कानपुर की कपड़ा मिलें तो सूख गईं पर लहलहा रहा कपड़ा बाजार

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कानपुर की कपड़ा मिलें तो सूख गईं पर लहलहा रहा कपड़ा बाजार/व्यापार….. क्या ऐसा होते कभी देखा या सुना कि जड़ सूखकर निर्जीव हो गई और उससे जन्मी पौध लहलहाता विशालकाय वृक्ष बनकर हजारों परिवारों का पालनहार बना हो, यह किसी अजूबे से कम नहीं है। आज तथ्यों पर आधारित ऐसे ही अजूबे से आपको रूबरू करा रहे हैं। इसके खातिर उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध और बीसवीं सदी के प्रारंभिक दौर में ले चलते हैं।

ब्रिटिश फौज़–पुलिस की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए अंग्रेजों ने कानपुर में 1860-62 में पहली कपड़ा मिल एल्गिन शुरू की। इसके बाद तो कानपुर कपड़ा मिलों का गढ़ बन गया। कपड़े की स्थानीय उपलब्धता से शनै: शनै: इसकी दुकानें भी खुलने लगीं। 1914 में प्रथम विश्वयुद्ध के छटने के बाद शांति होने पर नौघड़ा, काहूकोठी और जनरल गंज क्षेत्र में कपड़ा व्यापार का विस्तार होने लगा। वह दौर ही कुछ और था, वे लोग भी दूजे किस्म के थे, दूरगामी सोच से ओत-प्रोत कपड़ा व्यापारियों ने मिल-बैठकर बाजार के हित-विकास के उद्देश्य से संगठन बनाने का मन बनाया।

अंतत : बत्तीस कपड़ा व्यापारियों ने वर्ष 1923 में ‘कानपुर कपड़ा कमेटी’ की स्थापना की और रामकुमार नेवटिया को प्रथम अध्यक्ष और रघुनंदन लाल को प्रधान सचिव बनाया गया। कमेटी में अनुशासन समिति के साथ -साथ व्यापार विवादों के निपटान के लिए आर्बीट्रेशन समिति का गठन किया गया जिसे अदालत के समान ही निर्णय यानी एवार्ड देने और उसे लागू करने की वैधानिक मान्यता प्राप्त थी। कमेटी के अस्तित्व में आने से व्यापार सुगम हुआ और सरकारी महकमों से संबंधित समस्याओं का निराकरण आसानी से होने लगा।यह ज़िक्र करना अनुचित नहीं होगा कि मुंबई, अहमदाबाद, सूरत और दिल्ली सहित कई कपड़ा बाजारों में संगठन बने हैं लेकिन कानपुर कपड़ा कमेटी के कद के सामने सभी बौने हैं।

द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ जाने पर फौज में कपड़ा की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के खातिर ब्रिटिश सरकार ने वर्ष 1943 , 7 जून को ‘काॅटन क्लाॅथ ऐंड यार्न कंट्रोल ऑर्डर लागू कर दिया। देश आज़ाद होने के बाद भी उत्तर प्रदेश में कपड़े पर ऊंची शुल्क दरों पर यह लाइसेंसिंग प्रणाली लागू रखी गई जिससे व्यापार को बाधित होता देख कपड़ा कमेटी ने अथक प्रयास करके वर्ष 1956, सितंबर में लाइसेंस शुल्क दर नब्बे प्रतिशत कम कराई।

कानपुर कपड़ा कमेटी के बल पर कपड़ा बाजार के गौरवशाली अतीत का सहज अंदाजा इसी से लगा लीजिए कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू मुख्य अतिथि और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रभान गुप्त विशिष्ट अतिथि के रूप में 1961 में कपड़ा कमेटी के रजत जयंती समारोह में शामिल होकर मनोबल बढ़ाया था। वर्ष 1975, 3 सितंबर को कमेटी के स्वर्ण जयंती समारोह में प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा ने मुख्य अतिथि के रूप में सम्मिलित होकर समूचे कपड़ा बाजार को गौरवान्वित किया था। इसी क्रम में कमेटी के वर्तमान अध्यक्ष विश्वनाथ गुप्ता ‘विस्सू बाबू’ ने बताया कि बाजार से मिले भरपूर सहयोग से कमेटी अपने कार्यकाल की वैभवशाली शत-यात्रा का समारोह पूर्व राष्ट्रपति माननीय रामनाथ कोविंद के मुख्य आतिथ्य में 25 जून को कानपुर के लाजपत भवन में हर्षोल्लास पूर्वक आयोजित करेगी।

कमेटी के प्रधान सचिव दीपक कुमार गुप्ता के अनुसार प्रदेश के उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक विशिष्ट अतिथि के रूप में पधारने की अनुमति प्रदान कर चुके हैं। आगे बढ़ते हैं १९७०-७१ से ८० की अवधि यहां की कपड़ा मिलों का स्वर्णकाल कहा जा सकता है और तब बाजार में लगभग सात सौ कपड़ा दुकानदार थे जबकि वर्तमान में ढाई-तीन हजार हैं। इनमें पांच- दस करोड़ से लेकर पचास करोड़ रुपए का साल़ाना कारोबार करने वाले व्यापारियों की काफी संख्या है। पचास से सौ-डेढ़ सौ करोड़ वाले इसी बाजार में मौजूद हैं। लेकिन उंगलियों पर गिने जा सकने वाले ऐसे चुनिंदा व्यापारी भी हैं जो दो सौ से तीन सौ करोड़ का टर्नओवर हासिल करते हैं। इस आधार पर संवाददाता का अनुमान है कि कपड़ा बाजार का सालाना एक्सपोज़र तीस-पैंतीस हजार करोड़ रुपए के इर्द-गिर्द तो होगा ही।

जाहिर है बाजार में होने वाली बिक्री से सरकार को सालाना दो हजार करोड़ रुपए का जीएसटी राजस्व मिलता होगा। कपड़ा पर सिर्फ पांच प्रतिशत है। एक हजार रुपए से अधिक बिक्री मूल्य वाले रेडीमेड सलवार सूट, लहंगे, बेडशीट, और कम्बलों पर जीएसटी की दर बारह प्रतिशत लागू है। पिछले पांच दशकों से कपड़ा बाजार के अभिन्न अंग हो चुके सत्य नारायण सिंहानिया बताते हैं कि यहां के व्यापारियों ने भरपूर मेहनत से व्यापार को समृद्ध किया है। बदले समय के अनुसार रिटेलिंग के तौर-तरीके अपनाए हैं, शहर की सीमाओं को लांघकर कपड़ा व्यापार का विस्तार करने में उन्हें सफलता भी मिली है। श्री सिंहानिया कमेटी के दोबार अध्यक्ष और वर्तमान के अलावा कई बार चुनाव अधिकारी भी रहे हैं। कमेटी के पूर्व अध्यक्ष और चुनाव अधिकारी करुणेश मिश्रा का कहना है कि सौभाग्य से पिछले सौ- सवा सालों में दुकानों की संख्या बहुत बढ़ी, जबकि स्पेस नहीं। स्थान के अभाव की समस्या गंभीर होती जा रही है पर समाधान नहीं ढूंढ़ पा रहे हैं।

प्रणतेश बाजपेयी