समय का महत्व समझें

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जीवन में हर पल-हर क्षण आनन्द की अनुभूति करनी चाहिए। जी हां, जीवन में आनन्द की अनुभूति सफलता भी देेती है तो वहीं स्वास्थ्य संवर्धन भी प्रदान करती है। स्वास्थ्य संवर्धन जीवन को एक शानदार एवं अद्भुत प्राणवायु भी देता है। लिहाजा व्यक्ति कामयाबी-सफलता की सीढ़ियां चढ़ता चला जाता है। इतना ही नहीं, जीवन में हर पल आनन्द की अनुभूति करने वाले व्यक्ति के व्यक्तित्व में अद्भुत एवं विलक्षण निखार देखने को मिलता है।

लिहाजा ऐसे व्यक्तित्व का मुख सदैव एक विशेष तेज से चमकता रहता है। ऐसे व्यक्ति का व्यक्तित्व एवं कृतित्व सदैव रचनात्मक रहता है। सामान्यत: किसी भी व्यक्ति में रचनात्मक एवं नकारात्मक तत्व विद्यमान होते हैं लेकिन व्यक्ति किस तत्व से सर्वाधिक प्रभावित होता है, यह उसकी कार्य संस्कृति एवं वैचारिक संस्कृति से परिलक्षित होता है। नकारात्मकता व्यक्ति का विकास बाधित करती है जबकि रचनात्मकता या सकारात्मकता व्यक्ति के विकास का मार्ग प्रशस्त करती है।

रचनात्मकता व्यक्ति को सदैव अच्छे कार्य के लिए प्रेरित करती है। चाहे व्यक्ति अमीर हो या गरीब हो… किसी भी व्यक्ति के लिए रात एवं दिन में सिर्फ चौबीस (24) घंटे होते हैं। किसी भी व्यक्ति के लिए न पच्चीस (25) घंटे हो सकते हैं आैर न किसी के लिए तेइस (23) घंटे हो सकते है। साफ जाहिर है कि किसी व्यक्ति केे लिए दिन एवं रात में उसे सिर्फ चौबीस घंटे ही हासिल होते हैं। इसमें कहीं किसी के साथ कोई भेदभाव की गुंजाइश नहीं होती। अब इन चौबीस घंटों का व्यक्ति कैसे उपयोग करता है, यह उपयोग करने वाले व्यक्ति पर निर्भर करता है। अब यदि कोई व्यक्ति इन चौबीस घंटों में दो घंटा के समय का उपयोग किसी को क्षति पहंुचाने  के लिए करता है तो यह उसका व्यक्तिगत नुकसान होता है। दो घंटा के इस समय की यह व्यक्तिगत क्षति होती है।

नकारात्मकता व्यक्ति को कोई रचनात्मक कार्य नहीं करने देती। राघव आैर माधव दो अभिन्न मित्र थे। दोस्ती भी एक दूसरे पर जान छिड़कने वाली थी। आशय यह कि राघव आैर माधव दोस्ती की मिसाल थे। अचानक किसी मामूली सी बात पर उनकी दोस्ती में दरार आ गयी। दोस्ती में बिखराव हो गया। अब राघव आैर माधव दोनो एक दूसरे को पंसद न करते। राघव आैर माधव हमेशा एक दूसरे को नीचा दिखाने व एक दूसरे के लिए षणयंत्र रचने में समय गंवाने लगे। हालात ने करवट ली आैर राघव ने समझदारी से काम लेना शुरू किया जबकि माधव के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया। लिहाजा राघव आैर माधव की दिन चर्या में बदलाव आ गया। राघव का अधिकतर समय अपने काम धंधे में व्यतीत होता तो वहीं माधव का समय राघव को क्षति पहंुचाने की कोशिशों में व्यतीत होता।

लिहाजा माधव अपने मित्र राघव को क्षति पहुंचाने में कामयाब तो हो जाता लेकिन उसका विकास बाधित हो गया क्योंकि राघव कोे क्षति पहंुचाने से माधव को कोई लाभ नहीं होता था। वहीं, राघव अपना पूरा समय अपने काम धंधे रोजी-रोजगार को विकसित करने के लिए देता था। लिहाजा राघव का व्यक्तित्व एवंं कृतित्व नित नये आयाम गढ़ने लगा। कारण, राघव के व्यक्तित्व में रचनात्मकता ने अपना स्थान बनाया था जबकि माधव ने अपनी सोच विचार-चिंतन एवं कार्य व्यवहार में नकारात्मकता को महत्व दिया।

अब देखें तो राघव आैर माधव दोनों के ही पास दिन एवं रात में सिर्फ चौबीस घंटेे थे। राघव एवं माधव ने इन चौबीस घंटों का अपने-अपने हिसाब से उपयोग किया। परिणाम सामने थे कि रचनात्मकता से राघव नेे व्यक्तित्व विकास किया तो वहीं माधव ने नकारात्मकता में अपना समय बर्बाद किया। जिससे उसे कुछ हासिल न हो सका। आशय यह कि नकारात्मकता से किसी को क्षति तो पहंुचा सकते हैं लेकिन उसके बदले में आपका व्यक्तित्व एवं कृतित्व कुछ भी हासिल न कर सकेगा। स्पष्ट है कि जीवन में आनन्द की अनुभूति करनी है तो कार्य व्यवहार एवं कार्य संस्कृति में रचनात्मकता को अपनाएं। यह रचनात्मकता निश्चय ही जीवन बदल देगी।