वक्फ कानून में विसंगतियों को लेकर लाए गए वक्फ संशोधन बिल के खिलाफ मुस्लिम समाज के नेता और मौलाना इस समय एकदम बौखलाए हुए हैं। उन्हें लगता है कि अगर यह संशोधन बिल पास हो गया तो उनका सब कुछ छिन जाएगा। हांलांकि सच्चाई इसके विपरीत है। फिर भी नेता और मौलाना मुस्लिम समाज को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि अगर यह संशोधन बिल पास हो गया तो मुसलमानों की मस्जिदें, मदरसे और कब्रिस्तान आदि उनसे छिन जाएंगे। किंतु सच यह भी है कि वक्फ की प्रॉपर्टी से आम मुसलमानों को कभी कोई लाभ हुआ ही नहीं। वक्फ की संपत्तियों पर तो चंद लोगों का कब्जा है। उन्होंने वक्फ की संपत्तियों पर अपना साम्राज्य खड़ा कर लिया है।
जहां देश के मंदिर सरकार को करोड़ों का टैक्स दे रहे हैं, वही वक्फ संपत्तियों पर इतने अवैध कब्जे हैं कि उनसे आय न के बराबर है। इसी कारण इनसे किसी आम मुस्लिम का भला नहीं हो पा रहा है। इस संशोधन बिल के खिलाफ जंतर मंतर पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से किये गये प्रदर्शन में लाए गए अधिकतर लोगों को यह मालूम ही नहीं था कि ये प्रदर्शन क्यों हो रहा है। उनसे सवाल किए जाने पर उनका एक ही जवाब था हमें नहीं मालूम। बाइट देने के लिए फलां व्यक्ति तय किया गया है, आप उनसे पूछिए। यानी कि प्रदर्शन में लोग आए नहीं लाए गए थे। वे स्टेक होल्डर नहीं थे। बस भीड़ को बुलाकर माहौल बनाने की कोशिश की गई। उधर खबर है कि मोदी सरकार ईद के बाद कभी भी बिल को संसद में चर्चा के लिए लाएगी।
देश में काफी अरसे से वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग की शिकायतें मिल रही थीं। आरोप है कि वक्फ बोर्ड की प्रॉपर्टी पर अवैध कब्जे से और उनके संचालन के तरीके से आम मुसलमान को कोई फायदा नहीं हो रहा है। विसंगतियों के खिलाफ आवाज उठने के बाद केंद्र सरकार ने मौजूदा वक्फ बिल में संशोधन करने का प्रस्ताव किया। पिछले संसद सत्र में यह बिल संसद में पेश भी किया गया। और फिर सदन की इच्छा के मुताबिक इसे जेपीसी के हवाले कर दिया गया था। लोस अध्यक्ष ओम बिरला ने इसके लिए 39 सदस्यीय जेपीसी का गठन कर इसका अध्यक्ष भाजपा के लोकसभा सांसद जगदंबिका पाल को बनाया। पाल कमेटी ने पिछले 31 जनवरी को जेपीसी की आखिरी बैठक कर कुछ संशोधनों वाला प्रस्तावित मसौदा लोकसभा अध्यक्ष को सौंप दिया था। फरवरी महीने में इसे दोनों सदनों में टेबल भी कर दिया गया था। अब वर्तमान संसद सत्र में ईद के बाद इस पर चर्चा होने की उम्मीद है। यह संसद सत्र चार अप्रैल तक चलने की उम्मीद है। उम्मीद है कि इसके पहले इस बिल पर आर-पार हो जाएगा। इसी चलते मुस्लिम पक्ष को बेचैनी है।
इस प्रस्तावित संशोधन से परेशान मुस्लिम नेताओं और मौलानाओं ने इसे शरीयत और खुदा के काम में दखल से जोड़ते हुए इसके खिलाफ आवाज उठाई है। इसी कारण सरकार पर दबाव बनाने के लिए दिल्ली के जंतर-मंतर पर बीते 17 मार्च को प्रदर्शन किया गया। प्रदर्शन का आह्वान मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने किया था, जिसमें कई मौलानाओं और मुस्लिम नेताओं ने शिरकत की थी। परंतु यह प्रदर्शन विवादों में आ गया है। क्योंकि इसमें शामिल होने आए तमाम