इरडा असहाय, बीमा में अरबों रु की धोखाधड़ी

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भारतीय बीमा नियामकीय और विकास प्राधिकरण (आईआरडी) देश में होने वाले बीमा फ्राॅड को रोक पाने में असहाय है। दो दशकों से सक्रिय इरडा के रहते अभी तक हर साल होने वाली कई हजार करोड़ रु की बीमा धोखाधड़ी से निपटने की कोई प्रणाली विकसित नहीं की गई।

सामान्य से लेकर आटो, स्वाथ्य और जीवन बीमा समेत कोई भी क्षेत्र बीमा क्षेत्र धोखाधड़ी से अछूता नहीं है। बीमा क्षेत्र में होने वाले कुल दावों‌ में से 10-15 फीसद के भुगतान की निकासी धोखाधड़ी के जरिए होती है।

इरडा के आंकड़ों के अनुसार सिर्फ सामान्य बीमा और स्वास्थ्य बीमा कंपनियों ने 2010-20 में 40 हजार 25 करोड़ रु के दावों का निपटान किया, जबकि 45 हजार 783 करोड़ रु के नए दावे कंपनियों में दाखिल किए गए। सामान्य बीमा और स्वास्थ्य बीमा क्षेत्र में कुल 32 कंपनियां लगी हुई हैं।

डेलाॅयट ने अपनी एक रिपोर्ट में भारत के स्वा‌स्थ बीमा के पंद्रह फीसदी दावों को फ्राॅड बताया। देश में जीवन बीमा क्षेत्र में 2018-19 में 3 लाख 29 हजार 678 करोड़ रु और 2019-20 में 3 लाख 50 हजार 677 करोड़ रु के दावों का भुगतान किया गया। सिर्फ 2019-20 में ही सामान्य बीमा, स्वास्थ्य बीमा और जीवन बीमा के कुल निपटाए गए दावों की समग्र भुगतान राशि 3 लाख 90 हजार करोड़ से अधिक होती है।

कुछ समय पहले फिक्की ने ‌’फ्राॅड माॅनिटरिंग विभाग’ स्थापित करने का सुझाव दिया था जो रद्दी की टोकरी में चला गया। वर्ष 2018 में अमेरिका के एक उपक्रम ने बीमा धोखाधड़ी को चेक करने वाले साफ्टवेयर के लिए भारत की विश्व विख्यात कंपनी विप्रो से सेवाएं ली थीं। कनाडा हो या यूके या अमेरिका, इनके सहित तमाम देशों ने बीमा धोखाधड़ी रोकथाम की सुदृढ़ व्यवस्था कर रखी है और हमारे देश में बीमा अधिनियम में ‘बीमा धोखाधड़ी’ को परिभाषित तक नहीं किया गया है।

इरडा के मुखिया को इस शब्द की परिभाषा बताने के लिए ‘इंटरनेशनल एसोसिएशन आॅफ इंश्योरेंस सुपरवाइज़र्स’ द्वारा दी गई परिभाषा को उद्धृत करना पड़ा, इसी से सबकुछ समझा जा सकता है। धोखाधड़ी के रास्ते ‌सालाना होने वाले नुक़सान के विश्वसनीय अथवा अधिकृत आंकड़े उपलब्ध कराने का कोई भरोसेमंद माध्यम अभी तक नहीं विकसित किया जा सका।

बीमा पॉलिसी धारकों की हित-रक्षा के उद्देश्य से इरडा की स्थापना की गई थी, अपने दो दशकों से अधिक हो चुके कार्यकाल में इरडा ने इस दिशा में काफी काम किया भी है। बीमा मानव को सुरक्षा कवच मुहैया कराने के लक्ष्य से भले ही शुरू किया गया था पर समय के अंतराल में अन्य व्यवसायों की ही‌ तरह बीमा शुद्ध रूप से बड़ी पूंजी का धंधा होकर रह गया है।

इरडा समय-समय पर बीमा कंपनियों ‌के बीमा उपभोक्ता-प्रतिकूल कार्यकलापों को रोकने के लिए प्रावधान बनाता रहता है और लागू भी करता रहता है। कई बार तो भारी भरकम जुर्माना लगा कर बीमा कंपनियों को दंडित भी करता है, बीते दिन देश के सबसे बड़े भारतीय स्टेट बैंक प्रमोटेड एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड पर जुर्माना ठोका है। इस बीमा कंपनी पर इरडा ‌पहले भी करोड़ -करोड़ रु जुर्माना लगा कर दंड दे चुका है।

