पाकिस्तान को कड़ा जवाब देने का सही समय

एक और कारगिल की आशंका........ पाकिस्तान को कड़ा जवाब देने का समय..... जैसे कि समाचार आ रहे हैं, पाकिस्तान ने जम्मू एवं कश्मीर में घुसपैठ

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एक और कारगिल की आशंका…….. पाकिस्तान को कड़ा जवाब देने का समय….. जैसे कि समाचार आ रहे हैं, पाकिस्तान ने जम्मू एवं कश्मीर में घुसपैठ की बड़ी योजना प्रारंभ कर दी है. मुजफ्फराबाद में छह सौ एसएसजी कमांडोज की यूनिट की लाई गयी है एवं उनके कमांडिंग आफिसर सईद सलीम जांजुआ का भी नाम सामने आया है. अभी कुछ ही दिन पहले प्रशिक्षित आतंकियों द्वारा जम्मू के रियासी शिवकोटी जा रहे तीर्थयात्रियों पर हमला किया गया. बिलावर कठुआ में और डोडा में सेनाओं पर हमला हुआ है. भारतीय सीमा में इतने अंदर आकर आक्रमण की उनकी रणनीति से स्पष्ट हो रहा है कि वे उच्चस्तरीय प्रशिक्षित हैं. घुसपैठ रुक नहीं रही है और एक सौ से ऊपर कमांडो प्रशिक्षित आतंकी सक्रिय हैं. भारत सरकार ने संज्ञान लेते हुए बीएसएफ के उच्चाधिकारियों को हटा दिया है.

कश्मीर अब अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दा नहीं रहा इसलिए पाकिस्तान का उद्देश्य कश्मीर मुद्दे को पूर्ववत् अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य पर स्थापित करना है. पाकिस्तान को चीन की शह है. अमेरिकी वरदहस्त के कारण आईएमएफ से प्राप्त हुए वित्तीय सहयोग ने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को सांस लेने भर की गुंजाइश दे दी है. अमेरिका के पाकिस्तानी प्रेम का प्रकट लक्ष्य तो उसे चीन से दूर करना है पर भारत को नियंत्रित करने के लिए पाकिस्तान को जिंदा रखना और कश्मीर को एक अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दा बनाए रहना भी जरूरी है. प्रधानमंत्री मोदी की रूस यात्रा के बाद अमेरिकी राजदूत एरिक गारसेटी ने भारत के रणनैतिक आत्मनिर्भरता के तर्क पर कहा था कि कोई युद्ध बहुत दूर नहीं होता. हमारे सम्बंध गहरे तो हैं पर इतने गहरे भी नहीं कि आप जो चाहें वो कर डालें. यह बयान क्या था, एक चेतावनी थी. विदेशमंत्री जयशंकर ने इसका तीखा जवाब दिया था.

बांग्लादेश चुनाव में दखल की कोशिश, सेंट मार्टिन द्वीप की मांग भारत के चुनावों को प्रभावित करने के प्रयासों के फलस्वरूप अमेरिका से भारत के सम्बंधों में वह गर्मजोशी नहीं रही. अत: इस बात ने पाकिस्तान को निश्चय ही आत्मविश्वास दिया है. पाकिस्तान के इस कारगिल जैसे घुसपैठ प्लान से भी यह स्पष्ट है कि उसके लिए भारत से युद्धविराम की अब कोई उपयोगिता नहीं रह गयी है. भारत के लिए चीन सीमा पर इस सेक्टर से हटाकर अपनी सेनाएं भेज पाना अवश्य संभव हुआ है लेकिन भारत के लिए भी यह युद्धविराम अर्थहीन हो चुका है.

सवाल यह है कि पाकिस्तान का तात्कालिक उद्देश्य क्या है ? अनुच्छेद 370 व 35 ए के हटने व पंचायत चुनावों से कश्मीर के वातावरण में आए गुणात्मक परिवर्तन ने वहां अलगाववादी तर्कों को दरकिनार कर विकास रोजगार का प्रबल संभावनाएं बना दी हैं. परिवारवादी राजनीति को हाशिये पर ढकेल कर नया विकासोन्मुख नेतृत्व की खड़ा होने लगा है. ऐसा लग रहा है कि पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान आतंकवादी घटनाओं में वृद्धि करके सितंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों को प्रभावित एवं विवादित करना चाहता है जिससे वे यहां लोकतंत्र बहाली के तर्क को खारिज कर सकें. लोकसभा चुनाव के समान 58 प्रतिशत जैसी वोटिंग यदि पुनः दोहरा दी गयी तो यह माना जाएगा कि कश्मीरी जनमानस ने भारत के साथ अपने भविष्य को जोड़ कर आगे बढ़ने का निर्णय ले लिया है. फिर तो कश्मीर समस्या का भूत दफन होने से पाकिस्तान के अस्तित्व पर एक बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा. वे अपनी जनता को बताते आए हैं कि कश्मीर तो उनकी शहरग अर्थात् गले की नस है, उसे वे लेकर रहेंगे. मशहूर पाकिस्तानी कालमिस्ट अख्तर निसार ने पाक सेना पर व्यंग करते हुए कहा था, ये कैसी शहरग है जिसके बगैर भी हम सत्तर सालों से जिंदा है. पाकिस्तानी सेना को अब वहां चुनौतियां मिलने लगी हैं. कश्मीर तर्क का फरेब खत्म हो जाने के बाद, क्षेत्रीयता की ओर बढ़ रहे पाकिस्तान के लोकतांत्रिक दलों को सेना भला कैसे नियंत्रित कर पाएगी ? जैसे ही कश्मीर मुद्दा, विवाद की मेज से बाहर हुआ तो पाकिस्तान को गृहयुद्ध के उस आशंकित परिदृश्य से कौन रोक पाएगा जिसकी पठान व बलोच क्षेत्रों में अभी से झलकियां दिखने लगी हैं. ये वे सवाल हैं जिनसे पाकिस्तान का सामना है.