लोगों को यही नहीं मालूम था कि वे प्रदर्शन करने क्यों आए हैं। उनके हाथों में लिखित तख्तियों पर क्या संदेश लिखा है, उन्हें यह भी नहीं मालूम था। जब उनसे इस बारे में पूछने की कोशिश की गई तो उनका कहना था कि हमें नहीं मालूम, आप फलां से बात कर लीजिए। यानी उनको ताकीद की गई थी कि तुम्हें कुछ नहीं बोलना है, बस तख्ती लेकर खड़े रहना है। कुछ लोगों ने बताया कि उन्हें तो बस नारा ए तकबीर के बाद अल्लाह हू अकबर बोलने को कहा गया है। इसके अलावा हम और कुछ नहीं जानते हैं। कुल मिलाकर मुस्लिम समाज का यह प्रदर्शन कोई ऐसा मैसेज नहीं छोड़ पाया जो वक्फ संशोधन बिल के खिलाफ सरकार पर दबाव की राजनीति का वॉयस बन सके। इसके अलावा कई मुस्लिम नेताओं पर आरोप है कि वक्फ की तमाम संपत्तियों पर उन्होंने अपना साम्राज्य खड़ा कर लिया हैं। ऐसे में उन्हें डर है कि अगर वक्फ संशोधन बिल पास हो गया तो उन्हें उनकी संपत्तियों से बेदखल होने की नौबत आ सकती है। इसी से तमाम मुस्लिम नेता व मौलाना बौखलाए हुए हैं। इस तरह का आरोप सबसे ज्यादा हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी पर लगा है। इसीलिए शायद ओवैसी इस मामले में कुछ ज्यादा ही मुखर हैं।
इस प्रदर्शन की खास बात यह रही कि इसके खिलाफ और इसके समानांतर विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल ने भी जंतर-मंतर के बाहर जोरदार प्रदर्शन किया। मुस्लिम समाज जहां वक्फ संशोधन बिल के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहा था, वही हिंदू समाज इस संशोधन बिल के समर्थन में आया था। उसने भी अपनी आवाज बुलंद की। हालांकि पुलिस ने हिंदुओं को जंतर मंतर में जाने नहीं दिया क्योंकि वह स्थान मुस्लिम समाज के प्रदर्शन के लिए आरक्षित था। अंततः निर्धारित समय बीतने के बाद मौलानाओं और मुस्लिम नेताओं का प्रदर्शन बिना किसी दबाव का संदेश दिए समाप्त हो गया।
वक्फ बिल के खिलाफ मुस्लिम संगठनों के कार्यकर्ताओं के प्रदर्शन पर बीजेपी लगातार उन्हें घेर रही है, तो वहीं मुस्लिम पक्ष भी बीजेपी पर कई तरह के आरोप लगा रहा है। प्रदर्शन कारियों ने आरोप लगाया कि सरकार वक्फ संपत्तियों को लूटने की कोशिश कर रही है। इसके अलावा आरोप यह भी है कि सरकार ने जेपीसी में विपक्ष द्वारा सुझाए गए संशोधनों पर भी विचार नहीं किया है। इसलिए हम इसका विरोध करते हैं।
इस बाबत आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अबू तालिब रहमानी ने कहा कि हम यहां लड़ने, धमकाने, या मुस्लिम समुदाय को ललकारने नहीं बल्कि अपने हकों के लिए आए हैं। उन्होंने कहा कि अगर शाकाहारी पत्नी मांसाहारी पति के साथ रह सकती है तो देश में हिंदू-मुसलमान एक साथ क्यों नहीं रह सकते हैं। उन्होंने आगे कहा कि मोदी कहते हैं कि उनके बचपन में ईद पर उनके घर में खाना नहीं बनता था। तो हम आज भी उन्हें शाकाहारी खाना भेज सकते हैं। पर अफसोस कि आज उनकी मोहब्बत का दरवाजा बंद हो गया है।
