बैंक फ्रॉड बेशुमार, हालात बेकाबू

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उन्नत टेक्नोलॉजी और निरंतर बढ़ते कंप्यूटरीकरण के बावजूद देश के बैंकिंग क्षेत्र में धोखाधड़ी के मामले अप्रत्याशित गति से बढ़ रहे हैं। इस वर्ष अप्रैल से जून तक सिर्फ तीन महीनों में सार्वजनिक क्षेत्र के मात्र 12 बैंको में 19964 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी के मामले खतरे का सायरन बजा रहे हैं। सिर्फ तीन वित्तीय वर्षो में धोखाधड़ी के मामलों की संख्या 1329 प्रतिशत बढ़कर 84545 और इनमें समाहित धनराशि 351 प्रतिशत का उछाल लेते हुए 1.85 लाख करोड़ रुपए के पार चली गई। 2600 से अधिक मामलों में बैंक कर्मियों की मिलीभगत होना और भी चिंताजनक है।

रिजर्व बैंक से जुटाई गई जानकारी के अनुसार इस साल मार्च में समाप्त वित्तीय वर्ष में बैंकिंग क्षेत्र में धोखाधड़ी के कुल 84545 मामले आए और इनमें कुल 185772 करोड़ रुपए की धनराशि समाहित है। ये वित्तीय अपराध किए जाने में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक अव्वल रहे हैं, इस रिकॉर्ड पर पिछले तीन वित्तीय वर्षों से लगातार इन्हीं बैंकों का कब्जा कायम है। वित्तीय वर्ष 2017-18 में हुए हुए कुल 5916 मामलों में कुल समाहित 41167 करोड़ रुपए में से 38260 करोड़ रुपए की रकम सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में हुए मामलों में पाई गई । 2018-19 के वित्तीय वर्ष में कुल मामले 6801 खुल पाए और इनमें कुल धनराशि 71543 करोड़ रुपए थी, इसमें से 63283 करोड़ की रकम सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में हुई धोखाधड़ी में समाहित थी।

इन आंकडों ने 2019-20 में कुल 185772 करोड़ रुपए में से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 148400 करोड़ रुपए के स्तर पर पहुंच कर पिछले सारे रिकॉर्डो को ध्वस्त कर डाला। सबसे ज्यादा धोखाधड़ी के मामले ऋणों को लेकर दर्ज किए गए। जानकारों का कहना है कि अगर बैंक अधिकारी पूरी सजगता के साथ ऋण प्रस्तावों और उनस संबंधित दस्तावेजों की बारीकी से पड़ताल करने के बाद ऋण स्वीकृत करें तो काफी हद तक धोखाधड़ी को रोका जा सकता है। स्थिति इसके विपरीत है। पाया गया है कि कई बार बैंक कर्मी ही धोखाधड़ी में शामिल रहते रहे हैं। पिछले वित्तीय वर्ष 2019-20 को ही लीजिए 2668 मामलों में बैंक कर्मियों की मिलीभगत से 1783 करोड़ की धोखाधड़ी सामने आई।

विश्लेषण से पता चलता है कि पिछले तीन वित्तीय वर्षों में कुल 97262 मामलों में 2 लाख 98482 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी बैंक और बैंकिंग नियामक के रहते हुए हो गई? यही नही 2019-20 में तो हद हो गई। इतनी मशीनरी के होते हुए निजी क्षेत्र के बैंको ने तो सार्वजनिक क्षेत्र के अपने समकक्षों को भी पछाड दिया और धोखाधड़ी के मामलो की संख्या में 500 प्रतिशत की अप्रत्याशित बढ़ोतरी समूचे बैंकिंग क्षेत्र और इसके नियामकीय -पर्यवेक्षण तंत्र की असलियत खोल कर रख दी।

ताजा जानकारी है कि चालू वित्तीय वर्ष 2020-21 के पहले तीन महीनों -अप्रैल से जून के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र के बारह बैंकों में 19964 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी के 2867 मामले सामने आए । इसमें से 70 प्रतिशत मामले अकेले सबसे बड़े भारतीय स्टेट बैंक में हुए, इनमें 2325 करोड़ की रकम है। लेकिन बैंक ऑफ इंडिया ने सिर्फ 47 मामलों में 5124.87 करोड़ रुपए की धनराशि दर्ज कर स्टेट बैंक को भी बहुत पीछे छोड़ नंबर एक बन गया। केनरा बैंक पिछली तिमाही में 33 मामलों में 3885 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी के रिकॉर्ड के साथ रनर बना। बैंक ऑफ बड़ौदा में 60 मामले खुले जिनमें 2842.94 करोड़ रु. की धोखाधड़ी पाई गई।

बैंकिंग क्षेत्र के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार रिजर्व बैंक बैंक धोखाधड़ी के मामलों का पता लगाने और इनकी निगरानी में सुधार के लिए विभिन्न डाटाबेस और सूचना तंत्र की इंटरलाकिग कर रहा है, इसके लिए बैंको में 2015 में लागू शुरुआती चेतावनी संकेत (ईडब्ल्यूएस) प्रक्रिया (मैकेनिज्म) को उन्नत करने में लगा है। दो बिंदुओं को सामने रखना जरूरी है और सामयिक भी। रिजर्व बैंक ने 2019-20 की अपनी वार्षिक रिपोर्ट में ईडब्ल्यूएस के लचर क्रियान्वयन का दोष बैंकों पर मढ़ कर स्वयं को साफ ठहराया और यह भी कहा कि बैंकों की आडिट रिपोर्ट अनिश्चित और अनिर्णायक होती है तथा बैंकों के इंटर्नल आडिट में ईडब्ल्यूएस नहीं खोजे जा सकते।

प्रश्न है कि इस पर शीघ्रता से कदम क्यों नहीं उठाया गया? दूसरा बिंदु – रिजर्व बैंक के ही पूर्व डिप्टी गवर्नर के सी चक्रवर्ती ने, जो एक उच्चस्तरीय स्थायी समिति के अध्यक्ष थे, अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया था कि रिजर्व बैंक में पर्यवेक्षी दक्षता का अभाव है। कभी भी सार्वजनिक रूप से यह खुलासा नहीं किया जाता है कि सामने आए धोखाधड़ी के मामलों में कौन-कौन व्यक्ति दोषी ठहराये गए, उन पर कानूनी कार्रवाई कब कितनी की गई और रकम की भरपाई कितनी, कब और कैसे हुई। क्योंकि ये धन जमाकर्ताओं का होता है। करदाताओं से वसूल की गई धनराशि ही सरकारी पूंजी के रूप में बैंकों में लगी होती है।

प्रणतेश नारायण बाजपेयी