अब उनके पास आंतरिक स्थितियों से आम जनता का ध्यान हटा कर, भारत व हिंदू शत्रुता के एजेण्डे पर काम करना ही एकमात्र रास्ता रह गया है. उन्होंने कारगिल में देखा है कि भारत शरीफों की तरह युद्ध लड़ता है. कब्जे वाले क्षेत्रों में चाहे वह कश्मीर ही क्यों न हो, प्रवेश नहीं करता. अतः ऐसे सीमित युद्ध के परिणामों से उनके सामने कोई अस्तित्व का संकट खड़ा नहीं होगा. साथ ही चीन अमेरिका को राजनय एक बड़ी संभावना दिखेगी. इस तरह संयुक्त राष्ट्रसंघ, मुस्लिम देश व भारतीय विपक्ष के सहयोग से कश्मीर को वापस अंतरराष्ट्रीय विवाद के केंद्र में ले आना संभव होगा. उन्हें अंदाजा है कि घुसपैठ की इस उच्च स्तरीय योजना पर भारत की संभावित सैन्य प्रतिक्रिया क्या हो सकती है.

हमने देखा है कि अंतरराष्ट्रीय शक्ति संतुलन का दुर्भाग्यपूर्ण पक्ष यह है कि विश्व में प्रायः युद्ध ही समस्याओं का अंतिम समाधान करते दिखते हैं. शांतिवार्ताएं स्थायी समाधान नहीं दे पातीं. 1947 से लेकर कारगिल तक पाकिस्तान के सौजन्य से हम पर चार युद्ध लाद दिये गये थे. हर युद्ध परोक्ष युद्ध के रूप में ही प्रारंभ होता है. यदि आत्मप्रशंसा से प्रेरित हमारे रणनीति विहीन नेतृत्वों ने इन युद्धों में आत्मसमर्पणकारी सोच का घालमेल न करके सैन्यशक्ति व राजनय का समुचित उपयोग किया होता तो कश्मीर समस्या का समाधान बहुत पहले हो गया होता. देश किस सीमा तक जाकर अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हैं, हमारे सामने आज इजरायल-हमास और रूस-यूक्रेन युद्ध इसके उदाहरणों की तरह हैं. युद्धों के अपनी स्वाभाविक परिणति तक पहुंचने के बाद ही शांतिवार्ताओं के लिए स्थान बनता है. यह भी एक बड़ा सत्य है कि युद्धों के बाद ही अस्थिरताओं का समापन होता है एवं शांति व विकास के लम्बे दौर आते हैं.

अब यह तो स्पष्ट ही है कि कश्मीर में आतंकवाद को सक्रिय कर पाकिस्तान ने परोक्ष युद्ध प्रारंभ कर दिया है. सवाल यह है कि हमारा जवाब किस तरह होगा ? इतिहास गवाह है कि हमारे नेताओं ने देश को बांट कर आजादी का सौदा किया था. कश्मीर को बांट कर वहां भी शांति खरीदनी चाही. अपनी इन आत्मघाती नीतिगत बाध्यताओं के कारण हमने कभी भी कश्मीर समस्या के स्थायी समाधान के लिए इन परोक्ष युद्धों में निर्णायक रूप से पाकिस्तान को पराजित करने का लक्ष्य ही नहीं बनाया था. हमने बहुत समय व्यर्थताओं में व्यय कर दिया है. आज की परिस्थितियां हमसे अपेक्षा करती हैं कि हम अपने दृष्टिकोण में आधारभूत नीतिगत परिवर्तन के साथ लक्ष्य नियत करें और राष्ट्रहित के मार्ग पर पूरी शक्ति से बढ़ने का निर्णय लें.

कैप्टेन आर.विक्रम सिंह
पूर्व सैनिक पूर्व प्रशासक