उन्होंने कहा कि जेपीसी ने भी बड़ी नाइंसाफी से काम लिया है। उसने स्टेकहोल्डर को छोड़कर नान स्टेक होल्डर से बात की। उन्होंने कहा कि आपको बांग्लादेश की हसीना अच्छी लगती हैं पर भारत का हुसैन अच्छा नहीं लगता है। इस बाबत मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि ये सिर्फ मुस्लिमों का मामला भर नहीं है, बल्कि मुल्क के दस्तूर का मामला है। हमारे घरों पर बुलडोजर चले ही हैं, अब संविधान पर भी बुलडोजर चलाने की कोशिश हो रही है। अब आगे क्या होगा तो ये तो सिर्फ शुरुआत है। उन्होंने कहा कि हर लड़ाई के लिए कुर्बानी की जरूरत होती है। इसलिए अब आप आराम से न बैठें, हमें अब कुर्बानी के लिए तैयार रहना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि वैसे भी ये मुसलमान का नहीं, संविधान का मामला है। हमारे घरों पर बुलडोजर चल रहे हैं, मस्जिद और मदारिस पर बुलडोजर चल रहे हैं। अब तो वक़्फ़ के जरिए संविधान पर बुलडोजर चलाने की कोशिश हो रही है। इसलिए हमें इसकी मुखालफत हर हाल में करनी है। मौलाना मदनी ने कहा कि अब बहुत हो गया, हमने बहुत सह लिया। पर अब नहीं, हमें इसके खिलाफ एकजुट होकर आवाज उठानी होगी।
वक्फ संशोधन बिल का विरोध करते हुए शिया धर्म गुरु कल्बे जवाद का कहना है कि यह वक्फ का बिल नहीं सांप का बिल है। ये हम सभी लोगों को डंस लेगा इसलिए इसका विरोध होना ही चाहिए। आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मोहम्मद अदीब ने धमकी भरे अंदाज में कहा है कि सरकार इस बिल को पास तो कराए, फिर देखे क्या होता है। हम इस बिल को पास कराने वाले और उनका साथ देने वालों को वो सबक सिखाएंगे कि वो याद रखेंगे। इस बाबत कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने कहा कि हम संसद से लेकर सड़क तक इस लड़ाई को लड़ेंगे। हम जेपीसी में भी बड़ी मजबूती से लड़े, पर हमारी आवाज दबा दी गई। उन्होंने कहा कि इस लड़ाई में हमें जहां खून देना होगा, खून देंगे। पर भाजपा के काले मंसूबों को पूरा नहीं होने देंगे। मोदी सरकार इस बिल को लाकर मुसलमानों का हक मारना चाहती है। उन्होंने कहा कि सरकार इस बिल के जरिए मुसलमानों के धार्मिक मामलों में दखल दे रही है, और हम ऐसा नहीं होने देंगे। मैं अपनी पार्टी की ओर से मुसलमानों को आश्वस्त करता हूं कि हम वक्फ बिल को पास नहीं होने देंगे। कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने भी कहा कि सरकार को समझना होगा कि इस संशोधन का बहुत विरोध हो रहा है। यह तो अच्छी बात है कि मुस्लिम अभी लोकतांत्रिक तरीके से उस तानाशाही का विरोध कर रहे हैं, जिसे सरकार थोपने की कोशिश कर रही है। उन्होंने सवाल किया कि क्या वे वक्फ की जमीनों को लूटकर अपने उद्योगपति दोस्तों को देना चाहते हैं? उन्होंने कहा कि अगर सरकार जेपीसी सदस्यों की राय नहीं सुनने वाली थी तो जेपीसी के गठन का नाटक ही क्यों किया। कांग्रेस नेता अमर सिंह ने आरोप लगाते हुए कहा कि बीजेपी और आरएसएस देश में कभी भी शांति का माहौल नहीं बनने देते हैं, यही उनका मुख्य मकसद है। इन्हें कभी मंदिर, कभी किसी मस्जिद या वक्फ के ऐसे मुद्दे उठाते रहना है जो कि इनके वोट बैंक को मजबूत करते रहें। इसलिए ये हटेंगे नहीं, वे और मुद्दे लेकर आ जाएंगे। उन्होंने आरोप लगाया कि ये अगर वक्फ संशोधन बिल पास करा लेंगे तो उसके बाद कुछ और लेकर आ जाएंगे। पर अब समय आ गया है कि आप मुसलमानों के हित में सोचने की कोशिश करें।
