कोरोना वैक्सीन और उससे जुड़ी भ्रांतियां

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भारत जैसा देश आज भी विकासशील देश की श्रेणी में इसीलिए खड़ा है क्योंकि यहां पर वैज्ञानिक प्रगति तो बहुत ज्यादा हो गई है लेकिन लोगों के मनोविज्ञान में अभी उस स्तर का परिवर्तन नहीं आया है जिस स्तर का परिवर्तन हमें यूरोपीय और अमेरिकन देशों में देखने को मिलती है।

यही कारण है कि भारत के लोग बहुत कुछ अफ्रीका के देशों के लोगों के समकक्ष खड़े हो जाते हैं, जहां पर अंधविश्वास, अफवाह, भ्रांतियों के आधार पर किसी भी विचार, किसी भी वस्तु और किसी भी व्यक्ति को स्वीकार करने में ज्यादा प्रचलन दिखाई देता है। यह भी एक हास्यास्पद बात है कि जहां पर सकारात्मक बातों, तथ्यों, और वस्तुओं को लोगों तक पहुंचाने के लिए सरकार को अरबों रुपए विज्ञापन में खर्च करने पड़ते हैं। वहीं पर बिना किसी पैसे को खर्च किए सिर्फ एक तथ्यहीन संदेश को सोशल मीडिया पर या आपसी बातचीत के द्वारा लोगों के बीच रखकर पलक झपकते पूरे देश में फैलाया जा सकता है। उसके लिए तर्क की वह कहानी गढ़ी जाती है, जिसका उत्तर देना ज्यादातर आसान नहीं होता है।

वर्तमान में विश्व में जिस तरह से कोरोना महामारी में पूरी मानव सभ्यता को प्रभावित किया है और लाखों लोगों की जान गयी है। उसमें वैश्विक स्तर पर यूरोपीय और अमेरिकन देशों की तरह भारत ने भी पहली बार अत्यंत अल्प काल में अपनी वैक्सीन को बना कर खड़ा किया है लेकिन प्रजातंत्र में सत्ता पाने का सबसे सरल तरीका है जनता को प्रभावित करना।

ऐसे में विपक्ष हमेशा लोमड़ी की तरह जनता के बीच ऐसी बातों को परोस देता है। जिसके पीछे जनता दौड़ते हुए सही बातों को नकारने लगती है। उसके लिए खुद का जीवन छोटा हो जाता है और मौत को अपनाने के लिए वह ज्यादा तत्पर हो जाता है। यही स्थिति कोरोना वैक्सीन को लेकर यह अफवाह फैलाने की ज्यादा देखी जाती है कि कोरोना वैक्सीन लगाने के बाद शरीर में चुंबकीय गुण पैदा हो जाते हैं।

इस बात पर कोई विचार करना ही नहीं चाहता कि चुंबकीय गुणों यदि पैदा होते हैं तो इससे शरीर को नुकसान क्या है? वैसे भी शरीर के अंदर रक्त में इतनी अल्प मात्रा में लौह तत्व होते हैं। जिनमें इतना गहरा चुंबकीय आकर्षण नहीं हो सकता कि वह शरीर पर मोबाइल, चम्मच, थाली प्लेट चिपका सकें।
इस तरह की बातों से एक अफवाह फैला कर लोगों के बीच वैक्सीन को लोकप्रिय ना बनने देने का कार्य चल रहा है जबकि इसके पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि मानव शरीर में हथेली, ओंठ और पैर की एड़ी को छोड़कर पूरे शरीर में तेल की ग्रंथियां पाई जाती है।

इन्हीं तेल ग्रंथियों की उपस्थिति के कारण शरीर में कोई भी पदार्थ आसानी से चिपकाया जा सकता है। कोई भी व्यक्ति बिना वैक्सीन लगवाए अपने शरीर में कहीं पर भी सिक्के चिपका कर देख सकता है। इसके अतिरिक्त मानव शरीर की कोशिकाएं इलास्टिक या प्रत्यास्थ होती हैं। जिनके शरीर में प्रत्यास्थता ज्यादा होती है, उनमें चीजों को पकड़ने की क्षमता ज्यादा होती है।

इसलिए भी शरीर पर चीजों के चिपकने का स्तर अलग अलग होता है। बिना वैक्सीन लगाए भी कोई भी व्यक्ति अपने शरीर पर कोई भी सामान को चिपका कर देख सकता है क्योकि पसीने के कारण भी शरीर में वस्तुएं चिपक जाती है। ऐसे में इस अफवाह को वैज्ञानिक आधार पर नकारने की आवश्यकता है और लोगों को वैज्ञानिक सोच के साथ जोड़ने की आवश्यकता है ताकि एक वरदान के रूप में उपलब्ध हुई वैक्सीन को मानवता के लिए बेहतर तरीके से उपयोग किया जा सके। प्रजातंत्र में प्रत्येक व्यक्ति, पार्टी, पक्ष-विपक्ष का यही मुख्य कर्तव्य है।

डॉ आलोक चांटिया (लेखक विगत दो दशक से मानवाधिकार जागरूकता कार्यक्रम से जुड़े है)