बंबू का कमाल, भारत में इससे दौड़ेंगी मोटर गाड़ियां

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बंबू का कमाल, इससे दौड़ेंगी मोटर गाड़ियां बहुत जल्दी, असम में विश्व की पहली बंबू रिफाइनरी……. आप, हम और सब जानते हैं कि मोटर गाड़ियां पेट्रोल और डीजल से चलती हैं, इधर बिजली (बैट्री में स्टोर्ड) चालित कारें, बसें और बाइक्स सड़कों पर फर्राटा भरते नज़र आते हैं। बतौर आटो ईंधन हाइड्रोजन भी लाइन में लगी हुई है। जल्दी ही बिजली के नक्शे कदम पर हाइड्रोजन भी पेट्रोल-डीजल की दूसरी सौतन बनकर आने की तैयारी में जुटी है। यहां तक की स्टोरी का काफी खुलासा हो चुका है। हम आपको एक सच से दो-चार कराने जा रहे हैं। वो यह है कि बांस-बम्बू भी कमर कसे मैदान -ए-ईंधन में उतरने को बेताब है।‌

एक सरकारी पेट्रोलियम कंपनी है नुमालीगढ़ रिफाइनरी लिमिटेड (एनआरएल), असम में इसकी रिफाइनरी है। उस इलाके में बांस की खेती प्रचुर मात्रा में होती है। रिसर्च के परिणामों के आधार पर कई साल पहले बांस से एथनाॅल बनाने का आइडिया आया और रिफाइनरी के शीर्ष प्रबंधन ने एक अलग ज्वाइंट वेंचर कंपनी का गठन किया जिसमें दो विदेशी ऊर्जा कंपनियों को पार्टनर बनाया गया। असम बायो-रिफाइनरी प्राइवेट लिमिटेड नाम की इस कंपनी में 50 प्रतिशत शेयर पूंजी एनआरएल की, और इतनी ही दो विदेशी ऊर्जा कंपनियों की लगी हुई है।

असम बायो-रिफाइनरी में फिनलैंड की सरकारी ऊर्जा कंपनी फाॅर्टम 28 प्रतिशत की भागीदार है, इसने 1.35 करोड़ यूरो की पूंजी लगाई हुई है। दूसरी कंपनी केमपोलिस 22 प्रतिशत की हिस्सेदार है, इसने 1.06 करोड़ यूरो का निवेश किया। इस तरह दोनों‌ विदेशी सहयोगियों ने कुल 2.41करोड़ यूरो (214करोड़ रुपए के लगभग) की पूंजी लगाई जबकि एनआरएल का भी इतना ही निवेश है। परियोजना की कुल लागत 1750 करोड़ रुपए है। एनआरएल के प्रबंध निदेशक भास्कर ज्योति फूकन का कहना है कि बांस से एथनाॅल का उत्पादन करने वाली यह विश्व की प्रथम रिफाइनरी है।

श्री फूकन बताते हैं कि एनआरएल के वरिष्ठ केमिकल इंजीनियर निलय दास ने ही बांस से एथनाॅल तैयार करने वाले उत्पादन संयंत्र की डिजाइनिंग और इंजीनियरिंग दोनों बनाईं हैं। श्री दास को तीस वर्षों का अनुभव है। पूर्वी असम के गोलाघाट में स्थित इस परियोजना पर बहुत तेजी से काम चल रहा है। चालू कलेंडर वर्ष में एथनाॅल का उत्पादन शुरू कर दिया जाएगा। निर्माणाधीन संयंत्र में सालाना 49 हजार टन यानी करीब 6 करोड़ लीटर एथनाॅल का उत्पादन करने की क्षमता होगी। श्री दास के अनुसार 1.2किलो ग्राम एथनाॅल बनाने के लिए लगभग चार किलो ग्राम बांस की जरूरत पड़ती है। पूरी क्षमता से उत्पादन करने के लिए सालाना 5 लाख टन (50लाख क्विंटल) बांस की जरूरत पड़ेगी। इसके लिए रिफाइनरी के आसपास निजी क्षेत्र के उद्यमियों की बम्बू चिपिंग फैक्ट्रियों से बांस खरीदा जाएगा।

इस परियोजना से 3200-3500 लोगों को रोजगार मिलने का अनुमान है। इस परियोजना में एथनाॅल के अलावा सह-उत्पादों के रूप में एसिटिक एसिड और परफ्यूरल्स (एक प्रकार का कार्बनिक रसायन) का उत्पादन भी होगा जिसे प्लास्टिक्स, एंटेसिड्स एडहेसिव, उर्वरक, फंगीसाइड्स और इंक बनाने में इस्तेमाल किया जाता है।

बताते चलें कि पेट्रोल में चालू साल में12 प्रतिशत से बढ़ाकर 2025 में 25 प्रतिशत एथनाॅल मिक्स करने के सरकारी लक्ष्य से देश में एथनाॅल उत्पादन में काफी वृद्धि हो रही है। बड़ी चीनी मिलें एथनाॅल क्षमता का लगातार विस्तार कर रही हैं और नए संयंत्र भी स्थापित किए जा रहे हैं। मौजूदा में देश में एक हजार करोड़ लीटर एथनाॅल उत्पादन क्षमता है और नई परियोजनाओं पर बीस हजार करोड़ रुपए से अधिक का निवेश ‌किया जा रहा है। एथनाॅल के प्रमुख उत्पादकों में आई डी पैरी( दक्षिण भारत में देश की सबसे पुरानी चीनी मिल), ग्लोबस स्प्रिट्स, श्री रेणुका शुगर्स, बजाज हिंदुस्तान, धामपुर शुगर, त्रिवेणी इंजीनियरिंग, इंडिया ग्लायकोल्स और सिंभावली शुगर हैं।

प्रणतेश बाजपेयी