मुस्लिम समुदाय के इस आंदोलन को समर्थन देते हुए सिख पर्सनल लॉ बोर्ड के संयोजक प्रो. जगमोहन सिंह ने कहा कि इस कानून को रोकने के लिए एक बार फिर से बॉर्डर सील करने पड़े तो हम करेंगे। उन्होंने कहा कि आप चाहें तो पंजाब में डेरा लगाइए, हम आपके साथ हैं। हमारा मानना है कि मुसलमानों की लड़ाई हमारी लड़ाई है और हमारी लड़ाई मुस्लिमों की लड़ाई है। अयोध्या के सांसद अवधेश प्रसाद का कहना है कि हम लोग वक्फ बिल को किसी कीमत पर पास नहीं होने देंगे। इसका हर स्तर पर विरोध किया जाएगा। सपा सांसद धर्मेंद्र यादव का भी यही कहना है कि हम इस बिल को कभी पास नहीं होने देंगे। और इसके लिए जितनी भी कुर्बानी देनी होगी हम देंगे। वक्फ संशोधन बिल के मुखर विरोधी एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी का कहना है कि इसके जरिए भाजपा सरकार भारत के मुसलमानों को मस्जिदों, खानकाहों और मदारिसों से महरूम करने की कोशिश कर रही है। वह हमारे धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप की कोशिश कर रही है और हम यह होने नहीं देंगे। उनका आरोप है कि भाजपा की नजर वक्फ की प्रॉपर्टी पर है, जो खुदा की अमानत है। इसलिए अब हमें इसका विरोध करना होगा। उन्होंने आरोप लगाया कि इस मामले में भाजपा सरकार की नीयत में ही खोट है।
उधर इस बारे में मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी, जो कभी प्रयागराज महाकुंभ की 55 एकड़ जमीन पर वक्फ बोर्ड का दावा कर चर्चा में आए थे, ने कहा है कि आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अपने रास्ते से भटक गई है। अब ये सियासतदां की तरह काम कर रही है। और यह मुस्लिम समाज के हित में नहीं है। उनका मानना है कि इस प्रदर्शन की कोई जरूरत नहीं थी। इसका विरोध संसद में चर्चा के दौरान किया जाना चाहिए। इस तरह के विरोध से कोई फायदा नहीं होने वाला है। मौलाना बरेलवी का कहना है कि ओवैसी जैसे लोग मुसलमानों को गुमराह कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि देश के किसी मुसलमान को कोई खतरा नहीं है, किसी मस्जिद को भी खतरा नहीं है। लोगों को ऐसी बातों से बाज आना चाहिए। इसके अलावा शिवसेना उद्धव ठाकरे की प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी और तृणमूल कांग्रेस के नेता सौगत राय का भी कहना है कि अभी इस प्रदर्शन का कोई मतलब नहीं है। जब ये बिल संसद में चर्चा के लिए रखा जाएगा, तब देखा जाएगा।
इस बाबत भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव तरुण चुघ ने कहा कि वक्फ प्रापर्टी को भू-माफिया के हाथों से निकालकर गरीबों के हाथ में देना ही देश के हर मुसलमान और देश के हर नागरिक की मांग है। पर कुछ लोग भू माफियाओं के इशारों पर काम कर रहे हैं। मैं इन संगठनों से कहना चाहूंगा कि विरोध के नाम पर भू-माफियाओं के प्रति प्रेम दिखाने के बजाय गरीबों और मुसलमानों के हित में सोचने की कोशिश करें।
