मीना कुमारी के पिता उन्हें यतीमखाने की सीढ़ियों पर छोड़कर चले गये

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किस्से फिल्मी दुनिया के…

टुकड़े टुकड़े दिन बीता, धज्जी धज्जी रात मिली,
जिसका जितना आंचल था, उतनी ही सौगात मिली।

यह फलसफा दिग्गज अभिनेत्री मीना कुमारी की उन्हीं की जुबानी है। सिनेमा जगत में ट्रेजडी क्वीन के नाम से मशहूर मीना जिन्दगी भर सच्चे प्यार के लिए तरसती रहीं। 1 अगस्त 1932 को दादर बम्बई में जन्मीं महजबीं बानो बख्श उर्फ मीना कुमारी के पिता अली बख्श जो पारसी थियेटर के आर्टिस्ट थे, घर में एक बेटा चाहते थे। मां इकबाल बेगम भी आर्टिस्ट व बेहतरीन नृत्यांगना थीं। उनका ताल्लुक गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर के खानदान से था। दरअसल टैगोर जी के छोटे भाई की शादी सुन्दरी देवी से हुई थी। छोटे भाई की मृत्यु के बाद विधवा सुन्दरी देवी पर लगी पाबंदियों ने उन्हें घर छोड़ने पर मजबूर कर दिया। वे लखनऊ चली आयीं।

उन्होंने ट्रेनिंग लेकर नर्स का काम करना शुरू किया। एक बार उर्दू के पत्रकार प्यारे लाल शाकिर बीमार पड़े आैर सुन्दरी देवी ने सेवा वे जल्दी ठीक हो गये। इस दौरान दोनों में प्यार हो गया। दोनों ने शादी कर ली। उनकी एक संतान प्रभावती देवी थीं। जो आर्टिस्ट थीं। वह पैसा व नाम कमाने बम्बई आ गयीं। उनकी मुलाकात पारसी थियेटर में हारमोनियम बजाने वाले अली बख्श से हुई। दोनों साथ साथ काम करते थे सो दोनों करीब आ गये। उन्होंने शादी कर ली। अब उनका नया नाम इकबाल बेगम हो गया था। इन्हीं की तीसरी पुत्री थीं महजबीं यानी मीना कुमारी।

गरीबी का यह आलम था कि उनके पास सरकारी अस्पताल के बिल चुकाने के भी पैसे नहीं थे। पहले से दो बेटियां मधु व शमा के बाद तीसरी आैलाद वो भी लड़की.. उनके पिता को यह बात बिल्कुल भी रास नहीं आई। दिल कड़ा करके अली बख्श उन्हें यतीमखाने की सीढ़ियों पर छोड़ आए। औलाद से बिछड़ने के गम ने उन्हें बेचैन कर दिया। वे उल्टे पांव वापस लौटे। उन्होंने देखा कि मीना वैसे ही सीढ़ियों पर पड़ी हैं आैर शरीर पर ढेरों चीटियां चढ़ी हुई हैं। वे मीना को वापस ले आए।

पैसे की कमी के चलते उन्हें स्कूल में भी भर्ती नहीं करा सके। मीना कुमारी के परिवार की माली हालत से बखूबी वाकिफ थीं। घर की सहायता करने के लिए मीना ने बचपन से ही काम करना शुरू कर दिया था। सात साल की उम्र से ही उन्होंने 1939 में फिल्म ‘फरजद-ए-हिन्द” में पहली बार बाल कलाकार के रूप में बेबी मीना के नाम से काम किया। इस फिल्म में उन्होंने महजबीं का किरदार निभाया। यह मीना कुमारी का असल नाम भी था। इसके अलावा उन्होंने ‘हवेली”, ‘सनम”, ‘अन्नपूर्णा” व ‘तमाशा” जैसी बीस से ज्यादा फिल्मों में बतौर बाल कलाकार व साइड हिरोइन के रूप में काम किया जिनमें धार्मिक फिल्में भी शुमार थीं। इन फिल्मों में उन्होंने देवी के किरदार ज्यादा निभाए।

1951 में फिल्म ‘तमाशा” के सेट पर मीना कुमारी की मुलाकात उस जमाने के जाने-माने फिल्म निर्देशक कमाल अमरोही से हुई जो फिल्म ‘महल” की सफलता के बाद निर्माता के तौर पर अपनी अगली फिल्म ‘अनारकली” के लिए नायिका की तलाश कर रहे थे। मीना का अभिनय देख वे उन्हें मुख्य नायिका के किरदार में लेने के उनके पिताजी से मिले। मीना को जब पता चला तो उन्होंने इंकार कर दिया। कारण यह था कि एक “तमाशा” के सेट पर उन्होंने कमाल साहब को सलाम किया लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया। यह बात उन्हें अंदर तक खल गयी। जब यह बात कमाल अमरोही तक पहुंची तो वे फूलों का गुलदस्ता लेकर उन्हें मनाने पहुंचे। अब नाराजगी का कोई कारण नहीं बचा था।

