विदेशी निवेशकों ने दिया 41 हजार करोड़ का झटका….. इधर विदेशी निवेशकों को भारतीय शेयर बाजार रास नहीं आ रहा। यूं तो कोरोना का तांडव जन-धन की अकल्पनीय क्षति का दुःख-दर्द देकर चला गया लेकिन भारत के पक्ष में मामूली ही सही पर समुद्ररूपी भारतीय शेयर बाजार के इतिहास में एक सकारात्मक प्रतिक्रिया भी दर्ज़ करा गया। कोरोना की दहशत से सहमा था 2020-21 का साल। दुनिया भर में भय और अनिश्चितता का माहौल था, भविष्य को लेकर वैश्विक आर्थिक जगत बुरी तरह आशंकित था।
ऐसे में विदेशी निवेशकों (एफपीआई-फाॅरेन पोर्टफोलिओ इन्वेस्टमेंट) ने भारतीय शेयर बाजार में अपनी फालतू पूंजी लगाना बेहतर समझा। लेकिन जैसे ही सुधार के संकेत आने शुरू हुए नहीं कि इन बाहरी धनकुबेरों ने अपनी चाल ही बदल दी। भारतीय शेयर बाजार के बीते दो साल विदेशी निवेशकों की ताबड़तोड़ बिकवाली के गवाह हैं। विश्लेषण रिपोर्ट आपके सामने पेश है। जैसाकि आर्थिक नीति कहती है कि धन वहीं लगाया जाए जहां पर पूंजी डूबने का जोखिम कम और कमाई अर्थात प्रतिफल अधिक प्राप्त हो सके। कोरोना तो वैश्विक महामारी थी।
भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से भारतीय शेयर बाजार औसतन ठीक_ठाक रिटर्न देने वाला माना जाता है। वित्तीय वर्ष 2020_21 को लेते हैं जिसमें विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार में 2लाख 74 हजार करोड़ रुपए का इक्विटी निवेश किया, पिछले पचीस सालों में किसी भी एक वित्तीय वर्ष में इतनी धनराशि भारतीय इक्विटी सेगमेंट में निवेश नहीं की गई, यह अपने आप में एक रिकॉर्ड है। इक्विटी का मतलब शेयर प्रतिभूतियों से है। निवेश का अर्थ खरीद से है। अपने यहां एफपीआई निवेशकों के चार विकल्प उपलब्ध हैं – इक्विटी, डेट इंस्ट्रूमेंट (ऋण प्रतिभूतियां जैसे -डिबेंचर,बांड), हाइब्रिड (ऋण और इक्विटी का मिला-जुला प्राॅडक्ट जैसे परिवर्तनीय बांड) और वीआरआर (वालंटरी रिटेंशन रूट)।
विदेशी निवेशकों (एफपीआई) ने इक्विटी के अलावा हाइब्रिड और वीवीआर सेगमेंट में 43 हजार 512 करोड़ रुपए की खरीद की, लेकिन डेट इंस्ट्रूमेंट सेगमेंट में 50 हजार 443 करोड़ रुपए की प्रतिभूतियों को बेच दिया। इस तरह से 2020-21 के खत्म होने तक स्थिति यह रही कि 2021, 31 मार्च को इन निवेशकों का 2 लाख 67 हजार 101करोड़ रुपया शुद्ध निवेश के तौर पर लगा हुआ था। इसके पूर्व वर्ष 2019-20 में इनकी खरीद राशि को घटा दी जाए तो बिकवाली से 27 हजार करोड़ रुपए से भी अधिक रकम भारतीय शेयर बाजार से निकाल ले गए।
एनएसडीएल से लिए गए आंकड़ों से पता चलता है कि वित्तीय वर्ष 2021_22 में एफपीआई शुद्ध बिकवाल रहे, अर्थात कुल मिलाकर बिक्री करके बाजार से रकम निकाल ले गए। इन्होंने डेट, हाइब्रिड -वीआरआर सेगमेंट में 17 हजार 768 करोड़ रुपए का माल खरीदा, लेकिन इक्विटी सेगमेंट में 1 लाख 40हजार करोड़ की बिकवाली के नतीजतन बाजार से 1 लाख 22 हजार 242 करोड़ रुपए खाली कर लिया।
आइए, पिछले माह 31 मार्च को खत्म हुए वित्तीय वर्ष 2022-23 में। आंकड़े बोलते हैं कि एफपीआई ने सिर्फ हाइब्रिड और वीवीआर सेगमेंट में बमुश्किल 5633 करोड़ रुपए की खरीद की- निवेश किया। ऋण प्रतिभूतियों में भी बिकवाली करके बाजार से 8 हजार 937 करोड़ रुपए निकाले। इन्होंने पूरे साल में 37 हजार 632 करोड़ रुपए के शेयरों को बेच डाला। लेखा-जोखा यह रहा कि लगातार बिकवाली से 2022-23 में 40 हजार 936 करोड़ रुपए बाजार से निकाले।
जानकारों के अनुसार इसके पीछे अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में लगातार वृद्धि, यूक्रेन -रूस युद्ध के साथ-साथ एशिया, यूरोप सहित अन्य कई अन्य स्थानों में भू-राजनीतिक अस्थिरता प्रमुख कारण हैं। एफपीआई निवेश के ट्रेंड में एक महत्वपूर्ण बदलाव हुआ है। 2022-23 में एफपीआई के टाॅप पांच निवेशक देशों में सर्वाधिक एसेट्स अंडर कस्टडी (एयूसी) अमेरिका की है, यह पूर्व वर्षों की भांति पहले स्थान पर काबिज है। माॅरिशस दूसरे स्थान से खिसक कर चौथे पायदान पर, सिंगापुर दूसरे नंबर पर, तीसरे स्थान पर लक्ज़मबर्ग और यूके पांचवें पायदान पर है।
प्रणतेश बाजपेयी