीय व्यापारियों को आर्थिक नुकसान की आशंका है।

गाजी मेले पर सरकार 14 को रखे पक्ष-हाईकोर्ट : बहराइच में सैयद सालार मसूद गाजी की दरगाह पर सालाना लगने वाले जेठ मेला (उर्स) पर प्रतिबंध के मामले में हाई कोर्ट ने यूपी सरकार से पक्ष रखने के साथ दरगाह शरीफ से भी स्वामित्व के कागज दिखाने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई 14 मई को होगी। यह आदेश जस्टिस राजन राय व जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने दरगाह प्रबंधन की ओर से दाखिल याचिका पर पारित किया। याची की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता लालता प्रसाद मिश्रा का तर्क था कि ये दरगाह 1375 एडी में फिरोजशाह तुगलक ने सैयद सालार मसूद गाजी की याद में बनवाई थी। यहां पर लंबे समय से हर साल जेठ के महीने में एक माह का उर्स चलता है, जिसमें देश विदेश से लोग आते हैं। इस बार उर्स 15 मई से शुरू होना है किंतु प्रशासन ने अनुमति देने से इन्कार कर दिया है। याची का तर्क था कि प्रशासन को उर्स रोकने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि एक अप्रैल, 1987 को जारी एक शासनादेश के तहत प्रशासन को ही उक्त उर्स की व्यवस्था करने को कहा गया है।

याचिका का विरोध करते हुए कहा गया है कि उर्स करीब पांच किमी के दायरे में लगता है। जिलाधिकारी ने जो आदेश दिया है वह एलआइयू व अन्य महकमों की रिपोर्ट के आधार पर दिया है। कहा गया है कि दरगाह के भीतर उर्स लगने पर कोई रोक नहीं है। इस पर याची की ओर से कहा गया कि दरगाह के आस पास का डेढ़ वर्ग किमी का क्षेत्र दरगाह का है। इस पर कोर्ट ने उनसे दरगाह के नाम पर दर्ज जमीन के कागजात मांग लिया। याची ने उसे पेश करने के लिए समय मांगा गया। कोर्ट ने समय प्रदान करते हुए अगली सुनवाई 14 मई को तय कर दी।

नादानी का शिकार हो गयी 500 साल पुरानी परंपरा : इतिहास गवाह है कि कमजोर से कमजोर व्यक्ति भी जब जुल्म की इंतेहा हो जाती है तो विरोध कर ही देता है। ठीक उसी प्रकार 1978 के दंगों में हिंदुओं को प्रताड़ित कर, उसकी हत्याएं कर संभल के कुछ कट्टर वादी सोच के मुसलमानों को लगा कि अब उन्हें रोकने वाला कोई नहीं है। और फिर उन्होंने वहां से हिंदुओं को और उनकी पहचान को लगातार मिटाने का काम शुरू कर दिया था। और वे लगभग अपने अभियान में सफल भी होते दिखाई दे रहे थे। वह तो न जाने कहां से संभल की शाही जामा मस्जिद का विवाद सामने आ गया और फिर पूरा नैरेटिव बदल गया। कोर्ट के आदेश पर संभल की शाही जामा मस्जिद के सर्वे के लिए गई लीगल टीम के सामने न तो मुस्लिमों ने उत्पात किया होता और न ही मामला बढ़ता। उसके बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इशारे पर संभल के प्रशासन को खुली छूट मिल गई और उसने दबाव बना लिया।उसके बाद धीरे-धीरे संभल की हिंदुत्व वाली पहचान निकल कर बाहर आने लगी, वहां के सारे तीर्थ और मंदिर मिलने लगे और अन्य ऐतिहासिक स्थल मिलने लगे। उसके बाद बारी आई सैयद सालार मसूद गाजी की याद में लगने वाले नेजा मेले की। तब तक प्रशासन अपनी जड़ें जमा चुका था और फिर उसने नेजा में लेकर अनुमति नहीं दी और यह कह दिया के सैयद सालार मसूद गाजी आक्रांता था इसलिए उसके महिमा मंडन की इजाजत नहीं दी जा सकती। और अंततः वहां मेला नहीं लगा। यही हाल मुरादाबाद और अन्य जगहों का भी रहा। ऐसे में संभल में बना दबाव बहराइच में भी काम आ गया और गांजी मियां की याद में लगने वाला जेठ मेला भी अंततः इस बार नहीं लगा। इस प्रकार मुसलमानों की कट्टर सोच का शिकार होकर गाजी मियां का मेला अपनी 500 साल पुरानी परंपरा के हाथ धो बैठा। अब प्रशासन चाहे जो भी कहें पर सच यही है कि इसके पीछे एक कट्टर सोच को मात देने वाला नैरेटिव ही काम कर रहा था।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक