संकट में है काला पहाड़ी बटेर

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# दुनिया भर में बटेर पंछी की करीब 32 जातियां प्रजातियां

# भारत में करीब एक दर्जन बटेर की प्रजातियां

घाघस बटेर भारत का जाना पहचाना पंछी है। भूरा चितला रंग होने के कारण इसे आसानी से पहचाना जा सकता है। इस की पीठ पर काली नूरी स्लेटी रंग की धारियां होती हैं। दुम छोटी और जो नुकीली होती है। सीना भूरा और हल्का लाल रंग का होता है। धूल में स्नान करने से बटेर पंछी के शरीर के कीड़े भाग जाते हैं।

वैसे तो बटेर पंछी दुनिया भर में पाए जाते हैं किंतु ऐसी अफ्रीका और अमेरिका में इनकी बहुतायत है। भारतीय उपमहाद्वीप में बटेर तीतर की ही तरह सू परिचित पक्षी है। मैदानी बटेर से लेकर पहाड़ी बटेर तक भारत में किसी समय खूब पाए जाते थे। बटेर के स्वादिष्ट और गुणकारी मांस के कारण शिकारियों ने इसका बहुत शिकार किया है आज या पंछी लुप्तप्राय होने की स्थिति में है।

वैसे तो कई लोग बटेर पंछी पालते हैं और उसके अंडे बच्चे और मांस बेचने का धंधा करते हैं। पर आज बटेर के लुप्त हो जाने से  सरकार ने चिंता जताई है। इस पंछी को संरक्षित पंछी घोषित किया गया है। बटेर के मारने पर कठोर सजा का प्रावधान है। खतरा आने पर बहुत सीटी बजाता हुआ बटेर पंछी उड़ जाता है और किसी झाड़ी में जाकर छिप जाता है। शिकारियों ने तीतर और बटेर पकड़ने के तरह-तरह के जाल बुन रखे हैं । इसका प्रजनन काल जून-जुलाई में होता है। लंबाई करीब 9 इंच तक पाई गई है।

बटेर जमीन पर रहने वाला पंछी है। यह झाड़ियों में रहता है। आसपास के खेतों खलिहनों मैदानों में दाने चुगता है और झूठे झूठे कीड़े मकोड़े खा जाता है। नर और मादा एक ही रूप रंग के होते हैं। इन की लंबाई 8 इंच होती है। वैसे पर प्रवासी पक्षी है। जाड़ा शुरू होते ही उत्तर दिशा की ओर से मैदानों में आता है और फिर दक्षिण भारत तक फैल जाता है। वैसे तो से अकेले ही शिकार तलाशते दाना चुगत्ते देखा जा सकता है पर यह पक्षी 10 या 12 के झुंड में भी रहता है। यह पक्षी किसी घनी झाड़ी में जमीन पर गड्ढा खोदकर अपना घोंसला बनाता है।

मादा मई-जून से लेकर सितंबर तक 6 से लेकर 8 घंटे तक देती हैं। करीब 4 सप्ताह बाद अंडों से बच्चे निकलते हैं और पहले दिन से उड़ने लग जाते हैं। मादा बटेर अपने बच्चों को अपने पीछे लेकर चलती है। शिकारियों के आने पर पंख फड़फड़ा का उड़ जाती है या जमीन में चिपक कर बैठ जाती है। इसे वर्तिका, बट आई बटेरा बड़ गंजा आदि नामों से पुकारते हैं। बटेर चिड़िया जमीन पर ही अपना घोंसला बनाती है और अंडे देती है। खतरे की आशंका भापकर बटेर जमीन पर तेज दौड़ लगाता है और फिर उड़ जाता है।

जिनिंग बटेर की लंबाई करीब 6 से 7 इंच होती है। यह बटेर  हिमालय की 4000 फुट की ऊंचाइयों से लेकर मैदानी इलाकों तक पाया जाता है। जून से अक्टूबर तक इसका प्रजनन काल होता है।

छोटा बटेर जिसे गिरिजा बटई भी कहते हैं। इसकी लंबाई 5 से 6 इंच होती है। घास गेहूं धान की फसलों के आसपास इसे देखा जा सकता है। कभी-कभी अकेले और कभी-कभी पंद्रह बीस चिड़ियों का झुंड होता है। इनके शिकारियों में मनुष्य लोमड़ी कुत्ते सियार सांप नेवले होते हैं। इनसे बचने के लिए जमीन पर बहुत तेज दौड़ लगाता है। खतरा करीब होने पर बहुत देर पंख फड़फड़ा कर उड़ जाता है और फिर किसी झाड़ी में जाकर छिप जाता है। सितंबर से अप्रैल तक इसका प्रजनन काल है।

रोली बटेर: इसकी लंबाई 5 इंच होती है। नर और मादा के रंग में थोड़ा अंतर होता है। यह गुजरात कच्छ राजस्थान दक्षिण भारत के कई इलाकों में दाना खाना की तलाश में जाता है। रोली और गिरजा बटई एकसाथ रहना नहीं पसंद करते।

ककूनी बटेर और सरसैया बटेर हमारे देश का बारहमासी पक्षी है। मध्यप्रदेश में सरगुजा से लेकर छत्तीसगढ़ तक इसे आसानी से देखा जा सकता है। इसे छोटी-छोटी पहाड़ियों की झाड़ियों में रहना अच्छा लगता है। टू टों टू टू बोली बोलते हैं।

गोपाल बटेर और गुड़रू बटेर की लंबाई 6 इंच तक होती है अपने गोल मटोल शरीर के कारण इन्हें आसानी से पहचाना जा सकता है। झाड़ी में जमीन खोदकर उसने घास पूछ इकट्ठा कर गुंबद नुमा घोंसला बनाता है।

पहाड़ी बटेर सबसे महत्वपूर्ण पंछी है। इसका रंग जैतून रंग से मिलता जुलता भूरा होता है। पीठ पर काली धारियां और गला काला होने के कारण इसे काला बटेर भी कहते हैं। उत्तराखंड, कश्मीर पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाता है। इसका मुख्य भोजन दाना बीज कीड़े मकोड़े हैं। अक्सर इसे जोड़े के साथ देखा जा सकता है किंतु 10, 12 बटेर एक झुंड में भी हो पाए जाते हैं। काली पहाड़ी बटेर का मांस बहुत स्वादिष्ट होता है।

इस कारण शिकारियों ने इसका अंधाधुंध शिकार किया है और आज यह विलुप्त प्राय पंछियों की श्रेणी में है। अंधविश्वास है कि काले बटेर का मांस खाने से पौरूष शक्ति बढ़ती है इसलिए इसका अंधाधुंध शिकार किया गया। बड़ी-बड़ी राजधानियों के पांच सितारा होटलों में बटेर का मांस बड़ी ऊंची कीमत पर मिलता है। पहाड़ी बटेर के अंडे बच्चे और बटेर पंछी विदेश तक भेजे जाते हैं।

प्रकृति ने हमारे आसपास सुंदर पशु पक्षी बनाए हैं किंतु यह मारकर खाने के लिए नहीं है। जहां तक हो सके इन सुंदर पशु पक्षियों का संरक्षण करना चाहिए ता कि पर्यावरण संतुलित बना रहे हैं।

# शिवचरण चौहान