जंतर-मंतर के प्रदर्शन और नागपुर बवाल का जुड़ाव : वैसे तो जंतर-मंतर पर वक्फ संशोधन बिल के खिलाफ हुए प्रदर्शन और नागपुर में हुए बवाल का कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है परन्तु एक बात इन दोनों को जोड़ती है। और वह है एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी और आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मोहम्मद अदीब का दोनों से जुड़ाव। ओवैसी जहां दोनों मामलों में बयान देकर चर्चा में हैं, वहीं मोहम्मद अदीब के साथ भी कुछ ऐसा ही है। ओवैसी अगर वक्फ संशोधन बिल को लेकर सरकार पर हमलावर हैं तो औरंगजेब की मजार को लेकर भी चर्चा में हैं। वे कभी भी औरंगजेब की बुराई करते नहीं देखे गए। बल्कि उनके भाई अकबरुद्दीन ओवैसी तो औरंगजेब की मजार पर सिजदा भी कर चुके हैं। इसके अलावा जिस अफवाह के चलते नागपुर में बवाल हुआ उसे सार्वजनिक रूप से कहने और फैलाने का काम भी ओवैसी और उनके प्रवक्ता वारिस पठान ने टीवी चैनलों पर किया। वे नागपुर के बवाल के लिए उसी कारण को जिम्मेदार मानते हुए पब्लिकली उसे प्रचारित भी करते हैं। इसलिए इस मामले में शक की सुई तो उनकी ओर भी जाती है। इस मामले में एक और नाम काबिले गौर है, और वह है आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मोहम्मद अदीब का नाम। जंतर-मंतर पर प्रदर्शन के दौरान वे कहते हैं कि सरकार वक्फ संशोधन बिल पास करा कर तो देखे कि फिर क्या होता है। और उसके दूसरे ही दिन नागपुर में बवाल हो जाता है। और बवाल भी उस नागपुर में जो हमेशा इस तरह के बवाल से अछूता रहा है। तो क्या नागपुर में हुआ बवाल उसी धमकी का नतीजा था, सवाल तो बनता है। सवाल यह भी जायज है कि नागपुर में बवाल के समय इलाके के सभी मुस्लिमों की वे गाड़ियां कहां चली गईं, जो हमेशा रात भर सड़क पर ही खड़ी रहती थीं। सवाल यह भी उठता है कि इस बवाल में सिर्फ हिंदुओं के वाहनों, सम्पत्तियों और घरों को ही क्यों नुकसान पहुंचाया गया, क्या यह टारगेटेड हमला था। इस बाबत ओवैसी की पार्टी में शामिल कुछ हिंदू नेताओं ने नाम न उजागर करने की शर्त पर बताया कि जंतर-मंतर के प्रदर्शन से पार्टी के नेता बहुत संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगा कि जंतर-मंतर की आवाज ठीक से सरकार तक नहीं पहुंच पाई है। उनसे जब यह पूछा गया कि क्या नागपुर का बवाल जंतर-मंतर के प्रदर्शन को सपोर्ट देने के लिए हुआ है, उन्होंने कहा कि उनके पास इस तरह की कोई जानकारी नहीं है। खैर, ओवैसी की पार्टी के नेता जो भी कहें पर शक तो हो सकता है। इस मामले में इतना तो स्पष्ट है कि नागपुर का बवाल अनायास नहीं हुआ है, इसकी बाकायदा रणनीति रची गई। अन्यथा उस रात मुसलमानों की गाड़ियां अपने घरों के बाहर क्यों खड़ी नहीं थीं, और क्यों सिर्फ हिंदुओं के घरों और उनकी गाड़ियों और उनकी संपत्तियों पर ही हमले किए गए। ऐसे में सवाल उठना तो लाजमी है। अऊ यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा कि नागपुर में बवाल के पीछे किन ताकतों का हाथ है। किंतु जिस तरह से इस मामले को धार्मिक रंग देने की कोशिश की गई है उससे तो ही लगता है कि इस मामले में हैदराबाद वाली पार्टी का जुड़ाव हो सकता है। जहां तक सवाल शिवसेना यूबीटी की बात है तो वह तो मौके पर चौका मारने की रणनीति पर काम कर रही है। क्योंकि विवाद हो गया है तो उसे उसका पॉलीटिकल माइलेज तो लेना ही है।
अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक