चिंकारा : सादगी व सौन्दर्य मनमोह ले

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सौन्दर्य व सादगी देख मनमोह ले। जी हां, वन्य जीव श्रंखला में सौन्दर्य शास्त्र से खिले पशु-पक्षियों की कहीं कोई कमी नहीं। सौन्दर्य से लबरेज पशु-पक्षियों में ‘चिंकारा” की अपनी एक अलग खास अहमियत है। ‘चिंकारा” की मखमली त्वचा उसे खूबसूरत बनाती है तो वहीं उसका भोलापन दर्शकों व वन्य जीव प्रेमियों को आकर्षित करता है।

चिंकारा दुनिया में खास तौर से दक्षिण एशिया के भारत, बांगला देश, ईरान, पाकिस्तान, नेपाल आदि में बहुतायत में पाया जाने वाला वन्य जीव है। हिरन की शक्ल-ओ-सूरत से मिलने-जुलने वाला चिंकारा घास के मैदानी इलाकों व मरुस्थलों में पाया जाता है। करीब तेइस से पच्चीस किलो वजन वाला चिंकारा किसी को भी बरबस अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। चिंकारा की ऊंचाई भी करीब पैंसठ सेंटीमीटर के आसपास होती है।

चिंकारा की त्वचा का रंग भी मौसम के हिसाब से बदलता रहता है लेकिन रंग कभी गहरा तो कभी हल्का हो जाता है। गर्मियों में चिंकारा की त्वचा का रंग लाल व भूरा होता है। सर्दियों में यह रंग गहरा हो जाता है। चिंकारा के सींग उन्तालिस से चालीस सेंटीमीटर लम्बे होते है। सींग का उपयोग चिंकारा अपनी रक्षा के लिए करते हैं। वन्य जीव श्रंखला में चिंकारा बेहद शर्मिला व एकांकी होता है। एकांकी होने के बावजूद चिंकारा को झुण्ड से भी कोई खास परहेज नहीं होता क्योंकि कई बार यह चार से पांच के झुण्ड या इससे अधिक समूह में दिख जायेंगे।

चिंकारा इंसानी आबादी से अलग व दूर रहना पसंद करते है। इसके पीछे उनका एकंाकी स्वभाव होता है। चिंकारा देश के राजस्थान का राज्य पशु घोषित है। हालांकि राजस्थान में दो पशुओं को राज्य पशु का दर्जा हासिल है लेकिन राज्य पशु का दर्जा चिंकारा को पहले दिया गया था। चिंकारा को राज्य पशु का दर्जा देने के काफी बाद ऊंट को राज्य पशु का दर्जा दिया गया था।

इससे साफ जाहिर है कि चिंकारा राजस्थान प्रशासन की पहली पसंद रहा। चिंकारा एक ऐसा वन्य जीव है जो बिना पानी लम्बे समय तक आसानी से रह सकता है। वन्य जीव विशेषज्ञों की मानें तो चिंकारा की आंख से निकलने वाले आंसुओं को गजला कहा जाता है। वन्य जीव गणना के मुताबिक चिंकारा आबादी बढ़ रही है। वर्ष 2014 की गणना में चिंकारा की आबादी 3235 से बढ़कर 3523 बतायी गयी है। चिंकारा की आबादी कहीं घट रही है तो कहीं बढ़ रही है।

राजस्थान के डूंगरपुर के जंगलों में चिंकारा घट गये तो वहीं सिरोही के जंगलों में इनकी संख्या 98 से बढ़कर 113 से अधिक हो गयी। हालांकि चिंकारा को संरक्षण देने व उसका अस्तित्व बचाने के लिए भिवानी में चिंकारा प्रजनन केन्द्र की स्थापना की गयी है। इस प्रजनन केन्द्र का क्षेत्रफल करीब साठ एकड़ है। चिंकारा को इस प्रजनन केन्द्र में कुलांचे भरते देखा जा सकता है।

चिंकारा के अस्तित्व रक्षा के लिए आवश्यक है कि वन्य जीव संरक्षण अधिनियम का सख्ती से अनुपालन होना चाहिए जिससे चिंकारा की शिकार से होने वाली मौतों को रोका जा सके। उसकी खूबसूरत त्वचा ही कई बार उसकी मौत का कारण बनती है। प्रकृति ने वन्य जीव की श्रंखला बतौर उपहार दी है। वन्य जीवन के सौन्दर्य व उनकी खासियत का लुफ्त उठाना चाहिए। वन्य जीवन को संरक्षण देना चाहिए। प्रकृति के इस उपहार को संरक्षण देंगे तो जीवन का आनन्द ले सकेंगे।