उन्होंने यह आफर स्वीकार कर लिया। दुर्भाग्यवश 21 मई 1951 को मीना कुमारी महाबलेश्वर के पास एक सड़क दुर्घटना का शिकार हो गईं जिससे उनके बायें हाथ की छोटी उंगली सदा के लिए मुड़ गई। मीना अगले दो माह तक बम्बई के ससून अस्पताल में भर्ती रहीं और दुर्घटना के दूसरे ही दिन कमाल अमरोही उनका हालचाल पूछने पहुँचे। मीना इस दुर्घटना से बेहद दुखी थीं क्योंकि अब वो फिल्म ‘अनारकली” में काम नहीं कर सकती थीं। मीना के पूछने पर कमाल ने उनके हाथ पर ‘मेरी अनारकली” लिख डाला। इस तरह कमाल मीना से मिलते रहे और दोनों में प्रेम के अंकुर गहराई तक जड़े जमा चुके थे। मीना कुमारी की फिल्मों में ध्यान से देखा जाए ते यह मालूम पड़ता है कि वह अक्सर अपना बायां हाथ छिपाया करती थीं। मीना कुमारी शूट के दौरान वह उंगली छुपा लिया करती थीं। मीना कुमारी इतनी सफाई से यह काम करती थीं कि लोग पकड़ ही नहीं पाते थे।

1952 में विजय भट्ट मधुबाला कोे लेकर फिल्म ‘बैजू बावरा” बना रहे थे। किन्हीं कारणों से मधुबाला ने इस फिल्म से दूरी बना ली। फिर उन्होंने मीना कुमारी को एप्रोच किया। वे तब तक स्टार नहीं बनी थीं। नौशाद के संगीत से सजी ‘बैजू बावरा” रिलीज हुई तो यह फिल्म लोगों को इतनी पंसद आई कि 100 हफ्तों तक थियेटर में लगी रही। मीना कुमारी को असल शोहरत अब मिली। वे सुपर स्टार बन गयीं।

कमाल अमरोही आैर मीना कुमारी धीरे धीरे दोनों एक दूसरे के करीब आते गए। कमाल के मैनेजर बाकर अली ने कमाल से पूछा कि आप मीना जी से प्यार करते हैं आैर उनसे शादी करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि यह सच है लेकिन मीना निकाह करेंगी या नहीं यह मैं नहीं जानता। फिर बाकर ने मीना कुमारी से पूछा कि वे कमाल से प्यार करती हैं? उन्होंने हां कहा लेकिन निकाह के लिए तैयार नहीं हुईं । फिर बाकर ने कहा कि आप निकाह कर लें हम इसका एलान सही वक्त आने पर करेंगे। उनकी सहमति मिलते ही गुपचुप निकाह की प्लानिंग की गयी।

सब जानते थे कि मीना के पिता जी इस पर कभी सहमत नहीं होंगे। फिर 14 फरवरी 1952 को हमेशा की तरह मीना कुमारी के पिता अली बख्श उन्हें व उनकी छोटी बहन मधु को रात्रि 8 बजे पास के एक फिजियोथेरेपी क्लीनिक छोड़ गए। मीना अपने हाथ की चोट के कारण फीजियोथेरेपिस्ट के पास आती थीं। पिताजी रात्रि 10 बजे दोनों बहनों को वापस लेने आया करते थे। उस दिन उनके जाते ही कमाल अमरोही अपने मित्र बाकर अली, काजी और उसके दो बेटों के साथ चिकित्सालय में दाखिल हुए और 19 वर्षीय मीना कुमारी ने पहले से दो बार शादीशुदा 34 वर्षीय कमाल अमरोही से अपनी बहन मधु, बाकर अली, काजी और गवाह के तौर पर उसके दो बेटों की उपस्थिति में निकाह कर लिया। पहले शिया रीति से बाद में सुन्नी रीति से निकाह पढ़ा गया। रात के नौ बजकर पैंतालीस मिनट हो गये थे। मीना ने काजी से जल्दी करने को कहा। आखिर सब कुछ समय से निपट गया। कमाल के जाने के बाद इस निकाह से अपरिचित पिताजी मीना को घर ले आए।

इसके बाद दोनों पति-पत्नी रात-रात भर फोन से बातें करने लगे जिसे एक दिन एक नौकर ने सुन लिया। बस फिर क्या था, मीना कुमारी पर पिता ने कमाल से तलाक लेने का दबाव डालना शुरू कर दिया। पिता अली बख्श ने फिल्मकार महबूब खान को उनकी फिल्म ‘अमर” के लिए मीना की डेट्स दे दीं परंतु मीना ‘अमर” की जगह पति कमाल अमरोही की फिल्म ‘डेरा” में काम करना चाहती थीं। इस पर पिता ने उन्हें चेतावनी देते हुए कहा कि यदि वे कमाल की फिल्म में काम करने जाएँगी तो उनके घर के दरवाजे मीना के वास्ते सदा के लिए बंद हो जाएँगे। 5 दिन फिल्म ‘अमर” की शूटिंग के दौरान मीना की महबूब से किसी बात को लेकर अनबन हो गयी आैर उन्होंने फिल्म छोड़ दी। वे ‘डेरा” की शूटिंग करने चलीं गईं। उस रात पिता ने मीना को घर में नहीं आने दिया और मजबूरी में मीना कुमारी पति के घर चली गईं। अगले दिन के अखबारों में इस डेढ़ वर्ष से छुपी शादी की खबर ने खूब सुर्खियां बटोरीं।
(विभिन्न स्त्रोतों से साभार)

प्रेमेन्द्र श्रीवास्तव