वैसे 2019-20 के दौरान जिन 9 बीमा कंपनियों पर कुल मिलाकर 17.29 करोड़ रु जुर्माना ठोका गया। उनमें एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस भी शामिल है। लेकिन धोखाधड़ी की रोकथाम के नाम पर जागरूकता विज्ञापन और सेमिनार अथवा हाई प्रोफाइल कार्यक्रमों में पाॅलिसी धारकों को नसीहत देने तक ही जिम्मेदारी सीमित रहती है इरडा की।

इरडा और स्विट्ज़रलैंड स्थित इंटरनेशनल एसोसिएशन आॅफ इंश्योरेंस सुपरवाइज़र्स (आईएआईएस) के बीच सहयोग समझौते भी हैं और इरडा इस संस्था के महत्व को मान्यता भी देता रहा है।आईएआईएस के माध्यम से विकसित देशों में बीमा के नियमों और कार्य प्रणाली से अपने कर्मियों को अवगत कराने का बंदोबस्त भी करता है। फिर धोखाधड़ी पर उदासीनता क्यों ?

बीमा उद्योग में सक्रिय सूत्रों का तो यह तक कहना है धोखाधड़ी ऐसे ही नहीं होती आ रही है इसका सुव्यवस्थित रैकेट चलता है। और यह देखने में भी आया है कि कई -कई बार धोखाधड़ी में पाॅलिसी धारक, एजेंसी और स्वयं बीमा कंपनी के अधिकारियों की मिलीभगत रहती है। कई मामलों में चिकित्सकों और पुलिस की भूमिका भूमिका रहती है। इस संवाददाता की जानकारी में एक नहीं कई ऐसे मामले हुए हैं। जिनमें त्रिकोणीय सांठगांठ के तहत बड़े दावों का भुगतान कराकर रकम की बंदरबांट कर ली गई।

जानबूझकर शोरूम, फैक्ट्री मोटर वाहन में आग लगवा देना, घटना कुछ हुई और बताया कुछ गया, विभागीय अधिकारियों से फ़र्जी रिपोर्ट बनवाकर दावा का भुगतान ले लिया जाता है, इस कारगुजारी में सभी मलाई काटते हैं चपत लगती है सिर्फ बीमा कंपनी को, बीमा कंपनियों के पास धन तो पाॅलिसी धारक का ही होता है। इस धन की रक्षा धोखड़ियों से करने ‌की जिम्मेदारी से ‌इरडा अपना पल्ला कतई नहीं झाड़ सकता।

कुछ समय पहले हुई एक फोरेंसिक रिसर्च के अनुसार भारत में बीमा धोखाधड़ी से बीमा उद्योग को सालाना 15 हजार करोड़ रुपए की चपत लगती है। इस हिसाब से मोटे तौर पर पिछले दस वर्षों में उद्योग को लगी 1.5 लाख करोड़ रुपए की चपत की रकम धोखड़ियों के पास चली गई और जिस पर टैक्स भरने की ज़हमत भी नहीं।

यहां पर ज़िक्र करना जरूरी है कि बीमा धोखाधड़ी रोकने के लिए यूके में 2006 से’ इंश्योरेंस फ़्राॅड ब्यूरो’ सक्रिय है। कनाडा में बीमा अपराध निरोध ब्यूरो है। अमेरिका में बीमा राज्य के अधिकार क्षेत्र में है, हर राज्य में बीमा धोखाधड़ी रोकथाम के लिए या तो ब्यूरो हैं, यूनिट हैं या अथाॅरिटी जिम्मेदारी निभाती हैं। मसलन न्यूयॉर्क में इंश्योरेन्स फ्राॅड ब्यूरो है, मेरीलैंड में इंश्योरेंस एडमिनिस्ट्रेशन में फ्राॅड डिवीज़न है, आहिओ में डिपार्टमेंट ऑफ ‌इंश्योरेंस फ्राॅड यूनिट, पेंसिल्वेनिया में इंश्योरेंस फ्राॅड प्रिवेंशन अथाॅरिटी और मिसीसिपी के एटाॅर्नी जनरल कार्यालय में इंश्योरेंस फ्राॅड यूनिट काम करती है।

प्रणतेश नारायण बाजपेयी